विनीत अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। वह बचपन से ही बेहद होनहार और मेधावी छात्र रहा था। विनीत के हर एक काम में उसके माता-पिता का साथ होता, और उसकी हर सफलता पर वे खुद को बेहद भाग्यशाली मानते। विनीत का सपना था कि वह अपनी उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाए, और इस ख्वाब को पूरा करने के लिए उसने दिन-रात मेहनत की। उसने अपने माता-पिता से भी इस इच्छा का जिक्र किया था कि वह अमेरिका जाकर पढ़ना चाहता है। उसकी माँ, ममता जी, को पहले तो यह बात कुछ अटपटी लगी, लेकिन फिर पिता सतीश जी ने उसे समझाया, “देखो, ममता, हमारा बेटा इतना मेहनती है, और आज के समय में अच्छी शिक्षा के लिए विदेश जाना कई बच्चों का सपना है। हमें इसे रोकना नहीं चाहिए। वह पढ़ाई पूरी करके हमारे पास वापस आ जाएगा।”
विनीत ने भी अपने माता-पिता से वादा किया था कि वह पढ़ाई पूरी करते ही वापस आएगा और उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा। उसका कहना था कि वह विदेश जाकर भी भारत के संस्कारों को नहीं भूलेगा और माँ-बाप का आदर-सम्मान हमेशा रखेगा। माता-पिता उसकी बातों पर बहुत खुश थे। विनीत को विदेश भेजने के लिए उन्होंने अपने जीवन की तमाम पूंजी खर्च कर दी, जो उन्होंने अपने बुढ़ापे के लिए जोड़ रखी थी। आखिर, वह उनका इकलौता बेटा था, और उसकी हर खुशी उन्हें अपने से भी ज्यादा प्यारी थी।
विदेश जाने के बाद विनीत शुरू-शुरू में अपने माता-पिता को लगातार पत्र लिखा करता था। उनके सुख-दुख, सेहत और गाँव की हर छोटी-बड़ी बातों का ख्याल रखता। उसका हर खत जैसे उनके जीवन में एक नई ऊर्जा और उम्मीद का संचार कर देता। माता-पिता भी उसकी खुशियों में शामिल रहते और उसे देखकर गर्व महसूस करते थे। लेकिन धीरे-धीरे विनीत के पत्रों की संख्या घटने लगी। पहले हर हफ्ते खत आता, फिर महीने में एक-दो बार, और फिर महीनों तक कोई पत्र नहीं आता। माता-पिता को कुछ चिंता तो होने लगी, लेकिन वे यह सोचकर खुद को दिलासा देते रहे कि वह पढ़ाई में व्यस्त होगा, इसलिए पत्र भेजने का समय नहीं मिल पा रहा होगा।
दिन, हफ्ते, महीने बीतते गए और विनीत से बातचीत का सिलसिला और भी कमजोर होता गया। माता-पिता अब धीरे-धीरे चिंता में घिरने लगे थे, और विनीत के बारे में कुछ खबर पाने के लिए उत्सुक रहते थे। एक दिन जब डाकिया दरवाजे पर आया और उसने एक बड़ा-सा लिफाफा उनके हाथ में दिया, तो वे बड़े उत्सुकता से उस लिफाफे को खोलने लगे, यह सोचकर कि शायद विनीत ने अपनी पढ़ाई खत्म कर ली होगी और वह वापस लौटने वाला होगा। लेकिन लिफाफा खोलते ही वे एक अजीब झटके में डूब गए।
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लिफाफे में कुछ तस्वीरें थीं, जिसमें विनीत ने एक विदेशी लड़की के साथ शादी कर ली थी। उन तस्वीरों में विनीत और उसकी दुल्हन दोनों बेहद खुश दिख रहे थे। माता-पिता के दिल को ऐसा लगा मानो किसी ने छुरा घोंप दिया हो। तस्वीरों के साथ एक खत भी था, जिसमें विनीत ने लिखा था –
“पिताजी, माँ, मैं जानता हूँ कि मैंने आपको बिना बताए ही यह फैसला लिया, लेकिन मुझे यकीन है कि आप मुझे समझेंगे। मेरी यह पत्नी, जिसका नाम ऐलिस है, मेरे लिए बहुत खास है। हम दोनों आपसे आशीर्वाद लेने आ रहे हैं, लेकिन केवल पांच दिनों के लिए। हमें वापस लौटना है और कुछ जगहें भी घूमनी हैं। मैं एक निवेदन भी करना चाहता हूँ कि हमारे लिए किसी होटल में ठहरने का बंदोबस्त हो सके तो बेहतर रहेगा। और हाँ, पैसों की ज़रा भी चिंता मत कीजिएगा, हम अपने खर्च का प्रबंध कर लेंगे। आपका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है।”
