रामप्रसाद जी और कौशल्या जी अपनी तीन लड़कियां और दो लड़कों के साथ दिल्ली के करोल बाग में हंसी-खुशी जीवन यापन कर रहे थे…
सीता गीता ,मीता ,राम और श्याम सभी बच्चों में बहुत प्यार और अपनापन था….. सबसे बड़ी बेटी सीता देखने में बहुत खूबसूरत थी… गीता भी सुंदर थी… पर मीता का रंग जरा दबा हुआ था……धीरे-धीरे वक्त का पहिया चलता गया और बड़ी बेटी सीता जो की 22 वर्ष की हो चुकी थी उसकी शादी का वक्त आ गया…..
जैसा कि आगे बताया गया की सीता बहुत खूबसूरत थी…. इसलिए एक से बढ़कर एक अमीर घराने के रिश्ते खुद चलकर उसके लिए आ रहे थे…
बस सीता के पसंद करने की देर थी…. आखिरकार गोल्ड मेडलिस्ट बिजनेस टायकून सचिन अग्रवाल से सीता का रिश्ता तय हो गया… रामप्रसाद जी और कौशल्या जी ने खूब धूमधाम से सीता की शादी की….. क्योंकि घर में पैसों की कोई कमी तो थी नहीं…. सीता भी अपने ससुराल में बहुत खुश थी….. उसका तो पीहर और ससुराल दोनों ही धन- धान्य से समृद्ध और संपन्न था….. धीरे-धीरे वक्त बीतता गया…
और एक-एक करके सभी बच्चों की शादी हो गई….. गीता को भी अच्छा वर और घर मिल गया…. वह भी अपने ससुराल में खुश थी…. दोनों भाइयों की भी शादी हो गई …स्मार्ट और पढ़े-लिखे होने के कारण उन्हें भी सुंदर और सुशील जीवनसंगिनी मिल गई….
बस मीता का रंग दबा होने के कारण उसे एक साधारण मध्यमवर्गीय घर का लड़का मिला जिसका नाम मुकेश था….. जो कि गरीब तो था…और देखने में भी उतना ज्यादा अच्छा नहीं था….. पर मीता ने भी अपने रंग को देखते हुए खुशी-खुशी हां कर दी…. पर घरवाले इस रिश्ते से बिल्कुल भी खुश नहीं थे…. क्योंकि यह रिश्ता किसी भी लिहाज से उनकी बराबरी का नहीं था….
इसलिए मीता के घर वाले लड़के वालों को तिरस्कार करने में कहीं भी नहीं चूके…. हर छोटी से छोटी रस्म में उनके दिए हुए सामान और साज सज्जा में कमी निकालकर उन्हें हर बार तिरस्कृत किया….
फिर चाहे वह हल्दी की रस्म ,तिलक की रस्म ,मेहंदी या फिर शादी …. सब में उन्हें अपमानित किया …फिर भी लड़के वाले चुपचाप सब कुछ सहन कर रहे थे…..
यह सोचकर की शादी होने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा…. पर मीता को बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि अब वह भी उस घर का हिस्सा थी… उसने अपने घर वालों को बहुत समझाया लेकिन उन्होंने उसकी एक न सुनी….. मीता भी खून का घट पीकर रह गई यह सोचकर कि वक्त सब कुछ ठीक कर देगा…..
जैसे तैसे शादी निपट गई… मीता ने भी ससुराल में कदम रखते ही सारे घर की बागडोर अपने हाथ में ले ली…. ससुराल वाले भी मीता के व्यवहार और अपनापन से बहुत खुश थे….. लेकिन मीता के घर वालों में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया…..
मीता के ससुराल वालों को उनकी गरीबी को लेकर छींटाकशी कर उन्हें तिरस्कृत करने का एक मौका भी नहीं छोड़ते थे….
मीता जब भी अपने पति के साथ में पीहर जाती…. तब वो चाहे जितनी भी अच्छी से अच्छी दुकान की पेस्ट्री ,आइसक्रीम, मिठाई लेकर जाए…. उसके पीहर वाले ब्रांडेड नहीं है… यह कहकर अपमानित करने से बाज नहीं आते….
इतना ही नहीं यह भी कहते … कि इससे अच्छी आइसक्रीम , पेस्ट्री तो हमारे नौकर खाते हैं….
