पिता की बात – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

एक अजीब सी उकताहट और कसमसाहट से अकुलाकर विभूति ने रात के समय दबे पांव बाहर का दरवाजा खोला और निस्तब्ध अंधकार में शामिल हो गया।भीतर का अंधकार बाहर के अंधकार के साथ मिल कर मानो ठहराव को प्राप्त हुआ था।

घोर निराशा हताशा का अंधेरा उसे लीले ले रहा था।नीरव अंधकार में  वह गुम सा हो गया था।मन की भटकन के साथ पैरों की भटकन भी कदम ताल कर उठीं थीं।

दूर तक पसरे अंतहीन अंधेरे के साम्राज्य को देखती विभूति की आँखें ये सोच कर छलक उठीं कि इस अंधेरे का भी अस्तित्व है पहचान है कितने अभिमान से यह पूरी कायनात को अपने आगोश में जकड़ कर रखता है।… और मैं कुछ भी नहीं।इतनी बड़ी कायनात में मेरा क्या अस्तित्व है।सब खो दिया है मैंने।सबकी नजरों से ओझल हो चुका है।

अंधकार को गहराती उसकी कटु स्मृतियां सजीव होने लगीं थीं।

विभूति तुमने भी तो अप्लाई किया था वहां जिसमें केशव जी की बेटी सान्या ने किया था।कुछ हुआ उसमें .या…… सुबह उठते ही पापा आलोकनाथ जी की प्रश्नवाचक व्यंग्यात्मक आवाज से विभूति जाने क्यों तिलमिला सा गया जिसमें खीझ ज्यादा थी।

उनकी बेटी लायक है मेहनती है लगनशील है उसका हो गया चयन उसके पापा भाग्यशाली हैं आपकी तरह उनकी तकदीर फूटी नहीं है विभूति के तल्ख जवाब ने पिता के पारे को और गर्म कर दिया।

सीधा कायदे का जवाब तुम नहीं दे सकते कि हां मेरा चयन नहीं हुआ। मुझे तो पहले ही पता था तुम्हारा चयन नहीं होगा।ठीक कह रहे हो तुम मेरी तकदीर सचमुच में फूटी हुई है तभी तो ऐसा नालायक उज्जड पुत्र भी है ।पिता से बात करने की तमीज खत्म हो गई है ।पता नहीं किस बात की इतनी अकड़ है तुम्हें।किसी लायक तो बन जाओ पहले ।अभी तो पिता के बलबूते तुम्हारे ये सारे ठाठ बाट बढ़िया चल रहे हैं… पिता आलोकनाथ का प्रतिदिन का सुबह का मंत्र जाप शुरू हो चुका था।

अरे क्यों बिगड़ रहे हैं ।अभी उमर ही क्या है इसकी मां शांता जी ने बात ज्यादा ना उलझ जाए सोच जल्दी से विभूति के पास आकर कहा।

मुझसे चार बरस ही तो छोटा है मां।जब मैं इसकी उम्र का था तब अपनी कमाई से मैने कार खरीद ली थी।मेरी शादी भी हो गई और इसकी अभी तक कमाई के रास्ते नहीं खुले हैं कब तक घर पर यूं बेकार पड़ा रहेगा बड़े भाई विनायक ने भी पिता के जारी जाप की ज्वाला प्रज्वलन में योगदान दिया और सुबह का नाश्ता खत्म किया।

मिताली जल्दी तैयार हो ऑफिस के लिए लेट हो रहे हैं पत्नी को आवाज लगा विनायक अपने जूते की लेस बांधने लगा था।

विनायक को देख  बचपन से कितना शांत और मेधावी है।सीख अपने बड़े भाई से कुछ।पता नहीं क्या करता रहता है सारा दिन।हाथ पांव सुस्ताने के लिए ही इतना खर्चा नहीं किया है तुम्हारी पढ़ाई लिखाई पर …पिता का जाप अभी पूरा नहीं हुआ था। आक्रोश बाहर आने का अवसर ही ढूंढ रहा था।

हर पिता यही करता हैं जो आपने मेरे लिए किया है इतना सुनाने की जरूरत नहीं है कर तो रहा हूं सब जगह अप्लाई नहीं मिल रही नौकरी तो क्या करूं विभूति की त्वरित प्रतिक्रिया थी।पिछले साल से कह रहा हूं कुछ लाख रुपए दे दीजिए तो अपना बिजनेस कर लूंगा पर आपको तो अपना रुपया ज्यादा प्यारा है पुत्र के भविष्य से…..!

