“राधा !ओ राधा, कभी तो एक बार में सुन लिया करो।चालीस साल हो गए हमारी शादी को।दुनिया कहां से कहां पहुंच गई, पर तुम जैसी की तैसी रह गई।एक तुम्हीं चलाती हो गृहस्थी इस दुनिया में।कमाल है भई।”
राधा को पति का यूं चिढ़कर ताने मारना बड़ा भाता था। जानबूझकर सुनती नहीं थी एक बार में।अरे!ऐसे कैसे सुन ले? फुरसतिया थोड़े ही बैठी रहती है वह।सौ काम होते हैं घर के।मजाल है जो कभी काम में हांथ बंटा दिया हो।
बीमार होने की भी इजाजत नहीं है उसे।पूरे मोहल्ले को खबर हो जाती है,कि राधा बीमार पड़ी है।हांफते हुए कहा उसने” अब क्या मुसीबत आ गई?घर के अंदर तो आ जाया करो।दरवाजे के बाहर से चिल्लाने लगते हो।अपनी आदत तो नहीं बदल पाए,बड़ा मुझे ताना देते हो।
पड़ते ना किसी जाहिल के पल्ले,बता देती गृहस्थी किसे कहते हैं।कमाने के अलावा कभी और कुछ किया है,स्वामी जी आपने?अब बताओ क्या हुआ?भंरवा करेले रखें हैं तवे पर,जल जाएंगे।”
” वाह!बहुत खूब।रविवार के दिन भी कड़वे करेले!भई छुट्टी के दिन तुम्हारी स्पेशल डिश का कोई जवाब ही नहीं।आस पड़ोस के घरों से पुलाव,तो कहीं छोले,कहीं मसाले वाले राजमा बन रहें हैं।एक हमारे घर पर बन रहा है
कड़वा करेला।मैं बाहर खाना खा लूंगा।खबरदार जो करेले खाने की जिद की।तंग आ गया हूं मैं,तुम्हारी मनमानी से।चालीस सालों में भी मेरी पसंद -नापसंद नहीं जान पाई तुम ।धन्य हो देवी।”पति ने जल-भुन कर कहा तो,राधा कहां थमने वाली थी।
एक ही झटके में कह डाला” खा लेना बाहर,मैंने कब रोका है?हो सके तो रोज का टिफिन लगवा लो।जीरा राइस और दम आलू बनाया है तुम्हारे लिए।दे दूंगी पड़ोस वाली मुक्ता भाभी को।टमाटर की खट्टी-मीठी खजूर वाली चटनी तो नहीं खाएंगे ना।
रही बात करेले की,तो वो मुझे पसंद है।क्या करूं,वही खाकर तो आप जैसे कड़वे आदमी को झेल रही हूं।”
” हुं,तुम कभी नहीं सुधरोगी नई?”बुढ़ापा आ गया,पर नाक फुलाए लड़ना नहीं छोड़ती तुम।” पति की बात और भी चलती,तभी फोन बजा।नाम देखते ही खुश होकर बोले”हां बेटा,कब आ रहे हो तुम लोग?पहले से ही बोल दिया था मैंने।
इस बार एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आना।बहुत सारे आयोजन होंगे।हां,बबलू के स्कूल का नुक़सान तो होगा,पर देख लो बेटा।सब साथ में रहोगे,तो बड़ा अच्छा लगेगा तुम्हारी मां को।अभी से तैयारी कर रही है।तुम सबके कमरे साफ भी करवा चुकी। हां-हां यहीं है वो।बात करो,लो।”
फोन राधा ने लिया तो शुभम बोला” मां कैसी हो तुम?पापा की तबीयत तो ठीक है ना?अभी भी ऑफिस फुल टाइम जा रहें हैं,मना करो तुम।
नौकरी का मोह तो छोड़ना पड़ेगा ना।अब तुम भी अपनी डांस क्लास बंद करो।कब तक दौड़-धूप करती रहोगी?हम लोग एक हफ्ते के लिए ही आएंगे,जैसा पापा चाहते हैं।अच्छा रखता हूं।बाद में करूंगा फोन।बाय।”
पति तो बेटे से बात करके इतना खुश हो गए,मानो शुभम सामने ही हो।राधा की छठी इंद्रिय कुछ अशुभ संकेत दे रही थी।बेटे की बातों में बनावटीपन सा लगा आज ना जाने क्यों?
