आज नीलाक्ष बहुत खुश था। कल कोर्ट के फैसले का आखिरी दिन है। उसने शोभना की हर शर्त मान ली थी।
निर्णय सुनाने के पहले जज ने उसे और शोभना को एक बार मिलने की औपचारिकता का समय भी दिया। उस समय भी शोभना ने फिर उससे कहा – ” मुझे क्षमा कर दो नीलाक्ष। उस समय बहुत छोटी थी, रचित ने मुझे बहका दिया था।”
लेकिन नीलाक्ष ने उसकी ओर देखा भी नहीं, तब शोभना ने रोते हुये कहा – ” तुम पत्थर दिल हो, जो मेरे और मेरे घर वालों के इतने बार क्षमा मॉगने पर भी अपनी जिद पर अड़े हो। मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूॅ। इतने पत्थर दिल मत बनो, मेरी जिन्दगी तो बरबाद हो ही गई है। तुम्हारे कारण मेरा पूरा परिवार बरबाद हो गया है। मेरी बहनों से कोई शादी करने को तैयार नहीं है। सब मुझे कोसती रहती हैं।”
महिला जज ने भी कहा – ” मिस्टर नीलाक्ष पुरानी बातों को भूलकर एक साथ नई जिन्दगी की शुरुआत कीजिये।”
” मैडम, मेरी जिन्दगी तो उसी दिन समाप्त हो गई थी जब यह लड़की सब कुछ चुराकर और मेरी मॉ को जहर देकर अपने ही मुंहबोले भाई के साथ भाग गई थी। यदि इसने मेरी मॉ को जहर न दिया होता तो मैं सब कुछ भूल जाता। यही क्या कम है कि मैंने इसे अपनी मॉ की हत्या के प्रयास का मुकदमा करके जेल में नहीं डलवाया। मेरी मॉ जीवित हैं और उन्होंने मुझे अपनी सौगन्ध दी है। यदि मेरी मॉ को कुछ हो जाता तो भगवान कसम मैं इसे जान से मार देता। मुझे सिर्फ जल्दी से जल्दी तलाक चाहिये उसके बदले में अगर यह मेरी जान भी मागेगी तो मैं दे दूंगा।”
शोभना के साथ जज साहिबा भी चुप हो गईं। नीलाक्ष चैम्बर से बाहर आ गया। कितने अरमानों से नीलाक्ष और शोभना का विवाह हुआ था। हालांकि नीलाक्ष अभी शादी नहीं करना चाहता था क्योंकि अभी उसकी उम्र मात्र इक्कीस वर्ष थी।
पापा की मृत्यु के कारण उसको अनुकंपा आधार पर जब से सरकारी नौकरी मिली थी तब से बेटी वाले लोग हर समय जानकी जी को घेरे रहते थे। नीलाक्ष की बड़ी बहन नीतिका का विवाह पहले ही हो चुका था।
नीलाक्ष के पापा के बाद से घर में जो सूनापन आ गया था, उसे जानकी जी बहू के पायलों की रुनझुन से भरना चाहती थीं। इसलिये नीलाक्ष भी विवाह के लिये तैयार हो गया।
जब कामेश्वर जी अपनी बेटी शोभना का रिश्ता लेकर आये तो जानकी ने इस विवाह को स्वीकार कर लिया। कामेश्वर जल्दी शादी करना चाहते थे तो जानकी इस बात से तुरन्त सहमत हो गई।
नीलाक्ष और जानकी को भी शोभना पसंद आ गई। सुन्दर पत्नी पाकर नीलाक्ष भी बहुत प्रसन्न था। विवाह की प्रथम रात्रि के लिये नीलाक्ष के अरमानों पर शोभना ने यह कहकर पानी फेर दिया – ” अपनी प्रथम रात्रि के लिये आपको पॉच दिन इंतजार करना पड़ेगा। मेरे पीरियड शुरू हो गये हैं।”
बड़ी अरमानों से लाया नेकलेस उसने चुपचाप शोभना के हाथ में रख दिया – ” कोई बात नहीं, पॉच दिन क्या तुम जितने दिन कहोगी मैं प्रतीक्षा कर लूॅगा।”
दोनों सामान्य और सहज बात करने लगे। नीलाक्ष अपने घर परिवार के बारे में बताने लगा। दूसरे दिन शोभना ने बताया कि उसके रिश्तेदार कहते हैं कि पता नहीं दद्दा ने क्या देख कर शादी कर दी। न लड़का देखने में स्मार्ट है और न ही उसके पास धन दौलत है। नौकरी भी अपनी मेहनत और बुद्धिमानी से नहीं अनुकंपा के कारण मिली है।
नीलाक्ष का चेहरा उतर गया – ” तुम क्या कहती हो?”
