नाकाम आशिक की डायरी – संजीव कुमार : Moral Stories in Hindi

         नैना, शायद तुम्हें पता है ना, कि मुझे डायरी लिखना बिल्कुल पसंद नहीं। तुम मेरी ज़िंदगी में आने वाली इकलौती और वो पहली लड़की हो, जो मेरे दिल के सबसे करीब थी, और जो मेरी ज़िंदगी की सबसे अच्छी दोस्त थी। तुम्हें शायद पता न हो, मैंने आज तक तुम्हारे अलावा किसी और से दोस्ती तक नहीं की।

मेरी हर आदत और पसंद नापसंद से तुम वाकिफ थी। कॉलेज में जीन्स टीशर्ट और नए-नए फैशनेबल कपड़े पहनने वाले युवा लड़कों के बीच भी तुमने मुझ जैसे खादी के कुर्ते और साधारण पाजामा पहनने वाले लड़के से दोस्ती की। इस बात के लिए मैं हमेशा तुम्हारा अहसानमंद रहूँगा।

           मैं जब पहली बार शहर के कॉलेज में पढ़ने गाँव से आया था, तो अत्यंत सीधा-साधा देहाती लड़का था। एक साल में तुमने मेरा हुलिया बदलकर रख दिया। एकदम से स्मार्ट बना दिया। कैसे बोलना है, कैसे चलना है, कैसे बैठना है, कैसे कपड़े पहनने हैं, किससे कैसे बिहेव करना है – सबकुछ तुमने सिखाया। तुमसे मिलने से पहले मैं समझता था कि मेरी ज़िंदगी सिर्फ किताबों के लिए बनी है और पहले मुझे रात-दिन सिर्फ किताबें पढ़ना पसंद था।

       कहते हैं ना दोस्ती में अमीरी-गरीबी नहीं होती। तुम इतनी अमीर होते हुए भी अक्सर जब भी मौका मिलता, मेरे साथ होती और मुझे मेरी गरीबी का जरा भी अहसास नहीं होने देती। तुम्हारे पिता बहुत बड़े सरकारी अधिकारी थे, लेकिन तुममें इतने बड़े अधिकारी की बेटी होने का जरा-सा भी गुरुर न था। तुम हमेशा खिलखिलाती रहती और पढ़ने में भी अव्वल थी। सामजिक भलाई के कार्यो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती। जब कभी किसी सामाजिक संस्था द्वारा अत्यंत गरीब लोगों के बीच कपड़े बाँटने का कार्यक्रम होता और तुम्हें पता चलता, तो तुम तुरंत वहाँ पहुँच जाती।

गरीब मुसहरों के गंदगी से भरपूर बच्चों को अपने हाथों से कपड़े पहनाती। उनके साथ खेलती, उन्हें गोद में बेहिचक ले लेती। मैं तुम्हारी सुंदरता से ज्यादा तुम्हारी सादगी और ये सब देखकर ही तो तुम्हारी तरफ आकर्षित हुआ था।

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            नैना, जब भी तुम मेरे साथ होती, तो लगता मैं दुनिया का सबसे भाग्यशाली लड़का हूँ। मेरी औकात तो पुरानी साईकल पर घूमने की भी न थी, लेकिन अपने महँगे कार में जब तुम मेरे साथ लांग ड्राइव पर निकलती और तुम्हारी बगल की सीट पर मैं सिकुड़ा हुआ तुम्हारी कभी खत्म न होने वाली बातों को सुनता, तो मैं बता नहीं सकता कि मुझे कितने आनंद की प्राप्ति होती। तुम्हारी हँसी मुझे  इस दुनिया से अलग दूसरी दुनिया में पहुँचा देती थी और मैं सबकुछ भूलकर बिना पलकें झपकाए तुम्हें देखता रहता। तुम्हारे शरीर से आते वो परफ्यूम की खुशबू आज भी अक्सर मुझे महसूस होती है।