रुक-रुककर बात कर रहा था।जैसे बोलना कुछ और चाह रहा था,पर बोल कुछ और ही रहा।मां थी वह।नौ महीने पेट में पाला है।सांसों की खुशबू महसूस कर सकती थी वह।
खाते समय पति , बेटे-बहू के आने के बाद की योजना बना रहे थे।बुढ़ापे में नौकरी से रिटायर होकर पोते-पोतियों के साथ रहना,हर मां -बाप का सपना ही होता है।बेटे तो बेटियों से पहले ही विदा हो जातें हैं।पहले हायर स्टडीज के लिए।बाद में अच्छी नौकरी के लिए।फिर बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए,अच्छे शहर में ही अपना घोंसला बना लेते हैं।लौटकर अपने पिता के नीड़ में कहां आना चाहते हैं?
पितृपक्ष चल रहा है।ससुरजी और सास के श्राद्ध की तिथि तय कर दी है पंडित जी ने।
कल ही पूजा है।राधा रानी आज से ही तैयारी में लगी है।बस कुछ दिनों बाद ही पति के रिटायर मेंट पर कथा सुनने का मन है ।पास के मंदिर में ही कथा करवाएगी।सभी रिश्तेदार,जो आ पाएंगे,आ जाएंगे।बहुत सालों के बाद घर फिर से हरा -भरा हो जाएगा।
दरवाजे पर दस्तक हुई ,तो खोलकर देखा सामने देवरानी जी अपने बेटे के साथ आई थी।देवर जी को गुजरे दो साल ही हुए थे।शाम होते-होते ननद भी आ गई,अपने बच्चों ,पति के साथ।बुआ सास,मौसी सास मायके से भाई -भाभी सभी आ पहुंचे थे।घर में पंडित लगा रखा था खाना बनाने के लिए।
सुबह-सुबह पूजा की तैयारी करके सबके साथ ससुर -सास को मन से याद करके यथासंभव दान व भोजन करवाया। स्वर्ग में विराजमान माता-पिता अपने बच्चों व कुटुंब को साथ में देखकर सुख पाते होंगे।जिस जमीन पर इतना बड़ा आशियाना बनाया स्वामी जी ने, वह उनके पिता ने ही खरीदी थी।
दोनों बेटों को दो जमीन दी थी उन्होंने।छोटा दूसरी जाति में विवाह कर लिया, तो गुस्साकर उन्होंने वह जमीन आश्रम को दान कर दी थी।बड़े बेटे ने पिता की दी हुई जमीन पर बड़ा सा घर बनाया।राधा को अक्सर कहते”बाबूजी की बड़ी इच्छा थी
कि हम सभी साथ रहें, पर छोटे ने सब बिगाड़ दिया।इतना बड़ा घर, और रहने वाले हम दो।शुभम तो बैंगलुरू छोड़कर यहां रहेगा नहीं। रिटायरमेंट के बाद हम भी चले जाएंगे वहीं।बुढ़ापे में अकेले क्यों पड़े रहें।इस घर को बेचकर वहां शुभम को एक बड़ा सा बंगलों मिल जाएगा।”,
बस राधा को पति की यही बात खलती थी। बुढ़ापे में बहुमंजिली इमारत में रहना संभव होगा क्या दोनों के लिए?शहर की व्यवस्था यहां से बिल्कुल अलग है।हाथ-पैर चल रहें हैं जब तक,क्यों बेटे-बहू पर आश्रित होना।अरे !