” मुझे तो आप और मम्मी जी बहुत अच्छे लगे। वैसे मैं तो अभी शादी नहीं करना चाहती थी लेकिन पता नहीं क्यों पापा को आप इतना पसंद आ गये कि मुझे इन्टरमीडियट भी नहीं करने दिया। “
” तुम यहॉ रहकर अपनी पढ़ाई कर लेना। शादी से क्या फर्क पड़ेगा?” नीलाक्ष शोभना की बात से बहुत खुश हो गया।
चौथे दिन शोभना पगफेरे के लिये मायके चली गई। जानकी और नीतिका को भी शोभना अच्छी लगी। उसके प्यार से बोलने और मीठी वाणी पर सब मुग्ध थे।
पगफेरे के बाद शोभना वापस आ गई। जानकी की वह लाड़ली थी। जानकी उसे रसोई के काम नहीं करने देतीं, इसके बावजूद वह रसोई में जानकी के पास बैठी रहती – ” आपको देखते देखते मैं भी सीख जाऊॅगी, अभी तो मम्मी ने कुछ सीखने ही नहीं दिया।”
सब उससे खुश थे लेकिन नीलाक्ष के जीवन की प्रथम रात्रि अभी तक प्रतीक्षित थी। तीन महीने बीत गये थे लेकिन उसने नीलाक्ष को पति का अधिकार अभी तक नहीं दिया था।
जब वह कुछ अधिक हठ करता तो वह रोने लगती और जाकर जानकी के पास सो जाती। जानकी अपने पुत्र के मन की स्थिति समझती थीं। इसलिये अपने बेटे को ही समझाया – ” अभी शोभना की उम्र बहुत कम है। कुछ लड़कियों के मन में वैवाहिक सम्बन्ध को लेकर अधिक ही डर भरा रहता है। इसलिये उसे थोड़ा समझदार और सहज होने दो।” नीलाक्ष कुछ न कह पाता।
ताई ने बेटे के जन्मदिन पर सपरिवार सबको बुलाया लेकिन जाने वाले दिन शोभना बिस्तर से नहीं उठी। उसने कह दिया कि उसके सिर में बहुत दर्द है इसलिये वह नहीं जा पायेगी। जानकी जी शोभना को अकेले छोड़कर जाना नहीं चाहती थीं लेकिन शोभना ने नीलाक्ष से कहा – ” न जाने से ताई को बुरा लगेगा। परिवार की बात न होती तो मैं कभी न कहती। आप ऑफिस जाते समय मम्मी जी को ताई के घर छोड़ दीजिये, शाम को लेते आइयेगा और मेरी ओर से माफी मांग लीजियेगा। मैं फिर किसी दिन चली जाऊंगी। “
” अगर तुम्हें ज्यादा तकलीफ हो तो मैं छुट्टी ले लूॅ।” नीलाक्ष ने पूॅछा।
” अरे…. नहीं। मैं दवा खाकर सो जाऊंगी तो शाम तक ठीक हो जाऊंगी। अभी तैयार होने और कहीं जाने की बिल्कुल हिम्मत नहीं है।”
जानकी जी को लेकर नीलाक्ष चला गया। दिन में उसने फोन करके शोभना की तबियत के बारे में पूॅछा तो उसने बताया कि अब वह काफी ठीक है। उसकी मुंह बोली बुआ का लड़का रचित आया था लेकिन उसकी तबीयत खराब देखकर बिना चाय पानी पिये तुरन्त चला गया।
उसके पॉचवे दिन नीलाक्ष घर आया तो घर में अंधेरा था। उसने आवाज दी – ” मॉ……. शोभना…… कहॉ हो तुम सब?” लेकिन उसकी आवाज का कोई उत्तर नहीं आया। उसने घर की लाइट जलाई और पहले अपने कमरे में गया फिर मॉ के कमरे में। मॉ बिस्तर पर अचेत पड़ी थीं और उनकी सांस बहुत धीमे धीमे चल रही थी। नीलाक्ष मॉ को गोद में उठाकर डॉक्टर के पास भागा।
मॉ को आई०सी०यू० में भर्ती कराकर उसने शोभना को फोन किया लेकिन उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था।
नीलाक्ष की बुद्धि काम नहीं कर रही थी साथ ही शोभना की लापरवाही पर क्रोध भी आ रहा था कि ऐसे बिना बताये कहॉ चली गई? उसने शोभना के मायके फोन किया तो पता चला कि वह अपने मायके भी नहीं गई है। उसने उन लोगों से तो कुछ नहीं कहा लेकिन अपनी बहन नीतिका को फोन करके मॉ की हालत की सूचना दी।
एक ही शहर में होने के कारण नीतिका और जीजाजी तुरन्त आ गये तो उसे तसल्ली मिली।
” पता नहीं, मॉ को क्या हो गया दीदी? डॉक्टर कह रहे हैं कि मॉ को जहर दिया गया है। शोभना भी घर में नहीं है। न ही मायके गई है।”
” क्या शोभना ने तुम्हें फोन पर नहीं बताया था कि वह अपनी बीमार बुआ को देखने रचित के साथ जा रही है और दो दिन बाद आयेगी। “
” नहीं, मेरे पास शोभना का कोई फोन नहीं आया था लेकिन तुम्हें कैसे पता चला?”
” मैंने दोपहर में मॉ को फोन किया था, उस समय वह रचित के लिये चाय नाश्ता बना रही थीं और शोभना अपने कमरे में तैयार हो रही थी। तब मॉ ने ही बताया था। ”
नीलाक्ष को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अगर बुआ की तबियत खराब थी तो शोभना के मम्मी पापा को कैसे मालूम नहीं है ?
इधर उसकी मॉ जीवन मृत्यु में झूल रही थी और उधर शोभना का कोई पता नहीं था। उसने दुबारा शोभना के मायके फोन किया और शोभना के मम्मी पापा को अस्पताल बुलवाया। नीतिका की बात सुनकर वे लोग हतप्रभ रह गये। उन्होंने उसी समय रचित की मम्मी को फोन किया तो वह घर पर स्वस्थ थीं। कामेश्वर जी ने उनसे रचित के बारे में पूॅछा तो उन्होंने बताया कि रचित ऑफिस के काम से एक सप्ताह पहले कहीं गया हुआ है।
अचानक नीलाक्ष को कुछ याद आया, उसने कामेश्वर की ओर देखते हुये कहा – ” सच बताइये कि शोभना और रचित का आपस में क्या सम्बन्ध है? कहॉ गये ये दोनों? मुझे तो ऐसा लगता है कि ये लोग पूरी योजना बनाकर गये हैं। इसीलिये सिर दर्द का बहाना बनाकर शोभना उस दिन ताई जी के घर नहीं गई थी क्योंकि उसे रचित के साथ मिलकर घर से भागने की योजना बनानी थी। मॉ को चाय या किसी खाने की वस्तु में जहर दे दिया गया था ताकि जब तक मैं आऊॅगा, उनकी मृत्यु हो चुकी होगी।”
” ऐसा मत कहो नीलाक्ष। हो सकता है कि वे दोनों किसी मुसीबत में हों।”
” अपनी बेटी की गलतियों पर परदा डालने का प्रयास न ही करें तो अच्छा होगा।” फिर उसने नीतिका से कहा – ” दीदी, मैं पापाजी को लेकर घर जा रहा हूॅ, मुझे शक है कि घर से जेवर और सारे पैसे भी गायब होंगे।”
” मैं फिर कह रहा हूॅ कि शोभना ऐसा नहीं कर सकती, उसके साथ कुछ गलत हो गया है।”
” ठीक है, पहले आप मेरे साथ रिपोर्ट लिखवाने पुलिस स्टेशन चलिये। पुलिस को लेकर ही हम घर चलेंगे ताकि बाद में परेशानी न हो।”
घर जाकर देखा तो शोभना और मॉ की अलमारियां खुली पड़ी थीं। घर में न एक रुपया था और न एक भी आभूषण। यहॉ तक भगवान की गुल्लक भी गायब थी।
कामेश्वर जी अब भी एक ही रट लगाये थे कि घर में लूट हुई है और वे लोग जानकी जी को मरणासन्न छोड़कर शोभना का अपहरण करके ले गये हैं।
रिपोर्ट लिखाकर लौटे तब तक मॉ की अवस्था में कोई सुधार नहीं आया था। नीलाक्ष की समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया? कामेश्वर जी ने जब उसके कंधे पर हाथ रखा तो उसने अपनी लाल लाल ऑखों से उन्हें घूरते हुये कहा – ” अगर आप नहीं चाहते कि मैं आपके साथ कोई गलत व्यवहार करूॅ तो यहॉ से चले जाइये। मुझे आप या आपके परिवार से कोई लेना-देना नहीं है।”
करीब एक सप्ताह तक जानकी जी जीवन मृत्यु में झूलती रहीं, फिर शायद ईश्वर को दया आ गई और उनकी स्थिति में सुधार होने लगा। एक महीने तक जानकी जी को अस्पताल में रहना पड़ा। नीलाक्ष इतना डर गया कि उसने दिन भर घर में रहने वाली एक नौकरानी रख ली।
करीब पॉच महीने बाद एक दिन शाम को कामेश्वर जी अपने जीजाजी के साथ आ गये। उनको देखते ही नीलाक्ष और उसकी मॉ दंग रह गये। उन्होंने हाथ जोड़ते हुये बहुत नम्र स्वर में कहा – ” शोभना वापस आ गई है। वह रचित की मम्मी के पास नहीं अपनी राजस्थान वाली बुआ के घर गई थी। एक बार माफ कर दो उसे। अब बताओ कब उसे लिवाने आ रहे हो?”