पिता जी को रुपया प्यारा होता तो वह आपकी पढ़ाई लिखाई पर इतना खर्च ही नहीं करते बिजनेस ही करना था तो  इतनी उच्च शिक्षा की क्या जरूरत थी विभूति भैया। ठीक ही तो कह रहे हैं पिता जी ।इन्होंने आपको इतना पढ़ाया लिखाया इसलिए कि जैसे इनका समाज परिवार में नाम है सम्मान है वैसा ही आपका भी हो।लेकिन अब तो आपके ही कारण पिता जी और हम सबको अपमान के घूंट पीने पड़ रहे हैं पिछले पांच वर्षों से आप घर पर बैठे हैं बेकार… मुझे भी सबके बीच आपके बारे में बताने में शर्म आने लगी है विनायक की पत्नी मिताली ने भी अवसर देख दिल की भड़ास निकालते हुए मंत्र जाप की ज्वाला तेज कर दी और विनायक के साथ कार में अपने ऑफिस चली गई।

मैं एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा तुझे ।अब जो भी करना हो अपने बलबूते कर ले।मुझसे कोई उम्मीद ना रखना ।तेरा खाना खर्चा ही चल रहा है यही गनीमत है शांता इससे घर के काम करवाया करो खाली ही तो बैठा रहता है .. बिजनेस करने चले हैं हूँह… जाप समाप्त करते हुए पिता भी जूस लेकर अपने कमरे में चले गए थे।

पिता और भाई के साथ साथ आज नई आई भाभी के मुंह से निकले ये तीखे ताने  विभूति के दिल को आरी की भांति चीर गए थे बिना कुछ कहे वह  तेजी से अपने कमरे में चला गया था जोर से दरवाजा बंद कर लिया ।

उस घटना के बाद से आज एक माह बीत गया पर अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकला।घर में मां को छोड़ कोई उसके कमरे में आया भी नहीं।मां भी सब घरवालों से छिप कर उसके पास आती थोड़ा समझा बुझा कर खाना देकर जल्दी से चली जाती।कोई कुछ कहता नहीं था घर में अब लेकिन इस नहीं कहने में छिपी उपेक्षा और अपमान  विभूति के दिल दिमाग में बेतहाशा शोर मचाते रहते थे।

धीमे धीमे उसे महसूस होने लगा कि अपने ही घर में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया था।उसे खुद नहीं पता था वह कहां है क्या कर रहा है क्यों कर रहा है।कुछ नहीं कर पाने की विवशता के ग्लानिभाव और अपनों के अबोले पन से उसकी आत्मा कुचल गई थी जिसने उसके खुद पर आत्मविश्वास को शनै: शनै: समाप्त  कर दिया था।अब तो भूले भटके किसी साक्षात्कार के लिए नाम आने पर उसका यही डगमगाता आत्मविश्वास उसके हर अवसर पर कुठाराघात कर देता था।

आज भाभी का जन्मदिन था। समारोह मनाया गया।अनेकों लोगों को निमंत्रित किया गया था।भांति भांति के व्यंजन चहल पहल सब थी।लेकिन किसी ने भी आकर उसे नहीं बुलाया ।उसकी उपस्थिति को अनुपस्थित कर दिया गया था।शायद शहर के प्रतिष्ठित जनों से सज्जित उस भव्य समारोह में उस जैसे निकम्मे का आगमन समारोह का अपमान करने जैसा होता।

मां भी चुपके से उसके कमरे में आकर नाश्ते खाने की प्लेटें रख गईं थीं और दबे स्वर में वहां आने से मना कर गईं थीं।कोई बखेड़ा ना हो जाए ।

आज अपने ही घर में अपने ही पिता अपने ही भाई भाभी के लिए वह बखेड़ा खड़ा करने वाला बन गया था नाक काटने वाला बन गया था।यह स्थिति उसके लिए असहनीय हो गई थी।इसीलिए वह घर से बाहर भाग आया था।