बचपन से दूध पावरोटी या रोटी सब्जी खाने वाले लड़के को तुमने पिज्जा, बर्गर और चौमिन खाना सिखाया। सारी दुनिया का पेट भरने वाले गरीब किसान की औकात इतनी नहीं होती कि वो अपने बच्चों को पिज्जा, बर्गर, चाउमीन ख़िला सके। मेरे पूरे परिवार का पेट जिस दिन अच्छे से भर जाता, उस दिन हमलोग भगवान का शुक्रिया अदा करते थे। शहर के जिस बड़े रेस्टुरेंट की ओर देखने की भी मेरी औकात नहीं थी, वहाँ मुझे तुमने हमेशा अपने साथ बिठाकर खाना खिलाया। मेरे कपड़े, जूते, पर्स, मोबाइल से लेकर परफ्यूम तक तुमने अपने पैसों से खरीदा और मैं भी पता नहीं किस हक़ से किसी चीज के लिए कभी मना नहीं कर पाता था।

            मेरी तुम्हारी दोस्ती को लेकर बहुत सारे दोस्तों ने तुम्हारा मज़ाक भी बनाया था, पर तुमने  इन सब बातों की कभी परवाह नहीं की। शायद मैं पढ़ाई में बहुत तेज था, इस वजह से तुम मेरा इतना ध्यान रखती थी। एक बार मैं थोड़ा बीमार पड़ा था। बस हल्का-सा बुखार ही तो था, पर तुमने तो मुझे डॉक्टर को दिखाकर ही दम लिया। अपने हाथों से दवा खरीदकर दी और पूरे दिन परेशान रही। एक एक घंटे पर फ़ोन कर परेशान करती रही। दवा खाया या नहीं ? अब कैसी तबियत है ? इतना प्यार करनेवाले और ध्यान रखनेवाले लोग तो शायद किस्मतवालों को ही मिलते है, लेकिन कहते हैं ना, सच्चे प्यार को नज़र लगते देर नहीं लगती।

मेरी किस्मत में तुम नहीं थी और आख़िर हमारे प्यार को किसी की नज़र लग ही गयी। तभी तो सारी कायनात मिलकर भी तुम्हें मुझसे नहीं मिला सकी। मैंने तुम्हारे पापा-मम्मी से सिर्फ एक साल ही तो माँगा था। पर उनलोगों ने पैसे व रुतबे  को ही ज्यादा महत्व दिया। मुझे आज भी याद हैं मुझे चाय देते हुए तुम्हारी माँ वो शब्द कि “इस घर के नौकर और उसका परिवार भी मेरे और मेरे परिवार से बेहतर ज़िंदगी जीते हैं और ज्यादा हैसियत रखते हैं।” मैं शायद अपनी औकात से ज्यादा बड़े सपने देखने लगा था। उस दिन अपने आप को बड़ा समझकर  परिवार में बड़े बुजुर्गो के रहते

खुद अपनी शादी की बात करने चला गया था। ये मैंने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल की थी। मैंने तुम्हारे घर बहुत मिन्नतें की थी, मुझे थोड़ा समय दे दीजिए। मैं खुद को साबित करके दिखाऊंगा, पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। तुम्हारे मम्मी-पापा का इतना आभारी जरूर रहूँगा कि उन्होंने आखिरी बार तुमसे मिलने की इज़ाज़त दे दी थी, बस इस शर्त के साथ, कि दुबारा तुमसे मिलने की कभी कोशिश न करुँ।

          मेरी तुम्हारी अंतिम मुलाकात थी वो। हमेशा चुलबुली और हँसती मुस्कुराती रहने वाली लड़की उस दिन बेहद गुमसुम-सी लाल आँखों में आँसूओं के साथ तुमने मुझे “गुड बाय” कहा था। गुड बाय बोलने में जैसे तुम्हें सदियों का समय लगा। होंठ कई बार कांपे जैसे किसी अपराधी को अपनी गलती का अहसास हुआ हो और वो किसी से नजरें नहीं मिला पाता हो, ठीक वैसे ही तुम मुझसे भी नज़रें नहीं मिला पा रही थी।