अपने घर में रहकर हम उनका स्वागत करेंगें।यहां नाते-रिश्तेदार सुबह शाम दिख जाते हैं।मिलने चले आतें हैं,शहर में वहां कौन आ पाएगा?खैर अभी कुछ बोलना उचित नहीं।जब जाने की बात करेंगे,तब मैं रखूंगी अपने बात।
रिटायरमेंट के एक हफ्ते पहले ही शुभम वादे के अनुसार आ गया था।उसे देखते ही पिता की उम्र आधी हो गई मान।पोते को कंधे पर बिठाकर पूरे घर में धमाचौकड़ी मचाने लगे स्वामी जी।
शुभम ने मां से कहा”देखा मां,पापा बबलू को पाकर हमें भी भूल जाते हैं।कहां तो बोल रहें थे,आएगा तो ये करेंगे,वो करेंगे।
अब देखो बबलू को पाकर उन्हें बेटे-बहू दिख भी नहीं रहे।तुम नहीं बदली मां।पहले भी दिनभर रसोई,अब भी वही।अभी तो खाना बनाने वाले ठाकुर जी को देखा।अच्छा किया तुमने।अब इस उम्र में क्यों मेहनत करना इतनी।शांति से पड़े रहो। पूजा-अर्चना करो।मंदिर घूमो,बस।
अच्छा मां,पापा ने पेपर बनवा लिए हैं ना?समय नहीं है ज्यादा।एक हफ्ते में ही सब औपचारिकता पूरी करनी पड़ेगी।तब जाकर घर बिक सकेगा।यहां तो दाम भी कम ही मिलेगा।शहर में होता तो चार गुना ज्यादा मिलता।करोड़ों की संपत्ति है।देख परख कर सौदा करना होगा।पापा ने तुमसे बात की है ना,इस बारे में?”,
राधा ने सपाट स्वर में पूछा” किस बारे में रे? उन्होंने तो कुछ नहीं बताया मुझे।वैसे इस घर को कौन बेच रहा है?कैसे बेच पाएगा?हमारा अकेले का तो नहीं यह घर।तुम्हारी चाची जी,बुआ जी, उनके बच्चे,सभी का है यह घर।तुम्हारे दादा जी की जमीन पर बना हुआ है घर,तो जो भी दादाजी से जुड़े हुए हैं यह उनका भी घर है।”
शुभम बौखला गया। झल्लाहट में बोला” किसने क्या किया है इस घर को बनाने में।जहां तक मुझे पता है, पापा ने अकेले खड़े होकर बनाया है यह घर।बाकी लोगों का क्या योगदान है मां? ज़रा मैं भी सुनूं।”
राधा ने इत्मीनान से बताना शुरू किया”, इस घर में दादा जी की पूंजी और आशीर्वाद लगा है।तेरे पापा को राखी बांधने आने वाली बुआ की दुआएं लगी हैं।तेरे पापा के साथ दुकान -दुकान भटकते हुए चाचा का बेटा सीमेंट,सरिया,ईंटा,पत्थर खरीदा है।
चाची सुबह से ही खाना बंधवाकर भेजती रही रोज हम सबके लिए,मजदूरों के लिए।तब बन पाया यह घर।तेरे पापा तीर्थ जाना टालते रहे,इस घर के पीछे।इस घर परसबसे पहले तेरे दादा -दादी का अधिकार है। उनकी मौत के बाद ,उनके बच्चों का भी अधिकार होगा।
ज्यादा नहीं तो कम ही सही,पर होगा।चल खाना खाने का समय हो गया।पापा राह देखते होंगे तेरी।जा खाना खा ले।बाद में आराम से बात करेंगे।”
मां के मुंह से ऐसी बातें सुनकर शुभम का तो दिल ही बैठ गया। जमीन-जायदाद,पैसे -रुपए के प्रति मां की कभी भी रुचि नहीं थी।ख़ुद के ऊपर भी अनर्थक खर्च नहीं करतीं थीं,फिर हिस्से की बात कैसे कर रही हैं आज?पापा से ही मिलकर बात करना पड़ेगा।घर के कागजात तो देखना जरूरी है एक बार।
गहरी नींद में थे स्वामी जी।राधा मां नीचे रिश्तेदारों के साथ गपशप में लगी थीं।शुभम मोबाइल के टार्च से पुरानी फाइलें खंगालने लगा।पापा ने तो बताया था,दादाजी के नाम से ही पट्टा बना था,जमीन का।
उसी पर घर बना है।फाईल जो जरूरी थी,मिली ही नहीं।उधर शैली(शुभम कीपत्नी)बदहवास सी लगने लगी।शुभम को इशारे से बुलाकर कमरे में ले गई।झपटते हुए कहा उसने” ये क्या बेवकूफी कर दी तुमने।
वहां बैंगलुरू में इतनी पॉश इलाके में बंगलो बुक करने से पहले येसब नहीं सोचा था तुमने।एक ईएम आई भरने में ही घर का सारा बजट फेल हो गया।अब अगर यह घर नहीं बिका तो,हम अगला प्रिमियम कैसे भरेंगे?
