अहिधर आंगन में गिर गया लेकिन प्रकाश खत्म होते ही चंद्रिका और दोनो बच्चे अहिधर के द्वारा प्रकट किए गए पाश में फंसकर चिल्ला रहे थे …..
बाहर निकालो मुझे…
मेरे बच्चों को बाहर निकालो….
यहां मेरे बच्चे तड़प रहे हैं
इसकी जिम्मेवार तुम स्वयं हो दुष्ट चुड़ैल ….
मैं अभी तक तुमसे नरमी से पेश आ रहा था क्योंकि तुम्हारे साथ मेरा मित्र थोड़ा ज्यादा कठोरता से पेश आ रहा था लेकिन अब तुम नरमी के लायक नही हो…..( महाराज जी बोले)
मेरा मित्र भूमि पर पड़ा हुआ है केवल तुम्हारी वजह से …..तुम कोई साधारण चुड़ैल नही हो जरूर तुम कोई पाप करके चुड़ैल बनी हो या फिर कोई तुम्हारे पीछे से तुम्हे शक्तियां प्रदान कर रहा है…
अब ये राज तो तुझे खोलना ही पड़ेगा लेकिन अब सुबह का समय होने वाला है इसलिए आज अभी से लेकर रात तक तुम यूंही अपने बच्चों के साथ तड़पती रहो…
तुम्हारी करनी की सजा अब तुम्हारे बच्चे भुगतेंगे
(इतना कहकर महाराज जी ने एक कमंडल में उन तीनों को अपनी शक्तियों का प्रयोग कर उसमे बंद कर दिया और उसके ऊपर एक रुद्राक्ष की माला रख कर उसे सुरक्षित जगह पर रख दिया)
इधर अहिधर बिलकुल मरणासन्न अवस्था में जमीन पर पड़ा हुआ है
तभी महाराज जी गौरीशंकर को बुलाकर अहिधर को कमरे में ले जाते है और सुबह का इंतजार करने को कहते है ।
महाराज जी की मदद से विष्णु और अपूर्वा की मूर्छा खत्म की जाती है और दोनो को उमा अपने गले से लगा लेती है।
सुबह होते हीं महाराज जी गौरीशंकर से कहते हैं….
गौरीशंकर ……..
तुम वैध को बुला लाओ
जी महाराज ( गौरीशंकर तुरंत वैध को बुलाने चला जाता है)
पुत्री उमा …….जरा इधर आना
(उमा अपने सिर पर आंचल रख कर आती है)
जी महाराज जी…
पुत्री…..
आज रात जो भी होगा तुम उसे देख नही पाओगी
क्यों महाराज ( उमा बोली)
क्योंकि चंद्रिका बहुत जिद्दी चुड़ैल है इसलिए वो अपना राज तब तक नही उगलेगी जबतक उसके बच्चो को दुख न पहुंचाया जाए…
क्योंकि अपने बच्चे के लिए जिस तरह से वो तड़प उठती है वही एकमात्र रास्ता है उससे राज उगलवाने का..
उमा तुम भी मां हो
जिस तरह से तुम्हारे अंदर ममता भरी हुई है चंद्रिका भी एक मां है उसके अंदर भी ममता भरी है अपने बच्चे के लिए इसलिए उसका रोना चीखना और चिल्लाना तुमसे सहन नही हो पाएगा और उस समय उस जगह पर किसी का भी कमजोर पड़ना उसके लिए मौत का कारण बन सकती है , इसलिए मैं चाहता हूं की कुछ दिन के लिए तुम अपने मायके चले जाओ इन बच्चों को लेकर…
मैं गौरीशंकर से कहकर तुम्हारे जाने की व्यवस्था करवाता हूं
लेकिन महाराज……..( उमा )
लेकिन क्या पुत्री? ……( महाराज जी)
लेकिन महाराज विष्णु के पापा तो सुरक्षित रहेंगे न ?