यह तो अब रोज का हो गया था
कोई भी फंक्शन हो मीता के घर पर या किसी की एनिवर्सरी… सब में कभी उनके गिफ्ट में कमी, तो कभी उनके कपड़ों पर टिप्पणी…
मीता के घर वालों ने तो जैसे उसके ससुराल वालों की बेइज्जती करने की ठान ली थी….
अब मीता के के सब्र का वाण टूट चुका था… आखिरकार उसने एक दिन अपने पूरे परिवार के सामने जब उसकी बहनें ,भाई -भाभी , मम्मी -पापा सभी थे… तब उसने कह दिया कि…. अगर आपको मेरे ससुराल वालों की गरीबी से इतनी परेशानी है… और आप कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं है…. तो आप सब अपने धन जायदाद में से थोड़ा थोड़ा दे क्यों नहीं देते…. या उन्हें कोई अच्छा सा व्यापार क्यों नहीं करवा देते???
आप लोगों के पास तो बहुत पैसा है ना??
क्या फर्क पड़ेगा समुद्र में से एक लोटा निकल भी जाए तो???
मीता की बातें सुनकर सबकी बोलती बंद हो गई…
कुछ देर पश्चात मीता ने कहा अब क्या हुआ किसी की आवाज क्यों नहीं निकल रही??
बस इतना छोटा सा दिल है आप लोगों का??
देखिए आज मैं आखरी बार आप लोगों से कह रही हूं कि…. अब पानी सर से ऊपर आ चुका है… अब मैं अपनी और अपने ससुराल वालों की बेइज्जती नहीं सहुंगी…. ना हीं एक भी अपमानजनक शब्द बर्दाश्त करूंगी…
अगर आप लोगों को हमसे रिश्ता रखना है तो हमें भी वही आदर व सम्मान देना पड़ेगा… जो आप दोनों दीदी के ससुराल वालों और भाभियों के पीहर वालों को देते हैं…
नहीं तो भूल जाइए कि आपकी एक और बेटी थी…
मैं समझूंगी मेरे पीहर में कोई है ही नहीं…
हां यह आसान तो नहीं होगा… लेकिन रोज-रोज आप लोगों के मुंह से इतनी जली – कटी और अपमानजनक बात से मेरा दिल छलनी छलनी हो गया है….जरा सोचिएगा जैसे आप मेरे अपने हैं… वैसे ही वो भी मेरे अपने हैं…
उन्हें कितना बुरा लगता होगा… जब बिना किसी कसूर के इतना तिरस्कार उन्हें सहना पड़ रहा है….ये तो उनका बड़प्पन है… कि आप लोगों को कभी पलट कर बेइज्जत नहीं किया…
वो गरीब है… ये आप सबको पहले से पता था…. अगर इतनी ही आप लोगों को गरीबी से नफ़रत थी…. तो आप लोगों को उनसे रिश्ता ही नहीं जोड़ना था…
खैर छोड़िए… आप लोगों से बात करना ही बेकार है…शादी के ३ साल बाद तक भी आप लोग उन्हें नहीं अपना पाए… तो अब क्या ही अपनाएंगे….
जाते -जाते एक बात कहूंगी…. कि मेरे
पति और ससुराल वाले इतने खुद्दार है… कि बिना हक का किसी का १ रूपया नहीं लेते..
मैं तो आप लोगों की सोच देखना चाहती थी… लेकिन आप तो सोच से इतने छोटे और गरीब है…
जितने उनके पास पैसों का अभाव होने पर भी नहीं है….
मुझे फक्र है… कि उस घर की बहू हूं.
दोस्तों आपको क्या लगता है मीता ने अपने पीहर वालों से रिश्ता तोड़ कर सही किया???
क्या मीता के घरवाले सही थे??
मेरे विचार तो ये है… कि मीता ने सही किया… हां ये आसान नही था…
लेकिन जब अति हो जाए तो आदमी क्या करें…
शादी के बाद एक लड़की दो घरों का मान होती हैं…. इसलिए किसी का भी अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकती… और वो भी तब जब सामने वाले की गलती ही ना हो…
आपकी राय जरूर बताइएगा…
कहानी अच्छी लगी हो तो लाइक कमेंट और शेयर जरूर कीजिए….
आलोचना और सराहना दोनों के लिए स्वागत है…
#तिरस्कार कब तक
आपकी दोस्त
@ मनीषा भरतीया