बाहर का अंधकार उसका कोई बिगाड़ नहीं कर पा रहा था क्योंकि उसके भीतर का अंधकार ज्यादा शक्तिशाली था।उसे रात के इस अंधकार से बिल्कुल डर नहीं लग रहा था।कटु स्मृतियों के दंश से विचलित हो चलते चलते अचानक वह दौड़ने लगा ।वह घर से बहुत दूर निकल आया था ।थक कर एक जगह बैठा तो सीधे सुबह नींद खुली।नीद खुली तो उसने खुद को एक चाय की गुमटी के सामने पाया।रात के अंधेरे में जगह का भान ही नहीं हो पाया था उसे।

लो भैया जी चाय पी लो बड़ी दूर से आए लगते हो वृद्ध गुमटी वाले ने बहुत आत्मीयता से कांच के ग्लास में उसे चाय देते हुए कहा तो

लंबे समय बाद किसी आत्मीय स्वर की नर्माहट ने उसे छू लिया और आंखों में अश्रु झिलमिला उठे।यह देख गुमटी वाले की पत्नी डबलरोटी का  टुकड़ा प्लेट में ले आई लो भैया लगता है तुम बहुत भूखे भी हो चाय में डुबा कर खा लो ।

अपनत्व से दिए जा रहे सामान ने उसे सम्मोहित और सम्मानित सा कर दिया।

नहीं नहीं मेरे पास इन सबके बदले देने को रुपए नहीं है मुझे कुछ नहीं खाना पीना।

चाय पीने के बाद पैसे नहीं देने पर इन्हीं गुमटी वालों की अपमानित प्रतिक्रिया की कल्पना से विभूति सहम गया।

जब घर के लोग उसके एक एक दाने का हिसाब करते है उसके खाने रहने के बदले उससे उनके लिए भी कुछ करने की अपेक्षा रखते हैं।तो फिर  यह तो गुमटी वाला है इससे तो दूर दूर तक मेरा कोई संबंध ही नहीं है इसलिए बाद में अपमान मिले उससे बेहतर है अभी से स्थिति स्पष्ट कर दूं विभूति ने सोचा।

ओहो भैया जी इत्ता काहे सोचते हैं पैसे नहीं है तो का हुआ मेरे साथ बर्तन धुलवा दीजिएगा सिम्पल…! चलिए अब चाय और डबलरोटी खा लीजिए छोटू जो गमछा डाले वहां पड़ी कुर्सी टेबल पोंछ रहा था उसने बहुत तसल्ली से कहा तो पता नहीं विभूति को बिल्कुल बुरा नहीं लगा।

हां मैं खाने के एवज में कोई भी काम करने को तैयार हूं उसके मुंह से स्वत: ही निकल पड़ा।

चाय और डबलरोटी खाने के बाद वह अपनी जींस नीचे मोड कर  बर्तन धोने पहुंच गया तो गुमटी वाला आश्चर्य में पड़ गया।

नहीं भैया रहने दीजिए आप किसी अच्छे घर के लगते हैं।ये सब काम रहने दीजिए।कोई मुसीबत पड़ गई है क्या आप पर उसका स्वर बहुत सहानुभूति पूर्ण था।

नहीं भाई मेरा घर वास्तव में बहुत ऊंचा है बहुत अच्छा है लेकिन मैं उस अच्छे घर के लायक नहीं हूं मुझसे आप कोई संकोच ना करिए। मुझे काम करने दीजिए कहता वह फुर्ती से बर्तन धोने लगा  लेकिन जो काम कभी उसने किया हो ना हो वह अचानक कैसे बनता।

गिलास उसके हाथ से फिसल कर फर्श से टकराया और टूट गया।

विभूति डर गया।सहम कर मालिक की तरफ देखने लगा।

आपसे ये काम नहीं होगा भैया मैने पहले ही कहा था वह हंस रहा था।

विभूति को पिता की हंसी याद आ गई ।

लेकिन आज इस हंसी में विभूति को अपने लिए तिरस्कार महसूस नहीं हुआ।

माफ कर दीजिए अगली बार ध्यान रखूंगा वह जल्दी से बोल पड़ा।

अगली बार यह गलती आप तब करोगे ना जब मैं आपको काम करने दूंगा मालिक अब भी हंस ही रहा था।

क्या मतलब फिर मैं अपनी चाय का पैसा कैसे भर पाऊंगा विभूति इस अचानक मिले आसरे के छूट जाने के भय से सिहर उठा।

