अध्याय-1 :  भैरोगंज रेलवे स्टेशन – नीरज श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

रात के दो बज रहे थें। कोहरे ने दूर-दूर तक अपना आतंक फैला रखा था। हाड़-माँस को कपा देने वाली सर्द हवायें बेकाबु हो यहाँ-वहाँ भटक रही थीं। इन सब से अन्जान, बेखबर कोई भैरोगंज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नं. 01 पर खुद को एक पतले से साँल में समेटने की नाकाम कोशिश कर रहा था।

यह कोशिश करने वाला कोई और नहीं बल्कि 30 वर्षीय नीरज था। जिसकी रात्रि 11.30 बजे की मोतिहारी लोकल ट्रेन धुन्ध की वजह से कैंसिल हो चुकी थी और मोतिहारी के लिए सुबह से पहले कोई दुसरी ट्रेन भी न थी। नीरज अब चाहकर भी कुछ न कर सकता था सिवाय इंतेजार के।

कानों में मफलर, हाथों में दस्ताने और पूरे बाजू वाली स्वेटर, सब कुछ तो पहन रखा था नीरज ने, फिर ये ठण्ड, ये ठण्ड उसका पीछा क्यों न छोड़ रही थी? नीरज ने दूर-दूर तक देखा पर उसे कोई ऐसा शख्स न दिखा जिसने कहीं थोड़ी आग ही जला रखी हो ताकि ठण्ड से जान बचाई जा सके। नीरज ने पास के टी-स्टाल से एक-एक करके लगभग पाँच कप से भी ज्यादा चाय खरीदकर पी डाली पर

उसके शरीर के तापमान में ज्यादा फर्क न पड़ा बल्कि वह तो ठण्ड से और ज्यादा ही काँपने लगा। ठण्ड इतनी ज्यादा थी कि चाय हाथ में लेते ही वह तुरन्त ही ठण्डी हो जाती थी। नीरज के तो कुछ समझ ही न आ रहा था कि आखिर उसके साथ यह क्या हो रहा है?

मरता क्या ना करता – नीरज ने अपने पीठू बैग से एक चादर निकाला और वहीं स्टेशन के फर्श पर चादर बिछाकर बैठ गया। घर से चलते वक्त माँ ने एक पतला साँल जबरदस्ती नीरज के बैग में डाल दिया था वरना नीरज तो उस साँल को भी अपने साथ कहाँ लाने वाला था? माँ के दिये उस साँल में

नीरज बार-बार खुद को ढ़कने की हर सम्भव कोशिश कर रहा था पर रात जैसे-जैसे गहरा रही थी, ठण्ड वैसे-वैसे अपने चरम पर जा रही थी। देखते-देखते नीरज ठण्ड से थर्र-थर्र काँपने लगा।

तभी सन्नाटें को चिरती एक आवाज सुन नीरज चौंक पड़ा – “भैया, आपको ठण्ड लग रही है क्या?” नीरज ने तेजी के साथ इधर-उधर देखा पर उसे कोई दिखाई न दिया। कुछ लोग दिखे भी तो वह नीरज से काफी दूरी पर थें और सब के सब गहरी नींद में सो रहे थे। उनमें से कोई नीरज को आवाज

लगाता यह तो सम्भव ही न था। नीरज को लगा शायद उसे भ्रम हुआ है। इसलिए उसने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान न दिया और फिर वहीं बैठे-बैठे सोने की कोशिश करने लगा। तभी अचानक उसी आवाज को पुनः सुन नीरज चौंक पड़ा – “अरे, भैया इधर-उधर कहाँ देख रहे हो? मैं तो आपके सामने ही हूँ।“

     नीरज ने अनायास ही सामने की ओर देखा तो पाया कि सामने की ओर तो रेलवे ट्रैक था। जहाँ एक गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। ट्रैक से पहले जहाँ स्टेशन का फर्श खत्म हो रहा था वहाँ एक लड़का ट्रैक की दिशा में अपने दोनों पाँव नीचे की ओर लटकाकर बैठा हुआ था। उस लड़के का पीठ नीरज की ओर था जिससे नीरज को उस लड़के का मुँह नहीं दिख रहा था।

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लेखक : नीरज श्रीवास्तव
          मोतिहारी, बिहार

वह लड़का कौन था? यह जानने के लिए पढ़े कहानी का अगला भाग।
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