बड़ा ही रोब था उसका, नाम था उसका पुत्तन भैया।
वाहन,दुकान, पैसा,दो मकान और ढेर सारे चमचे, गुर्गे, जो पुत्तन भैया को भरपूर मक्खन लगाते थे। कई गैर कानूनी कामों से पैसा कमाया जाता था। और शायद उन पापों को धोने के लिए कभी माता की चौकी, तो कभी मंदिर में भंडारा करवाया जाता और भगवान की मूर्तियों पर सोने के, चांदी के मुकुट और हार चढ़ाए जाते। पर ऐसे भी कहीं पाप धुलते हैं।
ऐसे ही एक बार मंदिर में 31 ब्राह्मणों को खाना खिलाकर उन्हें भरपूर दान दक्षिणा देने का कार्यक्रम था और साथ ही ईश्वर की प्रतिमा पर मुकुट सुशोभित करवाने थे, वह भी पूरे पांच देवी देवताओं को।
नियत समय पर ब्राह्मण आ गए थे। सबने मिलकर पूजा अर्चना की और भगवान को मुकुट अर्पण किये। उसके बाद पुत्तन भैया की पत्नी, बेटी और दोनों बेटों ने अपने हाथों से ब्राह्मणों को भोजन करवाया और पुत्तन भैया ने दान दक्षिणा दी।
इतने में उस मंदिर में एक साधु बाबा आए। पुत्तन की बेटी ने बड़ा आग्रह करके उन्हें भोजन खाने के लिए कहा। साधु महात्मा उसके आग्रह पर भोजन खाने लगे। साधु बाबा और ब्राह्मण तृप्त होकर वहां से चले गए थे।
तभी पुत्तन भैया के एक चमचे की नजर ईश्वर की मूर्तियों पर गई, तो उसने देखा कि वहां एक मूर्ति से मुकुट गायब है। उसने थोड़ा इधर-उधर देखा तो मुकुट नहीं मिला।
तब उसने अपने पुत्तन भैया से कहा-” ब्राह्मण लोग तो ऐसा कर ही नहीं सकते, हो ना हो यह साधु का ही काम है, उसी ने मुकुट चुराया होगा। ”
पुत्तन चिल्लाया -” अरे सब नालायकों खड़े क्या हो? जाओ जल्दी से उस साधु को ढूंढो और मेरे पास पकड़ कर लाओ। ”
सब उसे ढूंढने निकल पड़े। साधु बाबा एक घने पेड़ की छाया में लेटे हुए थे। दो चमचे उन्हें पकड़ कर, घसीट कर पुत्तन भैया के पास ले आए। साधु बाबा पूछते रहे कि आखिर हुआ क्या है, कुछ तो बताओ, मुझे कहां घसीट कर ले जा रहे हो, यह कैसा व्यवहार मेरे साथ कर रहे हो? ”
पुत्तन भैया ने आव देखा न ताव, सीधा साधु बाबा को घूसों से मारने पीटने लगे और साथ ही चिल्लाते जा रहे थे” साले चोर, भोजन करने के बहाने भगवान का सोने का मुकुट चुरा कर ले गया, बता कहां छुपाया है? ”
साधु बाबा हैरान परेशान होकर बोले, ” बेटा यह तुम क्या कह रहे हो, मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता, मैंने कुछ नहीं चुराया। ”
पुत्तन भैया ने साधु बाबा का झोला छीन लिया और उसकी तलाशी लेने लगा। साधु बाबा थोड़ा पीछे खिसक गए। झोले में कुछ ना मिला, तब पुत्तन ने साधु बाबा को अपनी चप्पल खींच कर दे मारी। यह सब देखकर वहां बहुत भीड़ एकत्र हो गई थी।
सब लोगों ने पुत्तन को समझाया, कि हम साधु बाबा को बहुत समय से देख रहे हैं, यह बहुत सरल स्वभाव के हैं, यह ऐसा कर ही नहीं सकते। तुम उनके साथ इतना गलत व्यवहार मत करो। किसी भी साधु बाबा को या किसी अन्य इंसान को चप्पल फेंक कर मारना बहुत गलत बात है।
