” पिता का आशीर्वाद ” – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” पापा कब छोड़ेंगे आप अपना गँवार पन , इतनी इज्जत कमाई है मैने अपनी मेहनत के बल, सब मिट्टी मे मिलाने मे लगे हो आप !” मेहमानों के जाते ही अरुण मानो अंगारे उँगलने लगा।

” बेटा मुझे पानी पीना था कमरे मे था नही बस इसलिए रसोई मे पानी लेने जा रहा था !” माधवदास जी नज़र झुका बोले।

” तो यूँ लूंगी और बनियान मे आना जरूरी था क्या आवाज़ दे देते वही पानी मिल जाता आपको । क्या सोच रहे होंगे मेरे ऑफिस के लोग इतने बड़े ओहदे वाले इंसान के पिता ऐसे है । जो लोग मेरी तारीफ करते है आज के बाद पीठ पीछे बाते बनाएंगे । आज के बाद कमरे से निकलने की जरूरत नही आपको समझे ! मिताली पानी भिजवा दो इनके लिए !” पिता को एक बार और झिड़क अरुण ने पत्नी को आवाज़ लगाई।

” रहने दो बेटा अब प्यास मर गई !” ये बोल माधवदास जी अपमान का घूंट पीते अपने कमरे की तरफ बढ़ गये ।

” हां इन्हे तो मेरी बेइज्जती करवानी थी ऑफिस के लोगो के सामने।  बस जान कर आये थे इसीलिए बाहर । तंग आ चुका हूँ इनसे !” अरुण काफी देर तक बड़बड़ाता रहा।

” शान्त हो जाइये इतनी बड़ी भी कोई बात नही जो आप ऐसे सुना रहे है पापा जी को । अरे गर्मी मे घर मे इंसान ऐसे ही तो रहेगा कोई सूट बूट मे तो रहेगा नही !” तभी वहाँ मिताली आई और बोली।

” तुम बस रहने दो , घर मे हर कोई लूंगी बनियान मे नही रहता ये देहाती परिधान है बस।” अरुण चिढ कर बोला ।

” अरुण अरुण पापाजी अपने कमरे मे नही है !” थोड़ी देर बाद मिताली घबराई सी आई ।

” बाहर गार्डन मे होंगे और जाएंगे कहा ।” अरुण लापरवाही से बोला।

” कहीं नही है बल्कि उनका सामान भी नही है , वो घर छोड़ कर चले गये देखो ये चिट्ठी छोड़ कर गये है !” मिताली एक कागज़ देती हुई बोली ।

” प्रिय बेटा अरुण

जो पिता अपने बच्चे की जिंदगी बनाने को अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है उसे जब उसी बच्चे से तिरस्कार मिलता है वो कोई पिता बर्दाश्त नही करता । जिन माँ बाप के मुंह से बच्चो के लिए हमेशा फूल बरसते हो उन बच्चो के मुंह से अंगारे जब बरसे तो माँ बाप का कलेजा जख्मी हो जाता है ।

तुम्हे अपना ओहदा बहुत प्यारा है मुझे भी प्यारा है पर लगता है मैं अब तुम्हारे ओहदे और जिंदगी के बीच कही फिट नही बैठता इसलिए जा रहा हूँ । मुझे ढूंढना मत बस हमेशा खुश रहना । ईश्वर तुम्हे खूब तरक्की दे ।

तुम्हारा देहाती पिता ।।।।।” चिट्ठी पढ़कर अरुण धम से सोफे पर बैठ गया ।

थोड़ी देर बाद उसने पिता को ढूंढने की बहुत कोशिश की किन्तु वो नही मिले । मिलते भी कैसे वो तो हरिद्वार जाने की गाडी मे बैठ चुके थे जीवन के बचे दिन आत्मसम्मान से जीने के लिए ।

पिता के जाने के बाद अरुण की जिंदगी मे अचानक एक तूफान आया जिसने उसके ओहदे को ही उससे छीन लिया । जिस कम्पनी मे बड़ी पोस्ट पर था वो कम्पनी ही डूब गई । अब अरुण को समझ आया उसकी सफलता सिर्फ उसकी मेहनत नही उसके पिता का आशीर्वाद भी थी । उस आशीर्वाद का हाथ सिर से हटते ही मेहनत ने भी दम तोड़ दिया और अरुण को मामूली नौकरी करने पर मजबूर कर दिया।

संगीता अग्रवाल

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