फैसला – सुनीता मुखर्जी “श्रुति” :  Moral Stories in Hindi

अंजलि अपने भाइयों के बीच एकलौती बहन थी, इसलिए बहुत नाजों से पली थी। अंजलि दोनों भाईयों  पर जान निछावर करती थी। क्या मजाल…! कि दोनों भाइयों को  कांटा भी चुभ जाए….. वो जमीन आसमान एक कर देती थी। दोनों भाई भी अंजलि को बहुत प्यार करते थे। माता-पिता तीनों बच्चों का आपसी प्रेम देखकर बहुत खुश होते और उनके भविष्य के प्रति भी आस्वस्त होते, कि आने वाले समय में तीनों बच्चे मिलजुल कर रहेंगे। 

अंजलि दोनों भाइयों से छोटी थी लेकिन माता-पिता चाहते थे कि अंजलि का विवाह पहले कर दें। अमीर हो या गरीब, बेटी को कौन घर रख पाया है। हम अपनी बेटी से कितना भी प्यार क्यों न करें, लेकिन पराए घर उसे जाना ही पड़ता है। कुछ दिनों के बाद अच्छा घर वर देखकर अंजलि का विवाह विहान के साथ कर दिया गया।

विहान इकलौता बेटा होने के कारण अंजलि बहुत कम मायके में रह पाती थी। ससुराल में अंजलि खुश हैं, इसलिए मायके वाले सभी निश्चिंत थे। माता-पिता सभी तीज त्योहारों में अंजलि को घर बुलाते, अगर नहीं आ पाती तो उनके घर त्योहारी भेज देते थे। 

धीरे-धीरे दोनों भाइयों के विवाह हो गए। बड़ी भाभी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए सब कामकाज अपने हाथों में ले लिया। भाभी के आने के बाद मम्मी बिल्कुल निश्चिंत हो गई।

पिताजी सरकारी विभाग में काम करते थे। दोनों बेटों की कहीं नौकरी नहीं लग पाई थी, लेकिन वह लोग भी खाली नहीं बैठे थे, छोटा-मोटा कुछ न कुछ काम करते रहते थे। सभी परिवार के सदस्य एक साथ मिलजुलकर हंसी खुशी से रहते थे।

एक दिन खूब बारिश हो रही थी। पिता किसी काम से छत पर गए वहां देखा, बिजली का तार टूटा पड़ा है। बारिश होने के कारण छत पर करंट फैल गया था।  पिताजी कुछ सोच पाते तब तक उन्हें करंट लग गया और वह बेहोश होकर गिर गए। कुछ समय पश्चात उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। 

सभी लोग क्रिया कर्म करने के पश्चात सोचने लगे कि अब परिवार कैसे चलेगा..? पिता की नौकरी ही एकमात्र परिवार में आय का स्रोत था। पिता की जमा पूंजी दोनों बेटों और बहन अंजलि के नाम हो गई। जमा पूंजी मिलने के बाद बड़े भाई शरद ने तीनों भाई बहन के नाम से फिक्स डिपाजिट कर दिया।

कंपनसेशन ग्राउंड में बड़े भैया की नौकरी के लिए घर वालों ने अपनी सहमति दे दी। काफी दौड़ धूप करने के पश्चात शरद भैया की नौकरी लग गई। मांँ को पेंशन मिलती थी। बड़े भैया की नौकरी लगने के पश्चात घर में दोबारा खुशियां आ गई। मम्मी अपना समस्त दायित्व बड़ी भाभी को सौंप कर पूर्ण रूप से आध्यात्मिक हो गई।

शरद भैया अकेले ही नौकरी करते थे। महीना के आखिरी में भैया, शर्मिला भाभी के हाथ में पूरा पैसा दे देते थे। भाभी खूब सोच समझ कर घर चलाती और बचे हुए पैसे को थोड़ा-थोड़ा जमा करते हुए, एक साल के बाद उसे तीन भागों में दोनों भाई और बहन अंजलि के नाम से फिक्स कर देती, परन्तु यह किसी को भी ज्ञात नहीं था। 

