Moral stories in hindi : माँ आज सुबह से ही बहुत बेचैन दिखाई दे रही थी। उनके चेहरे से उनकी बेचैनी स्पष्ट हो रही थी। वह सारे काम तो कर रही थी लेकिन उनका ध्यान बार-बार किसी बात पर जा रहा था जैसे वह किसी कशमकश में हो और उन्हें क्या करूं यह समझ में नहीं आ रहा था।
मैं पढ़ाई करते हुए उनके क्रियाकलापों को देख रही थी। माँ ने पापा से कुछ बात की ।थोड़ी बाद मैंने देखा कि माँ आलमारी से कुछ सामान निकालने लगी। माँ ने सुहाग के सामान को थाल में सजाया और बाहर जाने लगी। मैं भी उनके पीछे जाकर देखने लगी कि माँ कहां जा रही हैं। माँ ने घर का गेट खोला और बगल वाले घर में गयीं। मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैं अंदर आ गई।
मुझे स्कूल जाने के लिए तैयार होना था। मैं तैयार होते-होते बीती बातें याद करने लगी । हमारे पड़ोसी और हमारे बहुत अच्छे संबंध थे। अड़ोस पड़ोस में पहले रिश्ते नाते जुड़ जाते थे। हम बच्चे भी एक साथ खेलते और पढ़ते थे।तीज त्योहार एक साथ मनाते थे कि अचानक सब कुछ बदल गया।एक छोटी सी बात पर बगल वाली आंटी ने माँ से ऊँचे स्वर में बहुत कुछ कह दिया।
वो माँ से बड़ी थीं। माँ ने उनकी किसी बात का जवाब नहीं दिया।आंटी माँ को बहुत सारी उल्टी सीधी बातें बोलती रही।फिर उन लोगों ने हमारे साथ बोलचाल बंद कर दी। दो-तीन साल ऐसे ही गुजर गए। गर्मियों में उनकी बड़ी बेटी की शादी थी। तब उन्होंने हमें भी कॉलोनी में सब के साथ औपचारिक निमंत्रण दे दिया।माँ हमें लेकर शादी में शामिल होने गई और उनकी बेटी को उपहार दिया। बस इतना ही।उसके बाद फिर से पहले जैसे ही बातचीत बंद।अभी कुछ दिन पहले उनकी बेटी सावन में पहली बार मायके आई थी और दामाद उन्हें लेने आए थे।आज उसकी विदाई थी।
अब मुझे माँ की बेचैनी समझ में आ गई ।माँ उन बच्चों को अपने बच्चे जैसा ही मानती थी।उनपर माँ का बहुत स्नेह था। इसीलिए उनका मन नहीं माना और वह उनके व्यवहार की परवाह न करते हुए उनकी बेटी को सुहाग सामग्री और आशीर्वाद देने चली गई थी ।
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मैं बेचैनी से माँ की प्रतीक्षा कर रही थी ।मैं मन ही मन सोच रही थी कि यूँ अचानक माँ के जाने पर वे कैसा व्यवहार करेंगे।मुझे माँ की चिंता हो रही थी।माँ बहुत भावुक हैं ।मुझे डर था कि अगर उन्होंने माँ से सही व्यवहार नहीं किया तो माँ का मन आहत हो जाएगा।इसी बीच मैंने पापा को खाना परोस दिया और वे खाना खाकर स्कूल चले गए।
थोड़ी देर बाद माँ आ गई और बहुत ही खुश दिखाई दे रही थी ।मुझे जानने की इच्छा हो रही थी की आखिर वहाँ हुआ क्या? मैं खाना खाते रही थी तो माँ ने बताया “मैं वहाँ गई तो सभी मुझे देखकर आश्चर्य चकित रह गए। उन्होंने मेरा स्वागत किया और अच्छे से बैठाया।फिर दामाद से परिचय करवाया।” माँ ने बेटी और दामाद को तिलक लगाया और बेटी को सुहाग सामग्री और दामाद को नेग दिया ।आंटी माँ से खाना खाने का आग्रह करने लगी ।माँ ने सबके साथ भोजन किया।
माँ से सारी बातें सुनकर मुझे अच्छा लग रहा था।माँ ने कहा “अगर मैं यह नहीं कर पाती तो मेरे मन को शांति नहीं मिल पाती।” मैं उनकी बात सुनती रही। उनलोगों के पहले के व्यवहार से मुझे समझ नहीं आ रहा था कि माँ ठीक किया है या नहीं।माँ मेरा चेहरा देखकर समझ गई कि मेरे मन में क्या चल रहा है। उन्होंने मुझे समझाया ” पहल करना बुरी बात नहीं है। दोनों पक्ष में से कोई भी पहल नहीं करेंगे तो संबंध अच्छे कैसे होंगे ?इसलिए मैंने अपनी तरफ से आज पहल की और उनके घर गयी। संबंध सुधारने के लिए हमें दूसरे का मुँह नहीं देखना चाहिए ।दोनों में से कोई एक भी झुक जाए तो रिश्ते बने रहते हैं। “
माँ की इस पहल के बाद हम दोनों घरों के संबंध धीरे-धीरे पहले जैसे अच्छे हो गए।
माँ की यह बात में हमेशा याद रखती हूँ।कभी किसी के प्रति मन में दुःख या गुस्सा होता भी है तो उसे भूल कर मैं पहले से बात कर लेती हूँ। माँ की इस सीख ने जीवन में मुझ से जुड़े सभी रिश्तों को मधुर बनाने और निभाने में हमेशा मेरी मदद की है।
स्वरचित
नीरजा नामदेव
छत्तीसगढ़