नफरत की दीवार – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

रुकसाना और अरशद निकाह से ज्यादा इस बात से खुश थे कि पहली बार पूरे कमरे में सिर्फ वो दोनों ही सोने वाले थे। दरअसल रुकसाना आठ भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। घर में दो ही कमरे थे एक मे सात भाई बहन और दूसरे में अब्बू अम्मी और सबसे छोटा भाई। एक ही कमरे में सात भाई बहन मतलब करबट बदलना भी मुश्किल हो जाता था। उधर अरशद के हाल भी कोई ज्यादा अलग नही थे वो भी सात भाई बहनों में सबसे बड़ा था उनके पास भी दो कमरे और छत पर रसोई, बाथरूम बगैरह था। अरशद बीस का था

तो रुकसाना अठारह की। अठारह साल उम्र पूरी होते ही निकाह पढ़वा दिया गया। दरअसल रुकसाना अरशद की फूफी की ही लड़की थी इसलिए सबकुछ घरवालों की मर्जी से हो गया। आज शादी की पहली रात थी तो अरशद के अब्बू अम्मी ऊपर रसोई में सोए थे और भाई बहन दूसरे कमरे में। आज एक कमरा अकेले उन दोनों के ही पास था।

अरशद मोहल्ले में गोलगप्पे की रेहड़ी लगाता था बहां गिनती के दस बारह घर उसके समुदाय के थे बाकी बहुसंख्यक समुदाय के। सब लोग बड़े प्रेम से रहते थे। अरशद के गोल गप्पों का पूरा मोहल्ला दीवाना था जाने क्या जादू था उसके हाथों में कि जो कोई भी एक बार खाता वो बार बार आता था। अरशद अच्छी कमाई कर लेता तो कभी कभी रुकसाना के लिए कुछ छोटा मोटा उपहार ले जाता। दोनों की जिंदगी मजे में गुजर रही थी। 

लेकिन अरशद का एक अतीत भी था जो रुकसाना को नही पता था अरशद गर्ल्स स्कूल के सामने रेहड़ी लगाता था लड़किओं की भीड़ हमेशा उसके चारों तरफ रहती थी। सभी लड़कियां अरशद के गोल गप्पे खाकर ही घर लौटती थीं। बाहरवीं में पढ़ने वाली निशा भी उन्हीं में से एक थी। मां बाप ने उसे प्राइवेट स्कूल में दाखिला करवाया था

पढ़ने में होशियार थी मैं बाप का सपना उसे आईपीएस बनाने का था। निशा ने अभी नई नई जवानी में पैर रखा था अरशद ऊंचा लम्बा हटा कट्टा होने के साथ साथ स्मार्ट भी था उसके माथे तक झूलते बालों को देखकर निशा मन ही मन मुस्कुराने लगती थी। वो हर रोज रेहड़ी पे आती दरअस्ल गोल गप्पे तो बहाना था वो तो अरशद से बात करने आती थी। अरशद भी उसकी नजर को पहचान गया था उसके भी मन मे लड्डू फुंटने लगे थे क्योंकि उसे पता था कि निशा के पिता अमीर आदमी है और निशा इकलौती लड़की है तो जिंदगी सेटल हो जाएगी।

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यही सोचकर एक दिन गोलगप्पे की प्लेट के साथ अपना नम्बर भी पकड़ा दिया अब निशा तो मानो उसकी मन की मुराद पूरी हो गई थी।

दोनों में फोन पे बात होने लगी और इधर अरशद के घरवाले लड़की ढूंढने लगे। क्योंकि मोहल्ले में गिनती के अल्पसंख्यको के घर थे और निशा एक रेपुटेड फैमिली से थी इसलिए शादी की बात करना मतलब अपनी इज्जत के साथ साथ रेहड़ी भी गंवाने जैसा था। अरशद ने रिस्क नही लिया। बस प्यार के जाल में फंसाकर निशा का बेबकूफ बनाता रहा उसने अपने रिश्ते के बारे में भी कुछ नही बताया निशा को उस दिन पता चला जब उसका निकाह था। निकाह हो गया मगर अरशद सुबह जब रेहड़ी पे आया तो निशा पागलो की तरह उसे सवाल करने लगी अरशद ने उसे कहा कि छुट्टी के दिन सकून से मिलेंगे फिर आराम से बात करेंगे हाथ पैर पकड़कर उसने निशा को मनाया।

मुलाकात में दोनों ने फैंसला किया कि वे दोनों शादी करेंगे अरशद ने निशा को बताया कि हमारे यहां चार शादी जायज है हम अलग से अपना घर लेकर रहेंगे। किसी प्रकार की कोई चिंता मत करो निशा ने भी बताया कि पापा ने उसके नाम कुछ पैसे और एफडी कर रखी है अगर जरूरत पड़ी तो निकलवा लेंगे। ये सुनकर अरशद की खुशी छुपाए नही छुप रही थी। अब तो बस निशा के अठारह साल के होने का इंतज़ार था जिसमे सिर्फ चार महीने ही बचे थे। अब अरशद हर रोज रात को घण्टो निशा से प्यार की बातें करता उसे आसमान के सपने दिखाता। निशा अभी नासमझ थी उसे पता ही नही था कि वो क्या कर रही है।