घर में किसी को पैसे की जब भी जरूरत होती, वह भाभी से ले लेता। भाभी के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आती थी और वह खुशी-खुशी पैसा दे देती थी। छोटी देवरानी शालिनी अपने मायके जा रही थी। शर्मिला ने उनकी मम्मी के लिए एक साड़ी और भतीजे के लिए कपड़े खरीद कर दे दिए। चलते समय दो हजार रुपए और एक मिठाई का डिब्बा थमा दिया। देवरानी खुशी-खुशी अपने मायके चली गई।

शालिनी की भाभी और मांँ बोली तुम कैसे रह रही हो उसे घर में…? 

देखो…! सारा दिन काम करते-करते मेरी बिटिया की क्या हालत हो गई है..? अब तो तुम्हारी जेठानी का ही उस घर में राज है। तुम तो बस नाम मात्र की बहू हो, बाकी उस घर में कठपुतली बनकर सारा दिन खटती रहती हो। भार्गव भी नौकरी नहीं कर रहा है, अब तुम लोगों को शर्मिला के रहमों करम पर ही रहना पड़ेगा। 

नहीं मम्मी…! शर्मिला भाभी हम लोगों को जब भी पैसे की जरूरत होती है, देती है। कभी कोई दिक्कत नहीं होती है। 

तुम्हारी शर्मिला भाभी जो पैसे तुम्हें दे रही है न…..! वह कौन सा अपने घर से दे रही है। वह तो तुम्हारे ससुर की दी हुई नौकरी है। और उस पर तुम्हारे पति का भी पूरा अधिकार है।

शालिनी, मांँ और भाभी के भड़काने से भड़क गई, और बोली-  इस बार जाकर भाभी को स्पष्ट शब्दों में कह दूंगी की भैया जो नौकरी कर रहे हैं उसका आधा-आधा हिस्सा होना चाहिए। शालिनी की मांँ ने कहा बिल्कुल सही कहा तुमने।

बताओ बिटिया. … ! तुम्हें दो हजार रुपए देकर मायके भेज दिया। तुम कोई छोटी बच्ची हो क्या…? अपने मायके आई हो, यह तुम्हारी जेठानी को समझ में आना चाहिए।

एक दिन शर्मिला, शालिनी से बोली कि आज शाम को तैयार रहना हम लोग बाजार चलेंगे..! 

क्यों भाभी..?

भूल गई….कि हमारी एक प्यारी ननद रानी भी है। सावन का महीना चल रहा है, रक्षाबंधन में वह आएगी। उस समय हम लोग बहुत व्यस्त हो जाएंगे, इसलिए पहले से कपड़े खरीद कर रख लेते हैं।

शालिनी बोली भाभी आप चली जाओ, मुझे जाने की इच्छा नहीं है। शर्मिला जबरदस्ती उसके पीछे पड़ गई, कि मुझे साड़ियां अच्छे से चुनना नहीं आता है। तुम्हारी पसंद की साड़ियां हम लोगों को बहुत पसंद आती हैं। शालिनी ने जब अपनी बढ़ाई सुनी तो फूल कर कुप्पा हो गई, और जाने के लिए तैयार हो गई। अंजलि के लिए एक सुंदर साड़ी और एक सलवार कुर्ता ले आई। 

शालिनी मुंँह बिचकाते हुए बोली, इतनी महंगी साड़ी देने की क्या जरूरत थी। उसे हर साल तो साड़ी दी जाती है, और वह भी महंगी…! हम कम दाम की भी साड़ी दे सकते हैं। 

शर्मिला भाभी तपाक से बोली.… नहीं शालिनी ऐसा नहीं बोलते….! अंजलि हमारी इकलौती ननद है। वह भी इस घर का हिस्सा है। एक राखी में ही तो साड़ी देते हैं। बाकी और कहां उसे दे पाते है।

