“ बस करिए पापा… इतना जहर कैसे उगल सकते हैं आप…. जो दिन रात आपके हर काम में लगी रहती है उसको जाहिल गंवार कहते आपकी ज़ुबान लड़खड़ाती क्यों नहीं है….अब तो आप माँ को ऐसे बोलना बंद कर दो…घर में नई बहू आ गई है ये सब देख कर वो क्या सोचेगी सोचा है आपने?” मानस ये कहते हुए अपने पिता के सामने पीठ करके खड़ा हो गया और अपनी माँ को बाजुओं में भींच कर उसके आँसू पोंछने लगा
माँ उसे लाचार नज़रों से देख रही थी और उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो अपने बेटे को पिता से ऐसे बात ना करने की विनती कर रही थी
“माँ कब तक सुनती रहोगी? “बेटे की परेशान आवाज़ से रेवती बस आँखें बंद कर ली
दूसरे कमरे में महिने भर पहले बहू बन कर आई बरखा की आँखें भी नम हो चुकी थीं उसी कमरे में उसका पति मानव ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था शीशे में बरखा की नम आँखों को देखकर आँखों से क्या हुआ …इशारा कर पूछा
बरखा उसके पास आई और बोली,” क्या तुम भी मुझसे ऐसे ही बात करोगे…. क्या तुम भी मुझे जाहिल गंवार कह कर संबोधित करोगे?”
“ अरे मैं ऐसे क्यों कहूँगा वो तो पिताजी माँ को ऐसे ही बोलते रहते हैं वो पढ़ी लिखी नहीं है ना… फिर किसी भी काम को करने में माँ को सौ बार बोलना पड़ता है तो पिताजी ग़ुस्सा हो जाते और माँ को ऐसे लताड़ देते हैं ।” मानव ने अपनी टाई कसते हुए कहा
“अब यहाँ भी यही सब देखना होगा… पता नहीं सब माओं के साथ ऐसा होता है या फिर हम औरतों के साथ…..!” बरखा मन ही मन बुदबुदाई और कमरे से बाहर आ गई
सास के साथ रसोई निपटाने के बाद उसे भी तो काम पर जाना है सोचती हुई वो जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगी।
रेवती जी आज बहुत उदास थी बहु के आने के बाद पति नरेश जी का इस तरह से ऊँची आवाज़ में बोलना उन्हें कहीं ना कहीं कचोट रहा था ।
“ माँ एक बात कहूँ…आप बुरा मत मानिएगा पर मेरे मन में ये सवाल उठ रहा है कि क्या कल को मानव भी मुझे ऐसे ही जाहिल बोलेगा?” बरखा ने बहुत ही धीरे से पूछा
“ अरे नहीं बहू तुम ऐसा मत सोचो… मानव तुम्हें ऐसे क्यों कहेगा तुम तो पढ़ी लिखी नौकरी करने वाली समझदार औरत हो मेरी तरह अनपढ़ गंवार नहीं… जाहिल ही तो हूँ तभी तो तुम्हारे ससुर जी मुझे बोलते हैं ।” रेवती जी कहने को तो कह गई पर एक हुक सी मन में ज़रूर उठी कहीं सच में कल बेटा भी बहू से ऐसे बात किया तो क्या होगा… आजकल की लड़की है सुनने से रही हम लोग तो किसी तरह निबाह लिए पर ये..
खैर बरखा देरी होती देख ऑफिस के लिए निकल गई।
इधर सबके जाने के बाद रेवती जी सारे काम ख़त्म कर कुछ समय के लिए आराम करने लगी तभी दरवाज़े की घंटी बजी देखा तो बरखा आज जल्दी घर आ गई थी
“ अरे बहू आज बड़ी जल्दी घर आ गई… सब ठीक तो है?” रेवती जी ने पूछा
“ हाँ माँ बस जो काम करना था निपटा ली और आधे दिन की छुट्टी लेकर आ गई पता नहीं आज घर में जो कुछ भी हुआ उससे मेरा काम करने का मन ही नहीं हुआ… मुझे आप ये बताइए आज हुआ क्या था जो पापा जी आपको ऐसे बोल गए?” बरखा ससुर की बातों से आहत सास के चेहरे की उदासी देखकर परेशान हो रही थी
“ कुछ नहीं बहू बस तेरे ससुर जी को कोई भी सामान नहीं मिलेगा तो वो मुझपर ही बरस पड़ते है .. वो अपने जरूरी काग़ज़ात कभी अलमारी में तो कभी गद्दे के नीचे रख देते और भूल जाते…उसके बाद मुझसे पूछते रहेंगे कहाँ रख दी… जो चीज़ें मुझे समझ आती वो तो मैं सब सँभाल कर रख देती हूँ पर आज जाने कौन सा कागज खोजे जा रहे थे कह रहे थे बिल था …. बहुत पैसे थे आज ऑफिस में वो जमा करना जरूरी था वही कागज नहीं मिल रहा था… मैं पढ़ी लिखी तो ज्यादा नहीं हूँ बहू पर पांचवीं क्लास तक पढ़ाई की है…तुम्हारे ससुर जी मुझे कैसा कागज है क्या लिखा है ये बता देते हैं तो मैं खोज कर देती भी हूँ पर आज उनके सारे कागज़ों में वो बिल नहीं मिला जिसके लिए वो मुझे सुना रहे थे… क्या करूँ समझदार होती तो जाहिल तो नहीं कहते।” रेवती जी की आँखें पनिया गई
