पुरुष – पूजा गर्ग : hindi kahani with moral

मालती:   अब मैं तुमसे मिलने नहीं आ सकती ।

प्रकाश (हैरानी से):  क्यों? क्या हुआ ? 

मालती:   घरवालों को शायद हमारे बारे में पता चल गया है ।

प्रकाश:   तो , अच्छा ही हुआ ,एक ना एक दिन तो पता चलना ही था, पर तुम इतनी परेशान क्यों हो ?

मालती:  तुम समझते क्यूं नहीं,जो हम चाहते हैं वह कभी नहीं हो सकता ।

प्रकाश:   क्यों नहीं हो सकता ,मैं तुम्हें पसंद करता हूं और तुम मुझे।  हम दोनों विवाह करना चाहते हैं ।

मालती:   मैं एक विधवा हूं और जिस समाज में हम रहते हैं ,वह हमें इसकी इजाजत कभी नहीं देगा ।

प्रकाश:   कौन सी सदी में जी रही हो  और किस समाज की बातें कर रही हो ,खोखला है यह समाज।जहां औरतों के लिए अलग नियम और पुरुषों के लिए अलग । मैं किसी समाज  की परवाह नहीं करता ।मेरे लिए समाज से बढ़कर तुम हो और तुम्हारा प्रेम ।

मुझे बस तुम्हारा साथ चाहिए । तुमने अपने पहले विवाह में जितने दु:ख उठाए हैं ,मैं उनकी भरपाई तुम्हें आजीवन खुशियां और प्रेम देकर करना चाहता हूं और ऐसा करने से मुझे कोई भी नहीं रोक सकता। मैं तुम्हारे बाबू जी से मैं बात करूंगा।

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तभी तभी पीछे से आवाज आती है ,”क्या बात करनी है” ,

मालती (डरी हुई):   बाबूजी ।

बाबू जी:  जो बात होगी घर पर होगी और तू चल मेरे साथ और मालती का हाथ पकड़कर खींचते हुए उसे ले जाते हैं ।प्रकाश को कुछ समझ नहीं आता और वह भी पीछे -पीछे चल देता है।

 बाबूजी :  घर पर पहुंचकर मालती को जोर से कमरे की ओर धक्का देते हुए कहते हैं खबरदार जो आज के बाद कमरे से बाहर पैर भी रखा। टुकड़े -टुकड़े कर दूंगा। नामुराद ,पैदा होते ही मर क्यूं ना गई ,कम से कम इज्जत पर बट्टा तो ना लगता ,पापिन कहीं की । संभाल अपनी लाडली को, पर निकल आए हैं इसके ,,,,,मालती की  अम्मां पर चिल्लाते हैं,,,,।

तभी प्रकाश अन्दर प्रवेश करता है और कहता हैं ” प्रेम करना कोई पाप तो नहीं ,बाबूजी “।

बाबूजी :  चुप ,नहीं तो मरेगा ,,,तू मेरे हाथों,,,, निकल जा मेरे घर से और उसे धक्का देते हैं ।

प्रकाश :  निकल जाऊंगा ,लेकिन मालती के साथ।

बाबूजी:  रुक ,,,,,(कहकर) प्रकाश को मारने के लिए गंडासा उठाते है।मालती जोर से चिल्लाती है की तभी अम्मा बाबूजी को पीछे की तरफ धकेलती है और गंडासा छीन लेती है ।

बाबूजी:   तेरी इतनी हिम्मत?

अम्मा( गुस्से में) :  हां ,और यह हिम्मत मुझे उस दिन दिखानी थी ,जब उस जानवर को मालती का हाथ सौंपा था।पाप इसने नहीं ,पाप तो आपने किया था ।आपके  पाप की सजा मेरी बच्ची ने भुगती। मैं पूछती हूं आपसे,ऐसा क्या था उसमें ,जो आपने मालती का हाथ उसे सौंपा। एक दिन भी चैन से नहीं जीने दिया। गाली- गलोच, मार, अपमान क्या नहीं सहा।

तब आपकी इज्जत पर बट्टा नहीं लगा था,, जब सबके सामने शराब के नशे में धुत उसने मालती को किसी पराए,,,,  छी: कहते हुए भी शर्म आती है। पत्थर का कलेजा है आपका। जो इसके आंसू नहीं देख पाता।आज ये मालती को इज्जत और प्रेम देना चाहता है तो तुम्हारी इज्जत पर बट्टा लगता है। 

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मैं  चुपचाप सहती रही पर अब ये नहीं सहेगी ।मैं करवाऊंगी इन दोनों का बियाह।आप  सिर्फ  जिस्मानी तौर पर पुरुष ज़रूर है पर, पुरुष किसे कहते है  शायद आपको  पता ही नही ,,,,, ।पुरुष तो वो होता है जो अपनी पत्नी को इज्ज़त दे,मान दे, सम्मान दे,अपनी अर्धांगिनी समझ उसे प्रेम दे।अपने सुख दुःख का साथी समझे,,,कहते -कहते अम्मा फफक-फफक कर रो पड़ती हैं।

(प्रकाश अम्मा को सहारा देकर बैठाता है )

प्रकाश:  बाबूजी ,मैं मालती से प्रेम करना करता हूं और उसे वह हर खुशी देना चाहता हूं जिसकी वह हकदार है ।लेकिन मालती शादी का जोड़ा पहनेगी तो सिर्फ आपके आशीर्वाद से।

बाबूजी निढाल होकर जमीन पर बैठ जाते हैं ।आज उनकी आंखें भर आई ।मालती की तरफ देखते हैं और अपने हाथ जोड़ लेते हैं। मालती दौड़ कर अपने बाबूजी के सीने से लग जाती है। अम्मा भी अपने आंसू पोंछती है और बाप बेटी को देखकर  मुस्कुरा  देती है।

बाबूजी मालती का हाथ प्रकाश को सौंप कर कहते हैं आज सही मायने में मैं अपनी बेटी का हाथ एक “पुरुष” को सौंप रहा हूं।

# बेटियां साप्ताहिक विषय

#पुरुष

स्वरचित/मौलिक

पूजा गर्ग

दिल्ली

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