Moral Stories in Hindi : ये सब बहुत छोटी बातें थीं, जिनके बारे में सोमेश सोचना भी नहीं चाहता था, क्योंकि उसकी संस्कारों में मां -बाप के लिए कुछ भी करना ये बच्चे के लिए सम्मान की बात थी ना कि उन पर किसी तरह का एहसान करना है।पर ना चाहते हुए भी उसे बचपन से अभी तक की कई बातें याद आने लगीं ।
स्कूल से वापस आने पर अम्मा भैया के कपड़े ला कर देती थीं जबकि उसे अपने कपड़े स्वयं लेकर पहनने होते थे। दोनों दीदियों के लिए अम्मा कपड़े तो नहीं निकालती थी पर उनके आते ही उनसे स्कूल की बातें करती उन्हें कपड़े तह करना सिखाती,खाने के बारे में पूछती पर छोटे सोमेश को भैया का सब देखते देखते ही सीखना पड़ता।वो भी अम्मा के गले से लगकर अपने स्कूल की बातें बताना चाहता पर अम्मा उसे वैसा लाड़ करने का कोई मौका ना देती।
नन्हा सोमेश टुकुर टुकुर देखता फिर अपने आप वहां से चला जाता, धीरे धीरे उसे सबकी आदत हो गई,पर अम्मा अभी भी उसे उतनी ही प्यारी लगतीऔर कभी कभी तो वो जबरदस्ती अम्मा के गले से लिपट जाता। खाना खाते समय भी अम्मा भैया और दोनों दीदियों को चाव से और आग्रह से खिलाती जबकि उसे कहती ,खाना उतना ही लेना जितना खा सको ,
जब पापा के साथ सब खाना खाने बैठते तो पापा सभी को और खासकर सोमेश को बहुत प्यार और आग्रह से खिलाते,रात में अपने पास सुलाकर कहानी भी सुनाते और जब बाज़ार से सामान लाते तो सबसे पहले सोमेश को ही देते।
समय गुजर गया, भैया का मन पढ़ने में कम लगता था तो उन्हें खेत खलिहान अच्छे लगते वहां काम करना उन्हें बहुत भाता , इसलिए पापा ने उन्हें खेती कैसे बढ़ाएं ,किस तरह की फसल उगाई जाए,इसका प्रशिक्षण स्वयं दिया और साथ ही घर में एक किराना दुकान खोल ली। भैया का काम अच्छा चलने लगा। दोनों दीदियों ने भी मुश्किल से इंटर पास किया, फिर अच्छा घर वर देखकर दोनों की शादियां कर दी गई।
सोमेश शुरू से ही मेधावी था, उसने अच्छे अंकों से इंटर पास किया, फिर उसका चयन राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया। अम्मा ने सोमेश को आगे पढाने का बहुत विरोध किया पर पापा अड़ गए और फिर अच्छे अंकों से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके सोमेश इंजीनियर बन गया, उसे कालेज से निकलते ही बंबई में नौकरी लग गई।
सोनी उसके साथ काम करने वाले मित्र की बहन थी और उसे पहली नज़र में भा गई थी वह भी इंजीनियर थी और उसे भी उसके पास की एक कंपनी में नौकरी मिली थी, लगभग रोज ही मुलाकात होती थी ।तब तक पापा का हृदय गति रुकने से देहांत हो गया था। इस खबर ने सोमेश को बहुत दुखी किया था। जब वो गांव गया तो अम्मा से लिपट कर खूब रोया। अम्मा भी दुखी थीं और उससे बहुत देर तक पापा उसे कैसे याद करते -करते चले गए,बताती रही।
पापा के सारे क्रिया कर्म करने के बाद जब वापस लौटा तो उसके मित्र ने सोनी और उसकी शादी के बारे में पूछा तो सोमेश ने कुछ दिन रुकने के लिए बोला।अब पापा की मृत्यु को छह महीने हो गए थे । सोमेश एक दिन की छुट्टी लेकर गांव गया उसने अम्मा को अपने और सोनी के बारे में बताया थोड़ा बहुत समझाने के बाद मां मान गई और बंबई में कोर्ट में शादी कर लो ऐसा कहा, सोमेश ने पूछा आप सब शादी में आओगे तो सबने साफ तौर पर मना कर दिया।
मां बोली अभी किसी का मन अच्छा नहीं है। सोमेश सोनी की शादी कोर्ट में हो गई,एक दो मित्र और सोनी के घरवाले,बस इतने ही लोग थे। घर से किसी का कोई फोन भी नहीं आया था। दोनों को बहुत बुरा लगा पर सोमेश ने कहा कि वे सब यहां ना होते हुए भी मन से हमारे साथ हैंऔर हमें आशीर्वाद दे रहे हैं , जल्दी ही हम गांव जाकर प्रत्यक्ष में उनका आशीर्वाद लेंगे। सोमेश सोनी ने एक कमरे के घर और थोडे बहुत सामान के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत की थी, दोनों संतोषी स्वभाव के थे और थोडे में ही खुश थे।
