दिसंबर की वह सुबह कुछ अलग थी। आसमान धुँध से ढँका हुआ था, चारों ओर घना कोहरा…. मानो जिंदगी के सारे राज अपने धुंध में छिपाकर ही मानेगी। अस्पताल के बरामदे में बैठी 22 वर्षीय नेहा के चेहरे पर उदासी की मोटी परत जमी थी। माँ अंदर ICU में जीवन से जूझ रही थी, और बाहर नेहा… ज़िंदगी से।
नेहा पिछले कई वर्षों से महसूस करती कि कुछ है, जो उससे छिपाया गया है। परिवार के नाम पर केवल मां – बेटी ही थीं। पड़ोसियों के परिवार को जब नेहा देखती । एक टीस लिए वह माँ से पूछती, पर माँ की आँखें हर बार टल जातीं। “कुछ बातें समय से पहले जानना अच्छा नहीं होता,” माँ कहती।
पर अब, समय शायद ख़त्म हो रहा था।
ICU के भीतर, माँ की साँसें मशीनों के भरोसे थीं। नेहा उनका हाथ थामे असहाय सी बैठी थी । मां के आंख खोलते ही पहली बार आँखों में सीधे झाँक कर पूछा —“माँ, मैं जानना चाहती हूँ… अपने जीवन का सच…. । मेरा पिता कौन थे ?” मेरे दादा – दादी, नाना- नानी कहां है ? मेरा परिवार कहां है?
माँ की आँखों से एक आँसू ढुलक गया। काँपते होंठों से फुसफुसाहट निकली, कुछ कहना चाहती थीं लेकिन उनकी सांसें दगा दे गई। मां उसकी दुनिया से दूर नई दुनिया के लिए जा चुकी थी।माँ की आँखें बंद हो चुकी थीं, वर्षों से थमे राज को आज खोलने से पहले ही वह मुक्त हो गई । पंजर से लिपटकर नेहा बिलखती रही। अस्पताल के एक कर्मचारी के सहयोग से विधि- विधान से मां को अंतिम विदाई दी।
कुछ दिनों बाद नेहा एक दिन मां की फाइल में जरुरी कागजात देख रही थी। उसे एक लिफाफा मिला जिसमें एक पुराना ख़त था, जर्जर, पर अक्षर अब भी तेज़ थे।
> “प्रिय सरिता,
जब यह चिट्ठी तुम्हारे पास पहुँचे, शायद मैं इस दुनिया में न रहूँ।
हमने जो संबंध बाँधा, समाज ने उसे नाम नहीं दिया, पर मेरे लिए तुम मेरी आत्मा की संगिनी रहीं।
हमारी बेटी नेहा… वह मेरी संतान है, मेरा गर्व है।
मैं उसे अपने नाम से नहीं जोड़ पाया, पर तुम उसे अपनी सच्चाई से जोड़ना।
यह राज कभी मत छुपाना — क्योंकि उसकी पहचान किसी नाम की मोहताज नहीं, वह माँ की ताक़त की गवाह है।
— तुम्हारा,
डॉ. अरविंद मेहता”
……… सन्नाटे को चीरती हुई उसकी सांसें तेज चल रहीं थीं। शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था। उसके जीवन के सारे राज पत्र में उसके सामने थे। उसने मोबाइल पर इस नाम को सर्च करना शुरू किया।
डॉ. अरविंद — वही नाम जो शहर के सबसे प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञों में गिना जाता था, और जिनकी मृत्यु बहुत पहले एक सड़क दुर्घटना में हुई थी ।
नेहा सन्न रह गई। वह आदमी, जो समाज की दृष्टि में एक आदर्श पुरुष था, और माँ, जो एक “बिना नाम वाली औरत” कही जाती रही । उनकी प्रेम कहानी, ज़िम्मेदारी, और साहस — सब इस एक ख़त में बंद थे।
नेहा ने उस ख़त को न सिर्फ पढ़ा, बल्कि सार्वजनिक किया। एक ब्लॉग शुरू किया — “Unheard Mothers of India” — और उन हज़ारों स्त्रियों की कहानियाँ सामने लाने लगी, जो समाज की तंग सोच के कारण चुप रही थीं।
स्वरचित – भावना कुलश्रेष्ठ
मुहावरा – # राज खोलना