मम्मी! मुझे भी रोटी पर मक्खन खाना है । चाची ने मीनू दीदी को मक्खन दे दिया और मुझे नहीं…..
कोई बात नहीं गीतू , अच्छा ये तो बता …. तुम्हारे पेपर ख़त्म हो जाएँगे ना आज ? फिर कल तो गीतू मामा के घर जाएगी । जाओ , स्कूल बस आने वाली होगी ।
प्रेरणा ने अपनी चार साल की बेटी गर्विता का ध्यान दूसरी तरफ़ ले जाते हुए उसे स्कूल भेज दिया ।
इस तरह की बातें तो तक़रीबन रोज़ होती थी जब देवरानी कनक उसकी बच्ची के साथ भेदभाव करती थी । पंद्रह दिन पहले की ही बात थी कि जब मेहमानों के लिए सूजी का हलवा बना । कनक ने एक डोंगा हलवा अलग निकालते हुए कहा—-
माँजी ! बच्चों के लिए हलवा निकाल कर रख दिया है । जब स्कूल से आएँगे तो खा लेंगे ।
प्रेरणा को तो यही समझ आया था कि हलवा बच्चों के लिए निकाला गया है और बच्चों में उसकी बेटी भी शामिल है । बच्चों के आने पर प्रेरणा ने तीनों बच्चों में बराबर का हलवा बाँट दिया । जब अपना हलवा खाने के बाद मीनू ने अतिरिक्त हलवे की माँग की तो प्रेरणा बोली —-
मीनू बेटा , हलवा तो ख़त्म हो गया । तुमने अपने हिस्से का खा लिया ना ? फिर बनाएँगे तब खा लेना ।
एक फैसला आत्मसम्मान के लिए – डॉ ममता सैनी : Moral Stories in Hindi
आपने मुझे कम हलवा दिया था, ताईजी! तभी तो मेरा जल्दी ख़त्म हो गया । भइया से पूछ लो ….
नहीं मीनू , ऐसा नहीं कहते । ताईजी ने सबको बराबर दिया था। चलो ठीक है, कल सुबह तुम तीनों के लिए नाश्ते में हलवा ही बना दूँगी ।
पर कनक ने इस बात का इतना बतंगड बना दिया कि सास ने भी प्रेरणा से कह दिया—-
बहू , इस बात को याद रखा कर कि अब कमाने वाला केवल विकास है । बिना पति के औरतों को बहुत समझौते करने पड़ते हैं । गीतू की मीनू और अंश से बराबरी मत किया करो । अरे , गीतू की कटोरी में दो चमचे हलवा कम डाल देती तो क्या हो जाता ?
सास की बातें सुनकर प्रेरणा का मुँह खुला का खुला रह गया । कैसी दादी है ? अपनी ही दोनों पोतियों में भेदभाव…. बस इसलिए कि आज गीतू बिन बाप की रह गई ।
प्रेरणा और विकास तो संतान की आस ही खो चुके थे और उन्होंने देवर के दोनों बच्चों को ही अपनी औलाद मान लिया था पर ईश्वर की लीला को कौन समझ सका है । जब गीतू के आने का समाचार मिला तो विकास- प्रेरणा के साथ-साथ माँजी- पिताजी भी ख़ुशी से झूम उठे थे । गीतू के जन्म पर विकास ने कुआँ पूजन की रस्म बड़े धूमधाम से आयोजित की हालाँकि खुद प्रेरणा ने भी कहा —-
सुनो जी ! कुआँ पूजन की रस्म केवल पुत्र- जन्म के अवसर पर ही निभाई जाती है । घर में भी इस बात से कोई खुश नहीं है, रहने दो ना …. वैसे ही दावत कर दो । माँजी भी कह रही थी कि तुम्हारे ही कोई अनोखी लड़की नहीं हुई ।
हाँ….मेरी ही लड़की अनोखी है । जिसके जैसे भाव होते हैं उतना ही सोच सकते हैं । मेरे लिए लड़का-लड़की में कोई अंतर नहीं है । तुम बेकार की बातों पर ध्यान मत दिया करो ।
विकास ने जन्मोत्सव खूब धूमधाम से मनाया । सभी रिश्तेदारों की खूब आवभगत की । पर पता नहीं, किसी की कैसी काली नज़र लगी या उनसे कोई गलती हो गई…. गीतू दो साल की ही हुई थी कि एक दिन ग्राहकों से मोलभाव करते- करते विकास आगे की ओर ऐसा लुढ़का कि फिर उठ नहीं पाया । ऐसा ज़बरदस्त हार्ट अटैक आया कि प्रेरणा का हँसता- खेलता परिवार उजड़ गया । उसके भैया तो प्रेरणा और छोटी सी गीतू को अपने साथ ले जाना चाहते थे पर प्रेरणा की बड़ी ननद ने उसे समझाया—-
प्रेरणा! तुम्हारा घर है- अधिकार है यहाँ, सब कुछ छोड़कर मायके में जाने की गलती मत करना … कुछ दिनों के लिए रहने जाना चाहती हो तो बात अलग है । आज तो गीतू छोटी है पर कल को बड़ी होगी तो उसको सब कुछ चाहिएगा ।
बस उसी दिन से प्रेरणा ने मन मारकर जीना सीख लिया था । वह परिवार के साथ जितना समझौता करती जा रही थी उनकी फ़रमाइशें उतनी ही बढ़ती जा रही थी । पहले तो कनक और बच्चों की बातें और क्रियाएँ मन दुखाती थी अब तो माँजी भी ऐसी बातें कहने लगी थी मानो प्रेरणा और गीतू अनचाहा बोझ हों ।
प्रेरणा! होली के लिए गुझिया बनानी शुरू कर दो , बेटियों के घर तो सामान दो-चार दिन में भेज देंगे । कनक बाज़ार से कपड़ा- लत्ता ख़रीदने जाएगी आज ।
प्रेरणा कहना तो चाहती थी कि रसोई में वही अकेली हमेशा क्यों झोंक दी जाती है पर वह चुप ही रही ।
शाम को बाज़ार से कनक क्या लाई , क्या नहीं…..प्रेरणा को दिखाने की कोई ज़रूरत नहीं समझी गई पर जब मीनू ने अपनी नई ड्रेस पहन कर दादी को दिखाई तो प्रेरणा को पता लगा कि कनक बच्चों के लिए भी होली के नए कपड़े लाई है । वह दो दिन इंतज़ार करती रही कि शायद उसकी गीतू को भी कपड़े मिलेंगे पर मीनू का पुराना लहंगा- चोली पकड़ाते हुए कनक बोली—
भाभी! नया ही लहंगा है , होली पर गीतू पहन लेगी । बस नीचे से थोड़ी लेस उधड़ी हुई है, सिलाई मार देना ।
इतना सुनना था कि प्रेरणा के तन में आग लग गई । क्या साल भर के इस त्योहार पर भी मेरी बेटी के लिए नए कपड़े नहीं । दीवाली पर भी कनक ने यह कहकर मीनू की ड्रेस दे दी थी कि बहनें ही तो है, गीतू को पहना देना । उस समय प्रेरणा ने भी सोच लिया कि घर में तो भाई- बहन पहनते ही हैं आपस में कपड़े । पर केवल पुरानी चीज़ें देते वक़्त ही कनक को यह याद आता था कि गीतू भी मीनू और अंश की बहन है।
आज प्रेरणा की आँखों से नींद कोसों दूर थी । उसने पास में सोई गीतू के सिर पर हाथ फेरा , अपनी आँखों में आया पानी पोंछा और एक गहरी लंबी साँस लेकर मन ही मन ईश्वर को प्रणाम करके बिस्तर पर लेट गई । अगले दिन सुबह समय से पहले ही उसकी आँख खुल गई । हर रोज़ की तरह वह सास- ससुर के लिए पीने का गर्म पानी लेकर गई । पानी देने के बाद प्रेरणा बोली —
पिताजी! क्या मैं आपसे कुछ कह सकती हूँ?
बोलो बहू ! क्या कहना चाहती हो ?
पिताजी! मैं आज से शोरूम पर जाकर विकास की ज़िम्मेदारी सँभालना चाहती हूँ ।
ये क्या कह रही है…. तू क्यों जाएगी? लोग क्या कहेंगे?
माँजी, मैं कोई ग़लत काम करने के लिए नहीं कह रही , मैं केवल इतना कह रही हूँ कि जो ज़िम्मेदारी विकास सँभालते थे , आज से मैं सँभालूँगी ।
तुझे क्या पता कि कारोबार कैसे चलाते हैं, ये मर्दों का काम है , फिर तुझे किस बात की कमी है ? विनीत सारा काम सँभाल तो रहा है ।
पिताजी! मैं यह फ़ैसला अपने आत्मसम्मान के लिए कर चुकी हूँ । और आज से शोरूम पर जाऊँगी । हाँ , कुछ दिनों तक इतना कर लूँगी कि विनीत विकास की ज़िम्मेदारी निभाए और मैं विनीत की …. जब थोड़ा अनुभव हो जाएगा तो मैं अपने पति की अधूरी ज़िम्मेदारी खुद निभाऊँगी ।
इतना कहकर प्रेरणा सास- ससुर की चाय बनाने चली गई । दस बजते- बजते सास- ससुर ने देवर विनीत से यह बात बता दी कि प्रेरणा बिज़नेस ज्वाइन करना चाहती है । उस समय तो देवर ज़्यादा कुछ नहीं बोला पर कनक और माँजी ने बहुत हायतौबा मचाई ।
मैं किसी के बच्चे का ध्यान नहीं रखूँगी । लड़की तीन बजे स्कूल से आ जाती है, रात के नौ- दस बजे तक कौन सँभालेगा? सारी ज़िंदगी हो गई…. मुझे चैन नहीं पड़ेगा ।
कनक ! मेरी बेटी मेरी ज़िम्मेदारी है इसलिए उसके बारे में मैं खुद सोचूँगी । अगर गीतू की दादी सहायता करेंगी तो ठीक है वरना मैं तुम्हारे ऊपर कोई बोझ नहीं डालूँगी । मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही कि शोरूम में जाकर अपने पति के बिज़नेस को सँभालने से सबको क्या परेशानी हो रही है? आज नहीं तो कल , आख़िर कब तक विनीत के ऊपर आश्रित रहूँगी…. एक न एक दिन तो गीतू को उसके पिता का बिज़नेस सँभालना ही पड़ेगा और जब तक मैं नहीं सीखूँगी, उसे कैसे सिखाऊँगी ।
उसके बाद वह तैयार होकर देवर के साथ चली गई । कई दिन तक सास और देवरानी ने प्रेरणा से बात नहीं की । वह सुबह जल्दी उठकर हमेशा की तरह तीनों बच्चों का टिफ़िन पैक कर देती और अपना दोपहर का खाना साथ ही पर्स में रख लेती क्योंकि कनक दोपहर में केवल विनीत का खाना भेजती थी ।
देवर भी केवल उसे दो दिन अपनी गाड़ी में लेकर गया ।तीसरे ही दिन वह कहीं जाने का बहाना बनाकर आधा घंटा पहले ही निकल गया । प्रेरणा सब कुछ शांत भाव से देख और समझ रही थी । उसने सास- ससुर को बताकर अपने पति भाई की पुरानी स्कूटी मँगवा ली । हाँ….
शोरूम जाने से पहले वह गीतू का खाना और कपड़े माँजी के पास रख जाती थी कि शायद माँजी उसके स्कूल के कपड़े बदलवाकर खाना तो खिला ही देंगी पर जब बुरा समय आता है तो भगवान भी कठिन परीक्षा लेता है । प्रेरणा ने दो दिन देखा कि रात के नौ बजे तक गीतू स्कूल की वर्दी पहने बैठी थी….. हाँ खाना वह खा लेती थी ।
तीसरे दिन प्रेरणा गीतू को सीधे स्कूल से शोरूम ले गई । वहीं अपने साथ रखती , खिला-पिलाकर होमवर्क करवा देती और रात को अपने साथ ले आती । धीरे-धीरे समय गुजरता गया । अब प्रेरणा एक आत्मविश्वासी बिज़नेस वुमन बन चुकी थी । घर-परिवार में उसका उदाहरण दिया जाने लगा । अक्सर माँजी अपनी पोती गीतू को कहती थी—-
अपनी माँ जैसी ही हिम्मती बनना । अगर वो उस दिन एक फ़ैसला आत्मसम्मान के लिए ना लेती तो तू रुल जाती, तेरी तो पहचान ही ख़त्म हो जाती मेरी बच्ची । अपने दादा के आधे कारोबार की तू मालकिन है गीतू! मेरे विकास और प्रेरणा की पहचान बनना ।
# एक फ़ैसला आत्मसम्मान के लिए
करुणा मलिक