दीक्षा की शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे। नई-नई बहू के लिए ससुराल का माहौल वैसे तो ठीक-ठाक था, पर सासू मां का स्वभाव दीक्षा को हर समय तनाव में रखता था। वे हर छोटी-बड़ी बात पर टोका करतीं, कभी चाय बनाने में देर हो जाने पर, तो कभी साड़ी का पल्लू ठीक से न रखने पर। दीक्षा हर बार चुप रहती, खुद को संभालने की कोशिश करती। लेकिन इस बार बात कुछ अलग थी।
शादी के बाद दीक्षा की पहली यात्रा मायके की थी। अपने घर में मां-पिता के बीच कुछ दिन बिताने का सुख उसे फिर से उस बचपन की याद दिला गया, जब हर काम में ममता और सहारा मिलता था। मायके में समय बिताकर वह जैसे नई ऊर्जा के साथ लौटी थी।
लेकिन उस दिन, ससुराल में आते ही घर के सारे काम और जिम्मेदारियां फिर से उसके सिर पर आ गईं। वह थकी हुई थी, और दोपहर का खाना बनाने के बाद उसकी हिम्मत जवाब दे गई। दीक्षा कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई और थोड़ी ही देर में गहरी नींद में सो गई।
“भला कोई तुक है, दो घंटे से सो रही हैं महारानी!” सासू मां की आवाज पूरे घर में गूंज रही थी।
दीक्षा गहरी नींद में थी, लेकिन आवाजें सुनकर उसकी नींद टूट गई। उसने आंखें मलीं और सिर उठाकर देखा। बाहर सासू मां जोर-जोर से बड़बड़ा रही थीं।
“इस लड़की को अगर सही से गाइड नहीं किया गया तो यह घर के कायदे-कानून नहीं समझ पाएगी। अब तू थका-हारा आया है बेटा, तो उसको उठकर तुझे चाय-पानी देना चाहिए या नहीं?”
रोहित, जो ऑफिस से घर लौटा था, मां की शिकायत सुन रहा था। वह थोड़ा चिढ़ गया।
“मम्मी, कैसी बातें कर रही हो? वही तो देती है चाय-पानी। आज सो गई होगी, तो क्या हुआ?” उसने शांत स्वर में कहा।
“अरे, यह उसका मायका थोड़े ही है जो ऐसा चलेगा।” सासू मां की आवाज तेज हो गई।
तभी, कमरे के कोने में बैठकर अखबार पढ़ रहे ससुर जी ने धीरे-से अखबार एक तरफ रखा। उन्होंने समझाने के अंदाज में कहा,
“जब तक तुम उसको इस घर को अपना घर नहीं समझने दोगी, उसका मन यहां कैसे लगेगा? अरे, यहां भी उसको वैसे ही रहने दो जैसे अपने घर में रहती थी। फिर देखना, धीरे-धीरे सब समझने लगेगी।”
सासू मां के माथे पर शिकन और गहरी हो गई। वह गुस्से में बोलीं,
“हां हां, चढ़ा लो सिर पर तुम सब। पछताओगे, मनमानी करेगी, मनमानी!”
ससुर जी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“तुमको क्या हो गया है, शांति? यह दूसरी बार ही तो आई है यहां। जीवन के कितने साल उसने अपने मायके में गुजारे हैं। वहां उसकी जड़ें हैं। एक पौधे को उखाड़कर दूसरी जगह लगाओगी तो समय तो लगेगा ही न जड़ पकड़ने में। अपनेपन और प्यार का खाद-पानी डालो, फिर देखना यह पौधा तुम्हारे आंगन में कैसे लहलहाएगा!”
ससुर जी की बातें सुनकर दीक्षा का मन गदगद हो गया। उसने महसूस किया कि वह अकेली नहीं थी। घर में कोई था जो उसे समझ रहा था। उसके लिए यह अहसास बहुत बड़ा था।
सासू मां बड़बड़ाते हुए दूसरे कमरे में चली गईं। लेकिन दीक्षा के मन में ससुर जी के लिए सम्मान और गहरा हो गया। वह तुरंत उठी, अपने कपड़े ठीक किए, और रसोई में जाकर चाय बनाने लगी।
चाय लेकर वह ससुर जी के पास पहुंची। उसने चाय का कप उनकी तरफ बढ़ाया और हल्के स्वर में कहा,
“पिताजी, आपके लिए।”
ससुर जी मुस्कुरा दिए। “अरे बेटा, तुझे आराम करना चाहिए था। तू थकी हुई थी।”
दीक्षा ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “नहीं पिताजी, अब मैं ठीक हूं। और आपकी बातों ने मेरा दिन बना दिया।”
ससुर जी के हस्तक्षेप के बाद, घर का माहौल थोड़ा बदलने लगा। हालांकि सासू मां का स्वभाव तुरंत नहीं बदला, लेकिन उनके गुस्से की तीव्रता कम हो गई। दीक्षा ने भी समझदारी से घर के कामकाज को संभालना शुरू कर दिया। वह हर काम पूरे मन से करती, लेकिन अगर किसी दिन वह थक जाती, तो खुद को दोषी महसूस नहीं करती।
रोहित भी अपनी मां को धीरे-धीरे समझाने लगा।
“मम्मी, दीक्षा को समय दो। देखना, वह सब सीख जाएगी। लेकिन हर समय उसे टोकोगी, तो वह असहज महसूस करेगी।”
सासू मां ने कुछ जवाब नहीं दिया, लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें यह बात सही लगी।
एक दिन, दीक्षा ने अपनी सासू मां के साथ रसोई में काम करते हुए बात करने की कोशिश की।
“मांजी, आपको पता है, बचपन में मेरी मां हमेशा कहती थीं कि खाना बनाने का सबसे बड़ा सीक्रेट प्यार है।”
सासू मां ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“तू प्यार डालती है या नहीं, यह तो खाने से पता चलेगा।”
दोनों हंस पड़ीं। उस पल, दीक्षा को महसूस हुआ कि सासू मां का प्यार पाना है तो उन्हे भी माँ जैसी प्यार और सम्मान देना होगा।
कुछ महीनों के बाद, दीक्षा ने ससुराल को अपना घर समझना शुरू कर दिया। वह रोहित के साथ खुश थी, और सासू मां के साथ भी उसकी बनती थी। हालांकि हर रिश्ता पूरी तरह से परफेक्ट नहीं था, लेकिन दीक्षा को अब विश्वास हो गया था कि प्यार और समझदारी से हर रिश्ते को संभाला जा सकता है।
ससुर जी का वह दिन दीक्षा के लिए हमेशा खास रहेगा, जब उन्होंने उसे “जड़ें जमाने” का महत्व समझाया था। अब वह इस घर के आंगन में एक मजबूत और फलदायक पौधा बन चुकी थी।
और धीरे-धीरे, सासू मां के ताने भी तारीफों में बदलने लगे।
“मेरी बहू तो सब कुछ संभाल लेती है। अब तो मुझे किसी बात की चिंता ही नहीं रहती।”
दीक्षा ने मुस्कुराकर सोचा,
“पौधे ने आखिरकार अपनी जड़ें जमा ली हैं।”
राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
(मूल रचना )