Moral stories in hindi : वैदिका जब दुल्हन बन वीरेन के घर आई तो मन में उत्साह से ज़्यादा डर था। इतना बड़ा घर और इतने सारे लोग। वैदिका तो देखते ही चकरा गयी। उसके फूलों से सजी गाड़ी से उतरते ही सब छोटे-बड़े बच्चे उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गए। कोई उसे चाची कह संबोधित कर रहा था तो कोई उसे मामी बुला रहा था। किसी के लिए वो बुआ थी, किसी के लिए भाभी।
बच्चों से पीछा छुड़ाते ही बड़ों ने घेर लिया। सब अपना परिचय दे रहे थे। और बदले में सासू मांँ उसे हिदायत दे रही थी कि “दुल्हन, पैर छुओ और आशीर्वाद लो।”
कोई चचिया सास थी, कोई चचिया ताई, कोई ससुर जी की मामी तो कोई सासू मांँ के मायके से। वैदिका केवल मुस्कुराते हुए सबके पैर ही छू रही थी।
इतना बहुत नहीं था कि अब बड़े बुजुर्ग मर्द भी बहु के दर्शन को आ गये। सासू मांँ ने फटाफट पल्लू करने का इशारा किया। और वैदिका फिर से सबके पैर छूने लगी।
कमर ने मानो जवाब दे दिया था। और भूख के मारे जान निकल रही थी। पर कहे तो किससे कहे। वो इधर-उधर देख रही थी। शायद वीरेन को ढूंँढ रही थी। पर उसके दुल्हे राजा का कहीं अता-पता ही नहीं था। ज़ोर-ज़ोर से रोने का मन हुआ उसका।
फिर कुछ लड़कियांँ उसके लिए थाली में सजा कर खाना ले आईं। खाने को देख उसे लगा कि उसपर टूट ही पड़े पर अपने आप पर काबू पा उसने थोड़ा बहुत खा लिया।
“क्या चाची, आप तो कुछ खाती ही नहीं!” उनमें से एक बोली।
वैदिका ने मन में सोचा कि अब क्या बताऊंँ कितना खाती हूंँ। पर यहांँ कैसे खाऊंँ। उस पल वैदिका को केवल मांँ की याद आ रही थी। अब बस वो आराम करना चाहती थी।
कुछ देर में कुछ बड़ी लड़कियांँ हंंसते हुए आईं और वैदिका को उसके कमरे में ले गयीं। फूलों से सुसज्जित उस कमरे में घुसते ही वैदिका का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
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सबने उसे फूलों से महकते बिस्तर पर बैठा दिया और हंँसने लगीं। तभी दरवाज़े पर किसी के खटखटाने की आवाज़ हुई। उनमें से एक लड़की जो सबकी लीडर लग रही थी बोली,”पांँच हज़ार से कम में कोई नहीं मानेगा। समझ गई तुम सब।”
सबने सहमति में सिर हिलाया और हंँसते हुए दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़े पर वीरेन खड़ा था। सब उससे बहस करने में लग गयीं। वीरेन कुछ देर तो बहस करता रहा फिर उन सबकी मुंँह मांगी रक्म दे उन्हें वहांँ से विदा किया।
कमरे में आ दरवाज़ा बंद कर उसने थोड़ा सहज होते हुए कहा, “मैं आपके लिए खाना लाया हूंँ। देख रहा था कि आपने कुछ भी नहीं खाया था। प्लीज़ कुछ खा लीजिए। वरना सेहत खराब हो जाएगी। एक डॉक्टर की पत्नी बिमार पड़ जाएगी तो क्या इज़्ज़त रह जाएगी मेरी।”
वैदिका थोड़ा मुस्कुरा दी और खाना खाने लगी।
“आपने…खा लिया?” उसने वीरेन से पूछा।
“जी, खा तो लिया। पर आपका साथ दे सकता हूंँ।” वीरेन ने मुस्कुराते हुए कहा।