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कर्तव्य – शुभ्रा बनर्जी : Moral Stories in Hindi

तुम्हारे दिल के सूनेपन का आभास मुझे हो चला था। “अपना ख्याल रखना ” भराई आवाज़ में मेरे लिए निकले तुम्हारे होठों से ये आखिरी शब्द आज भी अक्सर मेरे कानों में गूँजते हैं और मैं घबराकर इधर-उधर देखने लगता हूँ कि शायद तुम कहीं सच में आसपास आकर तो नहीं बोल रही हो, पर हमेशा की तरह ये मेरा वहम ही होता है। अंतिम बार जब तुम्हें देखा था, वो तस्वीर आज भी मेरी आँखों में छपी हुई है।

           आज अखबार में  शानदार और बड़े धूमधाम से हुई तुम्हारी शादी की तस्वीर देखी, तो तुम्हारी इज़ाजत के बिना वो तस्वीर काटकर मैंने अपनी डायरी के पहले पन्ने में चिपका लिया। अभी बहुत कुछ कहना है। अब ये डायरी मेरी ज़िंदगी बन गयी है। हमारी दोस्ती और प्यार की कई बातें अभी बतानी है।

        नैना, तुमसे अंतिम बार मिलने पर और तुम्हारे मुँह से गुड बॉय सुनकर जब मैं घर आया, तो मन बहुत भारी हो गया था। ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे दिल पर कोई बोझ लद गया है। दिसंबर की शाम थी और मौसम काफी सर्द था। ठंढी हवाएं शरीर से टकराने पर करंट-सा अहसास करा रही थीं। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ? अपने छोटे-से कमरे में मैं बहुत बेचैनी से इधर उधर टहल रहा था। बार-बार तुम्हारा उदास चेहरा आँखों के सामने घूम रहा था और तुम्हारी मम्मी  द्वारा बोले गए वो शब्द भी, जिसमें नौकर से ज्यादा हैसियत न होने का तंज शामिल था।

       गरीब होना इतना भी बड़ा अभिशाप हो सकता है – ये पूरे चौबीस साल की ज़िंदगी में मुझे आज महसूस हुआ था। फिर मुझे कुछ समझ न आया, तो वैसे ही कपड़े पहने बाथरूम में जाकर नल के नीचे बैठकर पानी चालू कर दिया। नल से पानी और आँखों से आँसू लगातार साथ-साथ निकल रहे थे। तीन घंटे तक मैं वहाँ वैसी ही हालात में बैठा रहा। बिल्कुल शांत, बस नल से बहते पानी की धार और मेरे होठों से निकलती सिसकियों की थोड़ी-सी आवाज़ बची हुई थी।

        दिल के अंदर का आक्रोश जरा भी कम न हुआ था। फिर मैं वहाँ से बाहर निकलकर दीवार पर जोर जोर से मुक्के मारने लगा। ऐसा करते हुए थोड़ी देर में मैं जब बुरी तरह थक गया, तो उसी अवस्था में चौकी पर सो गया। आँख खुली, तो दोपहर के बारह बजने को थे। मेरा पूरा शरीर तवे की तरह गर्म था और सर दर्द से फटा जा रहा था।

कपड़े वैसे ही गीले थे। किसी तरह उठकर मैंने कपड़े बदले। पहले की कुछ बुखार की दवाइयां बचीं थी, उसे खाया, लेकिन जिस चीज की कमी सबसे ज्यादा महसूस हो रही थी, वो थी तुम्हारे फ़ोन का आना। बार-बार मेरी नज़र मोबाइल पर चली जाती थी कि शायद तुम्हारा कॉल आएगा और तुम पूछोगी – कैसी तबियत है?

