नसीहत – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

जैसे जैसे शाम ढल रही थी रमेश की तेवरी चढ़ती जा रही थी,चढ़े भी क्यों ना अभी तक अपने ही मन मुताबिक तो सब कुछ कराते  आये है फिर भला कैसे बदल सकते है खुद को वे सोचते हैं सब कुछ पहले जैसा ही होगा, शायद वो ये भूल गये कि वक्त बदल गया तब बात कुछ और थी बच्चे छोटे थे और लोगों पर उसका ज़ोर था। अब बच्चे बड़े हो गए सब कुछ बदल रहा  ,जरूरी नही कि हर काम उसके मन का हो ,अरे भाई उनकी अपनी भी तो जिंदगी है जिसे वो अपनी तरह से जीना चाहते हैं।

और तब और जब शादी हो गई है , भाई  कोई बाहर नौकरी कर रहा और कोई नौकरी के लिए प्रयासरत है।

अब जो प्रयासरत है उसकी तो समझ में आता है कि शायद जवाब तलब कम करे पर जिसकी शादी हो गई  उसके पीछे भी भागना तो कहीं की समझदारी नही है। वो इस लिए कि भाई उसे तुम्हारे साथ साथ अपने जीवन साथी के मन का भी तो करना है।

बस इतनी सी बात जाने क्यों उनको समझ में नही आती।

हुआ यूं कि भाई दूज का त्योहार था ऐसे में बेटा अपनी पत्नी के साथ उसके घर गया था । अब वहां से खाली होगा तभी तो आयेगा । भाई वहां भी चार लोग है बहुत दिनों के बाद मिले है सब मिल बैठ कर बातें करेंगे  खायेंगे पियेंगे हंसी ठिठौली करेंगे तब तो आयेंगे ।ऐसे में अपनी पत्नी से  कह भी तो नही सकता कि चलो आखिर वो भी तो काफी महीनों बाद अपने मायके आई है ।पर इधर घर में आई बहनों को छोड़ कर 

 पिता जी का पारा हाई है  फोन पर फोन किये जा रहे हैं।

ऐसे में बेचारा बेटा बुरा फंसा है ना पिता जी का फोन उठा पा  रहा है ना पत्नी से चलने को कह पा रहा है। खामोश बैठा हुआ है 

 इधर पापा की बढ़ती झुझलाहट को देखकर बेटी से रहा नही गया तो बोल पड़ी ” क्यों बार बार  फोन करके परेशान कर रहें हैं आखिर भाभी अपने घर गई हैं  जब खाली होगी तो आ आयेंगी क्या उनको थोड़ी देर अपनों के साथ रहने का हक नही है।”

सच कहूं तो ये सुनकर वहां बैठे सभी लोग स्तब्ध रह गए कि आज के बच्चे कितने समझदार और सुलझे हुए हैं।

आग में घी डालने की जगह ठंडा करने का काम करते हैं।

 उसके सूझबूझ की सराहना करते हुए जहाँ सभी ने गले लगा लिया।

वही पिता जी को भी अहसास हुआ कि हां वो गलत थे । उन्हें हर समय दखल अंदाजी नहीं करनी  चाहिए क्योंकि उनकी भी अपनी लाइफ है।

और उसी समय प्रण किया ।कि आगे से ऐसी गलती नही करेंगे।

और तो और खुद भी आगे बढ़ कर बेटी को गले लगाते हुए बोले  कौन कहता है सीख बड़ों से ही मिलती है।कभी कभी बच्चे भी बातों बातों में नसीहत दे जाते है।

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना 

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज

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