मनोज के घर पर सभी नई बहू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। मनोज का बारात कल पटना से मिथिलाँचल के एक गाँव मे गया था। कल विवाह था और आज नई बहू को लेकर बारात लौटनी थी। महिलाएं बहू की स्वागत की तैयारी कर के अब इंतजार कर रही थी कि कब बहू आए और वे उसका मुँह देखे। गाँव पटना से काफ़ी दूर था इसलिए बारात लौटने मे देर हो रही थी शाम हो चला था पर अभी वे लोग नहीं आए थे।
मनोज के परिवार वाले भी मिथिला के ही थे इसलिए उनके परिवारिक जान पहचान से विवाह तय हुआ था। थोड़ी देर मे बारात आई पर एक दुल्हन की जगह दो दो दुल्हनो को लेकर। घर वाले आश्चर्यचकित थे कि दो दो बहू कैसे!तभी किसी ने कहा की दूसरी बहू मनोज के मौसेरे भाई शुभम की है।
कोई समझ ही नहीं पा रहा था कि विवाह मनोज का था, शुभम बारात गया था तो उसका विवाह कैसे, क्यों और किससे पूछकर किया गया। लड़की के माता पिता कौन है, उसका घर कहाँ है आदि बाते रहस्य बन गईं थी।जितने लोग उतनी बाते। तभी मनोज के पापा ने कहा तुमलोग किस चीज का अब इंतजार कर रही हो सब।
बहूओ को गाड़ी से उतार कर घर के अंदर ले जाओ। बहूओ को मनोज की माँ गाड़ी से उतार कर देवता घर मे ले गईं। शुभम की माँ को तो मानो जैसे काठ मार गया हो, वह एक जगह ख़डी थी तो ख़डी ही रह गईं थी।थोड़ी देर बाद सारे बाराती अपने अपने घर चले गए। अब सिर्फ घर के लोग और कुछ करीबी रिश्तेदार ही बचे थे।
मनोज के पापा ने शुभम की माँ के पास जाकर कहा -अचला तुम मेरी बात को ध्यान से सुनो और समझो। यह जो दूसरी दुल्हन है वह शुभम की बहू है और तुम्हे इस विवाह को स्वीकारना होगा। क्यों? क्यों मत पूछो। यह हमारी मजबूरी है. जब बारात लड़की के घर पर पहुंची तो सभी अपनी अपनी धुन मे नाच गा रहे थे।
हमें कुछ समझ आता तब तक पिस्तौल के नोक पर शुभम का अपहरण हो चूका था। हम समझ गए कि यह पकडूआ विवाह गैंग का काम है। मैंने तो शुभम को पहले ही बारात जाने से मना किया था। उधर के गाँव मे कुँवारे लड़को को बारात मे नहीं ले जाते है। पता नहीं उन्हें कैसे पता हो जाता है और वे कुँवारे लड़को का अपहरण कर के अपनी बेटी का विवाह बंदूक की नोक पर करवा देते है। हमारे साथ भी ऐसा ही हुआ ।
अपहरण के चार घंटे बाद पांच, छह बंदूकधारी शुभम और इस लड़की को लाकर हमारे पास छोड़ गए और कहा हमने इनका विवाह करवा दिया है। अब से यह तुम्हारे घर की बहू है। इसका अच्छे से ख्याल रखना, वरना इसके साथ बुरे बर्ताव करने पर अंजाम के लिए तैयार रहना।
अब समझी मै क्यों कह रहा था कि बहू को स्वीकारना ही होगा। तुम्हारा एक ही बेटा है. उन्होंने इसके साथ कुछ गलत कर दिया तो हम क्या कर सकेंगे। मुझे जो कहना था मैंने कह दिया अब तुमलोग आगे देख लो कि तुम्हे क्या करना है। यह कहकर शुभम के मौसा जी चुप हो गए।