उन्होंने साथ में खाना खाया। अब वैदिका कुछ सहज महसूस कर रही थी। पर थकान उसके चेहरे पर साफ छलक रही थी।
“आप थक गई हैं शायद। आप आराम कर लीजिए।” वीरेन ने प्यार से कहा।
“आपसे एक बात पूछनी है। क्या मैं पूछ सकती हूंँ?” वैदिका बोली।
“ये जितने लोग घर में दिखाई दिए…ये सब यहीं रहते हैं क्या?” वैदिका ने हिचकिचाते हुए पूछा।
वीरेन हंँस पड़ा और बोला,”नहीं नहीं, इस घर में केवल मेरे मांँ-बाबा , अम्मा और चाचा का परिवार रहता है। बाकी सब आसपास ही रहते हैं।”
“सबके चेहरे याद रखना, नाम याद रखना बहुत मुश्किल है। कौन रिश्ते में क्या लगता है यह याद ही नहीं रहता। अम्मा जी तो दो बार बोल भी चुकीं कि मेरी याद्दाश्त खराब है। कैसे याद करुं मैं सबके नाम?” वैदिका ने नम आंँखों से वीरेन को देखते हुए कहा।
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“बस इतनी सी बात। आप चिंता ना करें।” यह कह वीरेन ने अपनी अलमारी से एक पेनड्राइव निकाली और उसे लेपटॉप पर लगाते हुए कहा,”आइए अब मैं अपने परिवार से आपका परिचय कराता हूंँ।”
वीरेन ने उस पेनड्राइव में सबकी तस्वीरें संजो कर रखी थीं। उसने धीरे-धीरे वैदिका को सबके नाम और अपना
उनसे रिश्ता समझाया। लगभग एक घंटे में वैदिका ने सब को पहचान लिया। वीरेन ने सबकी पसंद नापसंद भी वैदिका को बता दी।
फिर उसे कमर दर्द की गोली देते हुए कहा,”कुछ दिन आपको सबको झुक कर प्रणाम करना पड़ेगा। यह प्रथा है इसे बदल नहीं सकते। पर कुछ दिनों बाद सब अपने घर चले जाएंँगे। तो आपको आसानी हो जायेगी और फिर आप भी अपनी नौकरी ज्वाइन कर लेंगी। तो झुकने की ज़्यादा आवश्यकता नहीं रहेगी।”
वैदिका ने दवा खाई और वीरेन को धन्यवाद कर सो गयी।
अगले दिन वैदिका एक नये जोश से उठी और जब वह तैयार हो कमरे से बाहर आई और सबको संबोधित कर उन्हें प्रणाम करने लगी तो सब बुज़ुर्ग हैरान हो गए। सब वैदिका की तारीफ करने लगे।
वीरेन के बताए अनुसार वैदिका से मीठे में खीर बनवाई गई जिसको और अच्छे से वैदिका ने यूट्यूब पर पहले ही सीख लिया था। उसने अनुरोध कर घर के बच्चों के लिए चाइनीज़ भोजन भी तैयार कर दिया। ये भी वीरेन उसे बता चुका था।
सबने वैदिका की बहुत तारीफ़ की। बच्चे तो उसकी कुकिंग के कायल हो गये। सब उसे एक गुणवान बहु की उपाधि से नवाज़ रहे थे।
वीरेन दूर खड़ा हो ये सब देख मुस्कुरा रहा था। तभी वैदिका उसके पास आई और बोली,”ये सब आपके सहयोग के बिना नामुमकिन था। मैं आपकी आभारी रहूंँगी।”
“मैंने तो सिर्फ रास्ता दिखाया है वैदिका। उसपर चलकर फतेह तो आपने हासिल की है। और वैसे भी जीवन की गाड़ी पति-पत्नी दोनों के सहयोग से ही आगे बढ़ती है। वैसे….खीर बहुत अच्छी बनी है। मुझे मीठा बहुत पसंद है।” वीरेन की आंँखों में शरारत थी। वैदिका ये देख मुस्कुरा दी और शर्माते हुए वहां से चली गई।
यदि पति अपनी नयी नवेली दुल्हन का इस तरह साथ दे तो हर लड़की शादी के बाद अपने ससुराल में आसानी से रम सकती है।
लेखिका
©आस्था सिंघल
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