पुत्तन ने कहा -” सीधी तरह बता कितूने अपने साथी को तूने मुकुट देकर कहां भगाया है, सच-सच बता वरना मैं अभी पुलिस को बुलाता हूं। ”
साधु बाबा की आंखों में आंसू थे और उनका गला रूंध गया था। उनका इस तरह अपमान कभी किसी ने नहीं किया था। उनका हृदय रो रहा था। उन्होंने कहा ठीक है तुम पुलिस को बुला लो।
पुत्तन भैया के इतने सारे गैर कानूनी धंधे थे, वह क्या पुलिस को बुलाते, उनके खुद फंस ने के चांस थे। उन्होंने झूठी दरिया दिली दिखाते हुए साधु बाबा से कहा -” ठीक है जाओ यहां से, इस बार तुम्हें छोड़ रहा हूं। ”
साधु बाबा बिल्कुल मौन हो गए थे, किंतु उनकी आंखों की पीड़ा और हृदय का रुदन स्पष्ट दिखाई दे रहा था। उस दिन के बाद वह कभी नजर नहीं आए। लेकिन उन्होंने ईश्वर से एक ही प्रार्थना की थी कि हे ईश्वर तू इस अन्याय का कुछ कर, और सही न्याय कर। उनकी प्रार्थना ने अपना प्रभाव दिखाया।
दरअसल वह मुकुट भगवान की प्रतिमा से फिसल कर, उसी के पीछे गिर गया था और दूसरे दिन पंडित जी को मिल गया था लेकिन तब भी पुत्तन भैया को साधु बाबा के साथ अपने द्वारा किए गए व्यवहार का कोई पछतावा नहीं था। वह तो इसी घमंड में घूमते रहते थे कि उन्होंने ईश्वर की प्रतिमाओं को मुकुट चढ़कर उन्होंने बहुत बढ़िया काम किया है और ईश्वर उनसे बेहद खुश हैं।
साधु बाबा के अपमान के 6 महीने बाद, अचानक उनका बड़ा पुत्र सड़क दुर्घटना में समाप्त हो गया। दूसरे बेटे को अपने बड़े भाई के जाने का इतना सदमा लगा कि वह पागलों की तरह हरकतें करने लगा। पुत्तन भैया ने उसका बहुत इलाज करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और इसी कारण उसे पागल खाने में भर्ती करवाना पड़ा। दोनों बेटों का ऐसा हाल देखकर पुत्तन की पत्नी का हृदय घात से देहांत हो गया।
चमचों ने उनकी हालत का फायदा उठाकर, दुकान पैसा और वाहन सब अपने कब्जे में कर लिए। बेचारी पुत्तन की बेटी अकेली क्या-क्या संभालती। उसने एक घर किराए पर दे दिया था और दूसरे में अपने पिता के साथ रह रही थी। इस किराए से गुजर बसर हो रही थी।
लेकिन अभी ईश्वर का इंसाफ पूरा नहीं हुआ था। पुत्तन की तबीयत खराब रहने लगी। डॉक्टर साहब ने बताया कि इन्हें कैंसर हो गया है वह भी लास्ट स्टेज।
सब लोग यही बातें कर रहे थे कि निर्दोष साधु बाबा का अपमान करके पुत्तन ने अच्छा नहीं किया। साधु बाबा की हाय ने उसके पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया। हालांकि साधु बाबा ने उसे कोई बद्दुआ नहीं दी थी लेकिन उन्होंने ईश्वर से न्याय करने की मांग की थी और उनकी आंखों में आंसू और हृदय में पीड़ा थी।
शायद यही भगवान का इंसाफ था। निर्दोष और सच्चे हृदय की पुकार कभी खाली नहीं जाती। अंत में पुत्तन
अपनी बेटी को अकेला छोड़कर, कैंसर के कारण चल बसा।
स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली