“…अम्मा कौशल की बहू है… आशीर्वाद दो…!” अम्मा ने हाथ उठाकर जमुना के सिर पर रख दिया… फिर अचानक भरे गले से, थरथराती आवाज में चिल्ला कर बोली…
“आज भी मेरे कंगन दोगी या नहीं… अरे मुझे नहीं दिए, कम से कम बहू को मुंह दिखाई में देने को तो दे दो… सब धोखेबाज हैं… बेईमान कहीं के… सबको हाय लगेगी… मेरे कंगन खा गए… मुझे मेरे कंगन चाहिए……!”
बुढ़िया और भी न जाने क्या-क्या बोलती रही… जमुना की सास कल्याणी ने जल्दी से जमुना का हाथ पकड़ा और कमरे से निकल गई… जमुना ठगी सी पलट कर देखने लगी तो कल्याणी बोली…
” बेटा अम्मा बूढी हो गई है ना… इसलिए जो सो बड़बड़ाती रहती है… तुम चलो अपने कमरे में…!”
बुढ़िया दादी सास के कमरे से बहुत देर तक आवाजें आती रही… जमुना को ससुराल आए अभी कुछ घंटे ही हुए थे… उसी में इतना हल्ला गुल्ला सुनकर उसका मन उदास हो गया था… बाहर घर की दूसरी औरतें उसकी सास को सुनाने में लगी थीं…
” क्या जरूरत थी नई बहू को अम्मा के पास ले जाने की… पता नहीं किस जमाने के, कौन से कंगन थे बुढ़िया के… जीना मुश्किल कर रखा है… नहीं जाती बुढ़िया के पांव पड़ने तो क्या हो जाता… और इतना था तो सोए में लगवा लेती पांव… अब तो हो गया… जाने कितने दिन तक फिर वही माला जपती रहेगी… शरीर में जान तो रही नहीं, पर आवाज अभी भी वही कड़क है… पिछली बार याद नहीं… संतोषी बहू के आने पर पूरे एक हफ्ते तक गालियां देती रही थी…!”
कल्याणी सबको शांत करते हुए बोली…” जाने दो… बोलेगी तो सुन लेंगे… आखिर अम्मा ने इसी घर परिवार के लिए तो अपना सब कुछ लुटा दिया ना… रहने दो…!”
अम्मा ठीक हफ्ते भर तक कुछ ना कुछ सबको देखते ही बोलने लगती…” लाओ मिल गए… कहां हैं… अरे अभी तक नहीं मिले… !”
कुछ भी जो जी में आता… जमुना ने अपने पति कौशल से पूछा…” क्या बात है… दादी अम्मा क्या बोलती है…!”
” रहने दो… तुम नहीं समझोगी… मैं भी इन सब झमेलों में नहीं पड़ता…!” जमुना का मन पूरी बात जाने बिना बेचैन हो रहा था… आखिर एक दिन अपनी सास को अकेला पाकर वह उनसे पूछ बैठी…
” क्या बात है मां… दादी अम्मा क्या बोलती रहती है… बताइए ना… कोई कंगन है क्या…!”
कल्याणी हंस पड़ी…” अभी से तुझे बातों की बड़ी समझ हो गई बहुरानी…!”
” बताइए ना मां…!”
