राखी का रिश्ता – रेनू अग्रवाल :  Moral Stories in Hindi

आज राखी का त्यौहार है। सब जगह भाई-बहन के गाने ही बज रहे थे — “फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है, सारी उमर हमें संग रहना है।” रीता यह गाना गुनगुनाते हुए अपनी ननद का इंतजार कर रही थी, जो थोड़ी देर में ही पहुंचने वाली थी। वह खुश थी, लेकिन उसके मन में हल्की सी कसक भी थी।

वह सोच रही थी — काश उसका भाई भी आता उससे राखी बंधवाने! शादी के बाद से अब तक किसी न किसी कारणवश न तो वह कभी जा सकी राखी पर, न ही उसका भाई आ सका। उसे हर साल राखी पार्सल करनी पड़ती थी। लेकिन उसकी ननदें हर साल आ जाती थीं, इस कारण राखी का त्यौहार अच्छे से हो जाता था।

रीता के घर में पांच देवरानी-जेठानी थीं और चार ननदें। राखी पर तो उसके यहां शादी जैसा माहौल हो जाता था। लेकिन हर बार उसमें से एक ननद का बार-बार राखी का दाम बताना सबको खल जाता था। रीता सोचती थी — राखी तो प्यार का त्यौहार है, इसमें दाम क्यों बीच में आता है? काश यह बात उसकी ननद समझ पाती!

वो राखी बांधती जाती और दाम बताती जाती। रीता जानती थी कि आजकल राखी महंगी हो गई है। एक बार रीता के पति ने अपनी बहनों से कह भी दिया था — “दीदी, आप लोग इतनी महंगी राखी मत लाया करो। इससे अच्छा तो मोली का धागा बांध दिया करो। और आजकल जो गिफ्ट का चलन चल गया है, वो भी गलत है। आप लोग इतना खर्च कर देती हो, हम उतना खर्च नहीं कर पाते तो गिल्टी फील होता है। मेरा मानना है कि राखी को गिफ्ट का आदान-प्रदान नहीं बनाना चाहिए।”

कुछ बहनें पहले तो खर्च करती हैं, फिर उम्मीद करती हैं कि भाई उससे ज्यादा दे। लेकिन हर भाई की अपनी परिस्थिति होती है — कोई देता है, कोई नहीं दे पाता। कुछ कंजूस भी होते हैं। बहनें अपने शौक से देती हैं। अगर राखी को लेन-देन न बनाकर प्यार का धागा ही रहने दिया जाए, तो ज्यादा अच्छा रहेगा।

रीता अपनी ननद को बुलाने जाती है, तभी सुनती है — एक ननद अपनी बहन से कह रही थी, “देखो ना दीदी, मेरा तो 5000 खर्च हो गया गिफ्ट और राखी पर और भैया ने क्या दिया, 1100! थोड़ी भी शर्म नहीं आई उनको।” तभी दूसरी ननद कहती है, “इसीलिए मैं तुम्हें कहती हूं — यह सोच कर मत दिया करो कि बदले में क्या मिलेगा। भाई-भाभी हर साल इतनी इज्जत से बुलाते हैं। मम्मी-पापा नहीं हैं, फिर भी कभी एहसास नहीं होने देते कि पीहर में अपना मान कम हो गया है। तुम्हारी यही बड़बोलेपन की आदत तुम्हारा रिश्ता बिगाड़ देगी।”

यह सुनकर रीता मुस्कुरा दी — चलो, कोई ननद तो समझदार है।

राखी बंधवा कर चारों देवरानी किचन में नाश्ता बना रही थीं। तभी दूसरी देवरानी बोली — “राधा दीदी कितनी अच्छी राखी लाई हैं और गिफ्ट भी अच्छा! बड़ी दीदी तो कंजूस हैं।” रीता ने समझाया — “ऐसे नहीं बोलना चाहिए। जो मन हो वही लेकर आते हैं। बहन-बेटी को लेने के लिए थोड़ी ना बुलाते हैं। राखी तो प्यार का बंधन है। आज के दिन उनसे जाकर पूछो, जिनका भाई या बहन नहीं है — क्या बीतती है उन पर।” रानी समझ गई और बोली — “सॉरी भाभी, आज के बाद ऐसा नहीं बोलूंगी।”

राखी का रिश्ता   ( यह बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं है)

रेनू अग्रवाल

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