खाना खाया या नहीं ? दवा ली कि नहीं? पर ऐसा नहीं हुआ। अंतिम मुलाकात के बाद आज तक तुम्हारा कॉल नहीं आया। मैं बार बार देखता कि कहीं मोबाइल शांत या कंपन अवस्था में तो नहीं है, पर ऐसा कुछ भी नहीं था। पता है कितने वर्षों के बाद भी तुम्हारे कॉल के इंतज़ार में मैंने आज तक अपना नंबर तक नहीं बदला।

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          आज तुम्हारा जन्मदिन है ना नैना। मैं सिर्फ दुआओं के अलावा तुम्हें कुछ नहीं दे सकता। याद तो होगा ही, जब एक बार दोस्ती के दिनों में सिर्फ तुमने मेरे साथ अपना जन्मदिन मनाया था। लाल गाउन और हल्के मेकअप में तुम स्वर्ग की किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। उस शानदार रेस्टुरेंट के एक छोटे से केबिन में सिर्फ हम दोनों ने मिलकर केक काटा और साथ में पसंदीदा भोजन किया। कितनी खुश थी तुम, लेकिन पता नहीं अ्चानक मेरे मन में क्या आया कि मैंने तुम्हें बुरी तरह अपनी बाहों में जकड़कर तुम्हारे होठों पर किस कर दिया था।

उफ्फ कितनी जोर का धक्का दिया था तुमने। और तड़ाक की ध्वनि और गुस्से के साथ तुमने मेरे गालों पर थप्पड़ जड़ दिया था। एक सेकंड में ही तुम्हारे चेहरे पर खुशी वाले भाव की जगह दुख के भाव आ गए थे। मैं शायद अपनी मर्यादा भूल कर बहक गया था। तुमने तुरंत ही भोजन के बिल का भुगतान किया और वहाँ से तेजी से निकलकर कार में बैठ गयी थी। अन्य दिनों की तरह बातें करते हुए आज तुम कार नहीं चला रही थी। मेरे घर छोड़ने तक लगभग आधे घंटे कार में भयानक खामोशी छाई रही। मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही थी तुमसे नजरें मिलने की। मैंने सॉरी बोला, पर तुमने ऐसे रियेक्ट किया, जैसे तुमने सुना ही न हो। उस रात पहली बार तुम मुझे बिना बाय बोले चली गयी थी।

        इसके बाद उस रात तुम्हें मैंने कई बार फ़ोन लगया, पर तुमने फ़ोन नहीं उठाया। आखिरी बार जब मैंने तुम्हें डराने के लिए मोबाइल पर संदेश भेजा कि अगर तुमने अब फ़ोन नहीं उठाया, तो मैं आत्महत्या कर लूँगा। इस बात पर कुछ सेकंडो के बाद तुम्हारा कॉल आ गया था।

               अब ज़िंदगी तुम्हारे बिना बहुत सूनी-सूनी लग रही है नैना। दिल में बहुत तेज दर्द हो रहा है। देखो मैं बच्चों की तरह रो रहा हूँ, पर मुझे पता है कि अब न तुम आओगी, न तुम्हारा कॉल आएगा। अब मैं इस डायरी में अपनी जिंदगी की ये दास्तान लिखने जा रहा हूँ कि तुमने पूरी जिंदगी साथ निभाने का वादा कर मुझे बीच मझधार में डूबने के लिए अकेला छोड़ दिया था…

         नैना, पता है तुम्हें तुम्हारे घरवालों के द्वारा मुझे ठुकराने के बाद मेरी हालत दिलजले आशिक़ की तरह हो गयी थी। मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता था। मैं दिन में भी अपने कमरे में अंधेरा कर पड़ा रहता। मेरी दाढ़ी, मूछें और सर के बाल बेतरतीब बढ़ गए थे। मैं किसी से अब मिलता जुलता भी नहीं था। उदासी और तन्हाई मेरी जिंदगी बन गए थे। मेरा ज़िंदगी और पढ़ाई-लिखाई  से मन बुरी तरह उब गया था। मैं डिप्रेशन में जाने लगा था। मुझे उजालों से डर लगने लगा था। आईने में खुद को देखकर घबराहट-सी होती थी। बार-बार तुम्हारे साथ बिताए हुए पल याद आ रहे थे।

