पत्थर दिल – के आर अमित : Moral Stories in Hindi

कमरे में फैली हुई दारू और सिगरेट की वद्द्बु जिससे उबकाई आ रही थी। एक चारपाई के बराबर का कमरा उसपर एक टूटा फूटा से गद्दा जिसमे न जाने कितने मर्दों के पसीने की बदबू समाई हुई थी। कमरे में घुसने के बाद दस पन्द्रह मिनट तो उस माहौल में खुद को ढालने में लग जाएं

वो भी किसी शराबी को एक आम आदमी बहां दो मिनट भी खड़ा नही हो सकता था। गर्मी के मौसम में भी एक पुराना से पंखा खट्टर खट्टर करके चल रहा था। कमरे में कोई खिड़की नही थी यहां से ताज़ी हवा आ सके पंखा भी शायद एक ही हवा

में बार बार घूमने की बजह से परेशान से हो गया था मगर मैं हैरान था कि वो लड़की उस कमरे में सालों से बन्द होकर भी ये सबकुछ कैसे सह रही थी क्या उसे घुटन नही होती क्या वो इस बदवू से परेशान नही होती क्या उसका दम नही घुटता इस सिग्रेट शराब की आती हुई गन्ध से। ऐसे कई सवाल थे मेरे मन मे।

ऐसे माहौल में कोई शैतान ही होगा जो वो सबकुछ करने के बारे में सोच सकता है जिस काम के लिए लोग बहां जाते हैं मैं तो ये सोच के परेशान था कि आखिर इस लड़की की क्या मजबूरी रही होगी इसे क्या जरुरत है ये सब करने की इससे अच्छा तो बाहर सब्जी फल की रेहड़ी लगाकर भी दो बक्त की रोटी का इंतज़ाम हो ही सकता है। अभी मैं सोच ही रहा था

कि उसने कहा क्या सोच रहे हो इतना टाइम नही हमारे पास और भी लोग इंतज़ार कर रहे हैं जो करना है जल्दी करो और निकलो। कुछ दारू बगैरह चाहिए तो बोलो मिल जाएगी मगर उसके एक्सट्रा पैसे लगेंगे।

एक मासूम से चेहरा खूबसूरत सी आंखे जो वो कह रही थी उसकी आंखें उसका साथ नही दे रही थी ऐसा लग रहा था वो जो भी कह रही है मजबूरी में कह रही है उम्र यही कोई बीस साल होगी चेहरे पे मेकअप पोतकर वो खुद को और आकर्षक दिखाना चाहती थी मगर उसके चेहरे के हाव भाव से उसकी मजबूरी साफ छलक रही थी।

मेरे लिए कमरे में सांस लेना मुश्किल हो रहा था इसलिए मैंने उसे कहा कि ठीक है मुझे कुछ दारू दे दो और बैसे भी फ़िकर मत करो जितनी देर रुकूँगा उसके पैसे देकर जाऊंगा तुम्हे तो पैसे से मतलब है न मैं कितनी देर रुकू उससे तुम्हे क्या।

वो तपाक से बोली एक घण्टे का दो सौ रुपये लुंगी बाद में लफड़ा नही चाहिए अपनी जेब देखकर टाइम खराब करना मेरा। मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा कि फ़िकर मत करो वो मेरी टेंशन है। मैंने एक दो मोटे मोटे लगाए तो थोड़ा माहौल ठीक लगने लगा अब कमरे की बदवू कम लग रही थी और खुलकर बात करने का मन भी कर रहा था।

मैंने उससे पूछा कि तुम यहाँ इतनी बदबू में कैसे रहती हो क्या तुम्हारा कोई अपना नही है ऐसी क्या मजबूरी है जो तुम ये सब कर रही हो। मैने कई सवाल किए मगर वो सवालों को अनसुना करती रही जब मैने थोड़ा जोर डालकर पूछा तो वो सकपका कर बोली कि तुम्हे क्या करना है

वो मेरी पर्सनल जिंदगी है तुम्हे उससे क्या मतलब है मैं जो करूँ मेरी मर्जी तुम्हे क्यों दर्द हो रहा है तुम जिस काम के लिए आए हो उसपर ध्यान दो फालतू की बातें मत सोचो।

मैं थोड़ी देर के लिए चुप हो गया मगर दिमाग अभी भी बही सोच रहा था। एक पेग और लगाने के बाद मैंने उससे फिर वही सवाल किया मगर उसने फिर गोल मोल से जवाब देकर टाल दिया। फिर वो बोली कि देखने मे तो अच्छे घर के लगते हो अपनी बीबी से धोखा करते हुए

