“रसोईघर मेरे लिए पूजाघर के समान है बहू इसलिए ध्यान रखना कभी यहां बिना नहाए मत घुसना क्योंकि यहां खाना नहीं प्रसाद बनता है !” दिव्या की शादी के बाद की पहली रसोई पर ही उसकी सास सीता देवी ने उससे कहा।
” जी मांजी मैं ध्यान रखूंगी इस बात का और आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी!” दिव्या ने सिर झुका कर कहा।
दिव्या ने सीता देवी को सच में शिकायत का कोई मौका नहीं दिया वो रोज सुबह नहा धोकर ही रसोईघर में घुसती और प्यार से सबके लिए खाना बनाती उसके खाने में सचमुच प्रसाद का स्वाद आता। सीता देवी भी ऐसी संस्कारी बहू पाकर बहुत खुश थी।
” बहू आज मेरे मायके से मेरे भाई – भाभी और भतीजा आ रहे हैं तुम्हारी शादी के बाद पहली बार आ रहे हैं तो तुम खाने में छोले – चावल , मटर पनीर पुड़िया और हां खीर भी जरूर बनाना खीर में खूब सारे मेवा डालना मेरे भाई को मेवे वाली खीर पसंद है और हां पुड़िया देसी घी में तलना छोले मैने गरम पानी में सुबह ही भिगो दिए थे!” एक दिन सीता देवी जी दिव्या से चहकते हुए बोली।
” जी मांजी आप चिंता मत कीजिए!” दिव्या बोली और रसोई में जुट गई तैयारी करने!
मेहमानों के आने पर दिव्या ने बहुत अच्छे से खातिरदारी की उनकी।
” वाह बहू तुम्हारे हाथ में तो बड़ा स्वाद है साक्षात अन्नपूर्णा हो तुम तो!” खाने पर मामीजी दिव्या की तारीफ करती बोली।
“हां भाभी वैसे भी मेरा रसोईघर एक पूजाघर के समान है जहां खाना श्रद्धाभाव से बनता है तो वो प्रसाद स्वरूप हो जाता है और प्रसाद में स्वाद ना हो ऐसा हो नहीं सकता!” सीता जी बोली।
दिव्या मुस्कुरा कर रह गई।
कुछ दिन बाद दिव्या के ससुर रमन जी की बहन अपने परिवार के साथ आने वाली थी जैसे ही उन्होंने दिव्या को बताया दिव्या चहक कर रसोई में गई और छोले भिगोने लगी।
” ये क्या कर रही हो बहू !” तभी सीता जी वहां आ बोली।
” वो मांजी शाम को बुआजी आ रही हैं ना पूरे परिवार के साथ तो छोले भिगो रही हूं मैं सोच रही हूं छोले चावल , दम आलू पूड़ी और मेवे वाली खीर बना दूंगी!” दिव्या बोली।
” कोई जरूरत नहीं इतना कुछ करने की साधारण खाना बना लो दाल चावल और गोभी की सब्जी रोटी काफी है!” सीता जी बोली।
” पर मांजी मेरी शादी के बाद बुआ जी पहली बार आ रही वो भी पूरे परिवार के साथ इतना सादा खाना क्या अच्छा लगेगा?” दिव्या बोली।
” हां तो कौन सा बड़ी बात है उनके तो ये भी कभी कभी बनता होगा रोज में तो एक सब्जी या दाल ही बनती बस !” सीता जी मुंह बना कर बोली।
” माफ़ कीजियेगा मांजी वो अपने घर में क्या खाते क्या नहीं इससे क्या फर्क पड़ता है इस घर के वो मेहमान है तो हमें उनका स्वागत अच्छे से करना चाहिए!” दिव्या प्यार से बोली।
” हां तो अच्छे से कर रहे तभी तो इतना कुछ बना रहे है वरना हर बार तो मैं दाल रोटी या सब्जी रोटी बनाती हूं!” सीता जी बोली।
” मांजी आपने मुझसे खुद कहा था ये रसोईघर मेरे लिए पूजा घर समान है तो पूजा घर में दुभात कहां होता है वहां तो सभी बराबर होते । वैसे भी ये तो बुआजी का मायका है और मायके मे तो एक बेटी अपनत्व की छाँव तले कुछ पल गुजारने आती है वहाँ उसके साथ परायों जैसा व्यवहार हो तो क्या बीतेगी उसके ऊपर आप तो खुद एक बहन , एक बेटी हो ये बात अच्छी तरह समझ सकती हो । इसलिए जैसे हमारे लिए मामाजी थे वैसे ही बुआ जी है तो हमे दोनो का स्वागत एक बराबर करना चाहिए क्योंकि भगवान के मंदिर में दुभात कहां होती है वहां सबको एक समान प्रसाद मिलता है !” दिव्या बोली।
” सही कहा तुमने बहू मैने रसोई को पूजाघर बस बोला था तुमने इसके सही मायने बताए हैं आज । जो तुम्हारा मन करे बनाओ क्योंकि इस पूजाघर में सबके लिए एक सा प्रसाद बनेगा अब से। मेरी बहू सच में अन्नपूर्णा है !” सीता जी थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद दिव्या के गाल पर प्यार से हाथ फेराते बोली।
बाहर खड़े ससुरजी जो अब तक सब सुन रहे थे उनकी आंखो में भी बहू दिव्या के लिए प्यार उमड़ आया आखिर अब उनके घर में सब बराबर जो है ।
” बहू आज मुझे तुममें अपनी माँ नज़र आ रही है जिसके लिए सब एक बराबर थे । उसने हमेशा अपनत्व की छाँव सब पर बराबर की फिर चाहे वो गरीब हो या अमीर !” भावुक ससुर बहू के सिर पर हाथ रखते हुए बोले। सीता जी भी भावुक हो गई क्योकि उन्होंने भी शादी के बाद देखा था कैसे उनकी सास उनके मायके वालों का स्वागत भी ऐसे ही करती थी जैसे अपने मायके या ससुराल के लोगो का पर जबसे वो गई है उन्होंने अपनी ननद के साथ हमेशा पराया बर्ताव ही किया। रमन जी ने कुछ समय तक विरोध किया पर फिर घर की शांति के लिए चुप हो गये । पर आज उनके भावुकता से भरे चेहरे पर अलग ही खुशी भी थी ।
दोस्तों अपने घर में मेहमानों का स्वागत उनकी हैसियत से नहीं बल्कि अपनी हैसियत से करना चाहिए फिर चाहे वो मेहमान कोई भी हो। जिस घर में रसोई में ऐसी दुभात होती है वहां मां अन्नपूर्णा का वास नहीं होता।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#अपनत्व की छाँव