शादी के बाद जब दोनों गांव गये तो सभी ने उनका अच्छे से स्वागत किया,, मां और भाभी सोनी से दूर दूर ही रहीं। सोनी समझदार थी उसे ये बहुत सहज लगा क्योंकि वो मां और भाभी की पंसद की बहू नहीं थी। सोमेश ने भी ऐसा ही सोचकर मन को समझा लिया था।दो दिन रुककर जब दोनों वापस चले तो भाभी ने ताना देने के सुर में सोमेश को कहा देवर जी नई की नवहाली में अम्मा और हम सब को भूल न जाना
।जब जरूरत पड़े तो पैसे जरुर भिजवा देना।देख तो रहे हो खाने वाले मुंह इत्ते सारे और कमाने वाला एक है उस पर अम्मा की दवाई का खर्चा अलग से है। सोनी भाभी का हाथ अपने हाथों में लेकर बोली भाभी हम आपसे अलग थोड़ी ना है आपको जब भी पैसे की जरूरत पड़े, फोन करिएगा। सोमेश ने रात को ही मां को पैसे दिए थे।
बंबई पहुंच कर दोनों अपने अपने आफिस और घर के कामों में व्यस्त हो गए। घर से किसी का फोन नहीं आया था । बंबई पहुंच कर सोमेश ने अपने पहुंचने का मैसेज भैया को दे दिया था।लगभग पंद्रह दिन बाद घर के पते पर एक रजिस्ट्री आई । सोमेश उसे अपने आफिस ले गया क्योंकि सुबह पढ़ने का समय नहीं था। आफिस जाकर सबसे पहले उसने लिफाफा खोला , उत्सुकता इस बात की थी कि गांव से उसे रजिस्ट्री किसने भेजी।
लिफाफा खोला तो अंदर भैया की दो लाइन की चिट्ठी थी जिसमें लिखा था ,कि इन कागजातों पर अपने हस्ताक्षर कर के लौटती डाक से भेजो ऐसा अम्मा का कहना है। कोई कुशल क्षेम न तो पूछी गई थी और न ही वहां की लिखी गई थी। सोमेश को आश्चर्य का धक्का लगा उसने कागजात देखे तो जमीन के कागजात थे पर उन पर पापा के हस्ताक्षर की जगह किसी रामदयाल जी के हस्ताक्षर थे। उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने भैया को फ़ोन लगाया पर भैया ने फ़ोन नहीं उठाया।
फिर उसने सोनी को फोन कर के बताया उस बिचारी की समझ कुछ नहीं आया। सोमेश की समझ नहीं आया उसने पेपर वैसे ही रख दिया और भाभी को फोन लगाया पर उन्होंने भी नहीं उठाया। आखिर में वो अपने आफिस के काम की तरफ मुड़ा। पर उसका मन न लगने के कारण उसने काम छोड़ दिया और अचानक उसे बाबा जी की याद आई वो मेरे बारे में इतना कैसे जानते हैं,वे किस संकट के बारे में बात कर रहे थे। बंबई आकर मिलने की बात कह रहे थे। कहीं ये कागजात उसी संकट की शुरुआत तो नहीं है। ये कैसे पेपर हैं इसके बारे में अम्मा और भैया ने कभी कुछ भी नहीं बताया, भैया और भाभी दोनों फोन क्यों नहीं उठा रहे हैं।
किसी तरह से उसका दिन कटा जब घर पहुंचा तो सोनी घर पहुंच चुकी थी । सोनी ने सोमेश को देखा तो चिंता में पड़ गई कि ऐसा क्या हुआ जो सोमेश का चेहरा इतना उतर गया। उसने सोमेश को पानी दिया और उसकी तरफ प्यार से देखा और बोली इतनी चिंता क्यों कर रहे हो जरूर कोई ऐसी बात हुई होगी जो भैया ने इतनी जल्दी में पेपर हस्ताक्षर कर के मंगाए हैं।हम कल ही हस्ताक्षर करके वापस भेज देंगे।
सोमेश ने प्यार से सोनी की तरफ देखा और सोचा कितनी भोली है ये। उसने कहा नहीं सोनी जबतक भैया से बात नहीं कर लेता तबतक पेपर्स पर हस्ताक्षर नहीं करुंगा। अगले दिन उसने सुबह फिर भैया को फ़ोन किया, भैया ने झुंझलाते हुए फोन उठाया और कहा, क्या है सोमू कल से परेशान कर रहा है जो पेपर भेजे थे उसमें हस्ताक्षर कर और वापस भेज दे इतनी सी बात के लिए क्यों परेशान कर रहा है……भैया सुनिए तो सोमेश के कहने से पहले ही भैया ने फ़ोन काट दिया,…….. क्रमशः
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निगाहें (भाग 4)
निगाहें (भाग 2)
सीमा बाकरे
स्वरचित रचना