जीतू कबाड़ी ठेले पर कबाड़ ले जा रहा था। टूटे हुए गमले, पुराना फर्नीचर और वैसा ही दूसरा सामान। तभी एक ठेला पास आकर रुक गया। ठेले पर पौधे और गमले रखे थे। ठेले वाले का नाम शीतल था। उसने जीतू से कहा-‘ मुझे टूटे गमले दोगे?’
जीतू ने हैरान स्वर में कहा—‘ ऐसा आदमी मैंने पहली बार देखा है जो कूड़े में फैंके जाने वाले टूटे गमलों को लेना चाहता है। आखिर क्या करोगे इन टूटे गमलों का। ’
‘ मैं टूटे गमलों की मरम्मत करके उनमें पौधे लगाता हूँ। ’
‘और फिर उन्हें बेच कर पैसे कमा लेते हो। भई वाह। ’
‘नहीं नहीं, मैं मरम्मत किये गए गमलो को कभी नहीं बेचता, मांगने पर किसी को भी दे देता हूँ।
हां पौधों के दाम जरूर लेता हूँ।‘ शीतल बोला।
‘अगर ऐसा है तो ले लो अपने काम लायक टूटे गमले।‘
शीतल ने कई गमले छांट लिए और सड़क पर गमलों में भरी मिटटी निकालने लगा। तभी जीतू ने आश्चर्य से कहा—‘अरे यह क्या!’अब शीतल ने भी उधर देखा—गमले से निकाली गयी मिटटी में एक कान का झुमका नज़र आ रहा था। दोनों हैरान रह गए। तब तक सोसाइटी का गार्ड वेणु भी आ गया था और दिलचस्पी से यह सब देख रहा था।
झुमका मिटटी में रहने के कारण मटमैला हो गया था पर निश्चय ही सोने का था।
तभी वेणु ने कहा—‘ यह झुमका जरूर लता मैडम का होगा। वह एक दिन इसके बाग़ में खो जाने की बात कह रही थीं। हमें उनके पास चलना चाहिए।‘ और फिर वह शीतल और जीतू को लता जी के पास ले गया। झुमके को देखते ही लता जी ने उत्तेजित स्वर में कहा—‘ कहाँ मिला,मैंने बहुत ढूँढा पर कुछ पता नहीं चला।‘
इस पर शीतल ने झुमका मिलने की विचित्र घटना उन्हें बता दी और पूछा—‘मैडम, आपका झुमका गमले में कैसे गिर गया था?’
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लता ने बताया—‘पहले हमारे पड़ोस में जो सज्जन रहते थे उन्हें शायद पेड़ पौधों से, हरियाली से नफरत थी। और मुझे बचपन से ही पौधे अच्छे लगते हैं, सो मैंने सीढ़ियों पर रेलिंग से सटा कर कुछ फूलदार पौधों के गमले रख दिए। उन्होंने कहा कि मैं सारे गमले तुरंत हटा लूं, क्योंकि गमलों में पानी देने से गीली सीढ़ियों पर कोई भी फिसल कर चोट खा सकता है।
मैंने उन्हें बहुत समझाया कि मैं सीढ़ियों को गीला नहीं होने दूँगी। पर वे नहीं माने, तब मेरे हस्बैंड ने कहा कि इस तरह पड़ोसियों के बीच झगडा होना ठीक नहीं। आखिर मुझे उनकी बात मानकर गमले माली को देने पड़े।‘
‘आपको बुरा तो बहुत लगा होगा?’ जीतू ने पूछा।
‘ऐसा लगा जैसे मेरी प्रिय चीज मुझसे छीन ली गई हो। मैंने माली कहा कि वह मेरे गमलों को अलग जगह में रखे। क्योंकि मैं अपने पौधों की देख भाल अपने हाथों से करना चाहती थी।‘
‘और फिर?’
‘फिर क्या, मैं हर दिन सोसाइटी के पार्क में जाकर अपने गमलों में पानी देती थी, उनके बारे में माली से पूछती रहती थी। शायद किसी दिन मेरा झुमका गमले में गिर गया होगा, मैंने बहुत ढूँढा पर कुछ पता नहीं चला, और मिलता भी कैसे।‘ –कह कर वह मुस्कराने लगीं। फिर उन्होंने सौ के दो नोट जीतू और शीतल की ओर बढ़ाते हुए कहा-‘
मेरा झुमका तुम दोनों के कारण ही मिल सका है। पैसे लेने से मना मत करना।‘
दोनों ने ही पैसे लेने से मना कर दिया। शीतल ने कहा-‘ मैडम जी, आपका झुमका मिलना तो केवल एक संयोग था। हम ये पैसे नहीं ले सकते। हाँ, अगर आप मुझसे पौधे लेना चाहें तो उनके दाम मैं ख़ुशी से ले लूँगा।‘
‘ठीक है, तो फिर तुम मुझे वही गमला दे दो जिसमें मेरा झुमका मिला है।‘
मैडमजी,वह गमला तो टूटा हुआ है,वह भला आपके किस काम का।‘
‘ मैं उस टूटे गमले को अपने कमरे में रखूंगी, वह मुझे इस घटना की याद दिलाता रहेगा।‘
‘आप ने बताया कि आपको पौधों से प्यार है,मैं सोचता हूँ कि उस टूटे गमले को ठीक करके
उसमें एक फूलदार पौधा लगाऊं और आप को भेंट कर दूं। –‘शीतल ने कहा|
2
‘वाह,इससे अच्छा क्या होगा भला। ’—लता ने कहा।फिर जीतू और शीतल विदा लेकर चले गए।
और फिर एक दिन शीतल एक फूलदार पौधे का गमला लेकर लता के पास आया। गमले के टूटे हिस्सों को बड़ी सफाई से जोड़ा गया था। खिले फूलोँ वाला पौधा देख के लता बहुत खुश हो गई। बोली—‘ मैं इस गमले को अपने कमरे में रखूंगी।‘
‘ मैडमजी, इन फूलोँ पर ऐसा जुल्म न करें, कमरे के बंद माहौल में ये फूल जल्दी ही मुरझा जायेंगे। इन फूलों को इनके भाई–बंधुओं के साथ रहने दें। तभी ये खुश और खिले रह सकते हैं।‘
लता कुछ पल सोचती खड़ी रही,फिर धीमे स्वर में कहा—‘ तुम्हारी बात ठीक है।पहले वाले पौधों को तो मुझे विवश होकर
अपने से दूर करना पड़ा था, लेकिन अब ऐसी कोई मजबूरी नहीं है,
फिर गमले को लेकर नीचे बाग़ में उतर गई। शीतल पीछे पीछे था। लता को देखते ही माली पास चला आया। लता ने कहा—‘यह मेरे लिए खास है।‘ माली ने मुस्करा कर कहा—‘ मैं सब सुन चुका हूँ। क्या आप अपने इस विशेष पौधे को कहीं अलग रखना पसंद करेंगी या… ’ लता ने माली को बीच में ही रोक कर कहा—‘
इसे अलग नहीं इसके परिवार के बीच ही रहने दो, तभी तो यह खुश रहेगा,’ यह कहते हुए वह मुस्करा रही थी। माली और शीतल के होंठो भी हंसी आ गई थी।
(समाप्त)