ननद (कभी सहेली कभी बहन कभी दुश्मन) – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

उमा जी के गाड़ी में बैठते ही फोन आ गया, “ भाभी कहां हैं? चल दी की नहीं? कब तक पहुंचेंगी”? उमा जी

“बाईजी ,चल दी हूँ, अब ट्रेन जितना समय लगाती है, उतना तो लगाएगी ही, वरना मेरा मन तो है कि उड़कर

पहुंच जाऊं”। यह कहकर खिलखिलाकर हंस पड़ी। वहां से आवाज़ आई “ हां भाभी, बस आ जाओ उड़कर”।

उमा जी अपने चिर परिचित अंदाज़ में शांत सहज हो बैठ गई, फोन देखते देखते कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो

गई। पैंतीस वर्ष हो गए, उन बातों को जब उमा जी का बारात आई थी, दरवाजे पर। पड़ोस की एक सहेली ने

आकर बताया, यार देहाती से लग रही बारात तो,तू कैसे सामंजस्य बैठाएगी। ये सुनते ही, मुंह उतर गया था

उमा का, संशय तो उसे पहले ही था जब पता चला कि गांव में शादी हो रही है, वो ठहरी शहर में पली पढ़ी, वो

भी पंजाबियों के मोहल्ले की, जो बाकी बिरादरियों से थोड़ा आधुनिक ही थे और अब ससुराल ऐसा है क्या!!

शादी की रस्मों रिवाज़ हुए और उमा पहुंच गई अपने नए घर। वहां पहुंच कर उन्हें सब ठीक ही लगा, न जाने

क्यों सहेली ऐसी बातें बना रही थी। आखिर उस जमाने के अपने गांव के इकलौते और पहले डॉक्टर थे, उनके

पति। हां, बोलते थोड़ा कम ही थे, तीन बहनों के अकेले भाई जो ठहरे, वो उन्हें बोलने का मौका ही कहां देती

थी।

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दो ननदों की शादी हो चुकी थी, जिनमें से एक उमा की हम-उम्र, जिससे उन्हें लग रहा था अच्छी पटेगी। शादी

के बाद कुछ दिन रहकर बड़ी ननदें अपने अपने ससुराल चली गई। घर में रह गए छोटी ननद, उमा और सास

ससुर, क्योंकि डॉ. साहब की पोस्टिंग शहर में थी और वे सप्ताहांत ही आते थे। उस दौरान भी उनका अलग ही

रूआब रहता था, अपने घर-परिवार और गांव के इकलौते डॉक्टर जो थे। जब भी घर में कोई आता,छोटी ननद

उमा को उनका घर से रिश्ता , पसंद नापसन्द बताती, उसी हिसाब से उमा व्यवहार करती। इसी तरह उमा का

मन छोटी ननद के साथ चुहल करते करते जल्दी ही लग गया था और वो दोनों कच्ची पक्की सहेली बन ही

गई थी।

उसके बाद का सबसे पहले जो खट्टा अनुभव, उमा के ज़हन में आया। उमा अपनी छोटी ननद को , उसके नाम

से बुलाती थी, विमल। एक दिन दोपहर के समय, कुछ पड़ोस की चाची-ताई आई हुई थी। उमा चाय लेकर गई,

सबके पैर छूए और चाय देकर जी घालकर बोली, विमल तू भी चाय ले ले। इतने में विमल “बेशक भाई मुझसे

बड़े हैं पर रिश्ते में ननद हूँ आपकी, इस हिसाब से मान बड़ा है मेरा, सम्मान से बाईजी कहते हैं हमारे यहां, नाम

से न बुलाया करो। भाई की बहुत लाडली हूँ मैं।” सबके सामने नई नवेली उमा को महसूस तो हुआ, पर मुस्कुरा

कर चलते बनना ही ठीक लगा। कानों में ताई सास की आवाज़ भी पड़ी, उनकी सास को कहते बहू-बेटी दोनों

को लगाम दो, वरना रिश्तों में खिंचाव आते कहां समय लगता है, डॉक्टर की मां।

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इसी तरह जब एक बार बार सासू मां मायके चली गई, तो छोटी बाईजी “भाभी दूध तो हम निकाल देंगे भैंस

का,पर गोबर के उपले तो आप ही बनाओगी, आपके रहते हम उपले और बर्तनों का काम नहीं करेंगे,हमारा

मान कम होता है। वो तो हम मां का काम का भार कम करने को बना देते थे पर अब तो आप आ गई हो,

संभालो अपना घर- बार।अब शहरी बहुरिया उमा को आए न, गोबर के उपले बनाने। जैसे तैसे कर बाईजी ने

बहुत मनुहार पर बनाए । पर अब सासू मां के आने के बाद भी रोज की जिद्द हो गई, बाईजी की। सासू मां

सुलझी हुई पर शांत महिला, एक तरफ बेटी का मोह कि कुछ दिन की मेहमान है, फिर तो ब्याहकर चली ही

जाएगी और बहू जिस माहौल में रही थी, उससे भी वो अनजान न थी। सो खुद ही चल देती आखिर, ऐसे काम

करने।

पर ये तो उमा और विमल की कभी न खत्म होने वाली जंग थी, हर बात में विमल की बराबरी और फिर घर

सिर पर उठा लेना। कभी गलती से डॉ साहब उन दोनों को बाजार ले जाते तो पहले ही उनके साथ गाड़ी की

