सब्जीवाले की आवाज सुनकर कविता, रोमा और निम्मी अपने-अपने घरों से बाहर निकल आईं, ‘क्या बात भैया ? दो दिन आए नहीं, सब ठीक तो है न ?’ कविता ने पूछा।
‘हां जी मैडम ! बस पास के गांव में अपने माता-पिता से मिलने चला गया था, लेकिन उस दिन आपने मशरूम लाने को कहा था, सो आज लाया हूँ’ कहकर सब्जीवाले ने मशरूम का पैकेट कविता की ओर बढ़ा दिया।
फिर, तीनों पड़ोसनें अपनी-अपनी सब्जियां चुनने के साथ- साथ गपशप में भी मशगूल हो गईं। दरअसल अपने-अपने पतियों और बच्चों को भेजने के बाद सब्जी खरीदने के साथ-साथ सुबह की
गपशप के लिए यह उनका सबसे बढ़िया समय होता है, क्योंकि इसमें केवल ये तीनों ही शामिल होती हैं और तीनों ही आलोचना-पुराण में खूब माहिर हैं। कॉलोनी में किस-किस परिवार में कब, क्या और
कैसे चल रहा है, इसकी सूचना देने में मानो तीनों में होड़ लगी रहती है और किसी की भी बखिया उधेड़ने में तीनों ही एक से बढ़कर एक कुशल हैं।
तभी तीन घर दूर वाली विभा को भी अपनी वाली रेहड़ी पर आते देखकर कविता फुसफसाई, बा अदब ! बा मुलाहिजा ! होशियार ! टोकरी वाली मैडम आज इधर ही पधार रही हैं।’ फिर आंखों में एक दूसरे को इशारा करते हुए तीनों के चेहरे पर एक व्यंग्यमय मुस्कान आ गई।
विभा का परिवार अभी पिछले माह ही इस कॉलोनी में शिफ्ट हुआ है। दो बच्चे हैं। दोनों नगर के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में पढ़ते हैं। विभा भी एक अन्य विद्यालय में नौकरी करती हैं। अतः परिवार के
सभी सदस्य सुबह ही घर से निकल जाते हैं। नौकरी से वापिस आने पर भी विभा का घर की देखभाल,
बच्चों को पढ़ाना, शाम के नाश्ते-रात के खाने की व्यवस्था आदि की व्यस्तता में ही समय निकल जाता है।
इस एक माह के दौरान विभा का सुबह-सुबह ही बन-संवरकर घर से निकल जाना अनेक बार घर में रहने वाली इस मित्र-मंडली की ईर्ष्यावश चर्चा का विषय बन चुका है। अतः उसे अपनी तरफ आते देखकर इनकी खुसफुसाहट स्वाभाविक ही थी।
विभा के हाथ में सब्जी लेने के लिए एक टोकरी थी। निकट आकर उसने उन तीनों को ‘गुडमॉर्निंग’ कहा और सब्जी वाले को एक किलो टमाटर तौलने के लिए कहते हुए उन तीनों की और
मुखातिब होकर हंसते हुए बताया कि आज सिर्फ टमाटर ही लेने थे, सो सोचा कि आप लोगों के पास आकर ही ले लूँ। इसी बहाने आप सबसे दुआ-सलाम भी हो जाएगी’
‘चलो टमाटर ने ही सही, किसी ने आपको हमसे मिलने को मजबूर तो किया, अन्यथा आप तो सब्जीवाले भैया को अपने गेट के सामने ही खड़ा कर लिया करती हैं।’ निम्मी के लहजे में व्यंग्य साफ झलक रहा था।
‘सबसे मिलना-जुलना शायद इन्हें पसंद नहीं है?’ कहकर रोमा ने भी अपना व्यंग्य बाण छोड़ दिया था।
‘अब हमारे संग सब्जी खरीदेगीं तो समय और बातों में लगने वाली एनर्जी दोनों का नुक्सान होगा न ? ‘कविता भी कहां पीछे हटने वाली थी।
‘नहीं जी, नफा-नुक्सान जैसा कुछ नहीं है।अभी घर की सैटिंग में ही काफी व्यस्त हैं हम लोग। दरअसल नौकरी के कारण घर में कम ही समय मिल पाता है न । बस कुछ दिनों की ही बात है।’
कहकर विभा ने सब्जीवाले से टमाटर अपनी टोकरी में डलवाए ,उनका भुगतान किया और मुस्कुराते हुए चली गई।
और उसके द्वारा अपने घर में प्रवेश करते ही ‘घर की सैटिंग या पैसे बचाने के लिए खाली लिफाफों की सैटिंग ?’ कहकर रोमा ने ठहाका लगाया तो कविता तथा निम्मी भी खिलखिला कर पड़ीं।
‘अरे भैया ! इन मैडम से सब्जियों के खाली लिफाफे किस रेट में लेते हो या फिर सब्जी का ही रेट कम लगा लेते हो ? ‘ रोमा एक बार फिर खिलखिलाई ।
‘लिफाफों के लेनदेन के कारण ही शायद मैडम तुम्हें अपने गेट पर ही रोक लेतीं हैं ? कितना नफा कमा रही हैं वे ?’ यह कविता की खिलखिलाहट थी।
लेकिन, सब्जीवाले के ‘मैडम आप किन लिफाफों की बात कर रही हैं ? मैं कुछ समझ नहीं पाया ?’ कहते ही वे तीनों एक साथ बोल पड़ीं, ‘भैया इतने भी भोले मत बनो तुम। हमने कई बार देखा है कि तुम से सब्जी लेने के बाद वह तुम्हें सलीके से तह किए हुए कई लिफाफे पकड़ाती हैं और तुम उन्हें
संभालकर अपनी रेहड़ी में रख लेते हो। तुमसे सब्जी लेने के लिए तो वह हमेशा अपनी टोकरियों का इस्तेमाल करती हैं। तो, फिर इन लिफाफों की क्या कहानी है ?’
अरे मैडम जी! आप गलत समझ रही हैं। दरअसल जब पहले दिन उन्होंने मुझसे सब्जी खरीदी थी और मैंने अलग-अलग लिफाफों में सब्जियां डालनी चाहीं तो उन्होंने मुझे रोक दिया था और अंदर से
अपनी दो टोकरियां लाकर बोली थीं, ‘मेरी सब्जियों के लिए अपने इतने लिफाफे खराब मत करो बल्कि इन टोकरियों में डाल दो।’
‘लेकिन इससे तो आपकी सभी सब्जियां मिक्स हो जाएंगी और आपका काम बढ़ जाएगा ?’
‘परंतु इससे तुम्हारे थोड़े से पैसों की बचत के साथ-साथ लिफाफों की बर्बादी होने से भी तो बच जाएगी। मैं अभी कुछ ही देर में ये सभी सब्जियां साफ करके फ्रिज में रख दूंगी और सभी लिफाफे डस्टबिन में डालने पड़ेंगे। ये तो लिफाफों की बर्बादी ही हुई न ?’
फिर उन्होंने मुझसे पूछा, ‘भैयाजी,अगर आप बुरा न मानो तो मैं अपने राशन आदि के लिफाफे भी आपको दे सकती हूँ। हम जहां से शिफ्ट हुए हैं, वहां के सब्जीवाले भैया तो मेरे द्वारा करीने से तह किए हुए लिफाफों को खुशी से ले लेते थे। ये लिफाफे हल्के से तुड़े-मुड़े ही होते हैं, क्योंकि मैं घर
लाकर इन्हें खोलते ही सलीके से तह कर लेती हूँ। अत: आप इनका इस्तेमाल अपनी सब्जियां डालने के लिए कर सकते हो’
और, ‘मैडम जी! अंधा क्या चाहे दो आँखें ?’ कहकर उसी दिन से मैं उनसे खाली लिफाफे लेने लगा। इससे एक प्रकार से वे मेरी मदद ही कर रही हैं।’
अब रोमा, कविता और निम्मी तीनों
एक दूसरे से ही नजरें चुरा रही थीं।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब
#ईर्ष्या