           जब भी तुम्हारे द्वारा दिए गए सामानों पर मेरी नज़र पड़ती, तो मुझे अपने ऊपर बहुत दया आती, मैं खुद से ही नफरत करने लगा था। फिर शुरू हुआ मेरी ज़िंदगी की बरबादी का दौर। शराब, सिगरेट, चरस, गांजा मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गए। तन्हाई में अब नशे को मैंने अपना दोस्त बना लिया। अपने नशे की जरूरत को पूरी करने के लिए तुम्हारे दिए गए सारे सामान एक-एक कर आने पौने दाम में बेचने लगा । स्मार्टफोन, घड़ी, जूते, कपड़े सब बेच कर महीनों अंधेरे कमरे में नशे में पड़ा रहा। नशा मेरी जिंदगी बन गयी थी। खाने पीने, सोने जागने, पढ़ने लिखने का कोई टाइम टेबल न था। शरीर अस्सी साल के बूढ़े जैसा हड्डियों का ढांचा बन कर रह गया था।

         एक शाम जब पैसे पूरी तरह ख़त्म हो गए थे और मेरे पास नशे के लिए कुछ भी न बचा था, तो मैं बेचैन होकर सड़क पर घूमने लगा। मैंने फिर से अपना पुराना कुर्ता पजामा पहन रखा था। धँसी आँखे, पिचके गाल, बिखरे बाल मेरा पूरा हुलिया भिखारी जैसा लग रहा था।

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          फिर मैंने देखा एक मंदिर के आगे कुछ भिखारियों को खाना खिलाने की तैयारी हो रही है। शायद कोई धनी व दयालु व्यक्ति ने किसी खास अवसर पर भिखारियों को खिलाने की व्यस्वस्था की थी। जोरों की भूख लगी थी। मैं भी वहाँ उन भिखारियों के बीच बैठ गया और पत्तल पर खाना मिलते ही पागलों की तरह खाने लगा।

         तभी वहाँ खाना परोस रहे पुजारी जी के बेटे संजीव की नज़र मुझपर पड़ गयी और उसने मुझे पहचान लिया। वो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ता था। खाना ख़त्म होने के बाद वो मुझे अपने साथ मंदिर के पीछे बने छोटे-से क्वार्टर में ले गया, जहाँ वो अपने पुजारी पिता के साथ रहता था। सबसे पहले नाई बुलाकर मेरे बाल कटवाए, दाढ़ी बनवायी। फिर उसने गर्म पानी से खूब रगड़-रगड़ कर मुझे नहलाया। शरीर से मैल और दिल की गंदगी धुल रही थी। बदबूदार शरीर की बदबू ख़त्म हो चली थी। बहुत दिनों के बाद मैं चैन की नींद सोया।

          फिर मुझे संजीव से ही पता चला था कि कुछ ही दिनों में तुम्हारी शादी बड़े धूमधाम से होने वाली है और ये सुनते ही मेरे दिमाग को 440 वोल्ट का झटका लगा।

             नैना तुम्हारी शादी की खबर सुनकर मैं एक बार फिर निराशा के दलदल में डूबने लगा, पर ऐसे बुरे व्यक्त में संजीव एक सच्चे दोस्त की तरह परछाई बनकर हमेशा मेरे साथ रहा। उसे पता था कि ऐसे हालात में मैं कोई भी गलत कदम उठा सकता हूँ। वो जब भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता, मुझे भी पास बिठाए रखता। हर शाम मंदिर में होने वाले भजन कीर्तन में साथ रखता, पर मैं दिल से जितना भी तुम्हें भुलाने की कोशिश करता, नैना तुम मुझे उतनी ही ज्यादा याद आती थी। तुम्हारी बातें सुनने की मुझे आदत सी हो गयी थी। तुम्हारी मुस्कुराहट का मैं दीवाना था। किसी बात पर तुम्हारा गुस्से से लाल चेहरा बनाना – सब बहुत याद आता था।

