अस्ताचलगामी सूर्य की ओर मुँह किये एक आदमी समुद्र के किनारे दोंनों हाथ ऊपर को उठाये खड़ा था मानो ताजी हवा ले रहा हो… तभी अचानक वह पानी में कूद गया और डूबने लगा। कुछ लोग जो तैरना जानते थे एकदम से पानी में कूद पड़े और थोड़ी देर में ही उस व्यक्ति को कंधे पर लादे बाहर आ गये।
भीड़ हटाकर डूबने वाले व्यक्ति को उल्टा लिटाकर उसके पेट का पानी निकाला गया।जब वह होश में आ गया तो सब उससे समुद्र में कूदने का कारण पूँछने लगे। पर वह आदमी रोता जा रहा था और कह रहा था –
“मुझे क्यों बचाया? मर जाने देते, मैं अब जिन्दगी से थक चुका हूँँ। मैं जिंदा नहीं रहना चाहता। मुझे मरना ही होगा ।”
वहाँ भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। सब ही उस आदमी को अपनी – अपनी तरह से समझा रहे थे और उसकी परेशानी का कारण पूँछ रहे थे। इसी समय वहाँ मॉर्निंग वॉक करते हुए शहर के जिलाधकारी मि.सिन्हा आ गये और जब उन्हें उस आदमी के बारे में पता लगा तो वे भीड़ को हटाकर उस आदमी से पास गये। जब सिन्हा सा. को उस आदमी का समुद्र में कूदने के बारे में पता लगा तो वे उसका हाथ पकड़कर ले आये और अपनी गाड़ी में बिठाकर पहले उसे पानी पिलाया फिर उसकी पीठ सहलाकर आराम से बिठाया और गाड़ी एक रेस्टोरेंट के सामने रोककर बोले …
” काका… आइये”। वह आदमी भी अब यंत्र चालित सिन्हा सा.के साथ अंदर चला गया।
अंदर जाकर एक टेबल पर उस आदमी को बिठाया फिर खुद बैठकर चाय और नाश्ता का ऑर्डर दे दिया। वह आदमी अब तक चुप ही बैठा था, पर अब उसकी आँखों से टप-टप आँसू टपकने लगे थे। तभी सिन्हा सा.ने उठकर उसे शांत कराया और चाय पिलाई। अपने हाथों से उसे नाश्ता भी कराया। जब वह थोड़ा शांत और आश्वस्त हुआ तब सिन्हा सा.ने कहा..
“काका!.. आज से आप मेरे काका हुए और अब आज से आप मेरे घर पर और मेरे परिवार का हिस्सा बनकर ही रहेंगे। मैं आपसे आपकी पिछली जिन्दगी के बारे में कुछ नहीं पूँछूगा यदि आप न बतलाना चाहें तो…पर मैं यह तो जरूर कहूँगा कि आत्महत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं है। ईश्वर ने जीवन दिया है तो वही जीवन लेने का भी अधिकारी है…परंतु हम क्यों उस परमात्मा के काम में खलल डालें ?आप को आज से मैंने अपने परिवार के बुजु़र्ग का दर्जा दिया है तो आशा है आप भी इस रिश्ते का निर्वहन करने में मुझे निराश नहीं करेंगे ।”
यह कहकर वे अपने काका का हाथ पकड़कर गाड़ी में बैठ गये ।यह देख-सुन कर वे बुजुर्ग खुद को न रोक सके उन्होंने सिन्हा सा.को गले लगा आशीर्वादों की झड़ी लगा दी। जब सिन्हा सा.ने गाड़ी स्टार्ट की तब वे बोले…
“बेटा! मैं नहीं जानता था कि आज भी दुनियाँ में तुम जैसे भले लोग भी हैं। मैं रिटायर्ड टीचर हूँ और मेरा मकान भी है जो मैंने और मेरी पत्नी ने पाई – पाई जोड़कर बनबाया था। मेरी पत्नी भी दो महिने पहले ईश्वर के पास चली गई। मेरे दो बेटे भी हैं ….. जिन्हें हमने बहुत मेहनत से इस लायक बनाया कि वे दोनों आज विदेश में अच्छी जॉब में हैं और सपरिवार खुश हैं। अब वे दोनों ही वापिस नहीं आना चाहते हैं।
उन्होंने अपनी माँ से धोखे से मकान के कागज लेकर वहीं विदेश से एक दलाल से मकान का सौदा भी कर दिया… बगैर हमको बताये। हमें तो तब पता चला जब वह दलाल हमारा मकान खाली कराने आया। इसी दुख में पत्नी भी चली गई।तब भी वे दोनों नहीं आये। अब तो वे फोन भी नहीं करते हैं ..साफ कह दिया है आप अब अपना खुद देखें ..हमें परेशान न करें। मेरे पास न तो पैसा है अब और न रहने का ठिकाना। दो दिन बाद ही मुझे आज चाय नसीब हुई है ।”
यह कहकर वे फिर आँसू पौंछने लगे।
सिन्हा सा.ने उनके कंधे को सहलाकर कहा.. “आप परेशान न हों।आप हमारे घर ही रहेंगे और आज से आप पिछली जिन्दगी बिल्कुल भूलकर आगे की नई ज़िन्दगी शुरू करेंगे ।”
घर पहुँचकर सिन्हा सा.ने अपनी बीबी- बच्चों को बुलाकर उनका परिचय अपने गाँव के ही काका के रूप में कराया।वह आदमी आँसू भरी आँखों से सब देखता रहा कुछ न बोल सका ।बस यही सोचता रहा प्रभु की लीला भी खूब है सगों ने बाहर निकाला गैरों ने गले लगाया।ईश्वर तू महान् है ,तेरा बहुत धन्यवाद जो तूने मुझे नया परिवार दिया । वाह रे किस्मत के खेल…
…..कुमुद चतुर्वेदी ।