” पहले दादी के पास बहुत से गहने थे… सात बच्चे हो गए… दादाजी की कोई ढंग की कमाई थी नहीं… तो एक-एक कर अम्मा के सारे गहने घर की जरूरत में स्वाहा हो गए… जब मैं ब्याह कर आई, तब भी अम्मा के पास कुछ गहने थे… जिनमें एक था एक जोड़ी सोने का कंगन… चमकता हुआ… चार तोले का… अम्मा उन कंगनों से बहुत प्यार करती थी… जान बसती थी अम्मा की उनमें… बाकी सभी गहने अम्मा ने घर, परिवार… बेटियों के विवाह, विदाई में लुटा दिए… मगर वह कंगन उसने कभी किसी को हाथ नहीं लगाने दिए…
करीब 10 बरस पहले की बात है… छोटी ननद की ब्याह में घर गिरवी हो गया था… पर अम्मा ने कंगन नहीं दिए थे… तब दादा जी जिंदा थे… एक दिन दादाजी ने कहीं से चाबी लेकर सोए में अम्मा के कंगन निकाल लिए… और ले जाकर घर छुड़ा लाए…दादाजी ने हमें मना कर दिया… कहा कि वह खुद समझा बुझा कर बता देंगे… लेकिन इसका दुख उन्हें भी बहुत हुआ… कंगन लेने के महीने भर भी नहीं हुए कि दादाजी चल बसे…
दादा जी के जाने के बाद, एक दिन अम्मा ने तिजोरी खोली… तो कंगन नहीं… अम्मा तो जैसे पागल हो गई… किसी में हिम्मत कहां थी जो उन्हें सच बता सके… तब से कोई भी तीज त्यौहार हो… शादी ब्याह हो… अम्मा को अपने कंगन की याद आ जाती है… और हमारी शामत… अब तो बुढ़िया की जान पर बन आई है… लेकिन फिर भी पता नहीं, उन कंगनों के मोह में कैसे पड़ी हुई है… लगता है उसी में जान अटकी है अम्मा की… !”
बात आई गई हो गई… जमुना भी अपने ससुराल में ढल गई थी… कौशल अच्छा कमाता था… जमुना का परिवार भी अच्छी स्थिति में था… उसे ब्याह में एक जोड़ा सोने के कंगन मिले थे… उतने वजनी तो नहीं थे, पर उसके माता-पिता ने बड़े प्यार से अपनी गाढ़ी कमाई जोड़कर उसे भेंट किया था…
दीपावली के दिन जमुना को अपने कंगन की याद हो आई… अच्छे से तैयार होकर जमुना ने अपने हाथों में वह कंगन भी डाल लिए… रात को पूजा समाप्त हो जाने के बाद बारी आई सबके पैर छूने की… जमुना बारी-बारी सबके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हुए दादी सास के पास भी पहुंच गई… अचानक दादी ने उसका हाथ पकड़ लिया…
बुढ़िया चिल्ला उठी…” ये रहे मेरे कंगन… मिल गए… मिल गए… मैं जानती थी… इन्हीं लोगों ने दफन रखा है… निकाल मेरे कंगन… खोल… खोल इन्हें…!”
जमुना ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो अम्मा ने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया…” चोट्टी भागती कहां है… ला मेरे कंगन…!”
घर में सबका जमावड़ा लग गया… सब उसे छुड़ाने की कोशिश करने लगे… लेकिन बुढ़िया जिद पर अड़ गई… चिल्लाने लगी… तब जमुना ने एक हाथ से सबको चुप रहने का इशारा किया… और हौले से एक हाथ से कंगन… फिर दूसरे हाथ से, निकालकर अम्मा के हाथों में पहना दिया… अम्मा की आंखें खुशी से फैल गई…
एक अजीब सा संतोष उसके चेहरे पर खिल गया… वह मारे खुशी के बच्चों की तरह नाचने लगी… गीत गाने लगी… अम्मा ने उस रात छक कर मिठाइयां खाई… हाथों में कंगन चमकाते देर तक तालियां पीटती रही… बच्चों के साथ पटाखे जलाती बैठी रही… रात को देर रात तक जो जी में आया… खाती, पीती, गाती, खुशी-खुशी हाथों में कंगन लिए सो गई…
यह अम्मा की आखिरी चैन की नींद थी… अम्मा की सांस रात ही तृप्त होकर चली गई… सुबह चेहरे पर एक गहरी शांति के साथ बुढ़िया निर्जीव पड़ी थी…
कल्याणी ने कंगन उनके निर्जीव हाथों से निकाल कर जमुना को थमा दिए…
प्यार से आंसू भरे भाव के शब्दों में इतना ही कहा…” अपनी दादी सास को मुक्ति देने के लिए धन्यवाद बहुरानी… यह कंगन नहीं उनकी मुक्ति का मार्ग थे…!”
रश्मि झा मिश्रा