मोह मायके का 

“ क्या बात है बहू कब से तुम्हें आवाज़ दे रही हूँ तुम सुन ही नहीं रही हो और अब देखो यहाँ बैठकर ना जाने किन ख़्यालों में खोई हुई हो… क्या बात है परेशान लग रही हो?” सुनंदा जी अपनी बहू अवनी से बोली 

“ मम्मी जी आपको तो पता ही है मायके में मेरी माँ और भाई के अलावा कोई नहीं है… माँ भी जब तब बीमार ही रहती है… भाई का फोन आया था कह रहा था दीदी आप यहाँ आ सकती हो क्या… मुझे ऑफिस के काम से दूसरे शहर जाना है काम बहुत जरूरी है और मेरा जाना भी…नहीं तो मैं मना कर देता …माँ की देखभाल को रुक जाता…अब मुझे समझ ही नहीं आ रहा है क्या करूँ… माँ को ऐसे हालात में छोड़ भी नहीं सकती और यहाँ आप सबकी ज़िम्मेदारी से मुँह भी नहीं फेर सकती बस यही सब सोचकर परेशान हो रही हूँ ।” अवनी अपनी परेशानी कहते हुए सास की तरह देखने लगी 

“ देखो बहू शादी के बाद ससुराल के प्रति फ़र्ज़ तो निभाने ही होते पर मायके में माँ को ऐसे तो नहीं छोड़ा जा सकता फिर एक ही शहर में होने की वजह से ही तुम्हारा भाई तुम्हें आने के लिए बोल रहा होगा ऐसा करो तुम चली जाओ…. यहाँ मैं सब सँभाल लूँगी….अभी तुम निकेतन और मेरी चिंता छोड़ो …. जाकर माँ को सँभालो ।” सास की बात सुनकर अवनी को राहत मिली और वो मायके जाने की तैयारी करने लगी 

चार दिन वो माँ का ध्यान रखकर उनकी सेहत में सुधार आ जाने के बाद जब भाई आ गया तो वो वापस ससुराल आ गई।

कुछ समय बाद भाई आरव की भी शादी हो गई… अकेली माँ क्या क्या करती इसलिए अवनी को ही जाकर अपने मायके के प्रति सारी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ी…शादी के समय भी सब अवनी से ही कह रहे थे …ऐसे करना है ….वैसे करना है ….ये लाओ वो लाओ… वो थककर पस्त हो गई थी 

खैर शादी निपटा कर अवनी अपने घर आ गई… अभी भी कभी माँ तो कभी भाई अवनी को किसी ना किसी काम के लिए बुला लिया करते पर अब अवनी माँ बनने वाली थी और ऐसे में उसके लिए ज्यादा भागदौड़ करना सही नहीं था 

ये सब देख कर सुनंदा जी ने एक दिन अवनी को प्यार से अपने पास बिठाया और बोली,”बहू अब तो तुम्हारे मायके में भाभी आ गई है… वो माँ को सँभाल सकती है और फिर अब घर में जो भी सलाह मशवरा करना है उसमें तुम्हारी भाभी रति की भागीदारी होनी चाहिए ना कि तुम्हारी… अभी तुम्हें खुद का ध्यान रखने की ज़रूरत है ना कि बार-बार अपने मायके वालो के बुलाने पर वहाँ जाने की ।” 

“ मम्मी जी माँ को मेरी जरूरत रहती है तो कैसे मना कर सकती हूँ… फिर रति भी इसी शहर की है वो भी जब तब अपने घर चली जाती है नहीं तो उसके मायके वाले हमेशा आते रहते है अब तो भाई भी माँ की तरफ से लापरवाह होता जा रहा है ऐसे में माँ मुझे बुला लेती है तो मैं मना नहीं कर पाती।” अवनी लाचारी से बोली 

“ बहू याद रखना मायका मायका ही होता है चाहे तुम उनके लिए कितना भी कर लो तुम्हारी माँ के लिए बेटा बहू ही पहले रहेंगे… अब मैं कड़क सास तो हूँ नहीं कि तुम्हें मायके जाने से रोक सकती हूँ फिर भी कहूँगी बार-बार मायके से बुलावा आने पर चले जाने से तुम्हारी महत्ता ही कम होगी… इसलिए बोल रही हूँ अपना ख़याल रखो और ना बोलना सीखो… बाकी तुम्हारी मर्जी ।” अवनी को समझाने की कोशिश करने के बाद सुनंदा जी अपने कमरे में चली गई 

समय आ गया था अवनी की डिलीवरी का… सुनंदा जी परेशान हो रही थी अकेले कैसे सब सँभालेगी… अवनि की माँ आ जाती तो कम से कम बेटी के साथ रहती ये सोच कर उन्होंने अवनी से कहा,” बहू मैं अकेले तुम्हें और बच्चे को कैसे सँभाल पाऊँगी ये सोच रही हूँ तुम्हारी माँ आ जाती तो कम से कम यहाँ तुम्हारे साथ रहती तो बाकी सब मैं सँभाल लेती ।” 

“ आप सही कह रही हैं मम्मी जी मैं माँ क फोन करके आने के लिए कहती हूँ ।” कहकर अवनी ने माँ को फ़ोन लगा दिया

“ बेटा क्या तेरी सास नहीं सँभालेगी…यहाँ रति को छोड़कर कैसे आ सकती हूँ… तुम्हें तो पता है वो अकेले सब काम कर नहीं पाती… मुझे उसकी मदद के लिए रहना होता … एक बार तेरे भाई से पूछकर बताती हूँ… डॉक्टर ने क्या कहा है कब तक डिलीवरी हो जाएगी?” माँ की बात सुनकर अवनी का चेहरा उतर गया था फिर भी उसने कहा,” डॉक्टर ने सामान्य प्रसव के लिए कल तक इंतजार करने को कहा है अगर नहीं होता है तो फिर ऑपरेशन कर के डिलीवरी करवाएँगे ।” 

“ अच्छा मैं देखती हूँ कोशिश करती हूँ तेरे पास आने की.. तू चिंता मत कर मैं नहीं आ पाऊँगी तो रति को भेज दूँगी वो सँभाल लेगी ।” कहकर माँ ने फोन काट दिया 

अवनी के चेहरे पर आई शिकन से सुनंदा जी समझ गई उधर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया होगा इसलिए वो अवनी से कुछ नहीं पूछी

दूसरे दिन अवनी ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया वो इंतजार कर रही थी कि उसकी माँ तो आएगी क्योंकि जब भी उन्हें जरूरत हुई वो हमेशा उनके साथ रही…डिलीवरी होने के तीन घंटे बाद अवनी की माँ भाई भाभी अस्पताल पहुँचे कुछ देर रुकने के पश्चात वो जाने को हुए तो सुनंदा जी ने कहा,” आप भी जा रही हैं समधन जी… आपकी बेटी को आपकी जरूरत है आपको तो थोडे दिन इसके साथ रुकना चाहिए ।” 

“ माँ रुक तो जाती आंटी जी पर उधर माँ के बिना घर में कोई काम नहीं होता इसलिए इसे छोड़कर कैसे जा सकता हूँ ।” आरव ने कहा 

“ पर बेटा पहले रति नहीं थी तो समझ सकती थी अब तो वो भी है …कुछ दिन समधन जी रुक कर बेटी और नातिन के साथ समय गुजार लेती फिर तो उन्हें अपने घर ही जाना।” सुनंदा जी ने कहा तो कोई कुछ कह नहीं पाया और अवनी की माँ कुछ दिनों के लिए अवनी के साथ रुक गई 

सप्ताह भर बाद ही अवनी की माँ ने कहा,” बेटा अब घर जाती हूँ….तुम देख ही रही हो तेरे भाई का रोज फोन आ रहा है कब आओगी… रति से घर के काम ठीक से नहीं होते इसलिए आरव को मेरी जरूरत रहती है..तुम तो सब अच्छे से सँभाल लेती हो इसलिए तो हम हमेशा तुम्हें बुलाते रहते हैं और समधन जी भी भली है जो तुम्हें कभी मना भी नही करती।” 