तुम्हारा अपने हाथों से मुझे केक खिलाना – ये सब बातें मुझे बहुत कचोटती थी। हर पल ऐसा लगता था जैसे मेरा कुछ खो गया हो। ऐसा लगता था अभी मोबाइल में तुम्हारा कॉल आएगा और हमेशा की तरह कहोगी – अभी तक तैयार नहीं हुए। तुमसे मैं तंग आ गयी हूँ और इस जीन्स पे ये शर्ट क्यों पहन ली। कहा था न ब्लैक वाला टीशर्ट पहनना और फिर शर्ट की जगह टी शर्ट पहनाकर तुम मुझे अपनी कार में फालतू की बातें सुनाने लांग ड्राइव पे ले जाओगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं होगा। अब तो ये सब वहम के सिवा कुछ नहीं है।

              फिर मैं भी संजीव के साथ इंजिनीरिंग की परीक्षा की तैयारी का ट्यूशन पढ़ाने लगा। मैंने अपने दिल से तुम्हारा ध्यान हटाने के लिए खूब मेहनत से आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की पढ़ाई में खूब मदद करने लगा। मेहनत रंग लायी, चालीस में से सोलह बच्चे आईआईटी परीक्षा में सफल हुए। मेरे नाम के चर्चे सब जगह फैल गए। फिर आज तक वही बच्चों को पढ़ाने का ही काम कर रहा हूँ ।

मेरे पढ़ाये हुए सैकडों बच्चे आज दुनिया के हर कोने में नाम कमा रहे हैं। अरे मैं तो तुम्हें बताना भूल ही गया कि मेरी शादी एक बेहद गरीब घर की लड़की राधा से हुई, जो बेहद सुंदर और सुशील लड़की है। माँ ने उसे पसंद किया था। वह तुम्हारी तरह आधुनिक लड़की तो नहीं है वो, लेकिन तुमसे भी ज्यादा मेरा ख्याल रखती है। जरा भी बीमार होता हूँ, तो परेशान हो जाती है।

रात रात भर सोती नहीं सर पर ठंडे पानी वाले कपड़े की पट्टियां बदलती है। पूरी पागल ही है वो। मुझे जब पढ़ाई में अच्छे योगदान के लिए लंदन में सम्मानित किया जा रहा था, तो सर पर आँचल रखकर बेहद सकुचाई हुई मेरे साथ मंच पर पुरस्कार लेने गयी थी। वहाँ की अधनंगी लड़कियों को देखकर छी छी की आवाज़ भी निकाली थी उसने। मेरी एक चाँद-सी प्यारी बेटी भी हुई।

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          पता है मैं चाहता, तो इतने रुपये कमा सकता था, जिसकी कोई सीमा न होती, पर मेरे बाबा माँ और राधा को सादगी वाला जीवन ही पसंद था।

       वक्त अपनी करवट बदलता रहा है। मेरी इकलौती बेटी ने भी आईआईटी से बीटेक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करने के बाद कुछ दोस्तों के साथ मिलकर खुद का सॉफ्टवेयर डेवलोपमेन्ट कंपनी खोल लिया है।

        आज मेरी बेटी की शादी है और मैं अपनी डायरी का अंतिम पन्ना लिख रहा हूँ। मुझे फिर से तुम्हारी बहुत याद आ रही है नैना। शादी की रस्मों में तुम्हारी कमी खल रही है। यद्यपि राधा हर पल मेरे साथ है और कभी-कभी मैं अचानक से उसे नैना पुकार देता हूँ, तो वह जोर जोर से हँसने लगती है। पता है फिर वह क्या बोलती है – अरे मैं राधा हूँ और नैना तुम्हारी बेटी का नाम है। अपनी बेटी का नाम कितनी जिद करके तुमने खुद ही रखा था ना “नैना”। तुम्हें जरूर याद होगा।

लेखक : संजीव कुमार

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