शुभम के पिता नहीं थे अब बेटे को भी खोने की हिम्मत उसकी माँ मे नहीं थी। अतः वे शुभम और उसकी बहू को लेकर अपने घर चली आई। शुभम की माँ उसके पिता के मरने पर अनुकम्पा के आधार पर मिली बैंक की नौकरी करती थी। शुभम भी पढ़ लिख कर बैंक मे नौकरी करने लगा था। गाँव मे भी सम्पति अच्छा था। कुल मिलाकर वे अच्छे खाते पीते लोग थे। ऐसा लड़का खोजने पर बहुत ज्यादा दहेज देना पड़ता,यही कारण था
कि उसका विवाह अपहरण कर के कर दिया गया था। दुल्हन को घर तो ले आए पर दोनों मे से कोई उससे बात नहीं करता था। शुभम तो उसकी तरफ देखता भी नहीं था। वह भी अपने से कभी शुभम से बात करने की कोशिश नहीं करती थी। दिनभर वह घर के काम करती पर शुभम के आते ही घूँघट करके अपनी सास के कमरा मे चली जाती। घर का काम बहुत ही अच्छा और फुर्ती से करती थी. रात मे सास के पाँव दबाकर उन्ही के कमरा मे जमीन पर चादर बिछाकर सो जाती।
ऐसा करते करते उनके विवाह के छह माह हो गए। इस दौरान उसने अपनी सास की दिनरात सेवा करके उनका मन जीत लिया। एक दिन शुभम की माँ ने शुभम को अपने कमरा मे बुलाया और कहा देखो बेटा तुम्हारा विवाह तो एक ना एक दिन तो होना ही था, भाग्य मे शायद इसी तरह से लिखा था। हम आखिर बहू का तिरस्कार कब तक करेंगे? हमें इसे रखना ही है
तो क्यों ना सम्मान के साथ रखे? मेरी बात मानो और बहू को अपना लो। पढ़ी लिखी भी है, घर के सारे काम भी जानती है और सुंदर भी है। आखिर एक बहू के रूप मे और क्या चाहिए। माँ आप सब सही कह रही है पर यह लड़की आपराधिक परिवार से है। इसे अपनाना सही होगा? शुभम ने अपनी चिंता व्यक्त की। मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लगता है लड़की तो बहुत ही संस्कारी है।
माँ की बात मानकर शुभम ने भी धीरे धीरे उस लड़की को अपना लिया। कुछ दिनों बाद जब अचला जी सुबह सुबह बाहर बैठकर धुप सेक रही थी तो एक आदमी उनके पास आया और आते ही उनका पाँव पकड़ कर कहने लगा बहन जी मुझे माफ कर दीजिए। अचला जी अचकचा गईं और बोली आप कौन है? उसने कहा एक मजबूर बाप। मैंने अपनी बेटी को पढ़ाया लिखाया, हर गुण
सिखाया पर जब विवाह की बारी आई तो बेटी का कोई गुण काम नहीं आया। मुझे परेशान देखकर मेरे द्वारा पढ़ाए गए कुछ बच्चो ने आपके बेटा का अपहरण करके जबरदस्ती मेरी बेटी से उसका विवाह करवा दिया। मुझे बहुत बाद मे पता चला, मैंने विवाह रोकने की कोशिश की पर वे मेरी बात नहीं माने. शायद मेरे मन मे भी चोर था जो मैंने सब भगवान के भरोसा पर छोड़ दियाऔर अपनी
बेटी से बस इतना कहकर कि बेटी सास की सेवा करना,मेरे संस्कार को कलंकित मत करना,अपनी बेटी को विदा कर दिया। अब आप लोगो ने मेरी बेटी को अपने घर की बहू बना कर जो सम्मान दिया है उसके लिए आपका आभारी हूँ। अभी कहा भाई साहब अभी तो हमने अपनी बहू के आने की ख़ुशी मे भोज ही नहीं दिया है।अगले सप्ताह शुभम का जन्मदिन है हम उस दिन भोज का
आयोजन करेंगे। आपको भी सपरिवार आना है। यह कह कर अचला जी ने उन्हें उठाकर अपने बगल कि कुर्सी पर बैठा दिया।
विषय – तिरस्कार कब तक
मै अपने पाठको से पूछना चाहती हूँ कि यह विवाह नैतिक है या अनैतिक। कृपया अपनी राय कमेंट बॉक्स मे जरूर दें।
लतिका पल्लवी