ननद: दुख ,सुख की सहेली – पूनम भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

हैलो मां, कैसी हो आप? स्नेहा ने अपनी मां संध्या जी से पूछा।

ठीक हूं, मुझे क्या होना है,” संध्या जी रूखे स्वर में बोली।

अरे मां, कैसी बातें कर रहे हो। क्यों हो आपको कुछ।

चलिए अच्छा बताइए। भाभी कहां है?

उनका फोन कैसे बंद है,” स्नेहा ने कहा ।

यहीं है वो,उसे कहां जाना और फोन की उसे कोई जरूरत नहीं तो बंद है,” संध्या जी ने कहा।

कमाल करती हो मां, आप। आज के समय में किसे फोन की जरूरत नहीं?

आप कितनी रोक लगाएंगी भाभी पर,” स्नेहा ने कहा।

देखो स्नेहा,” मैं क्या कर रही हूं,क्यों कर रही हूं।इससे तुम दूर रहो। ये हमारे घर की बात है तुम्हें इसमें बोलने की कोई जरूरत नहीं,” संध्या जी ने कटु लहजे में कहा।

कमाल है मां,” क्या आपका घर मेरा नहीं?

चलो छोड़ो और फोन रखो, मुझे कुछ काम है,ऐसा कह संध्या जी ने फोन काट दिया।

स्नेहा सोच में पड़ गई। जिस भाभी की मां तारीफें करती थकती नहीं थी । जिस भाभी की बनाई पेंटिंग्स ने सारे घर को खूबसूरत रंगों से सजा दिया आज उसी भाभी की जिंदगी कितनी बेरंग थी। एक हादसे ने मां का नजरिया कितना कठोर बना दिया भाभी के प्रति। ऐसा कब तक चलेगा? मां तो अदिति( भाभी) से उसके जीने तक के अधिकार छीनने पर उतारू है, नही वह ऐसा नहीं होने देगी…!

चाहे कुछ हो जाए वह मां को समझाएगी और इस तरह अपनी भाभी को तिल तिल मरने नही देगी।

विचारों से बाहर निकल स्नेहा ने मां के घर जाने का फैसला लिया।

अगले ही दिन वह मां को बिना बताए अपने मायके आ गई।

अरे स्नेहा,तुम बिना बताए, संध्या जी ने स्नेहा को कुछ अनमना से देखते हुए कहा।

क्यों मां ? क्या अब मेरा यहां आना भी आपको अखर रहा है?

अरे नही,” खुद को संभालते हुए संध्या जी बोली।

स्नेहा मां से और कोई सवाल जवाब किए बिना ही सीधे अपनी भाभी के कमरे की ओर चल दी।

एकाएक ननद को देख, अदिति के मुरझाए चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। (स्नेहा उसकी ननद कम सहेली ज्यादा थी।)

अरे दीदी आप ? बिना खबर किए, अदिति ने भरे गले से कहा।

स्नेहा ने अदिति की बात का जवाब न दे उसे गले से लगा लिया।

गले लग दोनों ननद भाभी खूब रोई।

तभी स्नेहा ने खुद को संभालते हुए अदिति के आंसू पोंछे।

नहीं भाभी।बस अब और नही।

ये दुख जीवन भर का है। मगर तुम्हें इससे निकल अपना जीवन बिताना है भाभी,” कुछ दृढ़ता से स्नेहा ने कहा। स्नेहा की बात को अनसुना कर अदिति बोली,” आप मां के पास बैठिए दीदी, मैं चाय लेकर आती हूं।

स्नेहा अब मां के पास आई और मां का हाथ थाम कर बोली,” खुद को संभालिए,मां।

भाई का असमय जाना सिर्फ आपका ही दुख नहीं है ।हम सबका है।

आप भाभी में भाई को देखिए। भाभी के साथ उसका और अपना दुख बांटिए, मां..!

अगर आप उनके साथ इतनी कठोर हो जाएंगी तो क्या भाई की आत्मा को शांति मिलेगी? कभी नही मां।

देखो स्नेहा,तुम मुझे मत समझाओ।तुम अपने घर परिवार पर ध्यान दो।हमे हमारे हालात पर छोड़ दो। क्या करना है,कैसे करना है मैं बेहतर जानती हूं ,” आंख में आए आंसू पोंछते हुए संध्या जी ने कहा।

तभी अदिति चाय लेकर आ गई।

आइए भाभी बैठिए आप भी,”स्नेहा ने कहा।

नही दीदी ,आप और मां चाय पीजिए।

मै खाने की तैयारी करती हूं,” कह अदिति चली गई।

देखो मां, अदिति की तरफ।क्या उसने चाहा था कि भाई उसका साथ छोड़ कर चला जाए।

भाई ,अदिति को कितना चाहता था।उसकी छोटी से खुशी पर खुद को न्यौछावर कर देता था।आज उसकी अदिति का हाल देखो मां।

कौन कहेगा कि ये आपके बेटे की वही अदिति है। जो सारा दिन इस घर में चहकती थी। आप खुद इसकी बलैया लेती नही थकती थी और आज?

