पैसा है तो सब है – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

अरे विमला बहन कौन आया था मिलने? काफी गुस्से में लग रही थी? आखिर कौन थे वह? कुंती जी ने कहा 

विमला जी: वह मेरे बेटे बहू है

 कुंती जी:  अच्छा इन्हीं की वजह से तुम यहां हो? अब क्या ही किया जाए? हर किसी की यही कहानी है, इन बच्चों को पालने में अपना खून पसीना एक कर दो और यही बुढ़ापे में हमें दर-दर भटकने के लिए छोड़ देते हैं। मेरे भी चार बेटे हैं, पर देखो मेरी हालत? चारों अच्छी खासी नौकरी करते हैं, पर एक बुढ़िया को पाल नहीं पा रहे थे। सच कहूं तो मैं यहां ज्यादा खुश हूं, वहां तो पूरे दिन इनकी नौकरी करने के बाद भी खाने के साथ ताना ही मिलता था।

यहां तो बड़ी खुशी के साथ दिन बीत जाते हैं। वैसे क्या कहने आए थे तुम्हारे बेटे? चलो कम से कम तुम्हारे बेटे आते तो सही, मेरे तो मुझे मरा ही समझ लिया है, यह कहकर कुंती जी हंसने लगी, अपने आंखों के कोने से निकलते हुए आंसुओं को पोंछते हुए यह जताने की कोशिश कर रही थी कि जैसे उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता,

पर वह मां जिसको अपने बच्चों से एक पल की भी जुदाई परेशान कर देती है, ना जाने कितने सालों से उनका चेहरा तक नहीं देखा, उसका दर्द उसके अलावा शायद ही किसी और को नज़र आता होगा 

विमला जी:  कुंती बहन! इस उम्र में हम सहेलियों की तरह बिना किसी चिंता के यहां रहते हैं, यह क्या काम बड़ी बात है? क्यों उनको याद करना जिनके जीवन में हमारा रहना या ना रहना एक बराबर है?

 कुंती जी:   यह तुम कह सकती हो, बीच-बीच में बेटे तो आ जाते हैं ना मिलने? 

विमला जी:  तो तुम्हें क्या लगता है मेरे बेटे मेरा हाल-चाल पूछने आते हैं? मैं तो कहूंगी इससे बेहतर तो तुम्हारे बेटे हैं, जो कम से कम तुम्हें मरा समझ कर तुम्हें भूल ही चुके हैं, नकली दिखावा करने तो नहीं आते? 

कुंती जी:  यह क्या कह रही हो विमला बहन? क्यों आते हैं तुम्हारे बेटे? 

विमला जी:  क्योंकि अब मैंने यह तय कर लिया है समझौता अब और नहीं!

कुंती जी:  पहली ना बुझाओ! साफ-साफ बताओ! 

विमला जी:  बड़े अरमानों के साथ दोनों बेटों की शादी करवाई, मेरी कोई बेटी नहीं थी तो सोचा बहू को ही बेटी बना लूंगी। पर मुझे कहां पता था यह सब सोचने और होने में काफी फर्क होता है? बड़े बेटे की शादी हुई, बड़ा खुशहाल था हमारा परिवार। लगता था मुझसे बड़ा भाग्यशाली और कौन होगा? सब कुछ ठीक ही चल रहा था, तभी भगवान ने पहले बिजली गिराई, इनको मुझसे छीन लिया। जैसे तैसे खुद को संभाला और सोचा बच्चों के सहारे बाकी की जिंदगी जी लूंगी।

इसी बीच मेरे छोटे बेटे ने खुद शादी कर अपनी पत्नी के साथ अचानक एक दिन घर आ गया। मैं उसकी खुशी के आगे सब कुछ खुशी से स्वीकार कर लिया। पर धीरे-धीरे घर का माहौल बदलता गया। अब दोनों भाई एक दूसरे से बात बात पर उलझ जाते थे और बहुओ का तो क्या ही कहना? थोड़े दिन तो ऐसे ही चला, पर बाद में मुझे पता चला यह लोग मुझे लेकर ही लड़ते थे। दोनों बहुएं कहती थी, वह मेरे लिए खाना नहीं पकाएंगे और बेटे कहते थे वह अब मेरा खर्च नहीं उठाएंगे। तो मैंने उनसे कह दिया तुम लोग अपना अपना देख लो, मैं अपना देख लूंगी, मेरे लिए किसी को फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं।

फिर मैंने अपने घर का ऊपरी हिस्सा किराए पर लगा दिया, जिससे मेरे बेटों के सीने पर सांप लोटने लगे। उन्होंने पहले तो मुझे मना किया, यह कहकर वह ऊपर के कमरों में वह अपना बिजनेस करेंगे, पर मैंने साफ मना कर दिया तो इस बात पर बड़ा बेटा कहता है, कर लीजिए अपनी मनमानी, आखिर कितने दिन और जिएंगी?

उसके बाद तो सब हमारा ही होगा ना? मुझे यह बात सुनकर हैरानी तो हुई पर अब मैं उनसे ऊब चुकी थी, उनकी कोई भी बात मुझे ज्यादा परेशान नहीं कर पाती थी। मैंने सोच ही लिया था कि अब मैं बिल्कुल अकेली हूं, पर मेरे बेटों ने कभी मुझे हैरान और अचंभित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उस दिन उनका यह कहना कि आपके बाद सब हमारा होगा, इसके पीछे की असली वजह अब मेरे सामने आने वाली थी। 

कुंती जी:  अच्छा इसमें भी कोई राज़ था क्या? 