शैली और शुभम की बातें स्पष्ट रूप से राधा के कानों में पड़ी।अब उसे समझ आया कि क्यों मन भटक रहा था,शुभम से बात करने पर क्यों वह अपना आज्ञाकारी बच्चा नहींढूंढ़ पा रही थी।
रिटायरमेंट का दिन भी आ ही गया।ऑफिस में स्वामी जी को भावभीनी विदाई दी गई।नाश्ते का बढ़िया इंतजाम था।अगले दिन कथा सुनना तय हुआ था।पास के मंदिर में पंडितों ने आते ही विधि विधान से पूजा शुरू की।सारे रिश्तेदार एकत्रित थे।
रात मेंबेटे बहू की बातों ने उन्हें मानसिक रूप से शांत कर दिया।पति के लाख समझाने पर भी ,घर बेचने के लिए राधा तैयार नहीं थी।हां इतना अवश्य कहा था पति को”,अपने पैसों से जितना
चाहे,इकलौते लड़के को दे देना।अगर उसमें नए इमारत की किश्त चुके ,तो निसंकोच दे दो।घर तो मैं बेचने नहीं दूंगी,जीते जी।हां जिस दिन मैं ना रही,तब जो मन हो कर लेना”,
शुभम मन ही मन खिन्न हो रहा था।कब से पापा को बोलकर रखा था,कागजात संभाल कर रखने को।अब तो ,,समय ही नहीं बचा अब।
कथा संपन्न हुई तो।प्रसाद के लिए मंदिर के स्थाई लोगों को बुलाना ही नहीं पड़ा।उसी दौरान जब घर के अधिकतर रिश्तेदार मंदिर में उपलब्धथे। उन्हीं के सामने राधा ने पति का हांथ पकड़ा और देवी की मूर्ति के सामने बैठकर आराम से कहना शुरू किया
“हम दोनों ने अपना वैवाहिक जीवन चालीस सालों तक सुख-दुख,हंसी-आंसू,उतार,-चढ़ाव देखकर सहकर बिताया।आज शुभम के पापा की नौकरी भी समाप्त ।नौकरी जाते ही निष्क्रिय नहीं होना चाहिए इंसान को।जिस समाज ने,परिवार ने,संगी साथियों ने हमारी यात्रा में हमेशा हमारा साथ
दिया,हम दोनों उनके सम्मुख अपना आभार और वंदन भेंट करतें हैं।शुभम बेटे को थोड़ी निराशा तो होगी,पर हमारा बेटा बड़े मन का है,तो समझेगा।इस घर को बनाने में मजदूरों के मेहनत के अलावा बूढ़ी आंखों की उम्मीद ने सहारा दिया।बाबूजी के आशीर्वाद का स्तंभ मिला।
देवर जी की निश्छल कर्मठता मिली इस घर को।ननद(रेखा) का भी इस घर में उतना ही हक है।तो हमने यह फैसला लिया है कि,घर नहीं बेचेंगे हम अभी।
इस घर के एक हिस्से में देवरानी (स्नेहा)अपनी बेटी के साथ रहेगी।दूसरे हिस्से को किराए में चढ़ा देंगे।किराए सेजो भी पैसे आएंगे,वह पोते के नाम से डिपोजिट कर दिया जाएगा।बड़े होकर उसको मिलेगा यह पैसा।
इस घर में डांस क्लास यथावत चलेगी।नए सदस्य जुड़ सकते हैं।स्वामी जी की ईमानदारी और कर्मठता का प्रतीक है राधा स्वामी सदन।यह हमारे पितरों का आशीर्वाद है हम पर।स्वामी जी अपना दरबार लगाएंगे,बरामदे में।दूसरों के सुख-दुख में उनके साथ खड़े रहेंगे।समाज ने हमें बहुत कुछ दिया।इस जगह ने हमें यह घर-परिवार दिया,तो हम तो नहीं छोड़नेवाले।यह घर कोई भी हम दोनों की सहमति के बिना नहीं बेच सकता।”,
तिरछी नज़र से शुभम की ओर देखा,तो उसका पाराचढ़ा था।राधा ने सर पर हांथ फेरकरकहा” इस राधा स्वामी सदन में तुम्हारे पूर्वज और माता-पिता की आत्मा बसती है।हम कैसे जा पाएंगे इस मोह पाश से संचार?”
शाम को घर आकर शुभम अपनी पत्नी को सफाई दे रहा था” पापा मान गए थे, मम्मी ने विश्वासघात किया।ऐन मौके पर ही सब कुछ पलट दिया।अब क्या करूंगा मैं पैसे लेकर,और कितना दे पाएंगे ये भी।झूठी उम्मीदों के सहारे इतना पैसा फंसा दिया मैंने नए बंगलो में।#
राधा ने सुनकर भी अनसुना कर दिया।पति की मेहनत की कमाई ,बेटे के बंगले खरीदने की भेंट चढ़ जाए,इससे तो अच्छा है पत्नी और मां का विश्वासघात।
शुभ्रा बैनर्जी
विश्वासघात