मां ये करेले का जूस वैसा ही पड़ा है।इसको कौन पियेगा।सुबह से झक मार रही हूं मैं।जूस निकालने में कितनी मेहनत और समय लगता है आप क्या जाने बैठे बैठे पीने को मिल जाता है फिर भी पिया नहीं जाता आपसे..निमी की तीखी आवाज से मां जी झट से बिस्तर पर उठ कर बैठ गईं ।
बहू तेरी करेले से भी कड़वी जबान सुनने से तो अच्छा है कि जूस पी लूं शामली जी ने जल्दी से जूस का गिलास उठाते हुए कहा।
हां हां तो अब मैं इस घर में आ गई हूं ।रोज पी ही लिया करिए क्योंकि मैं तो ऐसा ही बोलूंगी चाहे करेला लगे चाहे नीम। शुगर है आपको मिसरी घोल के बोलूंगी तो और बढ़ जाएगी समझी आप ।अब पैर पसार के पड़े मत रहिए बिस्तर पर उठिए और कल माली गुलमोहर के चार पौधे लाया है बगीचे में रखे हैं जाइए और उन्हें मिट्टी खोद कर लगा दीजिए अबकी बार निमी उनके सर पर खड़े होकर बोलने लगी।
ओफ्फो तुझे हर वक्त जुबान से अंगारे उगलना ही आता है क्या ।मेरी तबियत इतनी ज्यादा खराब है बिस्तर से उठा नहीं जाता और तू इतना सुनाती रहती है।क्या करूं…शामली जी ने बड़बड़ाते हुए समर्थन के लिए आंसू भर कर पतिदेव सौरभ जी की तरफ देखा लेकिन वे तो अनसुनी और अनदेखी करते हुए अखबार में और भी ज्यादा घुस गए थे।
इस घर में मेरी सुनता ही कौन है आह भरते हुए शामली जी ने बहुत बेमन से उठने का उपक्रम किया।
बहू ये निगोड़ा माली रोज रोज पौधे क्यों लाता है।एक ही दिन सारे पौधे ले आए तो मुआ ये रोज रोज क्यारी खोदने लगाने की मेरी ड्यूटी से मुक्ति हो ।तीन दिनों से देख रही हूं रोज चार पांच पौधे ले के चला आता है।तू समझाती क्यों नहीं उसे अपनी अंगार जबान से शामली जी चिढ़ कर बोलीं।
माली की कोई गलती नहीं है ।उसको इकट्ठे नहीं मिल पाते है। जितने मिल पाते हैं वह रोज ले आता है ऐसा मैने ही कहा है निमी तेजी से बोल ऑफिस के लिए तैयार होने चली गई।
मां शाम को मंदिर जाना है।आपकी तरफ से मैने छोटे भैया के लिए मन्नत मानी है।दस दिनों तक मंदिर में सांझ का दिया आपकी तरफा से जलाएंगे रोज मिनी ने ऑफिस जाते जाते रुक कर कहा।
ये तो बहुत अच्छी बात है तू रोज जाकर जला देना।
मैं नहीं ….ठीक से सुनती भी नहीं है आप।आप अपने हाथों से जलाएगी वहां जाकर निमी ने तीखे स्वर में कहा।
मैं कैसे जाऊंगी।मेरी तो हिम्मत ही नहीं आने जाने की।वैसे भी कार तो सुबोध लेकर जाता है वह आठ बजे तक वापिस आता है शामली जी ने तर्क दिया।
कार से किसे जाना है मां।पिता जी भी जायेंगे आपके साथ।पैदल जाने की मन्नत है कितने ठाट बाट की आदत पड़ी है आपकी।दो कदम पैदल नहीं चल जाता आपसे हड्डियां तोड़ती रहती हो आप भी घर में एसी में पड़े पड़े निमी बिफर पड़ी।
मैं कैसे जाऊंगा शाम को तो शतरंज की बाजी रहती है पिता जी ने अस्फूट स्वर में विरोध किया।
शतरंज की बाजी फिर कभी करिएगा पिता जी।आज से रोज एक माह तक आप मां के साथ पैदल मंदिर जाएंगे रोज …याद रखिए निमी ने उतनी ही तेजी से कहा तो पिता जी निरुत्तर हो गए।
