सुबह का समय था, सूरज की किरणें चारों दिशाओं में फैल रही थी ।रेखा अपने कमरे में बडे बेमन से, एक सरल सी साड़ी पहनकर तैयार हुई। मां ने कहा बेटी तुम्हारा लंच रख दिया,
इसे अपने पर्स में रख लो ।रेखा ने कहा ठीक है मां मैं जाती हूं मां बोली बेटा नाश्ता तो कर लेती रेखा ने कहा_ मां मुझे भूख नहीं है अच्छा तो मैं चलतीं हूं। और फिर रेखा स्कूल के लिए चल दी ,रेखा का स्कूल शहर से दूर एक पिछड़े गांव में था। उस गांव में ना तो सड़क थी, ना ही कोई और सुविधा।
कई बार सब लोगों ने मना किया की तुम रेखा तुम पढ़ी लिखी हो तुम शहर में किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाओ गांव में क्यों जाती हो, वहां कोई सुविधा भी नहीं है रेखा ने कहा शहर वाले बच्चों को तो बहुत सारे मास्टर टीचर मिल जाएंगे लेकिन इस गांव में कोई भी पढ़ने को नहीं आएगा। मुझे इन बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना है
मुझे इस गांव के बच्चों को पढ़ना है। चाहती हूं इस गांव के बच्चे भी देश के विकास में अपना योगदान दें इसलिए रेखा सुबह से लेकर शाम तक स्कूल में मेहनत करती हैं चाहे अंदर से कितनी दुःखी हो लेकिन उसके चेहरे पर हमेशा हंसी दिखाई देती है ।और बच्चे भी उसकी आने का इंतजार करते बच्चों के मन में वह एक उम्मीद की किरण थी की रेखा मैडम आएंगी
तो वह हमें पढ़ाएगी स्कूल में कोई भी अन्य टीचर आने को तैयार नहीं था। क्योंकि यह शहर से काफी दूर था।
एक दिन की बात है रेखा स्कूल से वापस लौट रही थी तभी रास्ते में उनकी स्कूटी खराब हो गई जंगल का रास्ता था एक अनजान रमेश जो इसी गांव का था मैं आर्मी में नौकरी करता था इस समय छुट्टी पर अपने घर आया हुआ था उसने देखा रास्ते में रेखा की स्कूटी को स्टार्ट कर रही थी लेकिन वह स्टार्ट नहीं हो रही थी
मैं रेखा जी के पास आया और बोला मेरा नाम रमेश है क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं। रेखा ने उनकी मदद ले ली जब देखा अपने घर के पास पहुंची तो आसपास के लोगों ने देखा की रेखा किसी अनजान व्यक्ति के साथ उसकी मोटरसाइकिल पर बैठकर आ रही थी
बिना सच जान वालों रेखा और उसे व्यक्ति के बारे में उल्टी सीधी बातें करने लग जरूर इसका उसी गांव में किसी से कोई चक्कर है इसलिए इसने शहर की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर गांव में घूमती रहती है जब यह बात रेखा
के कानों में पड़ी तो उसे बड़ा निरादर महसूस हुआ। शांत रही उसे अपने पिताजी की बात याद थी कि बेटा
जिंदगी में हमेशा ऐसा काम करना जिससे लोगों का भला हो एक बार को तुम परेशान हो जाना
लेकिन लोगों को दुखी मत रहने देना ।आपके कारण कोई दुखी ना रहे, और हमेशा अपने मन की करना ।लोगों की बात पर
ध्यान मत देना
सब लोग बार-बार ताने देने लगे तो एक बार रेखा के मन में आया की नौकरी छोड़ दूं फिर उन बच्चों का
ख्याल आया कि अगर मैं नौकरी छोड़ दी तो इन बच्चों को कौन संभालेगा रेखा के पढ़ाने से बच्चे इतने होशियार हो गए के शहर में होने वाली प्रतियोगिता में भाग लेने लगी साल का आखिरी दिन था उसे दिन बच्चों के रिजल्ट बनते जा रहे थे इस समय उसे शहर के डीएम साहब उसे गांव में आए
और आने के बाद जब उन्होंने माइक पर बोले कि मैं इस स्कूल मेंआया हूं और मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है की रेखा जी ने इन बच्चों के अंधेरे जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर दिया है जहां कोई नहीं आता वहां पर रेखा जी ने अपनी मर्जी और बच्चों का इतना बढ़िया पढ़ाया और बच्चों का इतना बढ़िया रिजल्ट आया है इसे देखकर मेरा मन बहुत प्रसन्न हो रहा है उन्होंने सभी बच्चों का सम्मान किया,
और फिर उन्होंने रेखा जी को स्टेज पर बुलाया डीएम साहब ने कहा कि अगर हमारे देश की हर टीचर आपकी तरह अपने बच्चों पर ध्यान दें ।और वह यह ना देखें, कि बच्चे गांव के हैं या मैं गांव में जाकर कैसे पढ़ आऊंगा ।रेखा जी से उन्हें सीखना चाहिए, रेखा जी इतनी पढ़ी लिखी होने के बाद बावजूद भी वह चाहती तो किसी शहर में डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर बनाकर आराम से अपना जीवन व्यतीत करती थी।
लेकिन फिर भी उन्होंने गांव में आना पसंद किया और आज उनकी मेहनत रंग लाई है कि पूरे स्कूल के सभी बच्चे सफल हुए हैं और इन बच्चों का कई प्रतियोगिता में इन्होंने भाग लेकर अपने गांव और अपने शहर का नाम रोशन किया है ।और उनके स्कूल के कुछ बच्चे स्टेट खेलने के लिए जाएंगे मुझे यह कहते ही बड़ा गर्व हो रहा है की रेखा मैडम जैसी मैडम हर स्कूल में होनी चाहिए और फिर उन्होंने रेखा जी को स्टेज पर बुलाया और तालियां के साथ सब से स्वागत किया जब स्वागत हो रहा था
तो वहां पर रेखा के पड़ोस के वह लोग भी थे जो रेखा की बुराई करते थे। उनके बच्चे वह भी वहां पर प्रोग्राम देखने के लिए आए थे ,उसे समय रेखा के पिताजी का सीना गर्व से चौड़ा हो रहा था। आज उनकी बेटी ने उनका सीना गर्व से चौड़ा कर दिया है, जो लोग रेखा की बुराई करते थे वह एक-एक करके सभी रेखा के पास आकर माफी मांगने लगी हमें नहीं मालूम था
देखा तुम इतनी मेहनत कर रही हो बच्चों के साथ हमें माफ कर दो रेखा जी ने कहा कोई बात नहीं ।तब रेखा जी ने अपने पिताजी से कहा पिताजी निरादर तो हमें अपने आप मिल जाता है लेकिन सम्मान हमें प्राप्त करना पड़ता है। उसके लिए हमें अपने दिन रात मेहनत करनी पड़ती है हमें कभी भी किसी का निरादर नहीं करना चाहिए। और यह लोगों ने मेरे साथ निरादर किया तो हो सकता है शायद इन्होंने सही किया अगर यह ना करते तो ,मैं और ज्यादा मेहनत नहीं करती और
आज यह सफलता प्राप्त नहीं होती।
विनीता सिंह बीकानेर राजस्थान