अंजलि ससुराल में इकलौती बहू है, उसके पास पैसों की कमी है क्या?? पर क्या मजाल….! कि एक बार भी उसने पापा की संपत्ति लेने से मना कर दिया हो। शालिनी..! तुम ऐसा क्यों सोच रही हो…? शरद, भार्गव और अंजलि एक पिता की तीन संताने हैं। अगर उनकी संपत्ति में दोनों भाइयों का हिस्सा है, तो बहन को क्यों नहीं मिलेगा…? शालिनी चुप हो गई।

कुछ दिनों के बाद शालिनी ने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी बहुत प्यारी और सुंदर थी। पूरे परिवार की आंखों का तारा…सभी बच्ची को बहुत प्यार करते थे। बेटी का नाम अनन्या रखा गया। अनन्या का नामकरण संस्कार में एक पार्टी रखी गई। सभी लोग यथायोग्य उपहार लेकर आ रहे थे। शालिनी की नजर अंजलि पर थी, कि बुआ, भतीजी को क्या उपहार देगी। सुना है असल से सूद ज्यादा प्यारा होता है। 

अंजलि नामकरण वाले दिन ही आई। शर्मिला भाभी ने ननद के हाथ से सभी बुआ के रस्मो रिवाज करवाएं,

और बदले में मनपसंद नेग दिया। शालिनी यह देखकर अंदर ही अंदर कुढ़ गई। शर्मिला भाभी ने इसे नेग तो बहुत दे दिया है लेकिन, इसका उपहार अभी तक मेरी बेटी के हाथ में नहीं आया। 

सभी मेहमानों के जाने के बाद घर के सभी लोग उपहार खोल- खोलकर देख रहे थे। शालिनी  के मायके से ससुराल वालों के लिए कपड़े और अनन्या के लिए सोने की जंजीर आई थी। शालिनी सभी को खुशी-खुशी मायके से आए हुए उपहार दिखा रही थी। सब उपहार देखने के पश्चात एक उपहार कोने में रखा हुआ था, उस पर एक साथ सबकी नजर पड़ी। 

सब लोगों को उत्सुकता थी, आखिर यह उपहार किसने दिया और इसके अंदर क्या है..?

वह उपहार एक छोटे से लकड़ी के बक्से के अंदर था, और लकड़ी का बक्सा बहुत सुंदर नक्काशी किया हुआ था।  वह अन्य उपहार से अलग था। दोनों भाई और भाभी उस छोटे से लकड़ी के बक्से को ध्यान से देख रहे थे… कि किसने दिया है!! इसमें किसी का नाम भी नहीं लिखा है। 

शालिनी बोली अंदर खोलकर देखना इसके अंदर क्या है..? शरद ने लकड़ी का बक्सा खोला। उसके अंदर रखी हुई चीज को देखकर सभी लोग एक साथ चौंक गए। वह कुछ और नहीं, अंजलि के हिस्से का फिक्स डिपाजिट था। अंजलि ने फिक्स डिपाजिट निकाल कर अपनी भतीजी के नाम कर दिया था। दोनों भाई-भाभी एक साथ बोले अंजलि यह क्या…? यह तुम्हारा हिस्सा है। तुमने वह सब पैसा अनन्या के नाम क्यों कर दिया।

अनन्या अभी छोटी बच्ची है उसके लिए अभी पैसे की क्या जरूरत है..? अंजलि बोली भैया, आप लोगों का स्नेह  हमारे लिए अनमोल है। मैंने अपना हिस्सा अनन्या को दे दिया यह कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि मैं भी तो इस घर की बेटी हूंँ। और इस घर का हिस्सा इस घर में ही रहना चाहिए। बस आप लोगों का प्यार ऐसा ही बना रहे और मुझे कुछ नहीं चाहिए।

शालिनी अपने कृत्य पर शर्मिंदा थी जो बात-बात में अंजलि को हिस्से के लिए कोसती थी।

अनन्या के आने के बाद अब खर्च और बढ़ गए थे।  शालिनी कुछ करती तो थी नहीं, लेकिन अपना खुराफाती दिमाग से हमेशा कुछ न कुछ उल्टा ही सोचती थी। 

एक दिन वह शर्मिला भाभी से बोली कि भैया इतना कमाते हैं घर खर्च में तो इतना रुपया खपत नहीं होता है 

बाकी का पैसा कहांँ गया..?