गौरीशंकर एक शिव भक्त है पुत्री …
हां उसके पास मेरी जैसी शक्ति नही है लेकिन भगवान शिव का आशीर्वाद उसके साथ है ।
( तभी गौरीशंकर वैध जी को लेकर आता है)
श्री महाबलेश्वर जी महाराज आप?
( वैध जी चौंक कर पूछते है)
आ..आ..आप तो वो….वो…
मेरी लाश मिली थी है न वैध जी ( महाराज जी ने वैध जी को बीच में टोकते हुए बोला )
हां हां महाराज जी…..( वैध जी)
सब पता चलेगा आपको लेकिन अभी आप मेरे मित्र का उपचार कीजिए
( वैध जी उपचार में लग जाते है )
इधर महाराज जी ने गौरीशंकर से अकेले में मिलकर उमा और बच्चो को कुछ दिनों के लिए उमा के मायके छोड़ आने का निर्देश देते हैं जिसे गौरीशंकर अपने परिवार की भलाई समझकर जाने की तैयारी शुरू कर देता है…..
इधर वैध जी ने महाराज जी से कहा..
महाराज जी मैने अपने इतनी बड़ी वैधगिरी को जिंदगी में ऐसा मरीज नही देखा जिसमे जान तो है पर पूरी तरह से शक्तिविहीन हो रखा है….
वैध जी आप केवल इसे मूर्छा से बाहर ला दीजिए फिर ये अपने आप ठीक जो जायेगा..( महाराज जी ने बोला)
जी महाराज जी……( वैध जी)
कुछ देर के उपचार के बाद अहिधर की आंख हल्के से खुलती है और सामने वैध को देखकर अचानक उठ कर बैठ जाते है जिसे देखकर वैध जी हल्के बक्के रह जाते हैं और सोचते है की अभी तक जिसमे हिलने डुलने की क्षमता नही थी अचानक इतनी शक्ति कहां से आ गई जिससे यह उठ कर बैठ गया
कौन जो तुम……. ( अहिधर ने वैध जी से पूछा)
जी…जी मैं वो…
ये वैध जी है अहिधर…( महाराज जी ने वैध को बीच में टोकते हुए बोला)
वैध जी लेकिन क्यूं? ……( अहिधर)
सब बताऊंगा पहले आराम कर लो…( महाराज जी)
बहुत बहुत धन्यवाद वैध जी …..( महाराज जी)
महाराज जी इसमें धन्यवाद की क्या बात ये तो मेरा कर्तव्य है…..( वैध जी बोलकर उठ कर जाने लगे)
वैध जी आप मेरे जीवित होने की खबर अभी किसी ग्रामवासी को नही देंगे ये मेरी आपसे प्रार्थना है…( महाराज जी )
महाराज जी ये कैसी बातें कर रहे आप ?
आप तो बस आदेश दीजिए प्रार्थना करने का काम तो हम जैसे याचक लोगो का है , किसी को नहीं बताऊंगा आपका ये राज क्योंकि आप जो भी कर रहे होंगे उसमे कुछ न कुछ भलाई का ही काम होगा…….( वैध जी हाथ जोड़े बोले)
ऐसा ही समझिए वैध जी…..( महाराज जी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा)
वैध जी के जाने के बाद गौरीशंकर अपनी पत्नी और बच्चे सहित महाराज जी के पास विदा लेने आया…..
महाराज जी …
मैं जा रही हूं ये घर और अपने पति को आपके भरोसे छोड़ कर केवल आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए……( उमा बोली और दोनो महाराज जी के पैरो को छूकर प्रणाम किया)
अखंड सौभाग्यवती भव: पुत्री ( अहिधर और महाराज जी)
तनिक रुको पुत्री ….( अहिधर बोला)
अपने झोले से तीन रक्षासूत्र निकालकर उमा को दिया और बोले
तुम बच्चों सहित इस रक्षा सूत्र को तबताक नही उतारेगी जब यहाँ के हालत ठीक नहीं हो जाते क्योंकि ये तुम्हारी रक्षा करेगा…
जी महाराज….( उमा बोली)
उनके जाने के बाद महाराज जी ने अहिधर के मूर्छा के बाद की पूरी स्थिति से अहिधर को अवगत करा दिया….