भैया सुनो आप हमारी बात।आपके घर में आपके साथ क्या समस्या है यह तो हम नहीं जानते लेकिन अगर इतनी बड़ी कोई मजबूरी है कि आप कोई भी काम करने को तैयार हैं तो हमारे पास आपके लिए दूसरा काम है गुमटी मालिक ने उसकी तरफ देखते हुए कहा।

दूसरा काम !! क्या है बताइए कैसा भी हो मै तैयार हूं मुझे अपनी इसी गुमटी में रख लीजिए विभूति गिड़गिड़ा उठा उसे इतने बड़े अंजान अनदेखे संसार में सिर छुपाने को कोई ठौर तो चाहिए था।

मेरी दुकान में हिसाब किताब का काम करने वाला लड़का बहुत बेईमान है।रुपयों का गोल माल करता है।मैं वृद्ध हो चला हूं हाथ भी कांपने लगा है पेन पकड़ में नहीं आता है।दिखाई भी ठीक से नहीं देता अगर तुम्हे ठीक लगे तो क्योंकि तुम पढ़े लिखे दिख रहे हो तो तुम यह काम संभाल लो उसने कहा तो विभूति प्रसन्न हो गया।उसे अपनी बेकार जिंदगी का कोई अर्थ दिखने लगा।

उस दिन से  गुमटी  का पूरा हिसाब वह करने लगा।वह गुमटी छोटी भले ही थी लेकिन हाइवे पर होने के कारण बिक्री बहुत होती थी।सुबह से रात तक भीड़ लगी रहती थी।मालिक और उसकी पत्नी वृद्ध हो चले थे।ग्राहकों की मांग  के अनुरूप व्यवस्था करने में अक्षम थे।कोई करने वाला नहीं था उनके पास।

विभूति सुबह से देर रात तक काम में लगा रहता।हिसाब किताब वह बहुत ईमानदारी और दक्षता से करता।उसका कार्य और साथ ही सभी के साथ व्यवहार भी बेहद नम्र रहता था।आने वाले लोग उससे प्रसन्न रहते थे।धीरे से वह हिसाब के साथ साथ नाश्ते की व्यवस्था बैठने की व्यवस्था भी देखने लगा था।उसके भीतर अब अंधेरा नहीं कुछ कर पाने की रोशनी बिखरने लगी थी ।

घर के सुस्वादु भोजन के स्थान पर यहां का रुखा सूखा उसे ज्यादा स्वादिष्ट लगता था।मेहनत की कमाई का स्वाद वह समझ रहा था।पिता और भाभी के ताने की कटु स्मृति उसे नित्य कुछ नया करने को प्रेरित करते थे।जब गुमटी मालिक उसकी पत्नी और वहां आने जाने वाले उसकी तारीफ करते तब उसे खुद के अस्तित्व पर यकीन होने लगता।उसका कुचला हुआ आत्मविश्वास धीरे धीरे वापिस आने लगा था।गुमटी में उसे स्नेह के साथ सम्मान भी मिलता था जो उसे खुद के पास लाता रहता था।

देखते ही देखते उसकी मेहनत ईमानदारी और नवीन सुधारों से गुमटी का रूप परिवर्तित होने लगा।ग्राहकों की संख्या बढ़ने से आमदनी बढ़ी फर्नीचर बदला क्रॉकरी बदली नाश्ते के आइटम बदले धीरे से भोजन की व्यवस्था भी बनाई गई।अब तो कई जगहों से  दावत और पार्टी आयोजन के लिए  होम डिलीवरी ऑर्डर भी आने लगे थे।गुमटी की कमाई रफ्तार पकड़ रही थी।

अचानक एक दिन गुमटी मालिक का हृदय गति रुकने से निधन हो गया।

मरते समय वह पूरी गुमटी विभूति के नाम कर गए और अपनी बेसहारा पत्नी की देख रेख की जिम्मेदारी भी । जिसे विभूति ने पूरी ईमानदारी से निभाया।

शिक्षा और लगन कभी बेकार नहीं जाती ।विभूति की उच्च शिक्षा काम आ रही थी।अब वह गुमटी छोटे से आधुनिक” विभूती रेस्टोरेंट” में बदल गई थी हिसाब करने के लिए अत्याधुनिक कंप्यूटर आ गए थे,स्मार्ट वेटर चमकता हुआ फर्नीचर स्वाद की विविधता ने इसे उस सुनसान हाइवे का इकलौता आकर्षण बना दिया था।

घर की याद उसे अक्सर आ जाती थी कई बार वह फोन पर अपने बारे में बताने की उत्कंठा को दबा देता था।जब उन्हें मेरी कोई चिंता कोई परवाह नहीं है तो मुझे भी क्यों।उन्होंने ढूंढने की कोशिश भी नहीं की मुझे यह विचार उसे उद्वेलित कर जाता था।

अचानक एक दिन रेस्टोरेंट में होम डिलीवरी के लिए फोन आया।विभूति ने ही फोन उठाया।दूसरी तरफ से कोई कल होने वाले किसी आयोजन के लिए भोजन और नाश्ते के होम डिलीवरी के चार्जेज पूछ रहा था ।उसे आवाज एकदम जानी पहचानी सी लगी।ध्यान दिया कि यह तो विनायक भैया की आवाज है। वह रोमांचित हो गया।बड़ा भाई उसका।केवल नाम का।कभी बड़े भाई के दुलारकी ऊष्मा उसे नहीं मिली।बचपन से अभी तक मेधावी बड़े भाई की प्रतिभा प्रसिद्धि की तीखी चमक में उसका अस्तित्व दबता गया।

हेलो हेलो लगातार पुकार पर वह होश में आया और चार्जेज बताने लगा।

होम डिलीवरी के चार्जेज सुनते ही दूसरी तरफ की आवाज कुछ खामोश हो गई।इतना बजट नहीं है अच्छा आपको एक घंटे से बताता हूं कह फोन काट गया।

बजट नहीं है यह कैसे हो गया ।क्या हो गया घर में।सब कुशल तो है।आशंका से विभूति आकुल हो गया।

उसने बेचैनी से थोड़ी ही देर बाद उसी फोन नंबर पर रिंग की।

हेलो रेस्टोरेंट विभूति से बोल रहा हूं।क्या हम जान सकते हैं कि कुछ देर पहले आपके द्वारा  किया गया ऑर्डर फाइनल समझा जाए विभूति ने आवाज बदलकर पूछा।

सारी मै आपको यह बात  बताने ही वाला था।वह ऑर्डर कैंसल ही रहेगा उधर से विनायक का लज्जित स्वर विभूति को चकित कर गया।

क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूं ।आयोजन किस बारे में हो रहा था और कैंसिल क्यों किया जा रहा है विभूति ने जल्दी से पूछा।

जी दरअसल कल फादर्स डे है ।उसी अवसर पर घर में ही आयोजन करने की सोच रहे थे क्योंकि पिता जी लकवे की वजह से कहीं बाहर नहीं जा पाएंगे।होम डिलीवरी के चार्जेज बहुत ज्यादा है बजेट भी उतना नहीं हो पा रहा है और पिता जी भी पार्टी के लिए सहमत नहीं होंगे यही सोच कर रद्द करना पड़ रहा है अब उनका ध्यान तो रखना पड़ेगा ना जबरदस्ती की हंसी के साथ कही बात में छिपी विवशता बखूबी समझ चुका था विभूति।लकवे की बात सुन उसकी जबान को भी एक पल के लिए लकवा ही मार गया था।

अरे वाह यह बात आपने पहले क्यों नहीं बताई।वरिष्ठ जनो के किसी भी आयोजन पर हमारे रेस्टोरेंट की तरफ से साठ प्रतिशत कंसेशन दिया जाता है विभूति ने जल्दी से बात संभालते हुए कहा ।

क्या कह रहे हैं आप दूसरी तरफ से खुशी भरी आवाज सुनाई दी।अगर सच में ऐसा कोई कंसेशन है तब तो मेरा ऑर्डर रद्द नहीं करिए ।पिता जी के लिए इससे बड़ी सरप्राइस पार्टी नहीं हो सकती आपको बहुत धन्यवाद वास्तव में आपके  रेस्टोरेंट की जितनी तारीफ सुनी है सब एकदम सही है आप लोग रुपए से बढ़कर संस्कारों और मूल्यों का भी इतना ध्यान रखते हैं यह मेरी कल्पना के परे था

साधुवाद आपकी सोच और संस्कारों को बड़े भाई की उमंग उत्साह से भरी आवाज ने विभूति के भीतर भी ऐसी उमंग भर दी जिसका अहसास वह भूल चुका था घर और घरवालों से मिलने की बेकली सारे बांध तोड़ बह निकली।

