प्रणाम बंद मकान को – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

रत्ना बहुत दिनों से पार्क की चार दीवारी के पास सब्जी का ठेला लगाती आ रही है। ठीक सामने बहुत बड़ा हवेली जैसा मकान है,जो काफी समय से बंद पड़ा है। पहले यहाँ एक बड़ा परिवार रहता था।उसकी मुखिया थीं एक बूढी महिला, जिन्हें सब दादी अम्मा कह कर बुलाते थे।
रत्ना को वह छोटी बिटिया कहती थीं।कई बार आकर मुंडेर पर बैठ जाती थीं और रत्ना से घर परिवार की बातें किया करती थीं।तब रत्ना को बहुत अच्छा लगता था। पर एक दिन सब चले गए| तब रत्ना की आँखें भर आई थीं।मन उदास हो गया था। सोचा था कि सब्जी का ठेला कहीं और ले जाए।पर फिर नहीं गई। उस मकान से जैसे गहरा लगाव हो गया था। उम्मीद थी शायद किसी दिन दादी अम्मा वापस आ जाएँ।
एक दिन एक युवक स्कूटर पर वहां आया और देर तक बंद मकान को देखता रहा। रत्ना से दादी अम्मा के बारे में पूछा, फिर दोनों हाथ जोड़ कर जैसे बंद मकान को प्रणाम किया और चला गया।अगले दिन वह फिर आया, पिछले दिन की तरह हाथ जोड़ कर बंद मकान को प्रणाम किया और चुपचाप चला गया। रत्ना को उसका व्यवहार विचित्र लगा।आखिर वह बंद मकान को ऐसे प्रणाम क्यों करता था जैसे किसी मंदिर में पूजा करने आया हो! एक दिन रत्ना ने पूछ ही लिया।
उसका नाम अशोक था। उसने बताया-‘ कई साल पहले की बात है,मैं पैदल यहाँ से गुजर रहा था।तभी एक बाइक वाला मुझे गिरा कर निकल गया। तब इस मकान के बाहर कई लोग मौजूद थे,शायद सब कहीं जा रहे थे। किसी ने मुझे जैसे देख कर भी नहीं देखा था।पर दादी अम्मा मेरे पास आईं,मुझे सहारा देकर घर में ले गईं।
डाक्टर को फोन किया। डाक्टर ने आकर मेरी मरहम पट्टी की। दादी माँ ने मुझे दवा और दूध दिया। कुछ देर आराम करने को कहा, फिर कार से मुझे मेरे घर छोड़ने गईं। उसके बाद भी कई बार मुझे देखने आई।’
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कुछ समय बाद मुझे नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर जाना पड़ा। मैं उन्हें कभी भूल नहीं पाया। हाल ही में मेरा तबादला इस शहर में हो गया है। मैं तुरंत उनसे मिलने चला आया , पर वह तो अब यहाँ हैं नहीं।क्या पता अब कभी उनसे मिल भी पाऊंगा या नहीं।’ उसने उदास स्वर में कहा।
रत्ना ने अशोक को अपने बारे में बताया फिर कहा-‘इस बंद मकान वाली दादी अम्मा तो अब शायद ही वापस लौट कर आयें, पर पास में एक दादी अम्मा और रहती हैं, उनसे मिलकर शायद तुम्हें अच्छा लगे।’ और वह अशोक को थोड़ी दूर बनी एक झोंपड़ी में ले गई। वहां एक वृद्ध जोड़ा रहता था-रामजी और उनकी पत्नी रानी।
रत्ना के साथ एक अपरिचित व्यक्ति को देख कर रानी अम्मा बिस्तर पर उठने की कोशिश करने लगी तो उनके पति रामजी ने सहारा दिया, अशोक ने दोनों के पैर छुए | उसे रानी अम्मा का बदन गरम लगा। उसने रत्ना से कहा-‘अम्मा को तो तेज बुखार है, मैं डाक्टर को लेने जा रहा हूँ।’ कुछ देर बाद अशोक डाक्टर को लेकर लौटा।डाक्टर ने जांच करके दवा लिख दी और कहा कि समय पर दवा और हल्का खाना देना है।
रत्ना ने कहा –‘मैं रोज अपने साथ इन दोनों का खाना भी ले आती हूँ।कई दिन पहले तक मैं खाना गरम कर दिया करती थी पर इधर कुछ दिन से स्टोव ख़राब होने से यह नहीं हो पाता।’ अशोक ने देखा कि एक प्लेट में तीन चार रोटियां और सब्जी रखी थी।बोला –‘ कुछ दिन तक बाबा और दादी अम्मा का खाना मत लाना। इन्हें खिचड़ी दलिया ही खाना होगा।’ कह कर वह घर चला गया।