ये सब फालतू बातें मत करो स्नेहा, मेरा बेटा इसी की बदौलत मुझे छोड़ कर चला गया। मेरे फूल के जैसे बेटे को….इतना कह संध्या जी फूट फूट कर रोने लगी।

स्नेहा ने अपनी मां को गले से लगा लिया।

कितना मुश्किल था स्नेहा के लिए अपने आंसू रोक अपनी मां और अपनी भाभी को संभालना।

स्नेहा ने बड़े प्यार से अपनी मां को संभाला। मगर उसने निश्चय किया कि वह अपनी मां के मन से यह विचार निकाल देगी और अदिति को जीने की नई राह दिखाए बिना, वो वापिस अपने घर नहीं जायेगी ।

माहौल को नॉर्मल बनाने के लिए स्नेहा ने बात बदल दी और मां से इधर उधर की बातें करने लगी।

तब तक स्नेहा ने खाने की तैयारी कर ली थी। वह मां और स्नेहा को खाने के लिए बुलाने आई।

स्नेहा बोली,” चलो आज हम तीनों इकट्ठे खाना खाएंगे।

नही दीदी! आप और मां खाना खाइए।मैं परोसती हूं।

मैने कहा ना भाभी, हम तीनों खायेंगे,”स्नेहा बोली।

संध्या जी बोली,” हम खाते है स्नेहा ।ये बाद में खा लेगी।

नही मां। मेरी आप हर बात नकार रहे हो, खाना हम तीनों इकट्ठे ही खाएंगे,स्नेहा ने कहा।

अगर आप जिद्द करोगे तो मैं चली जाऊंगी और फिर कभी नही आऊंगी।

बेटा तो चला गया क्या अब बेटी भी खोना चाहती हो?

चुप हो जा स्नेहा,संध्या जी बोली।

तीर निशाने पर लग गया था,यही तो चाहती थी स्नेहा।

मां को उसकी ममता से फिर से रूबरू तो करवाना था ।

चलिए भाभी मैं आपकी मदद करती हूं,हम तीनो साथ खाना खाएंगे।

खाना खाकर,अदिति के साथ स्नेहा भी रसोई में आ गई ।

उसने अदिति को देखते हुए कहा,” भाभी। मां की बातों को दिल से मत लगाना।वह इस दुख से उभर नही पा रही,तभी ऐसा व्यवहार करती है।

लेकिन मैं ,मां को समझाऊंगी। बस आप खुश रहा कीजिए।

खुश होने के लिए क्या रखा है, दीदी? मेरी तो जीने की भी कोई इच्छा नहीं है। भगवान मुझे भी बुला ले, “भरी आंखों से अदिति बोली।

ऐसा नहीं कहते भाभी,” स्नेहा ने अदिति के मुंह पर उंगली रखते हुए कहा। मै हूं आपके दुख सुख की सहेली।

उसने अदिति के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए कहा,” आपको भाई के सपने साकार करने हैं, भाभी ।भाई चाहते थे कि आपकी पेंटिंग्स को पहचान मिले।

दो दिन ऐसे ही निकल गए। स्नेहा मां के मन से अदिति के लिए कड़वाहट कम करने का प्रयास करती रही।

तीसरे दिन स्नेहा ने मां को कुछ नॉर्मल देखते हुए कहा, मां। अदिति का और आपका दुख सांझा है। आप उस पर कितनी रोक- टोक रखती हैं ।आज वह आपकी इज्जत करती है।वह भाई की खातिर ही आपकी हर ज्यादती को सह रही है,क्या आप अपने बेटे की खातिर उसे पहले सा स्नेह नही दे सकती?

आप तो मां हो, मां जो ममत्व से भरी होती है।जिसके लिए सभी बच्चें एक बराबर होते हैं।

यही अदिति छह महीने पहले आपकी जान थी जितना प्यार आप भाई से करते थे उतना ही अदिति से।

फिर क्या मां एक हादसे ने आपकी ममता को इतना स्वार्थी कर दिया कि आपने अदिति से अपने आंचल की छाया हटा ली।

सोचिए मां क्या अदिति चाहती थी कि ऐसा हो? आज उसकी ये हालत और आपका व्यवहार भाई को कितना कष्ट दे रहे होंगे।

आप अपने दुख और अदिति के दुख को अलग क्यों समझ रहे हो।

मां अदिति को वैसा ही जीने दो जैसा आपका बेटा चाहता था।

अपने और उसके जीवन को बेरंग और नीरस मत बनाओ मां।

ऐसे ये दुख बहुत बड़ा बन आप दोनों को ही अंदर ही अंदर खोखला कर देगा।आप दोनों ही एक दूसरे का सहारा बनिए मां। संध्या जी को स्नेहा की बातें अब समझ आ रही थी।

वह नही चाहती थी कि उसकी वजह से उसके बेटे की आत्मा को कष्ट न हो, आखिर वह थी तो इक मां ही।

चार दिन और रुक स्नेहा ने मां के व्यवहार को अदिति के प्रति कुछ नरम कर दिया।

अब उसने रंग और ब्रश लाकर अदिति के सामने रख दिए और कहा ,””भाभी । फिर से इन रंगों से अपने जीवन में रंग भरो। अदिति ननद का इतना स्नेह पाकर अपने आंसू रोक नही पाई। स्नेहा ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा,” भाई ,,कभी इस मृगनयनी की आंखों में आसूं नही देख सकते थे ,तो ये बहन भी कैसे भाई की जान को रोते देखेगी। आप अपने बेरंग जीवन में फिर से रंग भरिए और उसने अपनी भाभी को गले लगा लिया।

पूनम भारद्वाज

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