अगली सीट पर बैठ जाती, कुछ दिलाते तो बराबर लेती। उमा कहती कुछ न, पर अब वो उनकी एक नंबर की

दुश्मन और प्रतिद्वंदी थी घर में, जो घर के बारे में सब उमा से बेहतर जानती थी और जताती भी थी।

आखिर एक अच्छा रिश्ता आया, और बाईजी की शादी तय हो गई। अब दोनों साथ में बाज़ारी करती, गहने

बनवाती, शादी की अन्य तैयारियां करतीं और ख़ूब खिलखिलाती। विमल अपनी बहनों से ज़्यादा उमा पर

भरोसा करती। उमा की अपनी शादी की यादें ताज़ा हो गई, जब वो और उसकी बहन खरीददारी करते और

गोलगप्पे खाते मज़े करते। अब बाईजी, ननद नहीं बल्कि बहन थी उनकी।

शादी कर अब सारी ननदें अपने अपने घर चली गई। उमा के दो बच्चे हो गए। डॉ साहब की जिम्मेदारियां पूरी

हुई तो उमा बच्चों की पढ़ाई खातिर सास ससुर के साथ शहर में रहने लगी।

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लेकिन ये क्या !!छोटी बाईजी भी ननदोई जी के साथ उसी मोहल्ले में रहने लगी। कभी कभी उमा को लगता

घुसी ही रहती है घर में, उनका घोंसला बनने ही नहीं दे रही है, डॉ साहब तो हमेशा की तरह चुप और मांजी का

तो जी ही खुश हो जाता बेटी को देखकर, और घर में उमा सेवा चाकरी के लिए, उसे लगता उस तरह ये हर

हफ्ते या रोज़ाना आएगी तो मेरी और मांजी की कैसे बनेगी!!

पर हां ये ज़रूर था कि अब कुछ फर्क आ गया था बाईजी में और कुछ उमा भी समझ गई थी उनका स्वभाव

की चंचल और मुंहफट है पर दिल की बुरी नहीं है। अब जब भी उमा की या घर में किसी की तबीयत खराब

होती, विमल बिना कहे आ जाती मदद करने। अपने और उमा के बच्चों को साथ में शाम पार्क ले जाती, तब

तक उमा कुछ घर का काम निपटा लेती, कुछ डॉ साहब के साथ समय बिता लेती। उमा को भी जब कुछ बुरा

लगता, कभी चुप खींच जाती, कभी कह जाती।

तब जब सासू मां का आंखों का ऑपरेशन हुआ और उसी समय ससुर जी को हृदयाघात हो गया तो कितनी

मदद की थी बाईजी ने, बच्चों को स्कूल भेजते ही आ जाती। चाय – पानी, मां बाबूजी की दवाई, नहलाना

धुलाना , बच्चों का होमवर्क सब कराती। उमा भी शाम की सब्जी बच्चों के हाथ बनाकर ही भेज देती, कहती

“आप कितना करोगी बाईजी दिन रात, चार लोगों की और फालतू बनाने में कितनी देर लगती है। विमल भी

हर आने जाने वाले के सामने भाभी की बड़ाई करती न थकती। अब उमा बाईजी की बहन, सखी, सहेली,

हमराज थी। कभी कभी खट्टी मीठी नौकझोंक हो जाती, पर दोनों ही दिल से न लगाती।

इसका सबसे बड़ा श्रेय उमा अपनी सास को देती जो हमेशा कहती, उमा ने आकर घर संभाल लिया, बड़ी

समझदार है मेरी बहू, मैने तो गंगाजी में जौ बोए थे जो साक्षात् लक्ष्मी सी बहू आई है। घर में कितनी तरक्की

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हुई है , इसके आने के बाद।

बल्कि जब उमा जी के बेटे की शादी थी तो छोटी बाईजी बोली “मां अब तो घर में छोटी उमा आ जाएगी”। तब

भी सास का कहना था, “न,मेरी उमा जैसी तो कोई न आ सके, जो तुझे झेल गई और हंस पड़ी थी बिना दांतों

का मुंह पिपलाकर”। छोटी बाईजी तुननकर बोली, “तुम मेरी मां हो या भाभी की”। तब दोनों को पास बुलाकर

बोली, “उमा बेटा तेरे भी बहू आ रही है, याद रखना अपने जाये को कुछ भी कहना, पर पराई जाई को हमेशा

पुचकार कर, लाड़कर रखना, तभी वो तेरी होगी। विश्वास उसे ही नहीं जीतना, तुझे भी भरोसा दिलाना है कि

तू साथ है उसके। कितनी बड़ी सीख दे गई थी सासू मां, सोचते ही आंसू आ गए उमाजी के।

आज सास ससुर चल बसे, छोटी बाईजी के पौत्री हुई है, बेटे के साथ ही दूसरे शहर रहती हैं अब वो। सबसे

पहले भाभी को फोन किया है, कि आप जल्दी से आ जाओ।सबसे पहले आप ही शहद चटाओगी, ताकि

गुड़िया रानी आप पर जाए।

समय के साथ बच्चे बड़े हो गए हैं, अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त पर विमल और उमा का रिश्ता अटूट है, कभी

सखियों सा, कभी बहनों सा तो कभी पौत्र – पौत्रियों के लड़ाई लाड़ में दोनों फिर दुश्मन हो जाती हैं, पर अगले

ही पल बच्चों सी एक भी हो जाती हैं।

ऋतु यादव

रेवाड़ी (हरियाणा)

#ननद

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