ये सब सुनकर अवनी को एहसास हो रहा था कि सुनंदा जी ने ठीक ही कहा था मायके में माँ बेटी की नहीं बेटे बहू के लिए फ़िक्रमंद रहेगी।

“ ठीक है माँ तुम चली जाओ… निकेतन से कहती हूँ वो आपके लिए गाड़ी कर देगें ।” अवनी ने कहा और अपनी बेटी को ताकने लगी 

अब अवनी बेटी के साथ व्यस्त रहने लगी थी फिर भी एक दो बार मायके हो आई थी ।

एक दिन उसके मायके से फोन आया फोन उसकी माँ का था,”अवनी सुन तीज आ रहा है …यहाँ आ जा रति कह रही थी अवनी दी को बुला लीजिए साथ में साड़ी ले लेते हैं… तेरी पसंद का लेना सही रहेगा ।”

अवनी ये सुनते ही पिछले साल की यादों में खो गई….पहली तीज थी रति की माँ ने उसे बुलाया ये कहकर की चल रति के लिए तेरी पसंद की साड़ी ले आते पर जब वो मायके गई तो रति भी साथ गई थी..अवनी जो भी साड़ी पसंद करती रति उसे नापसंद कर देती और उसकी माँ भी बहू की पसंद को तवज्जो दे रही थी ये सब याद आते ही अवनी ने कहा,” माँ आप रति के साथ जाकर साड़ी ले लीजिये… वैसे भी आप दोनों की पसंद मुझसे जरा भी मैच नही करती … मैं अपने लिए इधर ही कुछ देख लूँगी… अब पाखी भी मेरे बिना रहती नहीं है और मैं उसे लेकर बाज़ार नहीं जा सकती।” 

अवनी ने पहली बार ना कहा था ये वही पास बैठी सुनंदा जी ने जब सुनी तो मन ही मन सोचने लगी चलो बहू ने ना बोलना तो सीख लिया … फिर भी वो अवनी से पूछ बैठी,” क्या कह रही थी समधन जी ?”

“ कुछ नहीं तीज के लिए उनकी बहू को साड़ी लेना है तो साथ चलने बोल रही थी पर मैंने मना कर दिया… आप सच कह रही थीं मम्मी जी … जो बेटी बार बार मायके जाती रहती उसकी महत्ता कम हो जाती है… उपर से रति के आने के बाद माँ को भी उसकी पसंद ज्यादा अच्छी लगने लगी है तो मेरा क्या काम ।” अवनी के बोल उसके दुख को बयां कर रहे थे 

“ बहू मैं ये तो नहीं कहती सबका मायका एक जैसा होता पर जब से तुम बहू बन कर आई हो मैं देख रही थी तुम्हारी माँ या भाई हमेशा तुम्हें बस काम के लिए बुलाते रहते तुम चली भी जाती हो उन्हें भी लगता तुम खाली रहती हो… तुम बुरा मत मानना पर अब रति को उस घर की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए ना कि तुम्हारी माँ को बस अपना काम करवाने के लिए बार बार तुम्हें बुलाना चाहिए अच्छा है तुमने मना कर दिया… अभी पाखी पर ध्यान दो ना कि मायके के बुलावे पर दौड़ कर चली जाओ…जरूरत पर जाना सही है पर हर बार बुलाने पर जाना सही नहीं।”सुनंदा जी ने अवनी के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा 

“ हाँ मम्मी जी मैं भी सोच रही हूँ अब बहुत जरूरी होगा तो ही मायके जाऊँगी हर बुलावे पर जाने से मेरी महत्ता कम होने लगी है ।” अवनी अपनी बेटी को गोद में लेकर खिलाते हुए बोली 

मेरी रचना पसंद आए तो अपनी प्रतिक्रिया अवश्य व्यक्त करें ।

मेरी रचना पर अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका धन्यवाद।

रश्मि प्रकाश 

#बहू ने ना कहना सीख लिया

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