खैर अठारह के होते ही दोनों कोर्ट पहुंच गए कुछ संगठनों ने विरोध जताया मगर कोर्ट ने दोनों के बालिग होने का हवाला देते हुए उनकी शादी रेजिस्टर्ड कर दी। दोनों मोहल्ले में ही सलीम चच्चा के घर मे किराए पे रहने लगे। मगर अरशद को झटका तब लगा जब निशा के पिता ने कोर्ट में अपनी संपत्ति अपने भतीजों और बीबी के नाम कर दी क्योंकि बो संपत्ति उसकी पैतृक नही थी बल्कि उसने खुद कमाई थी

इसलिए बच्चों को देना न देना बाप की मर्जी थी। अब अरशद के पास निशा की बचत और सामाजिक संगठनों द्वारा दिये कुछ पैसे ही बचे थे रोज के रोज हालात खराब होने लगे निशा भी छटपटाने लगी मगर अब कोई रास्ता नही था। मां बाप उसका श्राद्ध कर चुके थे अब एक कमरे में बंद उसकी जिंदगी नरक बन चुकी थी मगर अभी उसके बैंक में थोड़े पैसे बचे थे इसलिए अरशद रात को उसके साथ ही रहता।

उधर रुकसाना को रिश्ता अपने देवर बसीम से गहराता गया जो अभी अठारह से थोड़ा कम था। रुकसाना ने बसीम को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया। वो बसीम को रास्ते से हटाने के लिए कहती है मगर बसीम इसके लिए राजी नही होता। तो रुकसाना उसे अपनी अगली योजना बताती है कि यदि तुम निशा को ठिकाने लगा दो तो उसकी हत्या का आरोप अरशद पर लगेगा इससे अरशद जेल चला जाएगा और हम दोनों आराम से एक दूसरे के साथ रह पाएंगे फिर हमें रोकने वला कोई नही होगा।

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बसीम इसके लिए तैयार हो जाता है उसे पता था कि भैया शाम को सात बजे तक ही किराये वाले घर मे जाते हैं वो उससे थोड़ा पहले जाता है निशा उसे जानती थी दरवाजा खोलते ही पूछता है कि भैया नही आए क्या कुछ काम था उनसे। निशा कहती है कि अभी आने ही वाले हैं तुम बैठो में चाय बनाटी हूँ।

बसीम अपने साथ बड़ा सा छुरा लेकर आया था अंदर जाते ही ताबड़तोड़ बार करके निशा की हत्या कर देता है। छुरे की हत्थी कपड़े से साफ करके निशा के पेट मे ही छोड़कर भाग जाता है। थोड़ी ही देर में अरशद आता है जब वो निशा को खून से लथपथ देखता है तो छुरा पेट से बाहर निकालकर उसे अपनी गोदमें रखकर पूछने लगता है मगर वो तो मर चुकी थी अरशद के कपड़े खून से रंग गए और हाथों के निशान छुरे पर। 

बदहवास होकर वो बाहर आकर चिल्लाने लगता है लोग इकट्ठा हो जाते हैं बात मोहल्ले में आग की तरह फैल जाती है और दोनों समुदाय आमने सामने। अल्पसंख्यक समुदाय के गिनती के ही घर थे इसलिए वो लोग घरों को ताले लगाकर भाग जाते हैं आक्रोशित भीड़ के आगे जो भी समान गाड़ी उसके समुदाय वालो की आती है सबमे आग लगा दी जाती है। अरशद को पीट पीटकर अधमरा कर दोए जाता है मगर मौके पर पुलिस आकर उसकी जान बचा लेती है। जब जांच पड़ताल होती गई कैमरे चेक होते हैं

तो अरशद का भाई पकड़ा जाता है उससे पूछताछ में रुकसाना भी पकड़ी जाती है मगर जो दोनों समुदाय आपस मे राम सलाम करते थे एक दूसरे के सुख दुख में खड़े होते थे उनके बीच नफरत की ऐसी दीवार खड़ी हो जाती है जिसे चाहकर भी कोई मिटा नही सकता था। अब वो लोग अपने घरों में बापिस तो आ गए मगर मोहल्ले में न तो कोई उनसे ब्यापार करता है न सुख दुख में शामिल होता है। अब सेवईयां और गुज्जिया तो दूर एक दूसरे का हाल पूछना भी गंवारा न था। ये नफरत की दीवार बेशक जमीन पे नही बल्कि दिलों में खड़ी थी मगर इसकी गहराई का अंदाज़ा किसी को नही था। 

           अमित रत्ता

      अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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