बहन, मैं तो बहुत खुश हूं, रिया के लिए हमें इतना अच्छा घर बार मिल रहा है, लड़के की सरकारी नौकरी है, रहने लायक घर भी है, बहन शादी शुदा है, ससुर की भी पेंशन आती है, रेशमा कह रही थी कि रेनू यानि की रिया की होने वाली सास भी स्वभाव की अच्छी है, हमें और क्या चाहिए, अब रिया भी नौकरी ढ़ूढ़ रही है, कम्यूटर कोर्स कर चुकी है। कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी, कहो तो लड़के वालों को बुला लें किसी दिन, दोनों एक दूसरे को देख भी लेगें और परिवार भी आपस में मिल लेगें”।
जैसा आप ठीक समझो भैया, मुझे तो कुछ नहीं कहना, बस रिया को पंसद आना चाहिए।आप अपनी भांजी के लिए अच्छा ही सोचोगे। अब तक सब आपने ही किया है, अगर आप हमें सहारा न देते तो न जाने हम मां बेटी कहां दर दर की ठोकरें खाती, यह कहते हुए संजना की आखों से आसूं बहने को हुए, लेकिन उसने मुँह दूसरी और करके चुपके से पोंछ लिए।
उसे पता था कि उसका भाई राजन उसे रोता नहीं देख सकता था। वैसे तो संजना की किस्मत में शायद शुरू से ही रोना लिखा था। राजन संजना से पांच साल बड़ा था। संजना के जन्म के दस साल बाद ही उनकी मां की कैंसर से मौत हो गई। पिताजी की गुजारे लायक कपड़े की दुकान थी, राजन ने वही संभाल ली क्यूकिं पिताजी भी बीमार रहने लगे थे।
नीरू से राजन की शादी हो गई। वो स्वभाव की अच्छी थी। ननद संजना को उसने बहन सा प्यार दिया और समय आने पर अपनी हैसियत मुताबिक अच्छे घर में शादी भी कर दी।
लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया, स्कूटर एक्सीडैंट में पति की मौत हो गई, नन्हीं रिया को लेकर वो भी पीछे बैठी थी , रात का समय था, कोई कार वाला मारकर भाग गया। कुछ पता नहीं चला। आठ महीने की रिया को लेकर संजना मायके आ गए। ससुराल वालों ने नहीं रखा। एक देवर था और सास ससुर। कुछ ज्यादा था भी नहीं कि वो हिस्सा मांगती। पति किसी प्राईवेट फर्म में था, तरस खा कर वहीं संजना को चपड़ासी की नौकरी मिल गई।
भाई भाभी ने सहारा दिया। उनके एक बेटा बेटी के साथ रिया भी पलने लगी। संजना की नौकरी प्राईवेट थी परंतु गुजारे लायक तनख्वाह मिल जाती, भाई की दुकान भी ठीक चल रही थी, कुल मिलाकर गुजारा हो जाता, लेकिन तीनों बच्चों की पढ़ाई लिखाई और दिन प्रतिदिन बढ़ती मंहगाई, लेकिन घर में शांति थी। ननद भौजाई और बच्चें आपस में मिल कर रहते। वरना तो आजकल इस तरह बहन का बेटी के साथ भाई के घर रहना इतना आसान भी नहीं।बेटी राजन की भी शादी योग्य थी परंतु वो रिया से दो साल छोटी थी, उसका बेटा बड़ा था, लेकिन राजन पहले दोनों लड़कियों की ही शादी करना चाहते थे। इसी बीच पिताजी भी चल बसे।
रिया के रिशते को आगे बढ़ाने की बात राजन ने रेशमा से कह दी थी। रेशमा राजन के पुराने दोस्त केशव की बीवी थी, दोनों बचपन के दोस्त थे, काफी आना जाना था, मधुर, रेशमा का भतीजा था जो कि सरकारी बैंक में तीन साल पहले ही लगा था। मिडल क्लास फैमिली थी। राजन ने केशव को कह रखा था रिशते के लिए, तो बात चल पड़ी।