आपको बुरा नही लगता क्या सब मर्द धोखेबाज ही होते हैं? इतना पैसे हैं तो घर चले जाते यहां क्यों दिमाग चाटने आ गए फालतू सवाल पूछे जा रहे हो एक घण्टा हो गया तुम्हे आए हुए।

मैंने उसे कहा कि मैं मैं यहां बैसे नही आया हूँ जैसे तुम सोच रही हो मैं तो बस अपना अकेलापन बांटने के लिए आया हूँ मैं ये सोचकर आया था कि कोई ऐसी लड़की मिले जिसके साथ बैठकर बातें कर सकूं

अपना अकेलापन बांट सकूँ अपने दिल का बोझ थोड़ा हल्का कर सकूं मगर यहां आकर तो लगता है कि आप खुद ही इतने गम लेकर बैठी हो भला तुमसे क्या ही अपने गम बांटूंगा। देखो मैं कोई धोखेबाज नही हूँ

दरअसल मेरी बीबी की मौत तो छः साल पहले एक दुर्घटना में हो गयी थी उस समय हमारी शादी को एक साल ही हुआ था अभी कोई बच्चा भी नही था मैं उसके जाने के बाद जैसे कैसे जिंदगी को ढ़ो रहा हूँ बस कुछ पल सकूँ के लिए इधर आ पहुंचा।

अब उसका रबैया थोड़ा नरम हो गया और उसने सहानुभूति भी जताई। फिर मैंने उससे पूछा तुम अपने बारे में कुछ क्यों नही बताते आखिर ऐसी क्या मजबूरी है तुम्हारी जो ऐसे नरक जैसी जिंदगी जी रही हो। उसकी आँखों मे आंसू छलक आए तो उसने दुपट्टे से पोंछते हुए कहा कुछ नही बस बैसे ही कुछ मजबूरी थी। मैंने कहा ऐसी भी क्या मजबूरी होती है भला?

फिर उसने अपनी कहानी बतानी शुरू की उसने बताया कि मुझे आजतक जो भी मिला पत्थर दिल ही मिला किसी को मुझपर दया नही आई। बाप शराबी था हर रोज दारू पीकर आता मां को पीटता मैं बीच में आती तो मुझे भी बुरी तरह पिट देता जब मैं सात साल की थी मेरी माँ किसी आदमी के साथ भाग गई। उसने ये भी नही सोचा कि उसके जाने के बाद उसकी बेटी का क्या होगा

उसने खुद तो आज़ादी पा ली मगर मुझे उस घर मे पिटने के लिए छोड़ गई सात साल की उम्र में ही रोटी बनाने लगी कभी नमक कम ज्यादा हो तो बाप शराब पीकर पिट देता मैं भूखे पेट सोती कोई सिर पे हाथ रखकर मनाने वाला नही था।

बाप की ज्यादतियों का पता मामा को चला तो मामा मामी घर आए और मुझे अपने साथ ले गए मुझे लगा कि अब शायद मेरी जिंदगी में कोई सुकून का पल आए मगर ऐसा नही हुआ उनकी मंशा तो कुछ और ही थी दो तीन साल तक उन्होंने मुझसे नौकरानी की तरह काम करवाया कभी मेरी दुख तखलिफ़ बांटना तो दूर ये भी नही पूछा कि किसी चीज की जरुरत है या नही।

मरी पूरा दिन उनके घर का काम काज करती उनके लिए खाना बनाती मगर बदले में मुझे हर बार ताने ही सुनने को मिलते।

बहां तक तो सब ठीक था मगर उनके दिमाग मे कुछ और ही चल रहा था अठारह साल की उम्र होते ही उन्होंने मेरी शादी एक पचपन साल के आदमी से जबरदस्ती करवा दी मैंने उसे भी अपनी किस्मत समझकर अपना लिया मगर बहां भी मेरे साथ धोखा ही हुआ।

वो चाहता था कि मैं अपने घर मे ही धंधा करूँ और पैसा कमाऊं जब मैंने मना किया तो उसने मुझे बुरी तरह पीटा और बोला कि तेरे मामा को पांच लाख दिया है वो कौन पूरा करेगा ये सुनकर मेरे पैरों तले जमीन निकल गई मैंने कहा ये नही हो सकता तो उसने फ़ोन का स्पीकर ओंन करके मामा को फ़ोन किया तब मुझे पता चला कि मामा ने मेरी शादी नही की थी बल्कि मुझे बेच था।

