परिवर्तन – लतिका श्रीवास्तव

अचानक तुम्हें नौकरी करने का क्या फितूर सवार हो गया है। मैंने हमेशा कहा है ऊंची से ऊंची डिग्री ले लो जितना पढ़ना चाहो पढ़ लो।इतना अच्छा घर वर मिल गया है।शादी हो जाने दो फिर अपने घर जाकर जो करना हो करते रहना सुमेर जी के रूढ़ियां लपेटे तर्क बेटी नंदिनी के गले के नीचे उतरने में असमर्थ थे।

क्यों पापा नौकरी करने में क्या आपत्ति है।ऐसा जॉब ऑफर कभी नहीं मिलेगा मुझे।इतनी पढ़ाई लिखाई क्या मैंने सिर्फ अच्छे घर वर के लिए की है वह आक्रोशित हो गई।

हां सिर्फ इसीलिए करने दी मैंने ।अपने घर जाओ वहां जो इच्छा हो करते रहना अब इस विषय में कोई बहस नहीं करनी मुझे सुमेर ने गुरु गंभीर स्वर में गर्जना सी की।

पापा की दुलारी नंदिनी इस अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से मर्माहत हो गई। आंखों में आंसू लिए मां की तरफ देखने लगी तो शालिनी के भीतर का दुख जागृत ज्वालामुखी बन गया।

जैसे इतिहास खुद को दोहरा रहा हो।शालिनी ने भी उच्च डिग्री हासिल की थी अपने भविष्य के ना जाने कितने सुनहले स्वप्न संजोए थे।लेकिन उसके पिता ने भी यही तर्क देकर उसकी शादी कर दी थी और शादी के बाद से ही क्रमशः स्वप्न मरते चले गए जब सुमेर और उसके घरवालों ने उसे नौकरी करने और घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी थी।दिल चोटिल हो गया था उसका।

आज अपनी बेटी के साथ उसी की पुनरावृत्ति ने उसका #घाव हरा कर दिया था। कराह के साथ वह भड़क उठी।

नहीं अब ऐसा नहीं होगा।अपने घर जाकर करते रहना से क्या मतलब है आपका।मेरी बेटी का घर तो यही है।इसे जो करना है यहीं करेगी।जब उसके खुद के मां पिता उसकी दिली इच्छा को समझ नहीं पा रहे तो कोई नहीं समझ सकता।मुझे ही देख लीजिए आवाज का तीखा आक्रोश सुमेर को स्तंभित कर गया।

जा बेटा तू इस जॉब को स्वीकार कर अपने जीवन के स्वप्न  पूरा कर।रह गई अच्छे घर वर की बात तो जिसे यह मंजूर होगा तुझसे शादी कर लेगा शालिनी के अकाट्य तर्क और दृढ़ आवाज ने सुमेर को निरुत्तर कर दिया था और नंदिनी मां के इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देख आल्हादित हो उठी।

लतिका श्रीवास्तव 

घाव हरा करना#भूले दुख को याद करना मुहावरा आधारित लघुकथा

error: Content is protected !!