पति का साथ – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

——–++++++++++

धड़ाम की आवाज़ सुनकर सब अपने अपने कमरे से बाहर आ गए।इतने में पति देव ने गोद में उठा झट बिस्तर पर लेटा दिया। रेखा का पूरा बदन भट्ठी की तरह तप रहा था ।उसे कुछ नही समझ आया तो वो रसोई से ठंडी बोतल का पानी कटोरा भर लाया और बेड पर पड़े रुमाल से उसका माथा ठंडा करने लगा

करते करते एक डेढ़ घंटे में बुखार उरता तो बोली सुनिये अब हमसे घर का इतना काम अकेले नही होता जब से चिंकी हुई है ना जैसे शरीर की सारी ताकत चली गई

हर वक़्त हाथ पैर झनझनाता रहता है पर कुछ कहती नही हूँ इसलिए कि कहने से कोई फायदा नही ।कहकर करवट बदल सोचने लगी केसे शुरु शुरु में वो डायनिग टेबल पर सबकी फरमाइशें पूरी किया करती थी।

“भाभी ज़रा पानी लाना,कौर अटका है ननद रीना कहती कि वो तुरंत हाथ से तोड़ा कौर थाली में रख फ्रीज़ की ओर भागती और भाग कर पानी लाती । जिसे पीकर रीना के जान में जान आती तो एक हलकी सी इस्माइल फेकते हुए थैक्स भाभी कहते हुए बैठने का इशारा करती

और जैसे ही वो बैठने वाली होती कि पति देव के गरम रोटी की फरमाइश पर कैसरोल की रोटी उसी में डाल आंचल संभालती हुई रसोई की तरह तेज कदमों से भागती और तवा गैस पर चढ़ा दो रोटी सेक रोटी का आख़िरी कौर खत्म होने से पहले मुस्कुराते हुए उनकी थाली में डाल देती

फिर बैठने ही वाली होती कि ससुर जी कहते अरे बहू रुको अभी मत बैठो ज़रा मेरी दवाई का डब्बा तो दे दो वरना खाने के बाद निगली नही जाती।

इतना सुनते ही वो जी बाबू जी! अभी लाई कह कर दवाई का डिब्बा लाने चली जाती और लेकर आते ही कहते बेटा ज़रा खोल दो उंगलियां काम नही करती तो वो खोलकर भी देती थी ।बात यही खत्म न होती रात सासू मां का पैर दबाती,

देवर के कमरे में दूध पहुंचाती उसके बाद पति देव के साथ अंतरंग पलों को जीती तब कही जाकर सोती। सबसे मजे की बात तो ये कि जब खुद खाने बैठती तो सभी खाना खाकर अपने अपने कमरे में जा चुके होते फिर वो फीके जायके के साथ किसी तरह अपना पेट भर लेती ,

भरे भी क्यों ना हाथ वाला कौर थाली में पड़ा मुंह चिढ़ाता तो दाल और तरकारी फैले चुकी होती सबसे बड़ी बात तो ये कि उसके लिए कैसरोल में चावल बचता ही नही था और ये कोई एक दिन नही आये दिन होता कभी कुछ तो कभी खाने को उसे नही मिलता यही कारण है

कि अब अंतरंग पलों को जीने का मन भी नही करता वरना अभी हुए ही कितने साल हैं आखिर उन्हें मेरी तकलीफ़ क्यों नही दिखती । जब हम बीमार हैं तब तो सब मिल बांटकर काम कर लें ,तो इन्हें भी अकेले ना करना पड़ेगा। आखिर जब तक हम बीमार रहेंगे हर बार की तरह इन्हें ही करना होगा।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

वाक्य पर आधारित “सास को बहू की तकलीफ़ नही दिखती” साप्ताहिक प्रतियोगिता 

कंचन श्रीवास्तव 

Leave a Comment

error: Content is protected !!