संगीता जी वृद्धाश्रम के कमरे मे लेटे हुए अपने पुराने दिनों को याद कर रही थी। उनके आँखो से बहते आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। नींद आँखो से कोसो दूर थी। जो उनके बहुत चाहने पर भी आ नहीं रही थी।सोच रही थी कि सो जाती तो शायद कुछ देर के लिए ही सही उनके मन को थोड़ा आराम मिल जाता
पर मन की शांति शायद अब उनके जीवन से निकल चुकी थी। मन का चैन आराम आदमी पैसो से नहीं खरीद सकता है यह बात उन्हें जब पता चली तब तक इतनी देर हो चुकी थी कि अब कुछ नहीं किया जा सकता था। पचास वर्ष के बाद रूप का और साठ वर्ष के बाद पद का महत्व नहीं रहता है उसके बाद आपका किसी के साथ किये गए व्यवहार ही काम आते है इसकी उन्हें समझ नहीं थी।
जब उनके पति सर्विस मे थे तब उन्होंने ऑफिसर की पत्नी होने के अभिमान मे किसी के साथ सही व्यवहार नहीं किया। नौकरो के साथ तो उनका व्यवहार खराब था ही उन्होंने तो अपने ससुराल वालो के साथ भी कभी अच्छा व्यवहार नहीं रखा।उनके अनुसार वे उनके स्टेटस के नहीं थे।संगीता जी के पति भावेश जी एक साधारण परिवार से थे। उनके पिता किसान थे। बड़े भाई की भी
गाँव मे रोजमर्रा के समानो की छोटी सी दुकान थी। उनकी जेठानी भी गाँव की बेटी थी।भावेश जी बचपन से ही पढ़ने मे तेज थे जिसके कारण उनके पिता नें दसवीं के बाद उन्हें पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया था जबकि बड़े भाई को पढ़ाई से लगाव नहीं था इसलिए उन्होने घर मे ही कुछ जरूरी समानो को रख कर बेचना शुरू कर दिया और आगे अपने मेहनत के बल पर दुकान खोल लिया
जिससे उनके परिवार का भरण पोषण होता था।वही संगीता जी के पिता भी सरकारी सर्विस मे थे और संगीता जी देखने मे भी बहुत ही सुंदर थी,साथ ही पढ़ी लिखी भी थी।इसके विपरीत उनके पति का स्वभाव बहुत ही अच्छा था वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार रखते थे।
उनमे क्लास वन ऑफिसर होने का ज़रा भी अभिमान नहीं था पर उनकी जगह संगीता जी को उनकी पत्नी होने पर कुछ ज्यादा ही अभिमान था। संगीता जी के दो बच्चे थे जो पढ़ने के लिए विदेश गए और वही विवाह कर के बस गए। जैसे संगीता जी नें पैसो के आगे रिश्तो को कोई महत्व नहीं दिया था उसी प्रकार उनके बच्चो नें भी किया और अब जब वे स्वयं पैसे कमाने लगे तो माँ बाप का महत्व उनके जीवन मे नहीं रहा।
सभी सोचते है कि मेरा बेटा मेरे साथ गलत नहीं करेगा, पर वे यह भूल जाते है कि बच्चे जैसा देखते है वैसा ही अनुसरण करते है। बच्चो नें अपने जीवन मे कभी अपने दादा दादी, चाचा चाची, या बुआ का कोई महत्व नहीं देखा था इसलिए उनके मन मे कभी अपने बच्चो के लिए दादा दादी के होने की कल्पना नहीं आई।उनके मन मे अपने घर के सदस्यों के लिए कुछ अच्छा अनुभव तो नहीं ही था
बल्कि एक बहुत ही बुरा अंनुभव जरूर जुड़ा हुआ था।संगीता जी के जेठ के बेटे नें जब दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर ली तो उनके पति गाँव मे कॉलेज नहीं होने के कारण उसे अपने घर लेकर आ गए पर संगीता जी नें कभी भी उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं रखा और ना ही अपने बच्चो को रखने दिया। वे सभी उसके साथ नौकर की तरह व्यवहार करते थे। इस कारण उनके मन मे कभी उसके बड़े भाई होने का विचार ही नहीं पनपा।
उसने भी अपने आगे के भविष्य के खातिर और अपने चाचा के व्यवहार के कारण किसी तरह वहाँ रहकर पढ़ाई पूरी की और नौकरी लगने पर वहाँ से चला गया।जब संगीता जी के पति रिटायर हुए तब जाकर उन्हें समझ आया कि कोई कितने भी बड़े पोस्ट पर क्यों ना हो, रिटायरमेंट के बाद उसका उसके ऑफिस मे कोई महत्व नहीं रह जाता। जहाँ उनके घर मे दिन भर लोगो का
आना जाना लगा रहता था वही अब रिटायरमेंट के बाद एकदम वीरानगी पसरी थी। नौकर तो वेतन के और भावेश जी के व्यवहार के कारण टिके थे पर भावेश जी की मृत्यु के बाद वे सब भी एक एक करके काम छोड़ कर चले गए। आज पैसा होने के बाद भी संगीता जी को वृद्धाश्रम मे रहना पड़ रहा है क्योंकि उनके पहले के व्यवहार को जानकर उनके पास कोई भी काम करना नहीं चाहता।भावेश जी
का भतीजा आज उन्हें गाँव ले जाने के लिए आया था पर उन्होंने यह कहकर कि मै किस मुँह से भाभी के पास जाउंगी मना कर दिया। भतीजा के काफ़ी समझाने के बाद भी वह गाँव नहीं गई और कहा कि मेरी यही सजा है कि मै इस वृद्धाश्रम मे रहकर अपना शेष जीवन बिताऊ। मै कोशिश करूंगी कि यहाँ रहने वाले लोगो का आर्थिक और मानसिक संबल बनकर अभिमानवस अपने द्वारा लोगो के साथ किये गए दुर्व्यवहार
की गलतियों को कम कर सकूँ।भतीजा नें जाते वक़्त कहा कि चाची आप किसी भी बात की चिंता मत कीजिएगा।मै आपसे मिलने आता रहूंगा और आपको जब भी घर आने का मन करे मुझे फोन कर दीजिएगा मै आपको लेने आ जाऊंगा। भतीजे की बातो को याद कर के उन्हें रोना आ रहा था। वे सोच रही थी कि एक यह बच्चा है जो अपने माँ पिता के साथ मेरी सेवा करने को भी तैयार है
जबकि जब वह मेरे यहाँ था तब मैंने इसके साथ कितना बुरा व्यवहार किया था और एक मेरे बच्चे है जो झूठ मुठ का भी मेरा हालचाल नहीं पूछते। उन्हें अब यह समझ आ गया था कि कभी भी किसी वस्तु, पद, रूप आदि पर अभिमान नहीं करना चाहिए।
मनुष्य का कर्म और व्यवहार ही उसके काम आते है। और उन्होंने मन ही मन संकल्प लिया कि उन्हें अब अपने बाकी का जीवन गरीब वृद्धाओ के जीवन को आसान बनाने मे लगा देना है। जैसे ही उन्होंने यह सोचा उनके मन को शांति प्राप्त हो गई और कल सुबह उठकर एक नई जीवन की शुरुआत करने के लिए वे सो गई।
वाक्य –इतना अभिमान सही नहीं
लतिका