आज संध्या सोच में डूबी हुई थी कि अचानक मम्मी पापा के एक्सीडेंट में गुजर जाने के बाद मैं अपने छोटे भाई सचिन को उसकी मां बनकर पाला। अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उसकी पढ़ाई का भी ध्यान रखा। ट्यूशन पढाकर और पापा की थोड़ी बहुत जमा पूंजी से घर खर्च और पढ़ाई का खर्च चलाया,लेकिन किसी भी तरह सचिन को कोई तकलीफ नहीं होने दी और मेरे टीचर बन जाने के बाद तो मैं उसके सारे सपने पूरे किए।
अब तो सचिन की जॉब लग गई थी। उस दिन वह कितना खुश था और आकर मेरे पांव छू कर बोला था ” दीदी,अब मैं बड़ा बनकर आपकी शादी करवाऊंगा। आपके लिए अच्छा वर खोजूंगा। आपने बहुत कुछ किया है मेरे लिए अब मैं करूंगा, अब मेरा कर्तव्य है आप मेरी दीदी नहीं,मेरी मां हो। ”
संध्या की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे।उसने प्यार से सचिन को गाल पर चपत लगाकर कहा था” पगला है तू पगला, कितनी बड़ी बातें करता है बड़ा हो गया है। ”
सचिन-” दीदी आप रो मत,आपके आंसू मेरे लिए मोती के समान है। ”
संध्या-” यह तो खुशी के आंसू है। ”
फिर कुछ समय बाद संध्या का विवाह एक साधन संपन्न बिजनेसमैन आलोक से हुआ। आलोक एक बहुत उलझा हुआ व्यक्ति था लेकिन उसकी मां डोमिनेटिंग नेचर की थी। वह सब पर हुकुम चलाती थी और संध्या पर भी हुकुम चलाने लगी थी और उस पर हावी होने की कोशिश करती रहती थी।
जो नाश्ता बना हो, उसे ना खाना,,उसमें कमियां निकालना, हर सब्जी में नखरे दिखाकर दूसरी सब्जी बनवाना और भी कई बातों में वह ऐसा ही करती थी। कभी-कभी संध्या मन ही मन बहुत चिढ जाती थी लेकिन अपने संस्कारों के कारण कुछ कह नहीं पाती थी। उसे लगता था कि वह बड़ी है, चलो कोई बात नहीं।
अब संध्या के भाई सचिन की शादी की बातें होने लगी थी। संध्या की सास ने संध्या से कहा-” मेरी भतीजी सुलेखा की बात चलाओ अपने भाई से। बड़ी संस्कारी लड़की है और खानदान तो तुम्हें पता ही है कि कितना अच्छा है। ”
संध्या ने सुलेखा को देखा था, ठीक-ठाक लड़की थी लेकिन ऐसा भी कुछ खास नहीं था उसमें जितना संध्या की सास उसका बखान कर रही थी।
फिर भी संध्या ने सचिन से बात की। सचिन ने साफ मना कर दिया। उसने कहा-” दीदी, मैं तो अपने ही ऑफिस में साथ काम करने वाली श्रेया से शादी करना चाहता हूं, वह भी मुझे पसंद करती है और रविवार को उसने मुझे अपने घर पर बुलाया है।
संध्या-” पर सचिन, मेरी सास तो बहुत नाराज हो जाएगी और मुझे ताने मारेगीं। मेरे बारे में तो सोच। ”
सचिन- दीदी आप उनसे साफ-साफ कह दीजिए कि सचिन नहीं मान रहा, आप उनसे इतना डरती क्यों है, मैं उनके चक्कर में,उन्हें नाराज ना करने की चिंता में, अपनी जिंदगी क्यों खराब करूं? ”
संध्या को बहुत बुरा लगा कि उसका भाई उसके बारे में नहीं सोच रहा है सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है, फिर बाद में उसे लगा कि ठीक ही तो कह रहा है, सबको अपनी तरह से जिंदगी जीने का हक है। बहुत दिनों तक वह इसी उधेड़बुन में लगी रही।