“ माँ आप जितना समझती हैं उतनी कोशिश तो करती हैं पर मेरी माँ वो तो खुद काम करती है फिर भी पिताजी उसे जाहिल कहते रहते …. मुझे नहीं लगता कोई औरत जाहिल होती है… जो अपने बच्चों को सही संस्कार दे सकती जो अपने घर को सलीके से चला सकती …जो परिवार की ज़रूरतों को समझ सकती …जो पढ़ी लिखी ना भी हो पति क्या बच्चों की खोई चीज़ों को सँभाल कर सामने ला देती ..वो जाहिल कैसे हो सकती है…. मुझे आज ससुर जी की बात सुनते ही अपने माता पिता की याद आ गई… मैं हज़ारों बार कोशिश की पिताजी माँ से ऐसे बात ना करे पर माँ मुझे ही चुप करा देती… ये कह कर अरे उनका बोलने का तरीक़ा है थोड़ी ना मैं जाहिल हूँ …..सच कहूँ माँ पर मुझे ये सुनकर बहुत ग़ुस्सा आता था और आज मैं अपनी सास के लिए ये सब सुनकर चुप रह गई… ये बात ही मुझे कचोट रही है…।” बरखा ने कहा
“ अरे बहू इतना मत सोच वो सब तो कह दिया और ख़त्म।” रेवती जी बरखा को समझाने के उद्देश्य से बोली
“ नहीं माँ…. ये सब ऐसे नहीं चलेगा… मानव और मानस को आपके लिए बोलना चाहिए… कोई कैसे अपनी माँ के लिए ये सब सुन सकता है।” बरखा का मन खट्टा हो चला था
मायके में बहुत कोशिश की थी पिता की बातों से माँ को बचाने की पर माँ कह देती अरे छोड़ ना कल को तू दूसरे घर चली जाएगी फिर क्या … पर इस घर में भी वही सब ।
शाम को जब सब घर आकर चाय पी रहे थे तो अचानक से बरखा ने ससुर जी से पूछा,” पापा आज सुबह जो कागज आप खोज रहे थे मिला और नहीं ?”
ये सुनते ही सब बरखा की ओर घूरने लगे
नरेश जी से कोई ऐसे कभी पूछा नहीं था तो वो भी बरखा को तीखी नज़रों से देखने लगे पर बोले कुछ नहीं
“ बताइए ना पापा अगर जरूरी कागज नहीं मिले तो परेशानी जायज़ है हम सब मिलकर खोजेंगे ।” बरखा ने सबकी नज़रों को भांपते हुए आराम से कहा
“ हाँ हाँ मिल गया… वो मेरी जेब में ही था ।” नरेश जी बेरुख़ी से बोले
“ फिर सुबह माँ को इतना कुछ बोलने की ज़रूरत थी क्या?” बरखा ने निडरता से पूछा
“ बहू !!” नरेश जी चिल्लाते हुए बोले
“ पापा जी आपको मुझपर ग़ुस्सा करना है कर सकते है पर उसकी वजह तो हो…मैं अभी इस घर में आई हूँ… पता नहीं माँ ये सब कब से सुन रही होगी…इनके दोनों बच्चों को भी अपनी माँ के लिए ये सब सुनना पसंद आता होगा पर सच यही है कोई भी माँ या पत्नी जाहिल नहीं होती… वो अपनी बुद्धि के हिसाब से हर संभव कोशिश करती है सब सही करने की… अपनी गलती ना होते हुए भी अपनी गलती मान लेती है…आप तो बोलकर चले गए पर पूरे दिन माँ का उतरा चेहरा देखकर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था बस इसलिए मैं आपसे ये सब कह गई… और देखिए ना माँ ने जो काग़ज़ छुआ तक नही उसके लिए भी आपने उन्हें जमकर सुना दिया ।” बरखा पता नहीं कहाँ से इतनी हिम्मत जुटा कर कह गई
मानव बरखा को घूरे जा रहा था कि चुप करो चुप करो …
तभी मानस ने एक हाथ में अपनी माँ का हाथ पकड़ा और दूसरे से अपनी भाभी का और अपने पिता से बोला,” पापा मैं तो हमेशा कहता था मेरी माँ जाहिल नहीं है जो खुद चाहे ज़्यादा ना पढ़ी हो पर हमारी पढ़ाई में क्या चल रहा है वो सब पता करके रखती थी आज हम पढ़ाई कर के कुछ बन पाए है तो माँ की वजह से ही आप तो नौकरी के सिलसिले में ज़्यादातर बाहर ही रहते थे…आपको तो पता भी नहीं रहता था हमारी परीक्षा कब है कब रिज़ल्ट आएगा कब छुट्टी है सब का हिसाब किताब माँ के पास रहता था… आपकी अनुपस्थिति में भी माँ ही हमारे लिए सब करती थी फिर उसे आप जाहिल कैसे कहते रहते थे … बचपन में जब भी माँ की तरफ़दारी करता आपका एक चांटा मिलता पर अब आज आप क्या करेंगे?”