कुछ ही दिन के बाद में एक रात को मौका पाकर मैं बहां से भाग निकली सोचा था मेहनत मजदूरी करके दो रोटी कमा लुंगी मगर ये सब नही करूंगी रात को मैंने रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ी और दिल्ली आ गयी सुबह हो गयी थी इतना बड़ा शहर पहली बार देखा था कुछ समझ ही नही आ रहा था कहाँ जाऊं।

तभी अचानक एक थ्री व्हीलर पास आकर रुका बोला मैडम कहाँ जाना है बैठ जाओ पहुंचा दूंगा। शायद उसने मेरे चेहरे के हावभाव से पहचान लिया था कि मैं घर से भागकर आई हूं बो बोला नौकरी चाहिए न मालूम है

मेरे को आओ बैठ जाओ यहां पास में एक कोठी है मैडम को साफ सफाई के लिए एक औरत चाहिए मैं बोल दूंगा की मेरी जान पहचान की है

रोटी कमरा सब मिलेगा और पगार भी अछि लगवा दूंगा। मुझे कुछ समझ बी नही आ रहा तह की क्या करूँ बिना सोचे समझे मैं उसके साथ बैठ गई बैसे भी और कोई चारा भी तो नही था आखिर जाती भी कहाँ।

मुझे थ्री व्हीलर में बैठने को बोलकर वो ऊपर आया और बातचीत करके मेरे पास आकर बोला कि मैडम से मेरी वात हो गई है आठ हजार सैलेरी और खाना रहना फ्री। चलो मैं तुम्हे छोड़कर आता हूँ। मैं उसके पीछे पीछे यहां तक आ तो गई मगर फिर बापिस जाने के सारे रास्ते बंद हो गए। मैं बहुत चिल्लाई रहम की भीख मांगती रही

छटपटाती रही मगर मेरी चीखे इस चारदीवारी से बाहर न  जा सकी। जब मैंने ये सब करने को मना किया तो मेरे ऊपर वो तशद्दुद ढाया गया कि सोच के भी रूह कांपती है मुझे जानवरों की तरह हाथ पैर बांधकर रखा जाता दो दो दिन रोटी नही देते थे

मुझे बिना कपड़ों के रस्सी से बांधकर रखा जाता मेर पीठ पर जलते हुए सिगरेट बुझाए जाते जब इस सबसे भी न टूटी तो एक दिन अशरफ चाकू लेकर आया और मेरे पैर की एक उंगली पकड़कर काटने लगा चाकू अभी थोड़ा सा ही उतर था

कि मैं बर्दाश्त न कर पाई और मैने कहा कि मुझे छोड़ दो आप जो कहोंगे मैं वो ही करूंगी आखिर कबतक और किस हद तक दर्द सहती। आज दो महीने से ज्यादा हो गया मुझे यहां आए हुए मैंने बाहर की हवा तो दूर रोशनी भी नही देखी।

आजतक मुझे जो भी मिला पत्थर दिल ही मिला मगर अशरफ जिसने जीते जी मेरी उंगली काटनी शुरू कर दी ऐसा बहशीपन मैंने कभी सोचा नही था।

रात का एक बजे गया था मैंने उसे पैसे दिए और उसके साथ वायदा किया कि जल्द ही तुम्हे यहाँ से आज़ाद करवाऊंगा तुम बस हीम्मत रखना। मेरा एक दोस्त था जो पुलिस में अच्छे पड़ पर था मैंने उससे बात की उसने कहा कि अगर लड़की बाहर निकलना चाहती है तो हम उसे निकलवा देंगे मगर जो कीमत उस लड़की की दी है

वो कोठे वालों को देनी पड़ेगी क्योंकि हम जबर्दस्ती नही कर सकते आखिर उनका भी धंधा है और कानूनन है। मैंने उसे कहा कि कोई नही

जो भी कीमत होगी मैं अदा कर दूंगा अगले ही दिन दस से बारह पुलिस वालों के साथ बहां रेड हुई लड़की को बाहर लाया गया उसकी मालकिन को सात लाख देकर छुडवा लिया गया। 

फिर मैने उसे कहा कि अब तुम जाओगी कहाँ वो गर्दन नीचे करके बोली पता नही। मैंने कहा कि अगर तुम चाहो तो मुझे खाना बनाने के लिए एक औरत की जरूरत है क्या तुम खाना बनाओगी मेरे लिए मगर मैं सैलेरी नही दे पाऊंगा।

उसने मुस्कुराते हुए गर्दन नीचे करके हां में सिर हिला दिया तब से हम एक ही घर मे एक ही साथ रहते हैं और हमारी एक बेटी भी अब पांच साल की हो गई है।

             के आर अमित

      अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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