आप अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए बचे हुए रुपए अपने पास इकट्ठा कर रही हैं।

शर्मिला को शालिनी की बात से बहुत गुस्सा आया। उसने कहा अपनी गंदी सोच के कारण तुम अपने हाथ से सुंदर से परिवार को खत्म करना चाहती हो। अगर मैं तुमको अलग कर दूँ और एक रुपए भी न दूंँ तो तुम क्या करोगी..?

शालिनी गुस्से में बोली, तुम्हारे पति की नौकरी में आधा हिस्सा मेरे पति का भी है। शर्मिला बोली अगर मैं तुम्हें आधा हिस्सा न दूंँ तो तुम क्या कर लोगी..?

शालिनी अपने होशो हवास गवाते हुए बोली मैं तुम्हें कोर्ट में घसीटूंगी। उसकी बात सुनकर शर्मिला का सिर चकरा गया कि आखिर शालिनी के दिमाग में इतनी गंदगी कहां से आई।

शर्मिला ने अंजलि को भी ससुराल से बुलवाया। शाम को सभी लोग इकट्ठा हुए। शर्मिला ने पूरी बात सभी के सामने रखी और बोली शालिनी क्या चाहती है..? अब मैं आप लोगों को बताना चाहती हूंँ कि घर खर्चे से बचे हुए पैसे मैने क्या किये…? और कहते हुए अलमारी खोली। लाकर से तीन पासबुक लेकर आई। शालिनी ने वह पासबुक देखी देखकर हैरान रह गई।  

शर्मिला दोनों भाई और अंजलि के नाम बचा हुआ पैसा फिक्स करती चली आ रही थी। एक बार शालिनी फिर मात खा गई।

सासू मांँ बोली शालिनी…! तुमने परिवार को तोड़ने का भरसक प्रयास किया है। कभी अंजलि पर और कभी देवी सामान बड़ी बहू पर तुमने इल्जाम लगाया है। यह तुमने ठीक नहीं किया। परिवार ऐसे नहीं चलता…! त्याग और दूसरे की भावनाओं का आदर करना चाहिए। और तुम तुम्हें इसके लिए माफ नहीं किया जा सकता…! हम तुम्हें इस घर से अलग कर रहे हैं। तुम अपने पति और बच्चे के साथ अलग रहो। 

भार्गव बोला-  मैंने तो कुछ नहीं कहा है। मैं इसके साथ अलग नहीं रहूंँगा, मैं अपने परिवार के साथ ही रहूंँगा। आप इसे अलग कर दीजिए। 

सासू मांँ का फैसला सुनकर शालिनी को दिन में तारे नजर आने लगे। उसने दौड़कर सासू मांँ के पैर पकड़ लिए। और कहने लगी मांँ मुझे माफ कर दीजिए। मैंने बड़ी बहन सामान जेठानी का दिल दुखाया है। इस बार वह हाथ जोड़कर शर्मिला के पैरों में गिर पड़ी। भाभी अपनी छोटी बहन को माफ कर दीजिए मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है।

मैंने मायके वालों के सिखाने में आकर यह सब कह दिया। मुझे नहीं पता था कि इससे परिवार किस तरह से बिखर जाएगा। भाभी जब तक आप मुझे माफ नहीं करेंगी तब तक मैं आपके पैर नहीं छोडूंगी।

मैं कुछ नहीं बोलूंगी आखिरी फैसला अब मैं मांँ पर छोड़ती हूंँ- शर्मिला बोली।

सासू मांँ ने शालिनी को हिदायत दी अगर दोबारा ऐसी हरकत की तो मुझे कठोर कदम उठाने से कोई रोक नहीं सकता….!

सुनीता मुखर्जी “श्रुति”

लेखिका 

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित 

हल्दिया, पश्चिम बंगाल

#कठोर कदम 

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