बहुत अच्छा किया महाबलेश्वर ….
परंतु मुझे ये समझ नही आ रहा की इस चंद्रिका को इतनी शक्ति कहां से मिल रही है?
क्योंकि मैंने जिस शक्ति का प्रयोग करने के चक्कर में खुद को मूर्छित कर लिया था इसका प्रयोग हमारे तंत्र विद्या के कुछ अंतिम उपायों में से एक है..( अहिधर बोला)
आज पता कर लेंगे अहिधर……( महाराज जी बोले)
धीरे धीरे शाम होने को होती है उधर गौरीशंकर अपने परिवार को उमा के मायके छोड़कर लौट आता है और महाराज जी कहे अनुसार सारी व्यवस्था कर देता है….
आंगन में दोनो महाराज जी के विद्या के अनुसार सारी व्यवस्था हो रखी है और इंतजार है रात होने का….
रात के करीब 9 बजे से पुनः दोनो मिलकर हवन की शुरुआत करते है और करीब दो घंटे बाद महाराज जी ने कमंडल को हवन के सामने लाकर उसपर से रुद्राक्ष को हटाकर उसके ढक्कन को खोला जिसमे से पाश में बढ़े हुए चंद्रिका और उसके दोनो बच्चे बाहर आते है लेकिन इस बार उन तीनों का रूप उसके अपने इंसानी रूप वाले थे ….
जिसमे चंद्रिका एक खूबसूरत नारी तथा उसके दोनो बच्चे बहुत हीं प्यारे लग रहे थे ……
बचना मेहेबलेश्वर …..
ये इसका छलावा भी हो सकता है…( अहिधर बोला)
मैं बिल्कुल सचेत हूं अहिधर…( महाराज जी)
अहिधर मुझे और मेरे बच्चों को अपने इस पाश से बाहर निकालो …. मेरे बच्चो की तड़प मुझसे नही देखी जा रही अहिधर…( चंद्रिका के आंखो में आंसू थे)
नही चंद्रिका तुमने एक बार पहले हीं हमें धोखा दे चुकी हो इस बार हिम तुम्हारी बातों में नही आने वाले……( अहिधर)
चंद्रिका अपनी करनी पर पछता रही थी और अपने बच्चों के लिए गिड़गिड़ा रही थी
महाराज कम से कम मेरे बच्चों को इस पाश से छुटकारा देदो ……
मैं सह लूंगी पर मेरे बच्चे नही सह पा रहे इसके दर्द को..
महाराज जी ने अहिधर की और देखकर आंखो में इशारे करके और पुनः चंद्रिका की ओर मुड़कर….
छोड़ दूंगा तुम्हारे बच्चों को ……
पहले तुम ये बताओ की तुम हो कौन?
अपने बच्चो की रिहाई के बारे में सुनकर चंद्रिका अहिधर से बोली ….
अहिधर! आप तो एक तांत्रिक हो और आपको पता है की हमारी दुनिया में अगर तांत्रिकों द्वारा संपर्क करके हम कोई काम दिया जाता है उसे हम अवश्य पूरा करते है….
हमने अपना काम भी पूरा किया लेकिन हम अपने आप को छुड़वा नही पाए … इसलिए आज मैं अपनी दुनिया का वचन तोड़ने जा रही हूं लेकिन आप दोनो अपने वचन को मत तोडना …
मेरे बच्चों को जरूर मुक्त करना….
अवश्य करेंगे ……( अहिधर बोला)
अब बताओ तुम कौन हो?
(चंद्रिका ने बताना शुरू किया)
तो सुनिए………..
शशिकान्त कुमार
अगला भाग
पापी चुड़ैल (भाग – 15) अंतिम भाग – शशिकान्त कुमार : Moral stories in hindi