पत्थर दिल – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

“कैसी औरत हो तुम पत्थर दिल? औरत हो कर भी तुम औरत के साथ अन्याय कर रही हो? इसीलिए कहा जाता है कि औरतें हीं औरतों की दुश्मन होती हैं वरना किसी की बेटी और अपनी बेटी में इतना फर्क कौन दिखाता है सुधा जी !”

मयंक जी के धैर्य की सीमा अब टूट चुकी थी कि बहू मेघा मां बनने वाली है फिर भी सुधा जी ना तो उसके खाने का ध्यान रखतीं और ना ही आराम का।

अरे!” तुम कौन सा बूढ़ी हो गई हो? कुछ महीनों पहले तक तो घर के सारे काम किया करती थी और जब बेटी आ जाती है तब तुम बड़ी फुर्ती दिखाती हो बिना किसी शिकायत के उसकी पसंद-नापसंद का पूरा ख्याल रखती हो।एक बार अपनी बेटी की जगह बहू को भी रख कर देखना जरूर।”

मेघा को सुबह से चक्कर आ रहे थे और उल्टियां लेकिन घर के काम में बेचारी लगी हुई थी क्योंकि सुधा जी का कहना था कि हमने भी बच्चे पैदा किए हैं।काम तो करना पड़ता है।

चलो फिरोगी तो नार्मल डिलीवरी होगी। गर्भवती होना कोई बीमारी नहीं है तो बहाना बनाकर आराम करने का सोचना भी नहीं और हां काम समाप्त करके लेटो बैठो वो तुम जानो।

मेघा ने चुपचाप सिर हिलाया और पानी पी कर धीरे धीरे काम में लग गई।

सुधीर ने घर पर छोड़ा था की  वो मेघा की देखभाल अच्छी तरह से नहीं कर पाएगा क्योंकि दिन भर तो आफिस में रहता है और मां अच्छी तरह से ध्यान देंगी क्योंकि उनको हमसे ज्यादा समझ है।

रसोई घर के काम समाप्त करके मेघा कमरे में आ गई थी और सोचने लगी कि क्या सुधीर को मम्मी जी के बारे में बताना सही रहेगा? फालतू में वो वहां परेशान हो जाएंगे और कहीं ये ना सोचें कि मैं मम्मी जी के साथ रहना नहीं चाहती हूं।

पापा जी तो बहुत ख्याल रखते हैं, किसी चीज की कमी नहीं आने देते हैं।फल,मेवा, दूध और दही सब लाते हैं और समय-समय पर पूछते भी रहतें हैं कि मैंने कुछ खाया की नहीं। अरे नहीं- नहीं ये सही नहीं होगा….हो सकता है मम्मी जी सही ही कह रहीं होंगी और मेरी मम्मी ने भी तो कहा था कि हर छोटी-बड़ी बात दामाद जी तक नहीं पहुंचाना।

बहू!!” मेरे सिर में दर्द हो रहा है, थोड़ा तेल लगा दो और एक कप अदरक वाली चाय बना लाना” सुधा जी ने आवाज लगाई।

“अभी तक क्यों नहीं बोली मम्मी जी।जरा सा लेटी ही थी की आवाज लगा दी। तबीयत बिगड़ी हुई है…आज तो नाश्ता भी नहीं खाया गया ढंग से।

क्या करूं? ना जाऊं क्या? या मना कर दूं कि थोड़ी देर में बनातीं हूं… उफ्फ कुछ नहीं समझ में आ रहा है।तब तक दूसरी बार आवाज लगाई… मेघा” ये कौन सा समय है लेटने का।एक कप चाय बना कर दे दो फिर जाओ जो मर्जी करो।

मेघा को लगा कि फालतू में माहौल खराब कर के कोई फायदा नहीं है चाय बनाओ और काम खत्म करो और

रसोई घर की तरफ चल दी।

दूसरी सुबह मेघा से उठा नहीं जा रहा था क्योंकि रात में उल्टियां होने के कारण नींद नहीं हुई थी और खाना भी अच्छी तरह से नहीं खा पा रही थी। सुधा जी चार चक्कर दरवाजे पर लगा चुकीं थीं और उनकी बड़बड़ाहट उसके कानों में आ रही थी।

वजह ये थी कि मेघा जल्दी ही मां बन गई थी और सुधा जी ने बहू के आते ही घर गृहस्थी से पूरी तरह से रिटायरमेंट लेने का मन बना लिया था और वो नहीं चाहती थीं कि मेघा बेटे के साथ इंदौर जाए। बहुत रास रचने की कोशिश की थीं पर बेटे ने दूसरी बार नहीं सुना था और मेघा को अपने साथ लिवा गया था।उसका गुस्सा उनके मन में भरा था।

उन्हें लगा था कि बहू ने जरुर बेटे के कान भरे होंगे, नहीं तो मेरा बेटा तो मेरी सेवा के लिए ही शादी किया था कि मां को आराम मिलेगा।