हैप्पी फादर्स डे पिता जी दूसरे दिन विभूति खुद को अपने घर जाने से रोक नहीं सका और लकवाग्रस्त पिता जी के चरणों पर झुक गया।बहुत बड़ा सा  केक लेकर वह आया था।

जब तक पिता जी कुछ देख समझ पाते मां चीख पड़ी।

विभूति बेटा विभूति यह तो अपना विभूति है।कहां चला गया था तू।इतना निर्मोही कैसे हो गया देख तेरे जाने के दो दिनों बाद ही पिता जी को ऑफिस में चक्कर आया और लकवे का अटैक हो गया दाहिना अंग काम ही नहीं करता अपने आपको कोसते रहते हैं कि विभूति को दुत्कारने का उसके साथ गलत व्यवहार करने का दंड मिला है मां जोर जोर से रोती जा रही थी शब्द तो अटक अटक कर बाहर आ रहे थे।

पिता जी ने बाएं हाथ से विभूति को कस कर पकड़ लिया ।आंखों से अश्रु धारा बह निकली।शब्द तो लकवे के प्रभाव से वैसे ही अस्फूट हो चुके आज रुंधे कंठ ने शब्दों को और भी अवरुद्ध  कर दिया।

मेरे भाई मुझे माफ कर दे।कितना बुरा बर्ताव किया मैने अपने छोटे भाई के साथ।पिता की फटकार से बचाने के बजाय मै तुझे तिरस्कृत ही करवाता रहा।बड़े भाई के अधिकार की रीढ़ थामे मैं बड़े भाई वाले स्नेह को कुचलता रहा ।पिता जी के लकवा ग्रस्त होने पर मां की तबियत गंभीर हो गई।दोनों की देखभाल के लिए मिताली को जॉब छोड़नी पड़ी घर की माली हालत खराब होती गई।विनायक अपने भाई के गले लग फूट फूट कर रोने लगा।

विभूति भैया मै किस मुंह से माफी मांगू।अनुचित शब्दावली आपके लिए उपयोग करने की सजा ही हम सबको मिली है मिताली सर झुका कर बोल उठी।

बस करिए आप सब।बहुत हो गया रोना धोना कलपना।आप सब मुझसे बड़े हैं मेरे भले के लिए डांटते रहे।मुझे भी अपना बर्ताव सुधारना चाहिए था बुरा नहीं मानना चाहिए था आप सभी के आशीर्वाद से ही जो कुछ आज हूं वह बन पाया पिता जी का सिर मेरे कारण भी हमेशा गर्व से ऊंचा रहे यही ख्वाहिश मैने हमेशा की थी ।

देखिए आज आपके आशीर्वाद से ही मैने अपना खुद का बिजनेस खड़ा किया है विभूति रेस्टोरेंट आज शहर में टॉप पर है।दौलत का ढेर लगा है पिता जी लेकिन आप सबके बिना सब अधूरा है एक खालीपन है।

आज आप सबसे मिलने के बाद मैं खुद को पूर्ण  पा रहा हूं। पिता जी अब आपका बेहतर इलाज होगा आप बिल्कुल स्वस्थ हो जाएंगे विभूति पिता के घुटनों में सिर छिपा कर बोलता जा रहा था और पिता उसे चिपटाए बिलख रहे थे तू ही तो मेरा दाहिना हाथ था …!

विभूति आओ मेरे भाई केक कटिंग का समय हो गया पिता जी की व्हील चेयर यहां ले आओ विनायक ने जोर से कहा तो विभूति खड़ा हो गया।

मां आइए भाभी आप भी साथ में आइए कहता वह सबको साथ में लिए केक के पास खड़े बड़े भाई के पास पहुंच गया था।

हैप्पी फादर्स डे पिता जी केक काटते ही सबके समवेत स्वर की गूंज से पूरा घर जीवंत हो गया ।

आज तो सच में पिता जी के लिए सरप्राइस पार्टी हो गई विभूति और पिता जी के कंधों पर हाथ रख फोटो खिंचवाता विनायक मुदित मन से यही सोच रहा था।

इससे बेहतर फादर्स डे हो ही नहीं सकता आलोकनाथ जी आज पुत्रों पर गर्व करते अपने दाएं बाएं दोनों पुत्रों के सहारे खड़े हो कृतज्ञ अनुभव कर रहे थे।

लतिका श्रीवास्तव 

अस्तित्व#

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