मेरा साथी – एम. पी. सिंह 

वरिष्ठ नागरिक होने का सम्मान अधिकांश लोगों को नसीब नहीं होता, और जिन्हे नसीब होता है, उनके लिए भी चुनौतीयों भरा होता है. मैं आपको अपनी कहानी बताता हूँ. 

मैं 70+ का एक रिटायर ऑफिसर हूँ, हॉस्टल के दिनों मैं मैंने एक टाइम पीस (घड़ी) लिया था, जो एलार्म बजाकर मेरे प्रत्येक इम्पोर्टेन्ट कार्य की याद दिलाती थी. उसकी आवाज सुने बिना कोई भी कार्य प्रारम्भ नहीं होता.  उसके साथ कॉलेज के 5 साल कैसे बीते, पता ही नहीं चला. फिर नौकरी शुरू हुई, तो घड़ी को भी अपने साथ ले गया. यहाँ मैंने उसे केवल ऑफिस भेजनें का काम सौंप दिया. बाकी सब काम तो बेसमय होते थे. कुछ बरस बाद शादी हुई, तो ये इस काम की जिम्मेदारी मेरी पत्नी ने संभाल लीं. 

अब घड़ी केवल समय बताती थी, जिससे मेरी पत्नी को खाना बनाने  के समय का संकेत मिलता था. कुछ और साल बीते, मैं दो दो बच्चों का पिता बन गया. अब घड़ी बच्चों हो उठाने का काम करने लगी. बच्चे थोड़ा बड़े हुए और मोबाइल का जमाना आ गया, अब बच्चों को घड़ी की टिक टिक परेशान करने लगी,

इससे बचने के लिए घड़ी को फिर मेरे कमरे में रख गए. वो अब भी समय बताने का काम कर रही थी, पर मुझे उसकी जरूरत नहीं थी, पर हाँ, मेरी पत्नी उसे जरूर देखती थी, ताकि हर किसी का काम समय पर कर सके.

इस बार जब घड़ी मेरे कमरे में आई, उसका चेहरा चमक रहा था, शायद साफ वाफ करके रखा गया था और मेरा चेहरा थका हुआ, शायद उम्र की वजह से. आज पहली बार मुझे घड़ी की टिक टिक साफ साफ सुनाई दें रही थी. न चाहते हुऐ भी मेरा ध्यान उधर चला जाता था. कुछ समय बाद में रिटायर हो गया

और बच्चे नौकरी करने लग गए. फिर बच्चे अपनी पत्नी बच्चे के साथ व्यस्त हो गए. अब मकान बहुत बड़ा हो गया और हमारा कमरा छोटा. बस नहीं बदली तो घड़ी की टिक टिक. कुछ दिन बाद घड़ी की टिक टिक बन्द हो गईं, शायद उसे भी अहसास हो गया था

की उसके बिना कुछ नहीं रुकने वाला. मैंने घड़ी ठीक करवाने की जिद की परन्तु बच्चों ने जरूरत नहीं समझी. एक दिन बच्चों ने कहा की घड़ी बन्द हो गई है, इसे बाहर फेक देते है, मैंने बिना समय व्यर्थ किये मना कर दिया. अब मैं और घड़ी दोनों लाचार /

मजबूर एक दूसरे को देखते है, और एकदूसरे की मज़बूरी समझते है. अब महीने में एक बार बच्चे हमारे कमरे मे आते है, बै वजह मुस्कुराते है, बेमन से बन्द पड़ी घड़ी को साफ करते है और पेंशन के पैसे लेकर चले जाते है. फिर हम दोनों पति पत्नी महीना भर एक

दूसरे के साथ रहते है और बेजान पड़ी घड़ी हमें देखती रहती है. जिस दिन पति पत्नी मैं से कोई एक साथ छोड़ जायेगा, दूसरा भी ज्यादा दिन अकेला न जी पायेगा. मैं आज के युवाओं को बस इतना ही कहना चाहता हूँ, की जिन हालात मैं हम जी रहे है, कल उन्ही प्रस्थितियों मैं तुम्हे भी रहना पड़ सकता है. इसलिए अपने बच्चों के सामने वही उदाहरण पेश करे, जो तुम खुद चाहते हो, वरना समय हाथ से निकल जायेगा.

लेखक

एम. पी. सिंह 

(Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित 

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