एक घंटे बाद लौटा तो साथ में खिचड़ी ,थर्मस में गरम दूध और एक स्टोव था। उसने रानी अम्मा और रामजी बाबा को खिचड़ी खिला कर अम्मा को दवा दे दी।फिर थर्मस रामजी बाबा को दे कर बोला-‘इसमें गरम दूध है।‘ फिर शाम को आने की बात कह कर चला गया।
शाम को वह दलिया लेकर आया। साथ में उसकी पत्नी विभा भी थी।विभा ने रानी अम्मा के पैर छू कर कहा-‘ आप जल्दी ठीक हो जायेंगी। इस बीच रामजी बाबा ने बताया था कि पास में पार्क का माली सपरिवार रहता है। वह साफ़ सफाई तथा दूसरे कामों में मदद कर देता है। ‘’
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अशोक ने रत्ना से कहा कहा-‘ मेरे बाबा दादी गाँव में रहते हैं। मैं चाह कर भी जल्दी वहां नहीं जा पाता। आज इन्हें देखा तो लगा जैसे ये तो मेरे बाबा दादी जैसे।अगर मैं इनके लिए कुछ कर सकूं तो मन को संतोष मिलेगा।’ अशोक दवा और सुबह शाम का भोजन ला सकता था। पर बीमार रानी अम्मा को हर समय देख भाल की जरूरत थी। यह काम अशोक केवल रविवार को ही कर सकता था।
रत्ना कह चुकी थी कि वह दिन में एक दो बार ही जाकर रानी अम्मा देख सकती थी। तभी अशोक को दो बच्चों शंकर और रघु का ध्यान आया। उसने दोनों को चमन की स्कूटर रिपयेर की दुकान पर काम करते देखा था। चमन ने कहा था-‘ये मेरे वर्कर्स नहीं हैं। एक दिन ये दोनों दुकान पर काम मांगने आये थे। कहा था
कि दोनों ने कई दिन से खाना नहीं खाया है। वे कोई भी काम कर सकते हैं। मैंने दोनों को खाना खिलाया और दुकान पर साफ़ सफाई के लिए रख लिया। रात को दुकान बंद होने के बाद दोनों बाहर के पटरे पर ही सो जाते हैं।‘
अशोक ने उसे रामजी और बीमार रानी अम्मा की समस्या बताई। चमन ने कहा-‘जब यहाँ कोई काम न हो तो ये रानी अम्मा के पास जा सकते हैं,मुझे कोई ऐतराज नहीं।’अब अशोक ने शंकर और रघु से कहा-‘ क्या तुम अपने दादा दादी से मिलना चाहोगे?’
दोनों झट बोले-‘कहाँ हैं हमारे दादा दादी?’ अशोक दोनों को रानी अम्मा और रामजी बाबा के पास ले गया।रानी अम्मा को देखते ही दोनों उनसे लिपट गए।रानी अम्मा ने अशोक से बच्चो के बारे में पूछा तो अशोक मुस्करा कर बोला-‘इनकी कहानी इन्हीं के मुंह से सुनोगी तो ज्यदा अच्छा लगेगा’।‘
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बाहर आकर रघु ने अशोक से कहा-‘ छूने पर दादी का बदन गरम लगा था।शायद उन्हें बुखार है।‘
’क्या तुम दोनों इनकी देखभाल में मदद कर सकते हो? जब काम से फुर्सत मिले तो यहाँ आकर दादी को देख लिया करना।’ अशोक ने कहा।
‘यह तो हम कर लेंगे।’ दोनों ने एक स्वर में कहा।
अशोक अगली सुबह खाना लेकर आया तो देखा कि शंकर सफाई कर रहा था,और रघु रामजी बाबा के कपडे बदलवा रहा था।रानी अम्मा ने बताया कि रोज की तरह रत्ना भी उनकी मदद कर जाती है। रघु और शंकर ने उन्हें चाय और डबल रोटी का नाश्ता करवा दिया था। अशोक शाम को खाना लेकर आया तो शंकर और रघु दुकान पर थे। अशोक ने राम जी और अम्मा से पूछ लिया –‘अगर मैं रघु और शंकर से रात में यहाँ सोने के लिए कहूँ तो कैसा रहेगा।’यह सुन कर बाबा दादी खुश हो गए।
अशोक ने बच्चो को बता दिया कि वह क्या सोच रहा था।रघु ने कहा-‘ दुकान के बाहर सोने से तो अच्छा ही रहेगा।वैसे तो हम कहीं भी सो जाते हैं।’
और एक रात ऐसी भी थी, जब रामजी और रानी अम्मा के साथ अशोक,रघु और शंकर एक साथ बैठे थे।सब रघु की बनाई चाय पी रहे थे,थोड़ी देर में रत्ना भी आ गई।कमरे में खिल खिल गूँज रही थी। कुछ देर बाद अशोक और रत्ना बाहर निकले। अशोक ने बंद मकान की ओर हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। उसकी दादी अम्मा लौट आई थीं।(समाप्त)

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