इस पत्र ने उनके दिल को और भी तोड़ दिया। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका बेटा, जो विदेश जाकर भी भारतीय मूल्यों को नहीं भूलने का वादा करके गया था, उन्हें इस तरह से अकेला छोड़ देगा। माता-पिता ने अपनी पूरी जमा पूंजी विनीत की पढ़ाई पर लगा दी थी, यह सोचकर कि वह विदेश में शिक्षा लेकर उनके लिए गौरव का कारण बनेगा और उनका सहारा बनेगा। लेकिन अब ऐसा लग रहा था मानो उनकी सारी मेहनत, सारी भावनाएं बर्बाद हो गईं हों।
सतीश जी ने एक गहरी सांस ली, उनके चेहरे पर एक गहरी उदासी थी। उन्होंने पत्नी ममता की ओर देखा, जो कि बेहद आहत थीं। उनकी आँखों में आँसू थे। उनके लिए यह सच स्वीकारना बहुत मुश्किल था कि उनका बेटा अब उनसे इतना दूर हो गया था कि वह उनके साथ नहीं, बल्कि होटल में ठहरना चाहता था। ऐसा लगा जैसे उनके बेटे के साथ उनका रिश्ता कहीं खो गया हो।
सतीश जी ने अपने दिल को संभालते हुए बेटे को एक तार भेजा, जिसमें उन्होंने लिखा –
“तुम्हारे खत से हमें जितना धक्का लगा, उसे बयां नहीं कर सकते। हमारे सपने और उम्मीदें कब की बिखर चुकी हैं। इस दर्द को कम करने के लिए हम कल ही तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। हमें अब किसी का इंतजार भी नहीं है। और हाँ, तुम पुराने रिश्तों को निभा नहीं पाए, पर हमें आशा है कि तुम अपने नए रिश्तों को जीवन भर निभाने का प्रयास जरूर करोगे।”
यह संदेश लिखते हुए सतीश जी के दिल पर एक भारी बोझ था, लेकिन उन्होंने अपने बेटे को इस तरह से छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने महसूस किया कि अब वह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक टूटे हुए दिल के पिता हैं। ममता जी का मन भी पूरी तरह से टूट चुका था, और उन्होंने सोचा कि शायद अब विनीत उनके जीवन में कभी वापस नहीं आएगा।
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इसके बाद दोनों तीर्थ यात्रा पर निकल गए और अपनी बाकी जिंदगी में बेटे की कोई उम्मीद नहीं रखी। उनके मन में बस यह दुआ थी कि विनीत अपने नए जीवन में खुश रहे, लेकिन वे खुद को उसके बिना जीने की आदत डालने लगे थे।
समय बीतता गया और दोनों ने अपनी जिंदगी के बचे हुए पल एक-दूसरे के साथ बिताए, परंतु उनकी जिंदगी में अब पहले जैसी उमंग और खुशी नहीं रही। उनके घर का आंगन अब वीरान हो गया था, जहाँ कभी विनीत की हंसी और उसके बचपन की यादें गूंजा करती थीं।
विनीत के जाने के बाद उनके मन में कभी-कभी यह सवाल उठता था कि क्या उन्होंने उसे गलत संस्कार दिए थे, या फिर वह उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया। लेकिन उनके मन में इस बात की तसल्ली थी कि उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया और अपने बेटे के लिए अपना सब कुछ कुर्बान किया। उन्होंने अपने जीते जी कभी उससे संपर्क नहीं किया, न ही उससे कोई शिकायत की।
इस तरह से इस पिता-माता ने अपने जीवन के बाकी समय को बेटे की यादों के साथ बिताया, लेकिन विनीत से जुड़ी उनकी उम्मीदें अब एक भुलाए हुए अतीत का हिस्सा बन गई थीं।
लेखिका : रिद्धिमा पटेल