नज़र बदलो, नजारे बदल जाऐगें – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

   “ हैलो, हैलो , कैसी हो दीदी?” मोबाईल पर छोटी बहन शवेता का नाम देखकर मंजुला ने अनमने से होकर फोन उठाया, “ ठीक हूं बहना, जो समय बीत जाए, वो ही अच्छा”।

       हर समय खुश रहने वाली और हर पल का आनंद लेने वाली मंजुला दीदी के मुख से ऐसी बात सुनकर शवेता बहुत हैरान हुई। 

    “ क्या बात है दीदी, घर में सब ठीक तो है, जीजा जी कैसे है”। “सब ठीक है छोटी, मैं जरा रसोई निपटा लूं , फिर आराम से बैठकर बातें करेगें”। यह कहकर मंजुला ने फोन रख दिया।

     काम कहां, उसका तो आज बिस्तर से उठने का मन ही नहीं कर रहा थी। जब से कैनेडा से उदय का फोन आया है, उसकी तो रातों की नींद और दिन का चैन हराम हो गया है। पति आनंद थक चुके है समझा समझा कर, लेकिन वो अपने मन को कैसे समझाए। 

         उदय और मायरा दो बच्चे है उसके। छोटी होने के बाद भी मायरा की शादी पहले हो गई और वो अपने घर में सुखी है। उदय को लेकर शुरू से ही मंजुला ने बहुत बड़े बड़े सपने देखे है। हर मां बाप के होते है कोई नई बात नहीं ।

       चार साल पहले जब उदय को कंपनी की तरफ से  कैनेडा जाने का मौका मिला तो मंजुला को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई।उसकी तो शुरू से ही इच्छा थी कि उदय विदेश में सैटल हो ताकि वो दोनों भी बाद में वहीं जा कर रह सके। 

       अक्सर लोगों को वहां का रहन सहन बहुत लुभाता है। चलो अपनी अपनी चाहत। पढ़ा लिखा कैनेडा में नौकरी और अच्छे घर का हैंडसम लड़का हो तो रिशते आना तो स्वाभाविक ही है। एक तो उदय भी नहीं मान रहा था , दूसरा उँची नाक वाली मजुंला में भी पहले से ही अकड़ बहुत थी और अब तो कहने ही क्या। हर लड़की में उसी कोई न कोई कमी दिख जाती।

            किसी का रंग दबा हुआ है, तो कोई थोड़ी मोटी है तो कोई सींख सी पतली है, या फिर घर बार अच्छा नहीं तो किसी के पढ़ाई में ज्यादा अंक नहीं। पता नहीं कैसी कैसी कमियां ढ़ूढ़ लेती। और नहीं तो कहती “ ठीक है परतुं मुझे नहीं जंची”।उदय के पिता राकेश जी ने कई बार समझाया कि बेटियां सब की बराबर होती है, क्यूं फालतू में नुक्स निकालती रहती हो और बात आगे बढ़ाती हो, जबकि उदय ने तो अभी शादी के लिए हाँ भी नहीं की।

           “ अरे तो क्या हुआ, तीस का होने वाला है, बहू तो लानी ही है, जो लड़की मुझे जचं गई तो मैं उदय को भी मना लूंगी, बेटा तो मेरा ही है”।

     गाज तो उस दिन गिरी जब एक सुबह उदय ने वहीं पर कोर्ट मैरिज कर लेने की खबर सुनाई। अपनी माँ के स्वभाव को अच्छे से जानता था उदय तो चाश्नी लिपटे शब्दों में कुछ इधर उधर की बातों के बाद उसने कहा,” ममी, आप कब से कह रहे हो शादी करने के लिए, तो मैनें आपकी इच्छा पूरी कर दी, कर ली शादी , रोबीना है उसका नाम, यहीं की है। आपको जरूर पंसद आएगी और यहां सैटल होने में भी आसानी रहेगी।”

        ये कह कर उदय ने अपनी शादी की कुछ पिक्स भेज दी और ये भी कहा कि अगले महीने वो दोनों आएगें तो आप अपने रस्मों रिवाज पूरे कर लेना। बिना मंजुला को बोलने का कोई मौका दिए उदय ने सारी बात एकदम से कह दी। यह सब सुनते ही फोन मंजुला के हाथ से छूट ही जाता अगर राकेश बढ़ कर थाम न लेते, पास बैठे थे

और फोन भी स्पीकर पर था।उदय की दादी जिंदा थी और वहीं रहती थी, जब उसे ये पता चला तो वो तो बहुत खुश हुई और अपने जमाने का गीत गाने लगी जो कि लड़कों की शादी पर कई जगह गाया जाता है” मत्थे ते चमकन वाल मेरे बनड़े दे”।

   राकेश ने बेटे से  दो चार बातें करके अपनी खुशी जताई और फोन बंद कर दिया। इस बात को एक हफ्ता हो गया। मंजुला की हालत तो बीमारों सी हुई पड़ी है। मायरा को भी बता दिया राकेश ने, वो भी खुश। बात तो फैल ही जाती है और फिर दुल्हा दुल्हन का स्वागत सत्कार , बहुत सी तैयारियां भी तो करनी है।

      शवेता मंजुला की छोटी बहन थी, दोनों बहनें दोस्तों समान थी, सारी बातें सांझा करती थी। जब उसे मायरा से उदय की शादी का  पता चला तो उसने मजुलां को उसी समय फोन किया था। लेकिन मंजुला किसी से भी ढ़ग से बात नहीं कर रही थी। 

         शवेता ने मंजुला के घर आने का प्रोग्राम बनाया और दो घंटे का सफर करके बिना बताए ही पहुंच गई। जीजा जी से उसकी बात हो गई थी, उन्हें पता था कि शवेता ही उसे समझा सकती है। मायरा की भी वो सुनने वाली थी। उसका कहना था कि ये नए जमाने के लोग क्या जाने रिशते क्या होते है।

    बहन को देखकर मंजुला की रूलाई फूट पड़ी,”हाय राम, मेरी तो तकदीर ही फूट गई , जो ऐसी बहू मेरे घर आई”,

 “ कैसी बहू” शवेता ने सवाल किया।

“ वही रोबीना, जिससे तेरे भांजे ने शादी कर ली, मैं नहीं मानती इस शादी को” मंजुला गुस्से में बोली

“  दीदी, आपके मानने न मानने से क्या होगा, शादी तो हो चुकी। और वैसे भी किसी से बिना मिले, देखे, परखे हम किसी के प्रति कैसे अपनी राय बना सकते है”। 

      लेकिन मजुंला का मूड ठीक नहीं हुआ। नियत समय पर बहू, बेटा आ गए। सलवार सूट और दुपट्टे के साथ   जब रोबीना ने उदय के साथ माता पिता के पांव छूए तो कहीं से नहीं लगा कि वो किसी और परिवेश से है। समझने लायक हिंदी बोल लेती थी और रसोई के कामों में भी रूचि दिखा कर रोबीना ने जल्दी ही सबका मन मोह लिया। 

         रिसेप्शन पार्टी पर भारतीय दुल्हन के रूप में गोरी चिट्टी रोबिना किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। मंजुला तो बहू बेटे पर बलिहारी जा रही थी तभी शवेता ने चुटकी लेते हुए कान में कहा ,”  दीदी अब तो नहीं कहोगी, हाय राम, मेरी तो तकदीर——। और आगे के शब्द उसके मुंह में रह गए क्योंकि मजुंला ने मुस्कराते हुए उसके मुँह पर हाथ जो रख दिया था।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य- हाय राम! मेरी तो तकदीर ही फूट गई, जो ऐसी बहू आई-

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