फिर से मेघा के कमरे में आईं और गुस्से में बोली ” घड़ी देखी तुमने मेघा… उठो चाय नाश्ता बनाओ।हम सभी कब से इंतजार कर रहे हैं और तुम इतनी देर तक भूखी नहीं रहा करो बच्चे के लिए ठीक नहीं है। “मेघा को लगा कि इतना ख्याल है बच्चे का तो कुछ बना कर भी दे देतीं।

मयंक जी ने पेपर पढ़ते – पढ़ते सारी बातें सुन ली थी। उन्होंने सुधीर को फोन किया की वो छुट्टी लेकर घर आए। उसकी भी जिम्मेदारी बनती है अपनी पत्नी की तरफ। उन्होंने सुधा जी को इस बारे में जानकारी नहीं दी।

दूसरे दिन मेघा घर के कामों में लगी थी और ना कुछ खाया था ना पीया था। चेहरा कुम्हला सा गया था। अचानक दरवाजे पर घंटी बजी तो सुधा जी बड़बड़ाती हुई गई।

कौन आया है सुबह – सुबह ?

दरवाजे पर सुधीर को देखते हड़बड़ा सी गईं। अरे!” ना कोई खबर दिया… अचानक कैसे आना हुआ बेटा?”

मां!” घर आने के लिए भी इजाजत लेनी होगी क्या? सुधीर बोला।।

मेघा रसोई घर में काम कर रही थी और सुधीर की आवाज सुनकर बाहर आई।

“बहू तुमने बुलाया होगा जरूर और हमें बताना जरूरी नहीं समझा।”

“मैंने बुलाया है सुधीर को” मयंक जी ने कहा।”बाप बनने वाला है तो बहू का ख्याल रखना उसकी भी जिम्मेदारी है।”

सुधीर मेघा को देखते समझ गया था कि उसने गलती की है मेघा को यहां रख कर। मेघा बहुत कमजोर हो गई थी और चेहरा मुरझाया हुआ था।

मेघा चाय बना कर लाई तो सुधीर ने अपने पास बिठाकर पूछा” तुम अपना ख्याल नहीं रखती हो क्या और मां क्या करतीं हैं?

मेघा तुम भले ना कुछ कहो पर पापा ने मुझे सब बताया है और अब तुम्हें निर्णय लेना है कि तुम्हारी मम्मी के साथ रहना है मेरे साथ चलना है। मैं नौकरानी रख दूंगा वो करेगी सारा काम।तुम तो खूब खाओ,घूमो – टहलो और खुश रहो, जिससे एक स्वस्थ बच्चा हो।”

मेघा बहुत परेशान हो चुकी थी।उसे भी लग रहा था कि वो अब यहां नहीं रह सकती।

मैं आपके साथ ही चलूंगी क्योंकि” अब तो आपका जूनियर लाते मारने लगा है और मैं चाहती हूं कि वो अपने पापा से भी बातें करें और उनको समझे जाने कि वो कितना ख्याल रखते हैं उनकी मम्मी का।”

सुधा जी ने सुना की सुधीर मेघा को ले जा रहा है तो भड़क उठी।” तुम क्या जानो की इस समय में क्या जरूरत होती है गर्भवती औरत को और कैसे करोगे इसकी देखभाल?”

मां!” आप चिंता नहीं करिए मैं एक नौकरानी रख दूंगा और वहां हैं आस – पास लोग। देखता हूं डिलीवरी के समय कैसे क्या करना है?”

सुधा जी के पास शब्द नहीं थे और शायद संस्कारी बेटा होने के नाते सुधीर ने भी बिना कुछ कहे जबाब दे दिया था।

मेघा की डिलीवरी के समय उसकी मम्मी आ गई थी और सुधीर ने छुट्टी ले ली थी। सबकुछ अच्छी तरह से निपट गया था। सुंदर सा बेटा हुआ था और सुधीर ने घर में खुशखबरी दे दी थी। सुधीर ने सुधा जी को बाद में आने को कहा था।

घर में सभी खुश थे और मेघा की देखभाल भी खूब अच्छी तरह से हो रही थी।

मां बनना बहुत ही सौभाग्य की बात होती है और एक गर्भवती का अच्छी तरह ख्याल रखना भी जरूरी होता है।वो खुश रहे उसको क्या पसंद है, उसके खाने – पीने का ख्याल रखना घरवालों की जिम्मेदारी होती है।उसे मानसिक और शारीरिक ताड़ना देना नहीं चाहिए

क्योंकि इस का असर बच्चे पर भी पड़ता है लेकिन एक औरत सबकुछ जानते हुए भी दूसरी औरत के साथ ऐसा व्यवहार कर बैठती है जो कहीं ना कहीं ग़लत भी होता है और रिश्तों में दरार भी डाल देता है।

मयंक जी समझदार थे उन्होंने बहू की तकलीफ़ को समझीं थी और सुधा जी को भी कई बार आगाह किया था कि वो उसका ख्याल रखें लेकिन सुधा जी का व्यवहार मेघा के प्रति अच्छा नहीं था। इसीलिए उन्होंने उसे बेटे के पास भेजने का फैसला लिया और मेघा ने भी अपनी मां के पास जाने के बजाय सुधीर के साथ जाने का सोचा।

                        प्रतिमा श्रीवास्तव

                        नोएडा यूपी

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