सास के दोबारा पूछने पर उसने कहा कि -” मम्मी जी सचिन किसी से प्यार करता है और उसी से शादी करना चाहता है। ”
उसकी सास ने उसे बातें सुनना शुरू कर दिया, ” तेरा भाई इतना अच्छा रिश्ता मना करके पछताएगा, ऐसी हीरे जैसी लड़की उसे कहीं नहीं मिलेगी, और मेरा भाई पूरे घर का सामान भी दे देता। ”
यही ताने सुनकर संध्या सोच में डूबी हुई थी और उसे अपने माता-पिता की याद आ रही थी। उसने आलोक से भी एक दिन बात की थी। आलोक ने कहा था-” मैं मां को समझाऊंगा, सचिन सही कह रहा है जिंदगी उसकी है तो फैसला भी उसका ही होना चाहिए और तुम भी मन से घबराओ मत,उन्हें सच कह दो। ”
संध्या ने सोच लिया था कि अब मैं अपनी सास को साफ-साफ कह दूंगी कि मेरा भाई जिससे मर्जी शादी करें मैं उसके साथ हूं और अपने भाई के बुलाने पर उसके साथ में लड़की वालों से भी मिलने जाऊंगी।
अगले दिन संध्या के कुछ कहने से पहले ही उसकी सास ने फरमान सुना दिया, ” देखो बहू, तुम्हारे भाई ने हमारा अपमान किया है, इसीलिए तुम उसके साथ रिश्ते के मामले में कहीं नहीं जाओगी, वरना अच्छा नहीं होगा, मेरी इतनी संस्कारी भतीजी के लिए उसने मना कर दिया, बेवकूफ कहीं का। ”
संध्या, ” मां जी, यह उसकी जिंदगी है उसकी मर्जी, हम अपनी मर्जी उस पर क्यों थोपें। ”
कुछ दिनों बाद संध्या शाम के समय अपने घर के काम निपट रही थी तो अचानक घंटी बजी। संध्या ने दरवाजा खोला तो देखा कि सचिन एक लड़की के साथ खड़ा है। इतने दिनों बाद अपने भाई को देखकर उसकी आंखें भर आई। सचिन ने संध्या को उस लड़की से मिलवाया, ” दीदी यह श्रेया है। ”
श्रेया सचमुच बड़ी प्यारी थी, उसने तुरंत संध्या के पैर छू लिए।
संध्या ने पूछा, ” सचिन तू यहां कैसे? मां जी ने देख लिया तो हंगामा करेंगी। ”
सचिन-” अरे दीदी आपको नहीं पता क्या, आंटी जी ने ही तो फोन करके हमें बुलाया है। ”
तभी संध्या की सास वहां आ गई और बोली -” हां बहू मैंने सोचा बच्चों से कैसी नाराजगी, तो मैंने दोनों को चाय पर बुला लिया और सोचा कि इस बहाने हम भी श्रेया से मिल लेंगे। ”
संध्या चाय बना रही थी और सोच रही थी की मां ने अचानक अपनी पार्टी क्यों बदल ली, कुछ ना कुछ बात तो जरूर है, लेकिन वह इस बात से खुश थी कि वह अपने भाई से मिल सकी और उसके आंसू खुशी में मोती बन गए।
फिर उसने आलोक से पूछा। आलोक हैरान होकर बोला -” क्या सचमुच मां ने तुम्हें कुछ नहीं बताया, दर असल मामा जी की लड़की सुलेखा किसी आवारा लड़के के साथ भाग गई थी, अब पुलिस ने उसे ढूंढ निकाला है। ”
ओह! अब संध्या को सारी बात समझ में आई और उसकी आंखों में खुशी के आंसू झिलमिलाने लगे, वह अपने भाई सचिन और श्रेया के लिए बहुत-बहुत खुश थी।
अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली