मुँह में ज़बान – विभा गुप्ता

   ” ये क्या बहू, तूने मिसेज़ पंडवानी को मना क्यों नहीं कर दिया।जब देखो कटोरा लेकर कभी चीनी तो कभी दही माँगने चली आती है।चार बार तो मेरे सामने ही आ चुकी है..पीछे में तो…।” निर्मला जी अपनी बात पूरी कर पाती, उससे पहले ही रजनी बोल पड़ी,” जाने दीजिये ना मम्मी, पड़ोसी ही तो पड़ोसी के काम आते हैं..।” कहते हुए वो हँसने लगी तो निर्मला जी को क्रोध आ गया,” ऐसे पड़ोसी..तेरे मुँह में ज़बान है ना..उसका इस्तेमाल कब करेगी..तू कब..।” तब तक रजनी उनके पास से उठकर चली गई थी।

          निर्मला जी का हँसता-खेलता परिवार था।पति हरिकिशन जी बैंक में कैशियर थे।अनिल-आकाश दो बेटे और एक बेटी आरती थी।हरिकिशन जी जब सहारनपुर में पोस्टेड थे, तभी उन्होंने एक अच्छा लोकेशन देखकर घर बनवा लिया था।

       समय के साथ बच्चे सयाने हो गये, अनिल को टाटा स्टील कंपनी में नौकरी मिल गई।कुछ समय बाद उसे रहने के लिए कंपनी की तरफ़ से क्वार्टर भी मिल गया।तब निर्मला जी ने एक अच्छे परिवार की शिक्षित लड़की सरिता के साथ उसका विवाह करा दिया।समय बीतते वो दो बच्चों का पिता भी बन गया।आकाश को मुंबई के एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब करते महीना भर ही हुआ था कि निर्मला जी उसकी शादी का शोर मचाने लगी।तब वो बोला कि आरती के बीए के इम्तिहान खत्म हो रहें हैं।उसे पहले विदा कीजिये।तब तक मैं भी खुद को तैयार कर लूँगा।

       हरिकिशन जी भी यही चाहते थे।भाग्य से घर बैठे ही एक अच्छा रिश्ता मिल गया।शहर के मेन मार्केट में श्री नंदकिशोर जी की कपड़े की दुकान थी।उन्हीं का इकलौता बेटा था सुशील जो पिता के साथ ही दुकान पर बैठता था।लड़का-लड़की की सहमति मिलते ही उन्होंने एक शुभ-मुहूर्त में आरती का विवाह सुशील के साथ कर दिया।साल भर बाद निर्मला जी ने एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की रजनी के साथ आकाश का विवाह करा दिया।

        विवाह के बाद रजनी जब अपने ससुराल आई तब निर्मला जी ने सोचा कि आधुनिक युग की लड़की है..ससुराल में रहना शायद ना चाहे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।उसने आकाश को कहा कि आप जाईये..मैं कुछ दिन सबके साथ रहना चाहती हूँ।आकाश खुशी-खुशी चला गया और वो एक आदर्श बहू की तरह अपने सास-ससुर की सेवा करने लगी।उसकी तत्परता देखकर सरिता भी अपने बच्चों का काम उसे थमा देती और वो हँसते हुए उसे पूरा कर देती।निर्मला जी और हरिकिशन जी ने सोचा, अभी नई-नई है..बाद में ना बोलने लगेगी।

       महीना भर बाद आकाश आया और रजनी को अपने साथ मुंबई ले गया।कुछ ही दिनों में रजनी ने आकाश के दो कमरों के फ़्लैट को प्यार-से संवार कर घर बना दिया और अपने उदार स्वभाव से अपने आसपास वालों से मित्रता भी कर ली।

      अपनी पत्नी में रूप के साथ-साथ गुण पाकर आकाश बहुत खुश था।वो हमेशा किसी न किसी दोस्त को लंच-डिनर पर ले आता जिसका रजनी दिल खोलकर स्वागत करती।इस तरह से वो हरदम व्यस्त रहती।

      कुछ समय बाद निर्मला जी और हरिकिशन जी अपने बेटे-बहू से मिलने आएँ।रजनी की कार्यकुशलता देखकर दोनों बहुत खुश हुए लेकिन बेटे का वक्त-बेवक्त मित्रों को ले आना उन्हें पसंद नहीं आया।साथ ही, पड़ोसियों की मदद के लिये बहू का एक पैर पर खड़े होने से भी वो थोड़े नाराज़ हुए।

       एक दिन फुरसत पाकर निर्मला जी रजनी को समझाने लगी कि ज़रूरत से ज़्यादा उदार होना ठीक नहीं है।जब देखो तुम्हारी पड़ोसिनें कुछ ना कुछ माँगने पहुँच जाती है।उस पर से आकाश.. हर छुट्टी पर अपने किसी दोस्त को ले आता है और तुम किचन में घुस जाती हो..।कभी मना भी कर दिया करो..।कल जब तुम्हारे बच्चे हो जाएँगे, तब इतना काम…।”सब हो जाएगा मम्मी” हँसकर वो टाल देती।आज फिर उन्होंने रजनी को अपनी पड़ोसिन को चायपत्ती देते देखा तो उसे टोक दिया और पैर पटकती हुई अपने कमरे में आकर हरिकिशन जी से बोलीं,” आपकी बहू को समझाना बेकार है..वो गूँगी ही बनी रहेगी..।” 

       कुछ दिन रहकर रजनी के सास-ससुर चले गये।फिर रक्षाबंधन का त्योहार आया तो आरती आ गई।साथ ही, अनिल भी सपरिवार आ गये।उन सबके लिये उसने पकवान बनाये..उनके बच्चों को संभाला लेकिन उसके माथे पर शिकन तक नहीं आई।

        देखते-देखते डेढ़ साल बीत गया।निर्मला जी मुंबई आईं हुई थीं।वो रजनी को परिवार बढ़ाने की सलाह देना चाह रही थी कि एक दिन चाय बनाते हुए रजनी को चक्कर आ गया।निर्मला जी को शक तो हुआ,फिर भी उसे लेकर डाॅक्टर के पास गईं और प्रेंग्नेंसी कन्फ़र्म होते ही उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।उन्होंने तुरंत अपने पति को फ़ोन किया,” एक खुशखबरी सुनिये..।”

   ” क्या #बहू ने ना बोलना सीख लिया!!..।” हरिकिशन पूछने लगे तो हँसते हुए निर्मला जी बोलीं,” नहीं जी…आप फिर से दादा और मैं दादी बनने वाली हूँ।” 

      रजनी को अपना ख्याल रखने और आकाश को मेहमानवाजी पर विराम लगाने का कहकर निर्मला जी वापस सहारनपुर आ गईं।आकाश ने रजनी का पूरा ख्याल रखा..निर्मला जी और आरती फ़ोन करके रजनी का हाल-चाल पूछती रहतीं।

         समय पूरा होने पर रजनी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अयांश रखा।दो-तीन महीने बाद आकाश फिर से अपने घर में मित्र-गोष्ठी करने लगा।कभी-कभी तो बिना बताए ही बुला लेता।अयांश को संभालते हुए रसोई में काम करना रजनी के लिये काफ़ी तकलीफ़देह होता लेकिन वो चाहकर भी आकाश को कुछ कह नहीं पाती थी।

      अयांश का पहला जन्मदिन था, सरिता सपरिवार आई।पार्टी के अगले दिन वो चली गई।रजनी पार्टी में बचे और फैले सामानों को समेटने में लगी हुई थी कि आकाश ने उससे कह दिया कि शाम को रंजीत आ रहा है।तुम तैयारी कर लोगी ना…।

     रजनी ने मौन स्वीकृति दे दी।करीब चार बजे उसने आकाश को फ़ोन किया,” सुनिये ना..मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है..अयांश भी बहुत रो रहा है…मैं डिनर तैयार नहीं…।”

    ” ओह!..अच्छा ज़्यादा नहीं..कुछ हल्का-सा बना देना।” आकाश ने विनम्र आग्रह किया लेकिन रजनी कराहते हुए बोली,” नहीं आकाश..आज तो नहीं हो सकेगा…आप किसी और दिन…।” 

    ” अच्छा…तुम आराम करो..मैं आकर अयांश को..।”

   ” नहीं-नहीं..अयांश को मैं देख लूँगी..आप परेशान मत होइये..।” कहकर उसने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।किचन में जाकर उसने चाय बनाई…अयांश को प्रैम में डाला और उसे एक हाथ से हिलाते हुए उसने चाय की एक घूँट भरी और अपनी सास को फ़ोन लगाया।निर्मला जी फ़ोन रिसीव करते ही पूछ बैठी,” सब ठीक तो है बहू..।”

   ” जी मम्मी…अब आपकी# बहू ने ना बोलना सीख लिया!! ” चहकते हुए रजनी बोली तो निर्मला जी की खुशी से झूमने लगी।उन्होंने कब- कैसे.. प्रश्नों की झड़ी लगा दी।तब रजनी बोली,” मैं अयांश के बर्थ डे की तैयारी कर रही थी..चारों तरफ़ काम फैला हुआ था।उसी समय मिसेज़ पंडवानी चाय के लिए दूध माँगने आ गई तो मैंने अपनी व्यस्तता दिखाते हुए उन्हें ना कह दिया।सरिता दीदी आईं हुईं थी।हमेशा की तरह उन्होंने मुझ पर ज़िम्मेदारी लादना चाहा तो पहली बार मैंने उन्हें मना कर दिया।शायद वो नाराज़ भी हो गईं होंगी…।”कहकर रजनी चुप हो गई।

    ” गुड..थोड़ी हिम्मत जुटा और अपने पति को भी…।”

   ” किया ना मम्मी..बर्थडे पार्टी का सारा घर फैला पड़ा है..और उन्होंने डिनर की फ़रमाईश कर दी तो मैंने सिर-दर्द का बहाना करके ‘नो’ कह दिया..।” 

   ” शाब्बास! ” निर्मला जी की खुशी का ठिकाना न था।

   ” मम्मी..अब मैं रखती हूँ…कहीं वो आ गये तो…।” फ़ोन डिस्कनेक्ट करके वो पीछे मुड़ी तो आकाश को अचानक देखकर घबरा गई,” आप! अचानक…।”

   ” हूँऽऽऽ…अचानक न आता तो पता कैसे चलता कि तुम भी मुँह में ज़बान रखती हो।” आकाश की गंभीर आवाज़ सुनकर रजनी के स्वर लड़खड़ा गए,” वो..मैं…।” तब आकाश अपने दोनों हाथों से उसके कंधों को थामते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला,” आई एम साॅरी रजनी…मैं तुम्हारी इच्छा-अनिच्छा को जाने बिना ही तुम पर काम का बोझ डालता रहा..मुझे माफ़ कर दो।लेकिन अब नहीं…आज हम डिनर के लिए बाहर जा रहें हैं…केवल मैं-तुम..।” तभी प्रैम में लेटा अयांश रोने लगा जैसे पूछ रहा हो, और मैं? तब दोनों एक साथ बोल पड़े,” और अयांश…।”

                                   विभा गुप्ता

                               स्वरचित, बैंगलुरु 

              उदारता दिखाना एक सीमा तक उचित है लेकिन जब कोई उनका दुरुपयोग करने लगे तब ना बोलकर उस पर विराम लगा देना चाहिए।निर्मला जी ने अपनी बहू को यही सीख दी जिसपर रजनी ने अमल किया। 

# बहू ने ना बोलना सीख लिया!!

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