पांव जमीन पर रखो – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

  “ ओह भाभी, ये क्या दाल बनाई है, तड़का तो दिख ही नहीं रहा, और ये  आलू की सब्जी, कुछ मीठा बनाया या नहीं, न रायता ना सलाद, ले जाओ ये सब, मैं नहीं खा सकती , मैं अभी कुछ बाहर से आर्डर करती हूं, आजकल तो जमैटो वगैरह से जो मर्जी मगांओ, मिंटों में हाजिर, आप सब भी मत खाना ये, मैं सबके लिए आर्डर कर देती हूं”, और काशवी फोन घुमाने लगी।

         “ नहीं, नहीं, तुम अपने लिए ही मंगा लो, हमें नहीं खाना बाहर का , और इतना सारा खाना जो बना पड़ा है, वो बर्बाद नहीं करना, ये तो अन्न का अपमान है”। अंदर से निकलते हुए काशवी की मां रेशमा ने कहा। भाभी नानकी तो कुछ नहीं बोली परतुं उसे ननद के ऐसे बदले हुए तेवर देख कर हैरानी जरूर हो रही थी। 

      एक महीना हुई है शादी को और इतना रंग ढ़ंग बदल गया। सुंदर सलोनी , गोरी चिट्टी काशवी का रिश्ता मासी सुमित्रा ने अपनी सहेली के बेटे से करवाया था। सब किस्मत की बात है। रेशमा और सुमित्रा दोनों सगी बहनें थी। सुमित्रा के पति का बहुत अच्छा कारोबार था। शादी के बाद रेशमा के पति का बिजनैस खास नहीं चला और कुछ भाईयों के आपसी बंटवारे में चला गया। कोशिश तो बहुत की काशवी के पापा ने लेकिन बस दाल रोटी तक ही कमाई सीमित रही। भाई अनिरूद्ध पढ़ाई में ठीक था , ज्यादा पढ़ तो नहीं पाया मगर बिजली विभाग में सरकारी नौकरी मिल गई तो हालात कुछ बेहतर हो गए।

      काशवी को अपने रूप रंग पर शुरू से ही घंमड था, पढ़ाई में दिलचस्पी थी नहीं। मुशकिल से बहुत कम अंकों से बारहवीं ही कर पाई, लेकिन किस्मत अच्छी कि मासी सुमित्रा की सहेली के बेटे ऋषभ को सुंदर लड़की चाहिए थी , और काशवी उनहें पंसद आ गई।  उनका अपना बहुत बढ़िया होटल का बिजनैस था, खुद तो वो दसवीं ही पास था। 

      बिना किसी दाज दहेज के शादी हो गई, लेकिन फिर भी अनिरूद्ध ने अपनी हैसियत मुताबिक दिया था। खूब बड़ी कोठी, गाड़ियाँ नौकर, कपड़े, गहने यानि कि ऐशो आराम की कोई कमी नहीं। ऋषभ का एक बड़ा शादी शुदा भाई आस्ट्रैलिया में था। हनीमून के लिए काशवी को वहीं जाना था लेकिन अभी पासपोर्ट वगैरह की कार्यवाही चल रही थी। वैसे वो मनाली घूम आए थे और आज पहली बार ही मायके एक रात रूकने के लिए आई थी।

          ऋषभ उसे छोड कर बाहर से ही चला गया था, अगले दिन आना था उसे।काशवी दो बार आई थी, बस एक दो घंटे रूक कर ही चली गई। वो दोपहर में ही आई थी तो भाभी ने सोचा कि जो बना है वो खा लेते हैं, शाम को उससे पूछ कर कुछ अच्छा सा बना देगी। वैसे भी दो दिन से उसकी तबियत ठीक नहीं थी। 

            मां को भी था कि काशवी तो अपनी ही बेटी है, दामाद जी के आने पर बढ़िया तैयारी कर लेगें और फिर उसने आने से घंटा पहले ही फोन किया था। उसका घर दूसरे शहर में था पर दूरी कम ही थी। काशवी के सामान की डिलीवरी हो गई थी, उसने और सात वर्षीय भतीजे अंश ने पिज्जा पास्ता वगैरह खाया और बच्चा तो खूब खुश हुआ। 

    अगले दिन ऋषभ आया और वो चली गई। जितना समय रही अपनी ससुराल की ही डींगे हांकती रही। वो अच्छे लोग थे, अपनी बेटी को खुश देखकर मायके वाले तो खुश होते है लोकिन घर की बेटी अपने ही घर का मजाक उड़ाए तो सहन करना मुशकिल ही है। अब तो वो जब भी आती हर बात में नुक्स ही निकालती रहती । नानकी तो कुछ न कहती और ननद को कहती भी क्या, लेकिन रेशमा को गुस्सा तो आता परंतु चुप रहती। 

       अपनी ही बेटी थी, जहां वो उसको सुखी देखकर खुश थी, वहां उसके घंमड से परेशान भी थी। एक दिन वो आई तो अंश का स्कूल बदलने की बात चल रही थी, दो साल से वो घर के पास वाले स्कूल में ही पढ़ रहा था। बड़े बड़े स्कूलों की फीसे भी आसमान छूती है और उपर के न जाने कितने खर्चे तो वो अंश को थोड़ी दूरी पर एक अच्छे प्राईवेट या फिर सरकारी स्कूल में भेजने की बात चल रही थी। 

          काशवी ने स्कूलों का नाम सुनकर नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा के ये भी कोई पढ़ने लायक स्कूल है, मोतीराम के स्कूल में डालो। मोतीराम का स्कूल शहर का सबसे मंहगा और काफी दूरी पर स्कूल था, आना जाना भी मंहगा पड़ता। मां कुछ कहती, उससे पहले ही काशवी बोल पड़ी,” मैं तो अपने बच्चों को उससे भी बढ़िया स्कूल में भेजूगीं”। पिछले एक साल से लगातार बेटी की अभिमान भरी बातों से तंग आ चुकी रेशमा की सहनशक्ति अब जवाब दे चुकी थी। 

    वह बोली,” बेटी, माना कि तेरा ससुराल अमीर है, हम तुम्हें हमेशा खुश देखना चाहते है परतुं बेटा ज्यादा आसमान पर उड़ना ठीक नहीं होता। तूं इसी घर से गई है। तूं अपने घर में जो मर्जी कर लेकिन हमें तो अपनी चादर में ही रहना है। रही बात पढ़ने की तो  लगन हो तो सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले भी उच्च पदवियों पर पहुंच जाते है। 

     जिसके पास जो है अपने लिए है, इंसान क्षणभंगुर है, घंमड किस बात का, कितना भी आसमान में उड लो, पांव जमीन पर ही रखो। 

मां की बात सुनकर काशवी को अपनी गल्ती का कितना अहसास हुआ पता नहीं लेकिन रेशमा का दिल जरूर हल्का हो गया। 

विमला गुगलानी

चंडीगढ 

मुहावरा- आसमान पर उड़ना।

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