दादी को गुजरे आज 2 महीने हो गए थे, पर आठ साल का निखिल अभी भी दादी को बहुत याद करता था। निखिल के दादा दादी निखिल को बहुत प्यार करते थे। छुट्टियों मे तो निखिल सुबह दादी के ही हाथ के परांठे खाता था। दादा जी के साथ बैठ अपनी प्यारी बातों से उनका मन मोह लेता।
निखिल की माँ सीमा चुपचाप अपना काम करती रहती। उसे निखिल का दादा दादी के पास इतना रहना नहीं भाता था, पर निखिल के कारण कुछ ना कहती।
दादी के जाने के बाद केवल निखिल ही था जो दादा जी से सारा दिन बातें करता| सीमा तो बस उनके जाने के भी दिन गिन रही थी। वह तो उनका काम भी बोझ समझ कर करती। सुबह उठते हुए सीमा को रोज़ ही देर हो जाती जिसके कारण सुबह सब काम अव्यवस्थित हो जाते।
सुबह की चाय तो दादा जी खुद ही बना लेते, पर नाश्ते के लिए सीमा पर निर्भर थे। सीमा भी इस निर्भरता के कारण खूब अकड़ दिखाती।
दादा जी नाश्ते के लिए पूछते तो रूखा सा कहती “ठीक है ठीक है, अभी थोड़ी देर लगेगी| आपको तो बस खाना खाना ही लगा रहता है।” दादा जी चुपचाप लौट जाते अपने कमरे में और दोपहर तक नाश्ता आता। निखिल माँ को दादा जी से ऐसा व्यवहार करते देखता तो उसे मन ही मन माँ पर बड़ा गुस्सा आता।
“माँ कल से आप मुझे दो टिफ़िन देना”। निखिल ने अपनी माँ से कहा।
“क्यों मेरे बेटे को दो टिफ़िन क्यों चाहिए”? सीमा ने हैरानी से निखिल से पूछा।
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“मम्मी मेरे एक दोस्त की मम्मी उसे टिफ़िन में खाना नहीं देती। वो बेचारा सुबह बिस्कुट खा कर काम चलाता है। उसे बहुत भूख लगती है। उसे आपके हाथ का खाना बहुत स्वादिष्ट लगता है। मैं एक टिफिन उसे दूंगा” निखिल ने मासूमियत से बोला।
“हाय कैसी माँ है” सीमा ने सोचा और अपने आप पर इतराने लगी।
इसी बहाने निखिल में अच्छी आदत आएगी ये सोच सीमा ने निखिल को समझाया “अपनी आंखों के आगे किसी को भूखा नहीं रखना चाहिए। तुम बहुत अच्छा करते हो जो उस से टिफ़िन शेयर करते हो। तुम मेरे बहुत अच्छे बच्चे हो। मैं तुम्हे कल से दो टिफ़िन दूंगी”
अगले दिन सुबह सीमा ने दो टिफ़िन बना दिए।
“बेटा बस का टाइम हो रहा है जल्दी करो” सीमा ने निखिल को आवाज़ लगाई।
निखिल ने बैग उठाया और बैग में से दूसरा टिफ़िन निकाल कर सीधे अपने दादा जी के कमरे की ओर भागा।
“दादा जी, माँ ने कहा है कि वो रोज़ समय से एक टिफिन आपके लिए देगी। ये आपका टिफ़िन है और बिस्कुट मत खाना” निखिल ने दादा जी की ओर टिफिन बढ़ा दिया।
दादाजी ने अपने बुड्ढे हाथों से पोते को आशीर्वाद दिया और गले से लगा लिया। उधर दरवाज़े के पीछे खड़ी सीमा जो अपने बेटे के पीछे पीछे आयी थी, को दादा जी के साथ अपने किये व्यवहार पर शर्मिंदगी हो रही थी।
घर के बड़े हमारे जीवन का आशीर्वाद होते हैं। जब तक रहते हैं, हमें आशीर्वाद देते हैं और हमारे लिए भगवान से प्राथर्ना करते हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए। गृहिणी का जीवन व्यस्त होता है पर जैसे वह अपने बच्चे से प्यार करती हैं और उसके खाने इत्यादि का सारा ध्यान रखती है| घर के बुजुर्ग भी बच्चे के समान ही होते हैं अतः उसका उनके प्रति भी फ़र्ज़ होता है।
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आपकी मित्र
पूनम