देख कायदे से बात किया कर समझी हड्डियां नहीं तोड़ती हूं पैदल चलना आता है मुझे भी।जवानी के दिनों में दस दस किलोमीटर चली जाती थी क्यों जी आप भी तो कुछ बोलो समर्थन के लिए पतिदेव की तरफ मुड़ी ही थीं तब तक वह अंतर्धान हो गए।
रोज करेले का जूस ,बगीचे में लेबर गिरी,और अब ये पैदल मंदिर जाके दिया जलाऊं बड़ी आई हिटलर कहीं की तानाशाही तो बढ़ती ही जा रही है सब चुप रहते हैं मेरा घर अलग कर दो मुझे नहीं जीनी इस बुढ़ापे में बहू के अंगार उगलती जबान वाली जिंदगी.. शामली जी बड़बड़ाती भी जा रहीं थीं और मंदिर की तरफ बढ़ती भी जा रहीं थीं क्या करें भगवान की मन्नत कैसे अधूरी छोड़ें।
मां एक महीना हो गया।आज डॉक्टर के पास चलना है शाम को सुबोध ने कहा।
अरे महीना भर बीत गया पता ही नहीं चला।क्या फायदा जाने से।इस बार तो पक्का है इंसुलिन के इंजेक्शन लगाएगा ही और रोज लेने होंगे शामली जी हताश स्वर में बोलती कार में बैठ गई।
कमाल हो गया शामली जी आपका सुगर लेवल तो नॉर्मल हो गया है।और सुबोध जी आपका बीपी भी ये जादू कैसे हो गया डॉक्टर चकित होकर बोल रहे थे।
क्या कह रहे हैं आप डॉक्टर साहब ।क्या इन्सुलिन के इंजेक्शन नहीं लेने पड़ेंगे … पिछले पांच सालों में पहली बार ऐसा हुआ कि आप मेरी शुगर नॉर्मल बता रहे हैं शामली अचंभित स्वर में बोल उठीं।
हां मेरा बीपी भी इतना नॉर्मल कभी नहीं हुआ पिता जी भी चकित थे।
मां ये सब आपकी बहू की अंगारे वाली जुबान के कारण हुआ है।सुबोध राजदारी से मुस्कुरा कर कह उठा।
मतलब..!! मां अब भी चकित थी।
मां घर में तुम किसी की कभी सुनती ही नहीं थीं।तुम्हारे सामने कौन बोलता।मेरी शादी में तुमने इतनी बद परहेजी की तभी तुम्हारे शुगर लेवल खतरनाक हो गया था ।रिपोर्ट देखते ही निमी ने ये रास्ता निकाला….करेले का जूस करेले की जुबान के साथ,माली से जानबूझ कर रोज चार पौधे मंगवा कर आपसे बगीचे में मेहनत करवाने के लिए डांटना ,शाम को मंदिर मन्नत के बहाने से आप दोनों को घर से बाहर निकाल पैदल वॉक के लिए विवश करना ये सब निमी का सुनियोजित प्लान था मां आप लोगों की तबियत ठीक करने के लिए कार चलाते रास्ते भर सुबोध की बातें चलती रहीं और घर आ गया।
मां अब से मिसरी बोली शुरू… कान पकड़ते हुए निमी मां की रिपोर्ट देख कर मुस्कुरा रही थी।
आजा मेरे पास आ।तेरी अंगारे की जुबान के पीछे छिपी मिसरी की मिठास आज मुझे महसूस हो पाई बहू शामली जी निमी को गले से लगा द्रवित स्वर में बोल उठीं।
लेकिन तुम तो हिटलर बहू से अलग घर जाने के लिए बोल रहीं थीं सुबोध जी ने चुटकी ली ।
अरे अलग घर में जाए करेले का जूस मै तो यहीं अपनी मिसरी बहू के साथ रहूंगी।
मां करेले का जूस भी रहेगा मिसरी के साथ निमी ने हंसकर कहा बोलो मंजूर है….!!
मंजूर है बहू तेरी हर बात मंजूर है शामली जी ने भी हंसकर कहा तो सभी हंस पड़े।
लघुकथा#
लतिका श्रीवास्तव
अंगारे उगलना#मुहावरा आधारित लघुकथा