प्रतीक्षा – डॉ प्रिया : Moral Stories in Hindi

बनी !

जैसा कि आपको नाम से ही मालूम पड़ रहा होगा एक बहुत ही प्यारा,छोटा खरगोश जिसे मैंने ही नाम दिया था, बनी!

बनी चेहरे पर मासूमियत लिए हुए एक प्यारा सा बच्चा था,जब मैं उसे डब्बे में लेकर घर आई थी।

  कैसे? चलिए बताती हूं।मेरा एक दोस्त व भाई कुणाल एक बार उसने मुझसे पूछा कि मेरे पास एक प्यारा सा खरगोश है क्या तुम उसे पालोगी? मुझे जानवरों से बहुत प्रेम है।

मैं भले ही उन्हें अधिक प्रेम ना कर पाऊं,पर मैं उन्हें कष्ट किसी भी प्रकार नहीं दे सकती।यह पहली बार था जब मैं किसी जानवर को अपने घर ला रही थी।

इसके पहले एक तोता था मिट्ठू,पर उसे गुज़रे हुए कई बरस बीत गए जिसे मैं बहुत प्यार करती थी।

 जीव ऐसे ही होते हैं भले ही कुछ कह ना पाएं परंतु संवेदनाएं, दुख व खुशी उन्हें भी महसूस होती है।

आप किसी जानवर को पालिए और फिर आपको महसूस होगा कि शायद वह आदमी से भी ज़्यादा समझदार होते हैं।

 आदमी स्वार्थी हो सकता है, निर्दयी हो सकता है,

 परंतु जीव ऐसे होते हैं जो अपने मालिक से प्रेम के साथ मरते दम तक ईमानदारी दिखाते हैं। उनमें मालिक से अलग होने का दर्द व दोबारा मिलने की खुशी बड़ी आसानी से देखने को मिल जाती है।

 वैसे ही वह छोटा सा बनी जो हमारे घर आया था, वह सफेद और भूरे रंग का छोटी आंखों का प्यारा सा खरगोश था। वह जब घर आया तो पहले तो मासूम पर बाद में बड़ा ही समझदार प्रतीत हुआ।

 खुद को खिड़की के शीशे में देखकर पंजे मारना,

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 मुझसे लड़ाई करना,कोई परेशान करे तो सोफे के नीचे दुबक जाना, व बाहर न निकलना। पहले तो पाटी पूरे घर में करना फिर पॉटी-पाट के इर्द-गिर्द करना।यह सब उसकी समझदारी ही तो थी। 

धीरे-धीरे करके वह सबका ही प्यारा हो गया। पता नहीं कैसे सब उसको बहुत प्यार करते।पर समय एक सा नहीं रहता। एक दिन अचानक पता नहीं उसे क्या हुआ?

मैं पढ़ाई के लिए लखनऊ में रह रही थी। मेरे एक्जाम थे और रूम पर वापस आने पर मम्मी की ढ़ेरों मिस्ड कॉल देखी तो वापस काल किया। मम्मी की सिसकियां सुनी तब मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि कैसे बनी अचानक बीमार हो गया और मम्मी जैसे ही क्लीनिक से घर आईं तो वह उनकी गोद पर चढ़ गया और उन्हें देखते ही उनकी गोद में ची-ची करके प्राण त्याग दिए। शायद वह उनके आने का ही प्रतीक्षा कर रहा था।

 जितना प्रेम मेरी मम्मी को उससे था उतना ही प्रेम शायद वह भी उनसे करता था। शायद इसीलिए वह प्राण त्यागने से पहले उनको देखने की प्रतीक्षा कर रहा था।

मैं दूर थी और कारण वश में उसके आखिरी पलों में उसे देख भी नहीं पाई। उन लोगों ने उसे क्लीनिक पर ही बगीचे में पीछे दफना दिया।कई दिनों तक मम्मी ने खाने को हाथ भी नहीं लगाया और रो-रोकर उनका बुरा हाल था।

 मैं दूर थी और परंतु एक जीव के प्रेम के एहसास को समझ गई कि एक जीव भी कितना प्रेम कर सकता है। शायद वह पहले ही मर जाता परंतु वह अपने मालिक के आने की प्रतीक्षा कर रहा था कि  वह कब आएं और मैं उनकी गोद में प्राण त्याग दूं या फिर एक बार देख लूं। मैं यह सोचकर और भी दुखी हो जाती हूं कि उसने कितनी प्रतीक्षा के बाद बड़े कष्टों से अपने प्राण त्यागे होंगे।

 उसका प्रेम छलावा नहीं हो सकता।उसका प्रेम पवित्र होता है। उसकी याद आज भी मेरी आंखों में आंसू ला देती है।

उसकी यादें हमेशा ही रहेंगी।

अब घर में एक प्यारा सा कुत्ता है स्नोई पर बनी की याद आज भी सबके दिलों में जिंदा है। जब-तब हम बनी को याद ज़रूर करते हैं।

मम्मी का प्यार स्नोई के लिए और भी बढ़ गया है।पर अक्सर बनी का चेहरा आंखों के सामने आ ही जाता है। यादें भुलाई नहीं जा सकती पर मुझे लगता है कि समय हर घाव धीरे-धीरे भर ही देता है।

                                      डॉ प्रिया।

                                      अयोध्या।

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