“ माँ के लिए कहने की हिम्मत करने के लिए धन्यवाद भाभी।” मानस ने बरखा से कहा
“ बहुत हो गया तुम लोगों का… अरे पत्नी है वो मेरी उसे कुछ भी कहू किसी को एतराज़ नहीं होना चाहिए ।” नरेश जी ये सब सुनकर तमतमाते हुए बोले
“ एतराज़ है जी… मुझे…. सच कहूँ बहू के सामने आपका ये सब कहना मुझे अच्छा नहीं लगा और जब बहू ने मेरे लिए ये सब कहा तो हिम्मत आई मैं जाहिल नहीं हूँ जी…।” रेवती जी धीरे से बोली
नरेश जी उन्हें घूरने लगे तब इतनी देर से चुप मानव ने कहा,” पापा हम सब तो सुनते हुए बड़े हो गए… ये मान बैठे थे शायद सच में हमारी माँ को ये सब सुनने की आदत हो गई है पर अब लगता है ऐसा नहीं होना चाहिए… घर में कल को मानस की भी पत्नी आ जाएगी तो …।
नरेश जी चाय का कप रखकर उठे और कमरे में चले गए
रेवती जी डरते सहमते उनके पीछे जाने लगी मन में एक भय भी अब ना जाने क्या क्या सुनाए
“ आप ऐसे कमरे में क्यों चले आए जी… मेरी बात बुरी लगी हो तो माफ कर दीजिएगा ।” रेवती जी नज़रें झुकाए बोली
“ मैं सच में बहुत बुरा हूँ ना रेवती … बच्चों ने आज अपने मन की कह दी… सच ही तो कह रहे हैं वो तुमने ही तो सब सँभाला है जाहिल तो मैं हूँ जो कभी ये नहीं समझ पाया कि जो मेरे बच्चों को इस काबिल बना रही वो जाहिल कैसे हो सकती है… मुझे माफ कर दो रेवती … कोशिश करूँगा अब से ऐसा कुछ नहीं कहूँ जिससे घर में सबको तकलीफ़ हो खासकर तुमको।” नरेश जी जो हमेशा अकड़ में रहते थे आज ये सब सुनकर परेशान हो रहे थे
“ ऐसा क्यों कहते हैं जी….जबतक बच्चे थे तो बरदाश्त कर रही थीं क्योंकि कभी बच्चे भी मेरे लिए आवाज उठाते तो आपकी डांट से सहम जाते पर आज जब बहू के आने के बाद ये सब हुआ तो कहीं ना कही मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुँची बस इसलिए मैं भी कह गई…आपको बुरा लगा हो तो आप कहिए जो कहते रहे हैं शायद मैं सच में ही जाहिल…।” रेवती जी कुछ कहती इसके पहले नरेश जी उनके होंठों पर अपना हाथ रखते हुए बोले,” नहीं रेवती हम सब को इतना मान सम्मान देने वाली समझदार पत्नी जाहिल नहीं हो सकती ।”
रेवती जी मुस्करा दी
“ माँ पापा खाना खाने आ जाइए ।” बाहर से बरखा की आवाज सुनकर दोनों खाने की मेज पर आ गए
सब घबराए हुए थे कि लगता है पिताजी ने माँ को खूब डाटा होगा
“ तुम लोग इतने चुप क्यों हो …तुम्हारी माँ को अब कुछ नहीं कहूँगा… चलो सब खाना खाओ ।” नरेश जी की बात सुनकर सब चौंक गए और समझ गए कि अब शायद वो माँ को फिर कभी जाहिल नहीं कहेंगे
रेवती जी नरेश जी की बात सुनकर सोच रही थीं पता नहीं आज भी कई घरों में मर्द औरतों को ऐसे ही जाहिल कहते रहते होंगे पर क्या सच में वो जाहिल होती है???
मेरी रचना पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें क्या रेवती जी जो सोच रही हे वो सही है और गलत?
रचना को अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद ।
रश्मि प्रकाश
# जाहिल