सभी लोग कामेश्वर जी की बेशर्मी को देखते रह गये। नीलाक्ष को तो इतना गुस्सा आया कि उसके मुंह से निकल गया – ” राजस्थान गई हो या जहन्नुम, मुझसे क्या लेना-देना। आ गई है तो मैं क्या करूॅ, रखिये अपने घर में सम्हाल कर।
” वह तुम्हारी पत्नी है नीलाक्ष जी, उसे तो आपको अपने घर में ही रखना पड़ेगा। विवाहिता लड़की को मैं अपने घर में कैसे रख सकता हूॅ? आप कहिये तो मैं स्वयं उसे आकर आपके घर में छोड़ जाऊॅगा।”
नीलाक्ष क्रोध से आग बबूला हो गया, उसने लगभग चीखते हुये कहा – ” नहीं रख सकते तो मेरी ओर से पेट्रोल डालकर आग लगा दीजिये लेकिन मुझसे उसका नाम मत लीजिये।”
” आप इस तरह बात नहीं कर सकते। आप मेरी बेटी के साथ इतना अन्याय नहीं कर सकते। गलती किससे नहीं होती, शोभना से भी हो गई?”
” मेरी मॉ को जहर देने को आप गलती और नादानी कैसे कह रहे हैं? आप यहॉ से जाइये और दुबारा अपनी बेटी के साथ कोर्ट में मिलियेगा।”
यह सुनते ही कामेश्वर जी तैश में आ गये – ” आप दहेज के लिये मेरी बेटी को प्रताड़ित करके घर से निकालने के साथ उसे पेट्रोल डालकर जलाने के लिये कह रहे हैं। हम खुद आपके घर में अपनी बेटी को नहीं भेजेंगे। हमें कमजोर मत समझियेगा, हम जिन्दगी भर अपनी बेटी को अपने पास रख सकते हैं।”
कामेश्वर जी और उनके जीजाजी चले गये लेकिन जानकी जी बहुत डर गईं – ” नील, सोच समझकर काम करो। वे पैसे वाले लोग हैं, तुम उनसे नहीं लड़ पाओगे। आजकल कानून भी लड़की का ही साथ देता है।”
” मॉ, इस बार यदि आपने उसे क्षमा कर दिया तो अब जहर सिर्फ आपको नहीं दिया जायेगा बल्कि इस बार मुझे और नीतिका को भी बेरहमी से समाप्त कर दिया जायेगा ताकि नौकरी के अतिरिक्त जो कुछ मेरे पास है सब उसका हो जाये।”
जैसे जैसे कोर्ट में केस चलता रहा, कामेश्वर जी हर आरोप को झुठलाते गये, यहॉ तक शोभना की राजस्थान वाली बुआ ने भी कह दिया कि शोभना बहुत डरी हुई थी, इसलिये उसने किसी को नहीं बताया कि शोभना उसके पास है। नीलाक्ष और उसकी मॉ उसे प्रताड़ित करते थे लेकिन रचित और शोभना के गायब होने की रिपोर्ट खुद कामेश्वर जी ने लिखाई थी। पुलिस ने जाकर जब टूटी हुई अलमारियां देखी थीं, उस समय भी कामेश्वर जी साथ थे। नीलाक्ष की मॉ को जहर दिया गया था और एक महीने अस्पताल में रहने के बाद ही उनकी जान बच पाई थी।झूठे गवाह अधिक टिक नहीं पाये।
नीलाक्ष का केवल एक ही कहना था कि अब वह शोभना के साथ नहीं रहेगा। वह जो भी चुरा कर ले गई, अब उससे उसका कोई लेना-देना नहीं है। गुजारे भत्ते के लिये जो भी कोर्ट तय कर देगी, वह दे देगा।
हालांकि उसे पता नहीं था कि इस बीच उसकी मॉ ने कामेश्वर जी को संदेश भिजवाया था कि अगर वह चाहें तो शोभना की छोटी बहन दीप्ति उनकी बहू बन सकती है और वह अपने बेटे पर दबाव डालकर दोनों पक्षों में समझौता करवा सकती हैं लेकिन कामेश्वर जी ने मना कर दिया था।
कामेश्वर जी और शोभना ने गुजारा भत्ता के नाम पर अधिक से अधिक की मांग इसीलिये की थी कि नीलाक्ष इतना सब देने से इंकार कर देगा और मुकदमे का निपटारा नहीं हो पायेगा। यहॉ तक वेतन का आधा देने के साथ ही सेवा निवृत्ति के पश्चात मिलने वाले भुगतान और पेन्शन में भी शोभना की भागीदारी स्वीकार कर ली।
हालांकि उसके सभी परिचितों और रिश्तेदारों और वकीलों ने उसे समझाया भी कि शोभना की हर बात क्यों मानते जा रहे हो? अभी तो सेवा निवृत्त होने में बहुत दिन हैं, इतने लम्बे समय के लिये अपने को बंधन में क्यों बॉध रहे हो?
लेकिन नीलाक्ष का एक ही कहना था – ” इस मुकदमें ने मेरे मन की शान्ति छीन ली है, सर्वस्व देकर भी मुझे इस लड़की को अपने अस्तित्व से अलग करना है। मैं इसकी सूरत नहीं देखना चाहता हूॅ। केवल इतना अवश्य निश्चित करवा लीजियेगा कि कोर्ट द्वारा एक बार निर्णय होने के बाद वह दुबारा न तो कभी कोई मांग नहीं करेगी और न उसे मुकदमा करने का अधिकार रहेगा। शोभना ने उसकी यह बात स्वीकार कर ली थी, वह जानती थी कि सरकारी नौकरी में नीलाक्ष के प्रमोशन होने के साथ ही उसका वेतन बढता जायेगा। सेवानिवृत्त होने पर भविष्य निधि, ग्रेच्युटी आदि का काफी भुगतान मिलने के साथ पेन्शन भी काफी होगी। उसकी जिन्दगी में पैसे का कभी अभाव नहीं होगा। यही उसे कामेश्वर जी ने समझाया था।
कल उसे इतने वर्षों के मानसिक तनाव से मुक्ति मिल जायेगी। उसने पहले ही निर्णय कर लिया था कि वह शोभना को इतनी आसानी से अपनी विजय पर गर्वित नहीं होने देगा। अभी मकान और गांव की सम्पत्ति मॉ के नाम है तो उस पर शोभना कोई दावा कर नहीं सकती। मॉ के बाद वह सब कुछ नीतिका के नाम करवा देगा।
एक साल तक शोभना को कोर्ट के निर्णय के अनुसार सब कुछ देता रहेगा, उसके बाद नौकरी छोड़ देगा। जो भी भुगतान मिलेंगे उसका आधा भी देकर हमेशा के लिये उससे मुक्त हो जायेगा। अभी उसकी नौकरी कम है तो उसे पेन्शन मिलेगी ही नहीं।
इसके बाद वह यह मकान बेचकर अपनी मॉ को लेकर गांव चला जायेगा और अभी उसकी जो खेती दूसरों के पास है, उसकी देखभाल करेगा और मॉ के बाद सब कुछ नीतिका और उसके बच्चों का होगा। अपनी ही चालाकी में फंसकर शोभना सदैव छटपटाती रहेगी।
लेखक/ लेखिका बोनस प्रोग्राम के अन्तर्गत एक महीने में आठ कहानियों में से मैं अपनी पहली कहानी प्रस्तुत कर रही हूॅ।
प्रमाणित – स्वरचित और स्वलिखित।
बोनस प्रोग्राम के अन्तर्गत
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर