शर्मा जी के परिवार में कहने को दो बेटे रवि और किशन दोनों भाइयों का भरा पूरा परिवार था। दोनों भाई एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे मगर कुछ दिनों से रवि कुछ बदला बदला सा नजर आने लगा । उसके दोस्तों ने उसके घर की संपत्ति को लेकर ऐसी पट्टी पढ़ाई कि वह अपने छोटे भाई जिसे वह प्यार से छोटे कहकर पुकारता था ।
उसे ही अपना बेरी समझने लगा। संपत्ति के खातिर दोनों भाइयों का रिश्ता कुछ उलझा उलझा सा रहने लगा। रवि अपने पिताजी से आए दिन बंटवारे की बात करते रहता। जिसके कारण घर का माहौल बहुत ही बिगड़ा हुआ रहने लगा था
क्योंकि जब संपत्ति का बंटवारा होता है । उस वक्त सिर्फ संपत्ति का ही नहीं बल्कि संपत्ति के साथ-साथ माता-पिता का भी बंटवारा हो जाता है। वह भी सोचने लगते हैं । अब वह किधर जाएं। क्योंकि हर तरफ तो अपनी ही संतान है ।
शर्मा जी अक्सर सोचा करते । जो पाई पाई जोड़कर अपने बेटों के लिए मैंने संपत्ति इकट्ठी की । आज वही मेरे दोनों बेटों को अलग करने में लगी हुई है ! वो ये सोचकर अक्सर निराश हो जाया करते थे। तब उनका छोटा बेटा किशन उन्हें हमेशा यही कहता ।
पिताजी आप निराश ना हो। मैं कभी भी आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। भैया अपने दोस्तों की बातों में आकर यह गलत कदम उठाने जा रहे हैं मगर देखिएगा कुछ दिनों में भैया को जब समझ आएगी तो अपने आप सब ठीक हो जाएगा। मैं घर की इज्जत नहीं जाने दूंगा। आप मुझ पर विश्वास रखें । शर्मा जी किशन की बात सुनकर तसल्ली से भर उठते थे।
अब तो रवि ने किशन से बातचीत भी बंद कर दी थी ! रवि बड़ा होने के नाते किशन पर अपना अधिकार तो समझता था मगर उसे छोटे भाई की तरह प्यार करना,उसकी फिकर करना वो भूल ही गया था।
अचानक एक दिन रवि ने किशन को घर से बाहर निकल जाने को कहा! तब किशन ने समझदारी से काम लेते हुए कहा ! भैया आप पिताजी की संपत्ति के लिए झगड़ा कर के मुझे घर से बाहर निकाल देंगे तो बात सारे गांव में चली जाएगी ! इससे पिताजी और पुरे परिवार की बदनामी होगी सो अलग ! आप पूरी संपत्ति रख ले मगर मै पिताजी के साथ यही इसी घर में ही रहूंगा ।
मैं अपने पिताजी और इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा । आप बड़े होकर पिताजी के दर्द को नहीं समझ रहे हैं तो क्या हुआ मगर मैं इस बात को बहुत अच्छे से समझ पा रहा हूं।किशन की बात सुनकर रवि का सर शर्म से झुक गया।
उसने अपने छोटे भाई किशन को गले लगाते हुए कहा! मुझे माफ करना छोटे, मैं तो दोस्तों की बातों में आकर संपत्ति के लालच में भाई का प्रेम और फर्ज भूल ही गया था मगर तुम नहीं भूले । दूर खड़े शर्मा जी की आंखे आज ना चाहते हुए भी खुशी से बरस रही थी।
रिश्ते रखो मधुर ये दुनियां मायाजाल रे ।
देती सिख यही कहानी हर हाल रे ।।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम