मेरे जीवनसाथी – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

“ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए

मुझे डोर कोई खींचे …….” 

ये वो गाना है जो वाणी और विमल के जीवन को बखूबी बयां करता है।

उनकी हर शाम सुहानी, मस्तानी और सुकुन से भरी हुई जो होती थी। सुकूं ऐसा कि दुश्मन तो दुश्मन ,दोस्त भी रस्क करें।

मौसम तो आज भी सुहाना ही था हल्की हल्की बारिश की फुहारें और ठंडी मंद बयार । ऐसे मौसम में झूले पर बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ बेसन प्याज के पकौड़े वीणा के बचपन का शौक था जो अब तक बरकरार था बल्कि शादी के बाद तो यह शौक जुनून में बदल गया था कारण विमल का वो प्यार और मनुहार वाला व्यवहार जिसकी कल्पना भी वाणी ने कभी नहीं की थी। 

शादी से पहले मां एक राजकुमारी की तरह उसे रखतीं थीं  उसके शौक को उन्होंने बचपन में ही समझ लिया था और एक खूबसूरत झूला उन्होंने उसके लिए घर के बगीचे में डलवा दिया था, कहीं न कहीं यह उनका अपना भी प्यार था।

और अब शादी के बाद जब विमल को पता चला कि मैडम झूले की मुरीद हैं तो खूबसूरत मुरादाबादी झूला विशेष आर्डर पर मंगवाकर लॉन में डाल दिया जो वाणी के लिए अप्रत्याशित ही था।

अब हर शाम रंगीन होती थी । वीणा बेसब्री से शाम का इंतजार करती और विमल के आते ही चाय के साथ दोनों झूले पर आकर बैठ जाते ।  

अगर मौसम बारिश का होता तो यह तय था कि उस दिन चाय पकौड़े विमल बनाएंगे ,वह नहीं चाहते थे कि वाणी को मायके की कमी ऐसी बातों के लिए महसूस हो ।कितनी ही व्यस्तता में वो दोनों साथ चाय पीने का अवसर नहीं गँवाते थे। जिंदगी खूबसूरती के साथ गुजर रही थी इसी बीच वीणा और विमल एक गोलूमोलू से बेटे दक्ष के माता पिता भी बन गए पर उनके प्यार और लगाव में कहीं कोई कमी नहीं आई बल्कि वे दोनों बच्चे के सहारे से और भी अधिक समय साथ साथ गुजारने लगे। कभी कभी दक्ष के दादा दादी भी उनके पास रहने के लिए आ जाते तो समय और भी प्यारा लगता।

समय अच्छा हो तो पंख लगाकर गुजर जाता है यही वाणी के साथ हुआ धीरे धीरे दक्ष भी बड़ा होने लगा और पढ़ाई में व्यस्त रहने लगा । दादा दादी भी समय के साथ एक एक करके दुनिया से चले गए।

अब वाणी विमल और उनका प्यारा झूला।

ये झूला हर सुहाने और रूमानी पल का राजदार था दोनों का,इसका होना ही अब तो राजीव के अस्तित्व जैसा लगता था वाणी को आखिर उसका प्यार जो इसमें बसा था। नोंकझोंक तो बस मीठी ही होती थी उनमें कभी भी तकरार जैसा कुछ हुआ ही नहीं कि उसका राजदार ये झूला बनता।

वाणी की आँखें डबडबा आईं कितने सुहाने दिन थे , कभी ये तो सपने में भी न सोचा था कि इस झूले पर अकेले भी बैठकर अतीत को झांकना पड़ेगा।

अच्छे दिनों की ये सबसे बड़ी खराबी होती है कि वो कभी ये सोचने ही नहीं देते कि समय परिवर्तनशील है । 

पर समय कहां किसी के लिए रुका है? 

अभी कुछ ही दिन तो हुए थे जब रात को वाणी और विमल हाथों में हाथ डालकर नवविवाहित युगल की तरह आइसक्रीम खा रहे थे जब विमल ने कहा था,”वाणी मैं तुम्हें उतना समय नहीं दे पाया जितने की तुम हकदार थीं बस कुछ दिन की बात और है फिर समय की कोई कमी नहीं होगी, रिटायरमेंट के बाद मैं तुम्हें हर वो जगह घुमाऊंगा जहां तुम चाहोगी”। तब वाणी ने चहकते हुए कहा था,”नहीं जी आप ऐसा नहीं कर पाएंगे क्योंकि मैं जहां भी जाऊंगी अपने झूले को बहुत मिस करुंगी इसलिए मेरा तो गंगा और गंगासागर यह झूला ही है बस आप साथ रहना हमेशा साथ रहना इस पर ,और आज वीणा अकेली बैठी मन को समझा रही थी कि अब विमल कभी वापस नहीं आएंगे कितनी ही मिन्नतें करने पर भी न आएंगे।

समय इतनी जल्दी बदल गया विश्वास ही नहीं हो रहा।

विमल को उस रात अचानक दिल का दौरा पड़ा और कुछ करने सोचने का भी वक्त न मिला और विमल हमेशा के लिए दक्ष और वाणी को छोड़कर चले गए।

रह गया तो यह झूला जो पुरानी यादों को रहरहकर याद दिला रहा था पर कहीं न कहीं विमल की उपस्थिति का सा एहसास भी करा रहा था।

अचानक दक्ष ने पीछे से आकर मां को बाहों में भर लिया और आँखों ही आँखों में लाड़ जताकर न रोने की मिन्नत की , पता नहीं क्यों बेटे बाप की परछाईं से होते हैं? 

दक्ष भी न केवल शक्ल सूरत में बल्कि आदत व्यवहार में भी विमल की कार्बन कापी सा है। अब वाणी को बस इसे देखकर और इसके लिए ही जीना है।

यही सोचते हुए वह झूले से उठकर दक्ष के लिए दूध और स्नैक्स लाने के लिए चल पड़ी।

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रचना:- पूनम सारस्वत, अलीगढ़

#अस्तित्व

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