विमला जी:  हां कुंती बहन! बहुत बड़ा राज़ था। इन लोगों ने तो पूरी प्लानिंग कर रखी थी, मुझसे धोखे से घर हड़पने और मुझे वृद्ध आश्रम भेजने की। पर यह भूल गए थे की मां मां ही होती है, बच्चे को शायद ही उससे ज्यादा कोई जानता होगा। फिर मैंने भी ऐसा खेल रचा, जिसकी उम्मीद यह कभी कर ही नहीं सकते थे। इनका कहना कि आपके बाद सब कुछ हमारा होगा, बस मुझे इसी को पलटना था। 

कुंती जी:  ऐसा भी क्या किया तुमने विमला बहन? 

 विमला जी:  यह एक रोज़ मेरे पास आकर कहते हैं, मां! इन कागजात पर साइन कर दीजिए, पापा की एक पॉलिसी है जो अब मैच्योर हो गई है और आपको मिलेगी, मैंने भी तुरंत साइन कर दिया, मेरे साइन करते ही उनका चेहरा देखने लायक था, मेरे दोनों बेटे मेरे हाथ से वह कागजात लेकर कहते हैं, चलिए अब अपना सामान बांध लीजिए, आपको अपने असली घर छोड़कर आते हैं। 

कुंती जी:  पर विमला बहन तुम तो कह रही थी कि तुम्हें सब पता था अपने बेटों के बारे में, फिर तुमने इतनी आसानी से साइन क्यों कर दिया? कम से कम वह कागजात एक बार पढ़ तो लेती? 

विमला जी:  अरे कुंती बहन! मेरी पूरी बात तो सुनो! जब मैंने अपने बेटों से पूछा, कौन सा असली घर? तो इस पर मेरी बहुएं कहती ह,  वृद्ध आश्रम और कहां? बड़ी आई थी इस घर को अपना बताने वाली? सुन लो मांजी, यह घर के कागजात थे जिन पर अभी आपने साइन किया और इन दोनों भाइयों के नाम कर दिया। क्यों जी आप तो कहते थे आपकी मां काफी पढ़ी-लिखी और होशियार है? वह इन कागजात पर यू साइन नहीं करेगी, पर यह तो बड़ी बेवकूफ निकली। यह कहकर सभी हंसने लगे, पर मैं भी चुप रही और अगले दिन चुपचाप इस आश्रम में आ गई। 

कुंती जी:  तो इसमें तुमने उन्हें कौन सा सबक सिखाया? 

विमला जी मुस्कुराते हुए: सबक? जिसकी वजह से उन्हें यहां बार-बार ना चाहते हुए आना पड़ रहा है यही तो है उनका सबक!

कुंती जी:  क्या मतलब? 

विमला जी:  मतलब मेरा घर मैं पहले ही बेच चुकी थी और सारे पैसे मेरे अकाउंट में ले चुकी थी और मैंने एक वसीयत भी बनाई उसके बाद, जिसमें यह लिखवाया की मेरे मरने के बाद मेरे बचे हुए पैसे इसी आश्रम को दान कर दिए जाएंगे और अब भी उन्ही पैसों को इस आश्रम में ही इस्तेमाल के लिए देती हूं, जब मेरे बेटे मेरे ही घर से मुझे भगाकर चैन से रहने की सोच रहे थे, घर का नया मालिक उन्हें उनकी जगह दिखी गया और अब उन पैसों को मांगने और मुझे अपने साथ रखने की बात करने आते हैं, मेरी सलामती पूछने नहीं समझी! और फिर मैंने यहां, इस वृद्ध आश्रम में रहने के लिए इसलिए चुना, ताकि मेरे मरने के बाद कोई भी प्रॉपर्टी मेरे नाम ना रहे, जो मेरे बाद मेरे बेटों को मिल जाएगी। कह सकती हो कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ा मैंने। मैंने भी उन्हें कह दिया, ना मेरे जीते जी ना मेरे मरने के बाद, तुम लोगों को मेरा कुछ भी, कभी नहीं मिलेगा। 

कुंती जी:  अरे वह विमला बहन! तुम तो बड़ी तेज़ निकली, ऐसे बेटों के साथ ऐसा ही करना चाहिए। हर वक्त मां ही बेचारी बनकर कष्ट क्यों भोगे? किसी मां को तो ऐसा कदम उठाना चाहिए, काश! के तुम जैसा दिमाग सभी मां ओ के पास होता, तो शायद आज इन आश्रमों के निर्माण ही ना होते और मां को यह भी सीख लेना चाहिए कि बुढ़ापे में उनके साथ कोई नहीं होगा, तो उसके लिए वक्त पर ही तैयारी शुरू कर दे, उम्र चाहे कोई भी हो, स्त्री हो या पुरुष, आत्मनिर्भर रहना सांस लेना जितना ज़रूरी बन चुका है। “आजकल पैसा है तो सब है” आज की करवी सच्चाई बस यही है। और हम बूढ़े हो गए हैं तो क्या? समझौता अब भी नहीं! 

दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बच्चों के लालन पालन में खुद के बारे में सोचना ना भूले। क्योंकि समय के साथ-साथ बच्चे अपनी एक राह पकड़ लेंगे और हम उस राह में पीछे रह जाएंगे। तब हमें अपना सहारा खुद ही बनना पड़ेगा, पर उस वक्त हमारा तन भी हमारा साथ नहीं देगा। बच्चों को अच्छी परवरिश देना हर माता-पिता की जिम्मेदारी होती है, पर बदले में बच्चे भी आपकी जिम्मेदारी उठांए, यह आपकी अच्छी किस्मत होगी और जो वह अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ ले, हमें घुट घुट कर जीना ना पड़े, इसीलिए जीवन के आखिरी पड़ाव चैन से बीते उसकी तैयारी समय रहते ज़रूर करें, आपकी क्या राय है इस बारे में?

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#समझौता अब नहीं

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