रिया, संजना, राजना , और नीरू इधर से आए और उधर से रेशमा, केशव और मधुर के साथ उसके माता पिता और शादीशुदा बहन आई।सब होटल में मिले। राजन ने केशव से पहले ही कह रखा था कि उनके पास सिर्फ लड़की ही है। लेन देन की उम्मीद न रखे, सादा समारोह में शादी होगी। केशव तो सब जानता था।
रिया, मधुर की भी कुछ बातचीत हुई, एक तरह से सब ठीक ही था। यहां तक कि बात मंगनी का मुहुर्त निकलवाने तक पहुंच गई। लड़के वाले थोड़ी देर के लिए वहां से उठकर चले गए। राजन को लगा कि आपस में कुछ सलाह मशवरा कर रहे होंगे।रेशमा यानि कि लड़के की बुआ जिसने रिशते की बात चलाई थी, इधर उधर की बातों के बाद कहने लगी, वैसे तो मेरे भाई के पास सब कुछ है,कोई मांग नहीं, पुराना ही सही पर तीन कमरे का अपना घर हैं, जिस कमरे में मधुर और रिया को रहना होगा उसमें ए. सी, फर्नीचर , टीवी वगैरह कुछ नहीं, एक कमरे में भाई भाभी सोते है, एक में मधुर और उसकी बहन थे, बहन की तो शादी हो गई , बहुत खर्च हो गया वहां का सब सामान भी पुराना ही हो गया है।नए शादी शुदा जोड़े को तो नया सामान ही अच्छा लगता है। कोई कुछ नहीं बोला तो रेशमा फिर कहने लगी,
मधुर की बहुत समय से कार लेने की इच्छा थी पर ले ही नहीं पाया, बेचारा स्कूटर पर ही दस किलोमीटर दूर बैंक जाता है। केशव समेत सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे।लेकिन किसी की परवाह न करते हुए रेशमा मुँह में चाशनी सी घोलते हुए फिर बोली, हर कोई अपनी लड़की को ही देता है। थोड़ा बहुत तो करना ही पड़ता है।
“ लेकिन बहन जी, मैनें तो केशव को सब पहले ही बता दिया था, मेरी लड़की की भी शादी करनी है”, राजन रूक रुक कर बोला।
वो मैं सब समझती हूं भाई साहब, लेकिन एक तरीका है, मधुर संजना भाभी के नाम से बैंक से कार लोन ले देगा, बस थोड़ी सी पेंमट पहले करनी होगी, बाकी किशते संजना जी धीरे धीरे चुकाती रहेगी। दस लाख में बढ़िया कार आ जाएगी। सब को आराम हो जाएगा। नौकरी तो सिर्फ संजना की ही है, और किसी को तो लोन मिलना भी मुशकिल होगा।
यह सुनकर रिया के तनबदन में आग लग गई, कैसे लोग है, एक मुँह , दो बात। यह इन सबकी मिली भगत है, तभी बाकी सब उठ कर बाहर चले गए। राजन, नीरू, संजना एक दूसरे का मुंह देखने लगे, एक दम से चुप्पी छा गई। केशव को भी रेशमा की इस चाल का पता नहीं था, वो उसकी और घूर रहा था, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे।
तभी रिया उठकर खड़ी होते हुए बोली, चलो मुझे मंजूर है, मेरी मां के नाम पर लोन ले लेगें और किशते भी देते रहेगें, परंतु मेरी भी एक शर्त है, माँ भी हमेशा हमारे साथ रहेगी।
ये कैसे हो सकता है, रेशमा को जैसे सांप सूंघ गया, उसे कतई ऐसी उम्मीद नहीं थी।ये नहीं हो सकता तो वो भी नहीं हो सकता। दिल तो करता है कि अभी पुलिस बुला लूं, आपने न सिरफ दो मुंही बात की है बल्कि मामा और केशव मामा की बरसों की दोस्ती को भी खत्म कर दिया।
चलो माँ, चलो मामाजी, मामी जी, ऐसे लालची और एक मुँह से दो दो बातें करने वालों के मुंह नहीं लगना।ऐसे लोगों से रिशता मुझे मंजूर नहीं, और वो सब उठकर चले गए। केशव सोच रहा था कि कैसे राजन को मुँह दिखाएगा। रेशमा की इस हरकत ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़।
कहावत- एक मुँह, दो बात।